नई दिल्ली : मुंबई में उद्योगपति मुकेश अंबानी के निवास एंटीलिया के पास विस्फोटकों से भरी स्कॉर्पियो कार की बरामदगी और इस प्रकरण में एक पुलिस अधिकारी सचिन वाजे (एनकाउंटर स्पेशलिस्ट) की गिरफ्तारी के बाद, ऐसे विशेषज्ञों की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठने लगे हैं.
सिंह ने कहा कि हमें एनकाउंटर स्पेशलिस्ट की जरूरत नहीं है, लेकिन हमें बहादुर और दिलेर अधिकारी चाहिए. अगर कोई कहता है कि एक अधिकारी ने 64 लोगों को मारा है, तो मैं कहूंगा कि 50 निर्दोष लोग मारे गए हैं और इनमें से केवल 20 प्रतिशत लोगों का ही वास्तविक एनकाउंटर हो सकता है.
वह सचिन वाजे का जिक्र कर रहे थे, जिन्होंने मुठभेड़ में 64 अपराधियों का एनकाउंटर करने की बता स्वीकार की है और उन्हें एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के रूप ख्याति मिली है.
पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने कहा कि इस तरह के स्पेशलिस्ट बाद में समस्या पैदा कर सकते हैं. अगर ऐसे अधिकारियों को एक बार फ्री-हैंड दे दिया गया, तो वे कभी भी रेखा को पार कर सकते हैं और अपने अधिकार व शक्ति का दुरुपयोग करना शुरू कर देंगे और लोगों को पैसे के लिए ब्लैकमेल करना शुरू कर देंगे और उन्हें मुठभेड़ की धमकी देंगे. सिंह ने कहा कि यह कपटी सौदा है, जिसे प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए.
सचिन वाजे का विवादों से नाता
वाजे कथित तौर पर एंटीलिया के पास विस्फोटक से भरी कार को पहुंचाने और व्यवसायी मनसुख हिरेन की हत्या में शामिल होने का आरोप लगा है. कहा जाता है कि वाजे ने वर्ष 1997 और 2004 के बीच 64 तथाकथित अपराधियों का एनकाउंटर किया था.
वाजे को 2004 में 2002 के घाटकोपर बम विस्फोट के एक संदिग्ध की हिरासत में मौत के बाद महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था. वाजे को कई साल के निलंबन के बाद 2020 में दोबारा पुलिस बल में बहाल किया गया था.
सिंह ने कहा कि यह बहुत घिनौनी घटना है और इसका मुंबई पुलिस पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. राज्य सरकार ने भी स्वीकार किया है कि इस मामले में पुलिस की चूक हुई है.
पूरी घटना ने कई प्रश्न खड़े किए हैं, जिनका जवाब नहीं है. इस पर सिंह ने कहा, 'मेरा मानना है कि एनआईए की जांच में सभी पहलुओं पर पर्दा उठेगा.'
वाजे का जिक्र करते हुए, सिंह ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि उद्योगपति मुकेश अंबानी के निवास के पास जिलेटिन से भरी स्कॉर्पियो खड़ी करने के पीछे सचिन वाजे का मकसद क्या था.
राजनेताओं की संलिप्तता पर संदेह
उन्होंने सवाल उठाए कि क्या वह (वाजे) एक हाई प्रोफाइल केस गढ़ने की कोशिश कर रहे थे, और वह किसके इशारे पर ऐसा करने की कोशिश कर रहे थे? सिंह ने इस घटना के पीछे अन्य वरिष्ठ अधिकारियों और राजनेताओं की संलिप्तता पर भी संदेह व्यक्त किया.
सिंह ने कहा कि एएसआई बहुत जूनियर अधिकारी होता है और अगर वाजे इस तरह की गतिविधि में शामिल हैं, तो यह स्पष्ट है कि कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की तरफ से उन्हें ऐसा करने का निर्देश मिला होगा. वे वरिष्ठ अधिकारी कौन थे? क्या पुलिस कमिश्नर को इसकी जानकारी थी या नहीं. ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब सामने आना जरूरी है.
उन्होंने कहा कि इस घटना का कुछ राजनीतिक संबंध जरूर है. आईपीएस अधिकारी ने कहा कि यह सुनिश्चित है कि पुलिस अधिकारी ऐसा तब तक नहीं करते, जब तक कोई राजनीतिक संबंध न हो. इस घटना ने एक बार फिर पुलिस और राजनेताओं के बीच साठगांठ को उजागर किया है.
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आपको बता दें कि 2008 में महाराष्ट्र पुलिस से इस्तीफा देने के बाद, वाजे शिवसेना में शामिल हो गए और अपने ऊपर लगे आरोपों से बचने के लिए राजनीतिक संरक्षण का इस्तेमाल किया.
सिंह ने कहा कि जब वह यूपी पुलिस में महानिदेशक थे, तो उन्होंने 'एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कल्चर' को प्रोत्साहित नहीं किया.
पूर्व डीजीपी ने कहा कि उनके कार्यकाल के दौरान इस तरह के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट नहीं थे. हां, उनके डीजीपी का पदभार संभालने से पहले, काल्पनिक मुठभेड़ों के उदाहरण थे. पीलीभीत में एक सनसनीखेज घटना हुई थी, जहां कुछ लोगों को बस में लाया गया और फिर उन्हें मार दिया गया. बाद में इसे मुठभेड़ करार दिया गया था.
बता दें कि 1991 में 10 सिख तीर्थयात्रियों को आतंकवादी बता कर गोली मार दी गई थी. इस मामले में 47 पुलिस कर्मियों को आजीवन कारावास की सजा मिली थी.