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ओडिशा की जंबो त्रासदी:  हाथियों की मौत में बेतहाशा वृद्धि

ओडिशा में साल 2000 से अब तक विभिन्न कारणों से 1,356 हाथियों की मौत हो चुकी है. हालांकि साल 2000-01 में केवल 20 हाथी की मौत हुई थी परतु 2018-19 में यह संख्या बढ़कर 93 तक पहुंच गई. इसका मतलब है हर महीने लगभग 8 हाथी मौत के गाल में समा रहे हैं. हालांकि हाथियों की संख्या भी बढ़ी है परंतु उसकी संख्या मौत की तुलना में काफी कम है.

ओडिशा की जंबो पर संकट
ओडिशा की जंबो पर संकट
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Published : Mar 28, 2022, 9:08 AM IST

भुवनेश्वर: , 27 मार्च (आईएएनएस)| ओडिशा में साल 2000 से अब तक विभिन्न कारणों से 1,356 हाथियों की मौत हो चुकी है. जहां 2000-01 में केवल 20 हाथियों की मौत हुई, वहीं 2020-21 में इनकी संख्या बढ़कर 77 तक पहुंच गई. इस वित्तीय वर्ष में अक्टूबर तक कम से कम 42 जंबो को मौत की सूचना मिली थी. एक आरटीआई क्वेरी के जवाब में ओडिशा के मुख्य वन्यजीव वार्डन के कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 2018-19 में सबसे ज्यादा हाथियों की मौत (93) हुई थी. उसके बाद 2015-16 में 86 और 2010-11 में 83 हाथी की मौत हुई थी. इसी तरह 2012-13 में और 2019-20 में भी 82 जंबो की मौत हुई.

शिकारियों द्वारा 136 हाथी मारे गए, 19 जहर के कारण, 33 ट्रेन हादसे में. छह सड़क हादसों में और 204 अन्य दुर्घटनाओं में मारे गए. बिजली की चपेट में आने से 206 जंबो मारे गए, जिनमें से 106 जानबूझकर मारा गया जबकि 34 हाथियों की प्राकृतिक कारणों से मौत हुई. वन्यजीव कार्यालय को अन्य 176 हाथियों की मौत का कारण नहीं पता है क्योंकि शवों के अत्यधिक सड़ने के बाद मामले दर्ज किए गए थे. इसीलिए उसका पोस्टमार्टम नहीं किया जा सका. बाकी हाथियों ने संक्रमण के कारण दम तोड़ दिया - 51 की मौत एंथ्रेक्स से, सात दाद से और 334 अन्य बीमारियों से हुई. पूर्वी राज्य में 1,976 हाथी थे, 2017 में हुई पिछली जनगणना के अनुसार.

2012 में राज्य में 1930 जंबो थे, जो कि 2015 में बढ़कर 1954 तक पहुंच गई. हाथियों के संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताते हुए, मुख्य वन्यजीव वार्डन के कार्यालय ने कहा कि सरकार ने जंबो की मौत की जांच के लिए मयूरभंजा, संबलपुर और महानदी हाथी संरक्षण परियोजनाओं को अधिसूचित किया है. राज्य ने 14 पारंपरिक हाथी भी चुने हैं हाथियों की निर्बाध आवागमन के लिए गलियारे.

सरकार ने तालाब खुदवाए हैंं, घास के मैदान विकसित किए हैं और विभिन्न जानवरों के आवासों और पारंपरिक हाथी गलियारों में नमक चाटने का प्रावधान किया है. ऊर्जा विभाग और रेलवे के अधिकारियों के साथ समन्वय बैठकें अक्सर आयोजित की जा रही हैं और रोकथाम के उपाय किए जा रहे हैं. बिजली की चपेट में आने और ट्रेनों की चपेट में आने से हाथियों की मौत के बारे में कार्यालय को सूचित किया गया है. हाथियों के अवैध शिकार को रोकने के लिए महत्वपूर्ण स्थानों पर अवैध शिकार और तस्करी विरोधी गार्डों की तैनाती की गई है. हाथियों के आवास और उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने के लिए ट्रैकर्स को तैनात किया गया है. इसके अलावा, मानव बस्तियों की ओर जानवरों की आवाजाही को रोकने के लिए हाथी प्रूफ खाइयां खोदी गई हैं. पूर्व वन संरक्षक जीतशत्रु मोहंती ने कहा करंट और ट्रेन की चपेट में आने से हाथियों की मौत को कम करने के लिए बहुत काम करने की जरूरत है. बिजली की लाइनें या तो भूमिगत होनी चाहिए या इसकी ऊंचाई को बढाने की आवश्यकता है. ताकि हाथी लाइव तारों के संपर्क मे न आएं. उन्होंने सुझाव दिया कि हाथी-ट्रेन टक्कर के मामलों को रोकने के लिए क्षेत्र-स्तरीय वन और रेलवे अधिकारियों के बीच उचित समन्वय की आवश्यकता है. हाथी के पास रहने वाले लोगों के लिए निरंतर जागरूकता कार्यक्रम भी चलाया जाना चाहिए. विशेषज्ञ ने कहा कि आंदोलन क्षेत्रों ताकि मानव-हाथी संघर्ष को कम किया जा सके.

भुवनेश्वर: , 27 मार्च (आईएएनएस)| ओडिशा में साल 2000 से अब तक विभिन्न कारणों से 1,356 हाथियों की मौत हो चुकी है. जहां 2000-01 में केवल 20 हाथियों की मौत हुई, वहीं 2020-21 में इनकी संख्या बढ़कर 77 तक पहुंच गई. इस वित्तीय वर्ष में अक्टूबर तक कम से कम 42 जंबो को मौत की सूचना मिली थी. एक आरटीआई क्वेरी के जवाब में ओडिशा के मुख्य वन्यजीव वार्डन के कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 2018-19 में सबसे ज्यादा हाथियों की मौत (93) हुई थी. उसके बाद 2015-16 में 86 और 2010-11 में 83 हाथी की मौत हुई थी. इसी तरह 2012-13 में और 2019-20 में भी 82 जंबो की मौत हुई.

शिकारियों द्वारा 136 हाथी मारे गए, 19 जहर के कारण, 33 ट्रेन हादसे में. छह सड़क हादसों में और 204 अन्य दुर्घटनाओं में मारे गए. बिजली की चपेट में आने से 206 जंबो मारे गए, जिनमें से 106 जानबूझकर मारा गया जबकि 34 हाथियों की प्राकृतिक कारणों से मौत हुई. वन्यजीव कार्यालय को अन्य 176 हाथियों की मौत का कारण नहीं पता है क्योंकि शवों के अत्यधिक सड़ने के बाद मामले दर्ज किए गए थे. इसीलिए उसका पोस्टमार्टम नहीं किया जा सका. बाकी हाथियों ने संक्रमण के कारण दम तोड़ दिया - 51 की मौत एंथ्रेक्स से, सात दाद से और 334 अन्य बीमारियों से हुई. पूर्वी राज्य में 1,976 हाथी थे, 2017 में हुई पिछली जनगणना के अनुसार.

2012 में राज्य में 1930 जंबो थे, जो कि 2015 में बढ़कर 1954 तक पहुंच गई. हाथियों के संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताते हुए, मुख्य वन्यजीव वार्डन के कार्यालय ने कहा कि सरकार ने जंबो की मौत की जांच के लिए मयूरभंजा, संबलपुर और महानदी हाथी संरक्षण परियोजनाओं को अधिसूचित किया है. राज्य ने 14 पारंपरिक हाथी भी चुने हैं हाथियों की निर्बाध आवागमन के लिए गलियारे.

सरकार ने तालाब खुदवाए हैंं, घास के मैदान विकसित किए हैं और विभिन्न जानवरों के आवासों और पारंपरिक हाथी गलियारों में नमक चाटने का प्रावधान किया है. ऊर्जा विभाग और रेलवे के अधिकारियों के साथ समन्वय बैठकें अक्सर आयोजित की जा रही हैं और रोकथाम के उपाय किए जा रहे हैं. बिजली की चपेट में आने और ट्रेनों की चपेट में आने से हाथियों की मौत के बारे में कार्यालय को सूचित किया गया है. हाथियों के अवैध शिकार को रोकने के लिए महत्वपूर्ण स्थानों पर अवैध शिकार और तस्करी विरोधी गार्डों की तैनाती की गई है. हाथियों के आवास और उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने के लिए ट्रैकर्स को तैनात किया गया है. इसके अलावा, मानव बस्तियों की ओर जानवरों की आवाजाही को रोकने के लिए हाथी प्रूफ खाइयां खोदी गई हैं. पूर्व वन संरक्षक जीतशत्रु मोहंती ने कहा करंट और ट्रेन की चपेट में आने से हाथियों की मौत को कम करने के लिए बहुत काम करने की जरूरत है. बिजली की लाइनें या तो भूमिगत होनी चाहिए या इसकी ऊंचाई को बढाने की आवश्यकता है. ताकि हाथी लाइव तारों के संपर्क मे न आएं. उन्होंने सुझाव दिया कि हाथी-ट्रेन टक्कर के मामलों को रोकने के लिए क्षेत्र-स्तरीय वन और रेलवे अधिकारियों के बीच उचित समन्वय की आवश्यकता है. हाथी के पास रहने वाले लोगों के लिए निरंतर जागरूकता कार्यक्रम भी चलाया जाना चाहिए. विशेषज्ञ ने कहा कि आंदोलन क्षेत्रों ताकि मानव-हाथी संघर्ष को कम किया जा सके.

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आईएएनएस

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