श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाई कोर्ट (Jammu and Kashmir and Ladakh High Court) ने कहा कि कोई भी कानून या धर्म किसी पिता को उसकी पसंद के व्यक्ति से शादी करने से इनकार करने पर बेटी को परेशान करने का लाइसेंस नहीं देता है.
न्यायमूर्ति संजय धर (Justice Sanjay Dhar) की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता अंजुम अफशान (याचिकाकर्ता संख्या 1) द्वारा अपने पति (याचिकाकर्ता संख्या 2) के साथ दायर सुरक्षा याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. याचिका में आरोप लगाया है कि उसे उसके ही पिता द्वारा मार दिया जाएगा क्योंकि याचिकाकर्ता के पिता उसकी शादी से नाखुश हैं.
क्या है मामला
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसके पिता चाहते थे कि वह एक अनपढ़ ट्रक चालक से शादी करे और उसने इसका विरोध किया क्योंकि वह याचिकाकर्ता संख्या 2 से शादी करना चाहती थी.
इन आरोपों के जवाब में लड़की के पिता (याचिकाकर्ता संख्या 1) ने अदालत के समक्ष जवाब दाखिल किया और महिला ने याचिकाकर्ता नंबर 2 से शादी करने का दावा करते हुए इस तथ्य को दबा दिया कि उप न्यायाधीश, सोपोर द्वारा पहले से ही एक संयम आदेश पारित किया गया है, जिससे उसे शादी करने से रोक दिया गया था.
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उनके द्वारा आगे तर्क दिया गया कि शरीयत के अनुसार बेटी की शादी के लिए पिता की सहमति बहुत महत्वपूर्ण है और पिता की सहमति के बिना शादी अधूरी मानी जाती है.
न्यायालय ने क्या कहा
कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि दोनों याचिकाकर्ता बालिग हैं और उन्होंने अपनी मर्जी और इच्छा से विवाह किया है. न्यायालय ने उप न्यायाधीश, सोपोर द्वारा पारित संयम आदेश के संबंध में कहा कि याचिकाकर्ता संख्या 1 के विवाह पर रोक लगाने का आदेश पारित करना उचित था या नहीं, यह उचित कार्यवाही में तय किया जाएगा.
कोर्ट ने आगे कहा, 'एक बात स्पष्ट है कि भले ही याचिकाकर्ता नंबर 1 ने उक्त आदेश का उल्लंघन किया हो, लेकिन यह प्रतिवादी संख्या 7 (पिता) और उसके सहयोगियों के लिए याचिकाकर्ताओं को परेशान करने या उन्हें डराने के लिए खुला नहीं है. उनके लिए उचित तरीका है कि वे आदेश के उल्लंघन के लिए कार्रवाई की मांग करने के लिए संबंधित अदालत से संपर्क करें.'
कोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि कोई भी कानून या धर्म पिता को उसकी पसंद के व्यक्ति से शादी करने से इनकार करने पर उसे परेशान करने की अनुमति नहीं देता है.
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कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से कहा, 'कोई भी कानून या धर्म किसी पिता को अपनी बेटी को सिर्फ इसलिए परेशान करने या डराने-धमकाने का लाइसेंस नहीं देता है क्योंकि वह किसी विशेष व्यक्ति से शादी करने के लिए अपने पिता की इच्छा को स्वीकार नहीं करती है. यह कानून अपने हाथों में लेने के लिए एक पिता या लड़की के रिश्तेदारों के लिए खुला नहीं है. यह अदालत का कर्तव्य है कि वह लड़की के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करे, जो अपनी इच्छा से शादी करना चाहती है.'
न्यायालय ने अंत में याचिका को स्वीकार करते हुए आधिकारिक प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि यदि याचिकाकर्ताओं उनसे संपर्क करते हैं तो उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए.