नई दिल्ली : कांग्रेस ने राज्यों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जातियों की पहचान करने और सूची बनाने का अधिकार बहाल करने वाले 'संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021' का समर्थन किया और 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को खत्म करने की वकालत की है.
राज्यसभा में इस विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी ने केंद्र सरकार पर जातीय जनगणना से दूर भागने का आरोप लगाया और कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और ओड़िसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी इसका समर्थन किए है, ऐसे में केंद्र सरकार इस पर चुप क्यों बैठी है.
उन्होंने पूछा, 'आप जातीय जनगणना से दूर क्यों भाग रहे हैं? क्यों कतरा रहे हैं? बिहार के मुख्यमंत्री और ओड़िसा के मुख्यमंत्री भी इसके पक्ष में हैं. कल तो आपकी एक सांसद ने भी इसके समर्थन में बात कही है. फिर सरकार चुप क्यों बैठी है. सरकार ने अभी तक स्पष्ट क्यों नहीं किया. आप नहीं करना चाहते तो भी स्पष्ट कर दीजिए.'
उन्होंने कहा कि शायद सरकार इसलिए नहीं कर रही है क्योंकि उसे पता है कि ओबीसी का असली आंकड़ा 42 से 45 प्रतिशत के करीब है. सिंघवी ने कहा कि इस विधेयक में आरक्षण की सीमा के बारे में एक शब्द भी नहीं है.
उन्होंने कहा, 'राज्य ओबीसी सूची बनाकर क्या करेंगे? वह जो सूची बनाएंगे, वह उस बर्तन जैसी है जो आवाज तो निकाल सकती है लेकिन उसमें खाना नहीं खा सकते. लगभग 75 प्रतिशत राज्य ऐसे हैं जो आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा से आगे निकल गए हैं...तो वह करेंगे क्या इसके साथ. आप उनको एक कागजी दस्तावेज दे रहे हैं और अपनी पीठ थपथपा रहे हैं और एक झूठा वायदा दिखा रहे हैं. एक ऐसा सब्जबाग दिखा रहे हैं जो कानूनी और संवैधानिक रूप से क्रियान्वित कभी हो ही नहीं सकता.'
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने 50 प्रतिशत की सीमा तय करने के साथ ही अपवाद स्वरूप विकल्प दिए हैं, जो सामाजिक और भौगोलिक स्थिति पर आधारित है. उन्होंने कहा कि आरक्षणस की 50 प्रतिशत की सीमा कोई 'पत्थर की लकीर' नहीं है. उन्होंने कहा, '...इस पर सोचना चाहिए...सोचना चाहिए था.'
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कांग्रेस सदस्य ने कहा कि सरकार को अपनी गलतियों को सुधारने के लिए 127वां संशोधन विधेयक लाना पड़ा. उन्होंने कहा कि ओबीसी के संबंध में 2018 में 102वां संविधान संशोधन लाया गया था वह राज्यों की शक्तियां छीनने वाला था. उन्होंने कहा, '2018 में लाया गया विधेयक सरकार की लापरवाही और गलती थी. इस गलती को ठीक करने के कई मौके मिले लेकिन अपनी जिद और अहंकार के चलते आपने ऐसा नहीं किया.'
संघवी ने सवाल उठाया कि भले ही ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है लेकिन उन्हें इसका लाभ नहीं मिल रहा है. उन्होंने कहा, 'सिर्फ 22 प्रतिशत ही आरक्षण मिल रहा है. वह भी ग्रुप सी और ग्रुप डी की नौकरियों में.'
बता दें कि मंगलवार को लगभग 6 घंटे की मैराथन चर्चा और केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र सिंह के जवाब के बाद 127वें संशोधन विधेयक को लोकसभा की मंजूरी मिल गई.
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने 5 मई के बहुमत आधारित फैसले की समीक्षा करने की केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें यह कहा गया था कि 102वां संविधान संशोधन नौकरियों एवं दाखिले में सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े (एसईबीसी) को आरक्षण देने के राज्य के अधिकार को ले लेता है.
वर्ष 2018 के 102वें संविधान संशोधन अधिनियम में अनुच्छेद 338 बी जोड़ा गया था जो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के ढांचे, कर्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है जबकि 342 ए किसी विशिष्ट जाति को ओबीसी अधिसूचित करने और सूची में बदलाव करने के संसद के अधिकारों से संबंधित है. पांच मई को उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से महाराष्ट्र में मराठा कोटा प्रदान करने संबंधी कानून को निरस्त कर दिया था.
(पीटीआई-भाषा)