पुरी : 'जय श्रीजगन्नाथ' के उद्घोष और झांझ-मंजीरों की थाप के बीच तीर्थनगरी में बुधवार को भगवान श्रीजगन्नाथ की 'बाहुड़ा यात्रा' (रथ की वापसी) शुरू हुई. भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान श्रीजगन्नाथ को श्रीगुंडिचा मंदिर से एक औपचारिक 'धाडी पहांडी' (जुलूस) में उनके रथों पर ले जाया गया, जो श्रीमंदिर में उनके निवास स्थान के लिए उनकी वापसी यात्रा या 'बाहुड़ा यात्रा' की शुरुआत का प्रतीक है. श्रीगुंडिचा मंदिर में 9 दिनों के लंबे वार्षिक प्रवास के बाद, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ पुरी में अपने निवास श्रीमंदिर लौट आए. हालांकि बाहुड़ा यात्रा के दौरान एक सेवादार सहित छह श्रद्धालु घायल हो गए. बताया जा रहा है कि पुरी की ग्रैंड रोड पर भगवान बलभद्र को ले जा रहे तालध्वज रथ की रस्सी टूट जाने से एक सेवक घायल हो गया. वहीं रथ खींचने के दौरान दम घुटने से 5 अन्य श्रद्धालु भी कथित तौर पर घायल हो गए. सभी घायलों को इलाज के लिए पुरी जिला मुख्यालय अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
रथ यात्रा 20 जून को शुरू हुई थी, जब देवी-देवताओं को मुख्य मंदिर से करीब तीन किलोमीटर दूर श्री गुंडिचा मंदिर ले जाया गया था. देवता सात दिन तक गुंडिचा मंदिर में रहते हैं, जिसे भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ का जन्मस्थान माना जाता है. श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) ने पहले 'पहांडी' का समय दोपहर 12 बजे से ढाई बजे बजे के बीच तय किया था, लेकिन जुलूस निर्धारित समय से काफी पहले ही पूरा हो गया.
बता दें कि वापसी यात्रा के दौरान, तीनों रथ थोड़ी देर के लिए मौसिमा मंदिर में रुकते हैं, जिसे अर्धसानी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर भगवान श्रीजगन्नाथ की मौसी को समर्पित है. यहां तीन देवताओं को चावल, नारियल, दाल और गुड़ से बनी एक विशेष मिठाई 'पोड़ा पीठा' का भोग लगाया जाता है. वहीं ओडिसी और गोटीपुआ नर्तक रथों के सामने संगीत की धुन पर प्रस्तुति देते हैं और मार्शल कलाकार देवताओं के सामने एक पारंपरिक मार्शल आर्ट, बनाटी का प्रदर्शन करते हैं.
परंपरा के अनुसार, पुरी के गजपति महाराजा दिव्य सिंह देब द्वारा तीन रथों में 'छेरा पाहनरा' (रथों को साफ करने संबंधी) अनुष्ठान किया गया. रथों को शाम चार बजे से खींचना शुरू किया जाएगा. एसजेटीए के एक अधिकारी ने कहा, 'हमें उम्मीद है कि सभी अनुष्ठान समय से बहुत पहले हो जाएंगे क्योंकि 'पहंडी' समयपूर्व संपन्न हो गई थी.' अधिकारी ने बताया कि देवता बुधवार रात तक 12वीं सदी के मंदिर के सिंह द्वार के सामने रथों पर विराजमान रहेंगे और 29 जून को रथों पर औपचारिक 'सुनाबेशा' (सोने की पोशाक पहनाने की प्रथा) किया जाएगा. करीब 10 लाख भक्तों के इस मौके पर पहुंचने की उम्मीद है. उन्होंने बताया कि 30 जून को रथों पर 'अधार पाना' अनुष्ठान किया जाएगा, जबकि एक जुलाई को 'नीलाद्रि बिजे' नामक अनुष्ठान में देवताओं को मुख्य मंदिर में वापस ले जाया जाएगा.
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(इनपुट-एजेंसी)