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टीकों की कमी से लेकर खरीद और सप्लाई तक, सरकार ने दिया हर 'मिथक' का जवाब

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Published : May 27, 2021, 4:27 PM IST

देश में टीकों की खरीद से लेकर कमी और सप्लाई को लेकर केंद्र सरकार कईयों के निशाने पर है. इन सबके बीच केंद्र सरकार की ओर से अपना पक्ष रखा गया है. सरकार के मुताबिक देश में कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम के इर्द गिर्द कई मिथक घूम रहे हैं. ये मिथक गलत बयानों, आधे सच और झूठ फैलाने की वजह से पैदा हुए हैं जिनकी वजह से लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है. नीति आयोग की तरफ से इन मिथकों के जवाब दिए गए हैं.

टीकाकरण
टीकाकरण

हैदराबाद: देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच कोरोना वैक्सीन की कमी पर सरकार की किरकिरी हो रही है. सियासी मोर्चे से लेकर सोशल मीडिया तक सरकार को घेरा जा रहा है. वैक्सीन पॉलिसी को लेकर सरकार से कई सवाल पूछने के साथ-साथ कई आरोप भी लगाए जा रहे हैं. इन सबके बीच केंद्र सरकार की ओर से अपना पक्ष रखा गया है. सरकार के मुताबिक देश में कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम के इर्द गिर्द कई मिथक घूम रहे हैं. ये मिथक गलत बयानों, आधे सच और झूठ फैलाने की वजह से पैदा हुए हैं जिनकी वजह से लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है. कोरोना वैक्सीन को लेकर बनी कमेटी के अध्यक्ष और नीति आयोग के सदस्य विनोद पॉल ने वैक्सीनेशन की कमी, खरीद और सप्लाई समेत उठ रहे तमाम सवालों के जवाब दिए.

ये भी पढ़ें: वैक्सीन की कमी पर प्रियंका गांधी ने केंद्र से पूछे 3 सवाल

मिथक नंबर 1- केंद्र सरकार विदेशों से टीके खरीदने के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं कर रही है

तथ्य- केंद्र सरकार साल 2020 के मध्य से दुनिया की सभी प्रमुख वैक्सीन निर्माताओं के संपर्क में है. फाइजर से लेकर मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी कंपनियों से कई दौर की बातचीत हो चुकी है. भारत सरकार की तरफ से इन कंपनियों को भारत में वैक्सीन की सप्लाई या उत्पादन के लिए सभी तरह की मदद की पेशकश की गई. हालांकि ऐसा नहीं है कि उनकी वैक्सीन मुफ्त में उपलब्ध है. हमें ये समझना होगा कि अतरराष्ट्रीय स्तर पर वैक्सीन की खरीद उतना आसान नहीं है जितना कि किसी अन्य सामान खरीदना. दुनियाभर में वैक्सीन की सप्लाई सीमित है और इसे आवंटित करने में कंपनियों की अपनी प्राथमिकताएं, गेम प्लान और मजबूरियां हैं. ज्यादातर कंपनियां अपने मूल देश को प्राथमिकता देते हैं जैसा हमारे वैक्सनी निर्माताओं ने बेहिचक हमारे लिए किया. फाइजर ने जैसे ही वैक्सीन की उपलब्धता का संकेत दिया, केंद्र सरकार और कंपनी वैक्सीन के जल्द से जल्द आयात के लिए मिलकर काम कर रहे हैं. भारत सरकार के प्रयासों से ही स्पूतनिक वैक्सीन के परीक्षणों में तेजी आई और वक्त पर अप्रुवल मिला. रूस ने वैक्सीन की दो खेप भेज दी हैं और जल्द ही भारत में उत्पादन भी शुरू हो जाएगा. इसी तरह हमने दुनिया की दूसरी कंपनियों से भी भारत में उत्पादन करके हमारे और दुनियाभर के लिए वैक्सीन बनाने का आग्रह किया है.

मिथक नंबर 2 - केंद्र सरकार ने दुनियाभर में उपलब्ध टीकों को मंजूरी नहीं दी है

तथ्य- केंद्र सरकार ने आपातकालीन इस्तेमाल के लिए यूएस एफडीए, ईएमए, यूके के एमएचआरए, जापान के पीएमडीए और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अप्रूव किए गए टीकों को भारत में लाने के लिए सक्रिय रूप से आसान बना दिया. इन टीकों को परीक्षणों से गुजरनी की जरूरत नहीं होगी. अन्य देशों में निर्मित अच्छी तरह से स्थापित टीकों के लिए परीक्षण आवश्यकता को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए प्रावधान में अब और संशोधन किया गया है. ड्रग कंट्रोलर के पास अनुमोदन के लिए किसी विदेशी विनिर्माता का कोई आवेदन लंबित नहीं है.

मिथक नंबर 3 - केंद्र टीकों के घरेलू उत्पादन में तेजी लाने के लिए पर्याप्त नहीं कर रहा है

तथ्य- केंद्र सरकार 2020 की शुरुआत से ही अधिक से अधिक कंपनियों को टीके का उत्पादन करने में सक्षम बनाने के लिए एक सूत्रधार की भूमिका निभा रही है. फिलहाल भारत में सिर्फ एक कंपनी (भारत बायोटेक) वैक्सीन बना रही है. भारत सरकार ने इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए 3 अन्य कंपनियों को भी मजूरी देने का फैसला किया है. इससे कोवैक्सीन के उत्पादन करने वाले प्लांटों की संख्या एक से बढ़कर 4 हो जाएगी. भारत बायोटेक द्वारा कोवैक्सीन का उत्पादन अक्टूबर तक 1 करोड़ प्रति माह से बढ़कर 10 करोड़ प्रति माह हो जाएगा. इसके अतिरिक्त, तीनों सार्वजनिक उपक्रमों का लक्ष्य दिसंबर तक 4 करोड़ खुराक तक उत्पादन करने का होगा.

सरकार के निरंतर प्रोत्साहन से, सीरम इंस्टीट्यूट हर महीने 6.5 करोड़ कोविशील्ड की डोज के उत्पादन को बढ़ाकर 11 करोड़ प्रति माह कर रहा है. भारत सरकार रूस के साथ साझेदारी में यह भी सुनिश्चित कर रही है कि स्पूतनिक का निर्माण डॉ रेड्डीज द्वारा समन्वित 6 कंपनियों द्वारा किया जाएगा. केंद्र सरकार जायडस कैडिला, बायोई के साथ-साथ जेनोवा के अपने-अपने स्वदेशी टीकों के लिए कोविड सुरक्षा योजना के तहत उदार वित्त पोषण के साथ-साथ राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में तकनीकी सहायता के प्रयासों का समर्थन कर रही है. भारत बायोटेक के सिंगल डोज इंट्रानैसल वैक्सीन का विकास भारत सरकार के वित्त पोषण के साथ अच्छी तरह से आगे बढ़ रहा है और यह दुनिया के लिए एक गेम-चेंजर हो सकता है. हमारे वैक्सीन उद्योग द्वारा 2021 के अंत तक 200 करोड़ से अधिक खुराक के उत्पादन का अनुमान ऐसे प्रयासों के साथ निरंतर समर्थन और साझेदारी का परिणाम है. कितने देश इतनी बड़ी क्षमता का सपना भी देख सकते हैं और वह भी पारंपरिक के साथ-साथ अत्याधुनिक डीएनए और एमआरएनए प्लेटफार्मों में भी? भारत सरकार और वैक्सीन निर्माताओं ने इस मिशन में एक टीम इंडिया के रूप में काम किया है.

मिथक 4- केंद्र को अनिवार्य लाइसेंसिंग लागू करनी चाहिए

तथ्य- अनिवार्य लाइसेंसिंग एक बहुत अच्छा विकल्प नहीं है क्योंकि यह एक 'फॉर्मूला' नहीं है जो मायने रखता है, लेकिन सक्रिय भागीदारी, मानव संसाधनों का प्रशिक्षण, कच्चे माल की सोर्सिंग और जैव-सुरक्षा प्रयोगशालाओं के उच्चतम स्तर की आवश्यकता है. तकनीक का हस्तांतरण एक चाबी है और यह उस कंपनी के हाथों में होती है जिसने रिसर्च एंड डेवलपमेंट किया है. वास्तव में, हम अनिवार्य लाइसेंसिंग से एक कदम आगे बढ़ गए हैं और कोवैक्सिन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारत बायोटेक और 3 अन्य संस्थाओं के बीच सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं. स्पुतनिक के लिए भी इसी तरह की व्यवस्था का पालन किया जा रहा है. सोचिये, मॉडर्ना ने अक्टूबर 2020 में कहा था कि वह अपनी वैक्सीन बनाने वाली किसी भी कंपनी पर मुकदमा नहीं करेगी, लेकिन फिर भी एक कंपनी ने ऐसा नहीं किया है, जिससे पता चलता है कि लाइसेंसिंग सबसे कम समस्या है. अगर वैक्सीन बनाना इतना आसान होता, तो विकसित दुनिया में भी वैक्सीन की खुराक की इतनी कमी क्यों होती?

मिथक 5- केंद्र ने राज्यों पर डाली वैक्सीन की जिम्मेदारी ?

तथ्य- केंद्र सरकार वैक्सीन निर्माताओं को फंडिंग से लेकर उत्पादन बढ़ाने की जल्द मंजूरी और विदेशी टीकों को देश में लाने जैसे काम कर रही है. केंद्र सरकार की ओर से खरीदी गई वैक्सीन को जल्द से जल्द राज्यों तक मुफ्त में पहुंचाया गया ताकि जल्द से जल्द लोगों का टीकाकरण हो. सभा राज्यों को इसकी जानकारी है. भारत सरकार ने केवल राज्यों के अनुरोध पर ही टीकों की खरीद की खरीद खुद करने को कहा. राज्यों को अच्छी तरह मालूम है कि देश में वैक्सीन उत्पादन क्षमता कितनी है और विदेशों से वैक्सीन खरीद में क्या समस्याएं आ रही हैं. वास्तव में भारत सरकार ने जनवरी से अप्रैल तक संपूर्ण टीकाकरण कार्यक्रम चलाया. जो की तुलना में अच्छी तरह से चला. लेकिन जो राज्य 3 महीने में स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स का टीकाकरण तक नहीं कर पाए वो टीकाकरण की प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण चाहते थे. स्वास्थ्य राज्य का विषय है और वैक्सीन राज्यों को अधिक शक्ति देने के लिए ही राज्यों को टीके खरीदने की छूट दी गई. तथ्य यह है कि ग्लोबल टेंडर का कोई परिणाम नहीं निकला, जो बताता है कि दुनिया में टीकों की आपूर्ति कम है और उन्हें कम समय में खरीदना आसान नहीं है. और यही बात हम पहले दिन से राज्यों को कह रहे हैं.

मिथक 6- राज्यों को पर्याप्त वैक्सीन नहीं दे रहा केंद्र

तथ्य- केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को वैक्सीन की पर्याप्त सप्लाई पारदर्शिता के साथ की जा रही है. वास्तव में राज्यों को भी वैक्सीन की उपलब्धता के बारे में पहले से सूचित किया जा रहा है. आने वाले वक्त में वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ने वाली है, जिसके बाद अधिक सप्लाई संभव होगी. गैर-सरकारी चैनल के जरिए राज्यों को 25 फीसदी डोज दिए जा रहे हैं. ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि टीकों की आपूर्ति से लेकर तमाम तथ्यों को जानने के बावजूद भी कुछ नेता रोजोाना टीवी पर बयान देते हैं और लोगों में दहशत पैदा करते हैं. ये राजनीति करने का वक्त नहीं है, हमें इस जंग में एकजुट होने की जरूरत है.

मिथक 7- बच्चों के टीकाकरण के लिए केंद्र सरकार कोई कदम नहीं उठा रही

तथ्य- फिलहाल दुनिया के किसी भी देश में बच्चों का टीकाकरण नहीं हो रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से भी बच्चों के टीकाकरण की कोई सिफारिश नहीं की गई है. बच्चों मे टीकों की सुरक्षा को लेकर हुए अध्ययन के बेहतर परिणाम रहे हैं. भारत में भी जल्द ही बच्चों पर ट्रायल शुरू होने जा रहा है. हालांकि, बच्चों के टीकाकरण का फैसला वॉटसएप ग्रुप में दहशत के आधार पर या कुछ नेताओं के राजनीति करने से नहीं होगा. इसका फैसला ट्रायल के आधार पर पर्याप्त डेटा मिले के बाद हमारे वैज्ञानिक लेंगे.

ये भी पढ़ें: देश की वैक्सीन पॉलिसी पर बोलीं डॉ. कांग- टीका खरीदने के मामले में पीछे रह गया भारत

हैदराबाद: देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच कोरोना वैक्सीन की कमी पर सरकार की किरकिरी हो रही है. सियासी मोर्चे से लेकर सोशल मीडिया तक सरकार को घेरा जा रहा है. वैक्सीन पॉलिसी को लेकर सरकार से कई सवाल पूछने के साथ-साथ कई आरोप भी लगाए जा रहे हैं. इन सबके बीच केंद्र सरकार की ओर से अपना पक्ष रखा गया है. सरकार के मुताबिक देश में कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम के इर्द गिर्द कई मिथक घूम रहे हैं. ये मिथक गलत बयानों, आधे सच और झूठ फैलाने की वजह से पैदा हुए हैं जिनकी वजह से लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है. कोरोना वैक्सीन को लेकर बनी कमेटी के अध्यक्ष और नीति आयोग के सदस्य विनोद पॉल ने वैक्सीनेशन की कमी, खरीद और सप्लाई समेत उठ रहे तमाम सवालों के जवाब दिए.

ये भी पढ़ें: वैक्सीन की कमी पर प्रियंका गांधी ने केंद्र से पूछे 3 सवाल

मिथक नंबर 1- केंद्र सरकार विदेशों से टीके खरीदने के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं कर रही है

तथ्य- केंद्र सरकार साल 2020 के मध्य से दुनिया की सभी प्रमुख वैक्सीन निर्माताओं के संपर्क में है. फाइजर से लेकर मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी कंपनियों से कई दौर की बातचीत हो चुकी है. भारत सरकार की तरफ से इन कंपनियों को भारत में वैक्सीन की सप्लाई या उत्पादन के लिए सभी तरह की मदद की पेशकश की गई. हालांकि ऐसा नहीं है कि उनकी वैक्सीन मुफ्त में उपलब्ध है. हमें ये समझना होगा कि अतरराष्ट्रीय स्तर पर वैक्सीन की खरीद उतना आसान नहीं है जितना कि किसी अन्य सामान खरीदना. दुनियाभर में वैक्सीन की सप्लाई सीमित है और इसे आवंटित करने में कंपनियों की अपनी प्राथमिकताएं, गेम प्लान और मजबूरियां हैं. ज्यादातर कंपनियां अपने मूल देश को प्राथमिकता देते हैं जैसा हमारे वैक्सनी निर्माताओं ने बेहिचक हमारे लिए किया. फाइजर ने जैसे ही वैक्सीन की उपलब्धता का संकेत दिया, केंद्र सरकार और कंपनी वैक्सीन के जल्द से जल्द आयात के लिए मिलकर काम कर रहे हैं. भारत सरकार के प्रयासों से ही स्पूतनिक वैक्सीन के परीक्षणों में तेजी आई और वक्त पर अप्रुवल मिला. रूस ने वैक्सीन की दो खेप भेज दी हैं और जल्द ही भारत में उत्पादन भी शुरू हो जाएगा. इसी तरह हमने दुनिया की दूसरी कंपनियों से भी भारत में उत्पादन करके हमारे और दुनियाभर के लिए वैक्सीन बनाने का आग्रह किया है.

मिथक नंबर 2 - केंद्र सरकार ने दुनियाभर में उपलब्ध टीकों को मंजूरी नहीं दी है

तथ्य- केंद्र सरकार ने आपातकालीन इस्तेमाल के लिए यूएस एफडीए, ईएमए, यूके के एमएचआरए, जापान के पीएमडीए और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अप्रूव किए गए टीकों को भारत में लाने के लिए सक्रिय रूप से आसान बना दिया. इन टीकों को परीक्षणों से गुजरनी की जरूरत नहीं होगी. अन्य देशों में निर्मित अच्छी तरह से स्थापित टीकों के लिए परीक्षण आवश्यकता को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए प्रावधान में अब और संशोधन किया गया है. ड्रग कंट्रोलर के पास अनुमोदन के लिए किसी विदेशी विनिर्माता का कोई आवेदन लंबित नहीं है.

मिथक नंबर 3 - केंद्र टीकों के घरेलू उत्पादन में तेजी लाने के लिए पर्याप्त नहीं कर रहा है

तथ्य- केंद्र सरकार 2020 की शुरुआत से ही अधिक से अधिक कंपनियों को टीके का उत्पादन करने में सक्षम बनाने के लिए एक सूत्रधार की भूमिका निभा रही है. फिलहाल भारत में सिर्फ एक कंपनी (भारत बायोटेक) वैक्सीन बना रही है. भारत सरकार ने इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए 3 अन्य कंपनियों को भी मजूरी देने का फैसला किया है. इससे कोवैक्सीन के उत्पादन करने वाले प्लांटों की संख्या एक से बढ़कर 4 हो जाएगी. भारत बायोटेक द्वारा कोवैक्सीन का उत्पादन अक्टूबर तक 1 करोड़ प्रति माह से बढ़कर 10 करोड़ प्रति माह हो जाएगा. इसके अतिरिक्त, तीनों सार्वजनिक उपक्रमों का लक्ष्य दिसंबर तक 4 करोड़ खुराक तक उत्पादन करने का होगा.

सरकार के निरंतर प्रोत्साहन से, सीरम इंस्टीट्यूट हर महीने 6.5 करोड़ कोविशील्ड की डोज के उत्पादन को बढ़ाकर 11 करोड़ प्रति माह कर रहा है. भारत सरकार रूस के साथ साझेदारी में यह भी सुनिश्चित कर रही है कि स्पूतनिक का निर्माण डॉ रेड्डीज द्वारा समन्वित 6 कंपनियों द्वारा किया जाएगा. केंद्र सरकार जायडस कैडिला, बायोई के साथ-साथ जेनोवा के अपने-अपने स्वदेशी टीकों के लिए कोविड सुरक्षा योजना के तहत उदार वित्त पोषण के साथ-साथ राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में तकनीकी सहायता के प्रयासों का समर्थन कर रही है. भारत बायोटेक के सिंगल डोज इंट्रानैसल वैक्सीन का विकास भारत सरकार के वित्त पोषण के साथ अच्छी तरह से आगे बढ़ रहा है और यह दुनिया के लिए एक गेम-चेंजर हो सकता है. हमारे वैक्सीन उद्योग द्वारा 2021 के अंत तक 200 करोड़ से अधिक खुराक के उत्पादन का अनुमान ऐसे प्रयासों के साथ निरंतर समर्थन और साझेदारी का परिणाम है. कितने देश इतनी बड़ी क्षमता का सपना भी देख सकते हैं और वह भी पारंपरिक के साथ-साथ अत्याधुनिक डीएनए और एमआरएनए प्लेटफार्मों में भी? भारत सरकार और वैक्सीन निर्माताओं ने इस मिशन में एक टीम इंडिया के रूप में काम किया है.

मिथक 4- केंद्र को अनिवार्य लाइसेंसिंग लागू करनी चाहिए

तथ्य- अनिवार्य लाइसेंसिंग एक बहुत अच्छा विकल्प नहीं है क्योंकि यह एक 'फॉर्मूला' नहीं है जो मायने रखता है, लेकिन सक्रिय भागीदारी, मानव संसाधनों का प्रशिक्षण, कच्चे माल की सोर्सिंग और जैव-सुरक्षा प्रयोगशालाओं के उच्चतम स्तर की आवश्यकता है. तकनीक का हस्तांतरण एक चाबी है और यह उस कंपनी के हाथों में होती है जिसने रिसर्च एंड डेवलपमेंट किया है. वास्तव में, हम अनिवार्य लाइसेंसिंग से एक कदम आगे बढ़ गए हैं और कोवैक्सिन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारत बायोटेक और 3 अन्य संस्थाओं के बीच सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं. स्पुतनिक के लिए भी इसी तरह की व्यवस्था का पालन किया जा रहा है. सोचिये, मॉडर्ना ने अक्टूबर 2020 में कहा था कि वह अपनी वैक्सीन बनाने वाली किसी भी कंपनी पर मुकदमा नहीं करेगी, लेकिन फिर भी एक कंपनी ने ऐसा नहीं किया है, जिससे पता चलता है कि लाइसेंसिंग सबसे कम समस्या है. अगर वैक्सीन बनाना इतना आसान होता, तो विकसित दुनिया में भी वैक्सीन की खुराक की इतनी कमी क्यों होती?

मिथक 5- केंद्र ने राज्यों पर डाली वैक्सीन की जिम्मेदारी ?

तथ्य- केंद्र सरकार वैक्सीन निर्माताओं को फंडिंग से लेकर उत्पादन बढ़ाने की जल्द मंजूरी और विदेशी टीकों को देश में लाने जैसे काम कर रही है. केंद्र सरकार की ओर से खरीदी गई वैक्सीन को जल्द से जल्द राज्यों तक मुफ्त में पहुंचाया गया ताकि जल्द से जल्द लोगों का टीकाकरण हो. सभा राज्यों को इसकी जानकारी है. भारत सरकार ने केवल राज्यों के अनुरोध पर ही टीकों की खरीद की खरीद खुद करने को कहा. राज्यों को अच्छी तरह मालूम है कि देश में वैक्सीन उत्पादन क्षमता कितनी है और विदेशों से वैक्सीन खरीद में क्या समस्याएं आ रही हैं. वास्तव में भारत सरकार ने जनवरी से अप्रैल तक संपूर्ण टीकाकरण कार्यक्रम चलाया. जो की तुलना में अच्छी तरह से चला. लेकिन जो राज्य 3 महीने में स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स का टीकाकरण तक नहीं कर पाए वो टीकाकरण की प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण चाहते थे. स्वास्थ्य राज्य का विषय है और वैक्सीन राज्यों को अधिक शक्ति देने के लिए ही राज्यों को टीके खरीदने की छूट दी गई. तथ्य यह है कि ग्लोबल टेंडर का कोई परिणाम नहीं निकला, जो बताता है कि दुनिया में टीकों की आपूर्ति कम है और उन्हें कम समय में खरीदना आसान नहीं है. और यही बात हम पहले दिन से राज्यों को कह रहे हैं.

मिथक 6- राज्यों को पर्याप्त वैक्सीन नहीं दे रहा केंद्र

तथ्य- केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को वैक्सीन की पर्याप्त सप्लाई पारदर्शिता के साथ की जा रही है. वास्तव में राज्यों को भी वैक्सीन की उपलब्धता के बारे में पहले से सूचित किया जा रहा है. आने वाले वक्त में वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ने वाली है, जिसके बाद अधिक सप्लाई संभव होगी. गैर-सरकारी चैनल के जरिए राज्यों को 25 फीसदी डोज दिए जा रहे हैं. ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि टीकों की आपूर्ति से लेकर तमाम तथ्यों को जानने के बावजूद भी कुछ नेता रोजोाना टीवी पर बयान देते हैं और लोगों में दहशत पैदा करते हैं. ये राजनीति करने का वक्त नहीं है, हमें इस जंग में एकजुट होने की जरूरत है.

मिथक 7- बच्चों के टीकाकरण के लिए केंद्र सरकार कोई कदम नहीं उठा रही

तथ्य- फिलहाल दुनिया के किसी भी देश में बच्चों का टीकाकरण नहीं हो रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से भी बच्चों के टीकाकरण की कोई सिफारिश नहीं की गई है. बच्चों मे टीकों की सुरक्षा को लेकर हुए अध्ययन के बेहतर परिणाम रहे हैं. भारत में भी जल्द ही बच्चों पर ट्रायल शुरू होने जा रहा है. हालांकि, बच्चों के टीकाकरण का फैसला वॉटसएप ग्रुप में दहशत के आधार पर या कुछ नेताओं के राजनीति करने से नहीं होगा. इसका फैसला ट्रायल के आधार पर पर्याप्त डेटा मिले के बाद हमारे वैज्ञानिक लेंगे.

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