हैदराबाद : अफगानिस्तान में तालिबान के मोस्ट वांटेड आतंकियों की सरकार की घोषणा हो चुकी है. एक प्रधानमंत्री, दो उप प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, वित्त मंत्री, विदेश मंत्री समेत कुल 33 नामों की घोषणा की गई है. तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के आतंकियों की इस मिली जुली सरकार में कई अमेरिका के मोस्ट वांटेड हैं तो कई संयुक्त राष्ट्र की ब्लैक लिस्ट में शुमार हैं. लेकिन आज बात प्रधानमंत्री और मंत्री की नहीं उस शख्स की करेंगे जिसके कंधों पर अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक की जिम्मेदारी का भार दिया गया है.
हाजी मोहम्मद इदरीस
यही नाम है उस शख्स का जिसे अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक 'दा अफगानिस्तान बैंक' का सर्वेसर्वा बनाया गया है. इस बैंक को आप अफगानिस्तान का रिजर्व बैंक मान लीजिये, जो पूरे देश की अर्थव्यवस्था को चलाने में अहम भूमिका निभाता है. तालिबान के प्रवक्ता की तरफ से बकायदा इन जनाब को इस बैंक का मुखिया बनाने की घोषणा की है. तालिबान सरकार की जिस कैबिनेट की सूची जारी हुई है उसमें इन जनाब का नाम 24वें नंबर पर है.
इन जनाब की तारीफ और तारुफ इसलिये क्योंकि जनाब की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. जिसमें वो एक दफ्तर में बैठकर लैपटॉप चलाते दिख रहे हैं और बगल में मेज पर एके-47 रखी हुई है. अब ये बंदूक वाले अर्थशास्त्री कैसे बैंक चलाएंगे आप खुद सोच लीजिए.
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जनाब इदरीस की योग्यता जान लीजिए
एक रिपोर्ट के मुताबिक हाजी मोहम्मद इदरीस या यूं कहें कि द तालिबान बैंक के सर्वेसर्वा का पढ़ाई लिखाई से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है. फाइनेंस, अर्थशास्त्र, वित्तीय व्यवस्था किस चिढ़िया का नाम है, वो पूछकर तो आप कहीं इनकी तौहीन ना कर दें. क्योंकि तालीम के मामले में जनाब निल बटे सन्नाटा हैं. लेकिन जनाब के पास तालिबान के आंदोलन के नेता रहे मुल्ला अख्तर मंसूर के साथ वित्तीय मुद्दों पर काम करने का अनुभव है. वैसे मुल्ला अख्तर मंसूर 2016 में एक ड्रोन हमले में मारे जा चुके हैं. जिंदगी तालिबान के साथ गोला, बारुद, बम धमाके, बंदूक के बीच गुजरी और ये जनाब अब बैंक के मुखिया हैं.
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कहा जाता है कि इदरीस ने पूरे आंदोलन के दौरान वित्तीय विभाग संभाला था. काले धन को सफेद धन में बदलना उसकी खूबी है और इसी बूते पर वो तालिबान इकोनॉमिक कमीशन का मुखिया भी रह चुका है. और यही सब देखकर उसे ये जिम्मेदारी दी गई है. वैसे जनाब ने स्कूली किताबें तो छोड़िये, धार्मिक किताबें भी नहीं पढ़ी हैं और तालिबान उसे वित्तीय मामलों का एक्सपर्ट मानता है. तालिबान के मुताबिक इदरीस के पास भले डिग्री ना हो लेकिन आर्थिक मामलों का बेहतरीन अनुभव है.
बंदूक के साथ बैंक की कमान
अफगानिस्तान की मौजूदा वित्तीय स्थिति तो इस वक्त ऐसी है कि हर बैंक ठन-ठन गोपाल है. अब सवाल है कि बंदूक के साथ बैंक की कमान संभालने वाला हाजी मोहम्मद इदरीस कैसे देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाएगा ? कैसे बैंक की कमान संभालेगा ?
वो भी तब जब खजाना खाली है और बैंक कई दिनों से बंद पड़े हैं, ना वित्तीय लेन-देन हो रहा है और ऊपर से तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और देशों ने भी मदद का हाथ वापस खींच लिया है. क्या एके-47 की मदद से ही बैंक और देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आएगी.
तब क्या होगा जब...
सरकार और देश चलाने के लिए जब रुपयों की जरूर होगी तो विश्व बैंक से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अधिकारियों से मेल-मुलाकात करनी होगी. पड़ोसी या अन्य देशों से आर्थिक सहयोग की मांग के लिए बैठकें करनी होंगी और समझौतों पर हस्ताक्षर करने होंगे. तब भी क्या जनाब इदरीस अपनी एके-47 दिखाकर आर्थिक मदद लाएंगे, क्योंकि सरकार और देश चलाने के लिए जो वित्तीय समझ होनी चाहिए, उससे तो उनका कोई लेना-देना नहीं है. सोचिये कि जनाब मोहम्मद इदरीस विश्व बैंक या किसी देश के अधिकारियों के साथ एक मेज पर बैठकर अफगानिस्तान के आर्थिका हालात और आर्थिक मदद पर चर्चा कर रहे हों. बस तस्वीर उभरते ही हंसी छूट जाएगी आपकी, वैसे इनकी तस्वीर वायरल होने के बाद जनाब के इतने मीम बन गए हैं कि वर्ल्ड फेमस हो गए हैं.
वित्तीय मदद या कर्ज लेने का गुणा भाग और उस पैसे के सही इस्तेमाल का जो ज्ञान होना चाहिए वो भी उनके पास नहीं है, क्योंकि डिग्री तो छोड़िये जनाब का पढ़ाई, स्कूल जैसी चीजों से कोई सरोकार ही नहीं रहा है. हां लेकिन तालिबान के साथ रहते हुए आतंक, बंदूक, बम धमाकों में जनाब अच्छी तरह से पारंगत हैं.
अफगानिस्तान में आर्थिक संकट
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से लेकर वर्ल्ड बैंक समेत दुनिया की तमाम संस्थाओं ने अफगानिस्तान के लिए होने वाली फंडिंग रोक दी है. ऐसी ही अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से अफगानिस्तान की कई विकास परियोजनाओं के लिए वित्तीय मदद मिलती थी. ये तालिबान के लिए आर्थिक मोर्चे पर बड़ा झटका है. आंकड़ों के मुताबिक विश्व बैंक ने साल 2002 से 2021 तक अफगानिस्तान में विकास परियोजनाओं के लिए 5.3 अरब डॉलर से ज्यादी की मदद की है.
तालिबान के कब्जे से पहले ही काबुल छोड़ चुके द अफगानिस्तान बैंक के कार्यवाहक गवर्नर अजमल अहमदी के मुताबिक बैंक के पास 10 अरब डॉलर की संपत्ति थी, जिनमें से ज्यादातर अफगानिस्तान के बाहर है और तालिबान की पहुंच से बाहर है. मामूली कैश ही बैंक में बचा होगा और वो भी या तो खत्म हो गया होगा या होने वाला होगा. तालिबान के डर से अमेरिका समेत तमाम देशों ने अफगानिस्तान को कैश भेजना बंद कर दिया था. जिसके कारण बैंकों में कैश ना के बराबर है.
15 अगस्त से बंद हैं बैंक
15 अगस्त 2021 को तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा किया. उसके बाद से ही अफगानिस्तान के बैंकिग व्यवस्था पटरी से उतर गई. ज्यादातर बैंक उसी दिन से बंद हैं और जो कुछ शुरुआत में खुले थे वहां पहले लोगों की कतार थी और अब वहां भी सन्नाटा पसरा है. एटीएम मशीनें भी ठन-ठन गोपाल हैं. लोगों के पास बचा खुचा कैश लगभग खत्म हो चुका है.
अफगानिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था के लिए पूरी तरह से दूसरे देशों पर निर्भर रहने वाला मुल्क है. अपनी जीडीपी का 40 फीसदी हिस्सा उसे विदेशी मदद से मिलता है. जो उसे जर्मनी से लेकर अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों से मिलता है और वो मदद भी फिलहाल बंद है. जिन लोगों के पैसे बैंक में जमा हैं वो अपनी कमाई नहीं निकाल पा रहे हैं.
अफगानिस्तान को दूसरे देशों से मिलने वाले पैसे में एक हिस्सा उन लोगों का भी था जो विदेशों में रहते थे और अफगानिस्तान में रह रहे अपने रिश्तेदारों को पैसा भेजते थे. एक अनुमान के मुताबिक ये रकम देश की जीडीपी का करीब 4 फीसदी थी लेकिन तालिबान के कब्जे के बाद लोगों में अफगानिस्तान छोड़कर जाने की होड़ लगी है, बैंकिंग व्यवस्था बदहाल है. ऐसे में पैसे भेजने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. और अगर विदेशों में बचे कुछ अफगानी अब भी अपने परिवारों के लिए पैसा भेजने की सोच रहे हैं तो भेजने का कोई जरिया नहीं है. वेस्टर्न यूनियन जैसे वित्तीय लेनदेन करने वाली कंपनियों ने अपना कारोबार अफगानिस्तान से लगभग समेट लिया है.
अफीम फूंककर कमाई का रास्ता निकालेगा एके-47 वाला अर्थशास्त्री
दुनिया के नक्शे पर तालिबान की पहचान एक अफीम उगाने वाले मुल्क की है. जिसकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा अफीम और खनन से आता है लेकिन जानकार मानते हैं कि एक आतंकी संगठन के रूप में तालिबान की कमाई का ये बड़ा जरिया हो सकता है लेकिन एक देश की सरकार चलाने के हिसाब से ये नाकाफी है. अब ऐसे में और अफगानिस्तान बैंक के मुखिया मोहम्मद इदरीस से और कुछ हो पाए या नहीं लेकिन अफगानिस्तान में उगने वाली अफीम का दम मारकर अपना और अपनी सरकार का हर गम भुला सकते हैं.
अफगानिस्तान इस समय सूखे की मार भी झेल रहा है, बच्चों में कुपोषण से लेकर अर्थव्यवस्था का डीरेल हो गई है. कोरोना महामारी के दौर में स्वास्थ्य व्यवस्था का सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है. अब किसी देश के केंद्रीय बैंक का गवर्नर जनाब मोहम्मद इदरीस सरीखा हो तो उस देश की अर्थव्यवस्था को तो भगवान ही बचाए.
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