ETV Bharat / bharat

'नेशनल वर्कफोर्स बढ़ाना है तो नए स्किल बढ़ाने पर देना होगा जोर'

आज पूरे देश में 10 करोड़ से अधिक नौकरिंयां उपलब्ध हैं, लेकिन निजी कंपनियों को उस अनुरूप स्किल युवा नहीं मिल रहे हैं. ये आंकड़े बहुत कुछ कहते हैं. यह बताता है कि स्किल इंडिया का सपना कितना अधूरा है. आप जब तक अपने युवाओं को बदलते हुए समय के अनुरूप नहीं ढालेंगे, दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले आप लगातार पिछड़ते चले जाएंगे. इसलिए बेहतर होगा कि सरकार के साथ-साथ युवाओं को भी इस ओर बढ़-चढ़कर पहल करनी चाहिए.

skill india
स्किल इंडिया
author img

By

Published : Jun 21, 2022, 7:00 PM IST

आज के समय में वही आगे बढ़ सकता है जो अपने कार्यों को यूनिक और रचनात्मक तरीके से करने की क्षमता रखता है. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी विगत में कई अवसरों पर इसे दोहराते रहे हैं. वे आज की पीढ़ी को किसी न किसी क्षेत्र में दक्षता (स्किल) हासिल करने के लिए प्रेरित करते रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि यही हमारे आत्मनिर्भर भारत का आधार भी बनेगा. इस मोर्चे पर भारत की तुलना में दक्षिण कोरिया, जापान, जर्मनी, यूके, यूएसए, चीन आदि जैसे देश काफी आगे हैं. इन देशों ने पेशेवर दक्षता को बढ़ाने पर जोर दिया, जिसकी वजह से उनका नेशनल वर्कफोर्स बढ़ा है.

भारत में सालों से क्लारूम की पढ़ाई और औद्योगिक कौशल के बीच एक गैप रहा है. आईटी, इंजीनियरिंग और अन्य सेवाओं में 60 प्रतिशत से अधिक संगठन कुशल मानव संसाधनों की कमी का सामना कर रहे हैं. अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के सूत्रों का यह भी कहना है कि हालांकि पूरे भारत में 10 करोड़ नौकरियां उपलब्ध हैं, लेकिन प्रतिभाशाली पेशेवरों की कमी है, जो इन नौकरियों को सुरक्षित कर सकते हैं. यदि युवा किसी न किसी स्किल को आत्मसात करें, तो वे इसके लिए योग्य हो सकते हैं. और अंततः वे गरीबी-उन्मूलन और संपत्ति सृजन में भी योगदान कर पाएंगे.

आज की तारीख में 20 से अधिक केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों की देखरेख में कार्यान्वित किए जा रहे विभिन्न कौशल-विकास कार्यक्रम जारी हैं. वे इस दिशा में सीमित तरीके से सहायता कर रहे हैं. वैसे 30 महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों, जहां पर रोजगार सृजन की अधिक क्षमता है, इनके लिए युवाओं को दक्ष बनाने के लिए केंद्र सरकार ने एक करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित करने का फैसला किया है, वह भी बिल्कुल मुफ्त. एआईसीटीई के तत्वावधान में उन लोगों को ट्रेनिंग दी जाएगी. इसमें वे शामिल होंगे, जिन्होंने 7 वीं कक्षा और उससे ऊपर की परीक्षा पास की है. यदि भारत को विश्व डिजिटल-कौशल केंद्र बनाने की सरकार की महत्वाकांक्षा को साकार करना है, तो पूरे देश में छात्रों की बौद्धिक फिटनेस को निखारना होगा. इस उद्देश्य के लिए, लघु और दीर्घकालिक रणनीतियों वाले प्रशिक्षण कार्यक्रमों को व्यापक रूप से लागू किया जाना चाहिए. केंद्र और राज्य सरकारों को समन्वित प्रयासों के साथ इसके लिए बुनियादी ढांचा तैयार करना चाहिए. उन्हें इसमें निवेश करना चाहिए.

पहले की रिपोर्ट बताती रहीं हैं कि एक नॉलेज बेस्ट सोसाइटी में 80 प्रतिशत इंजीनियरिंग स्नातकों के पास नई नौकरियों या सेवाओं के लिए योग्यता होनी चाहिए. ये अध्ययन यह भी बताते हैं कि केवल कुछ ही प्रतिशत व्यक्ति हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना झंडा गाड़ने के लिए आवश्यक क्षेत्रों में अपने कौशल को बढ़ा रहे हैं. जैसे कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन-लर्निंग, डेटा-साइंस, वायरलेस तकनीक वगैरह. एमबीए, एमसीए और इसी तरह के अन्य पाठ्यक्रमों में डिग्री हासिल करने वाले वर्तमान युवाओं की भी ऐसी ही स्थिति है. समय और व्यावहारिक प्रशिक्षण को ध्यान में रखते हुए शैक्षिक पाठ्यक्रम के आधुनिकीकरण की संस्थागत लापरवाही के कारण ही स्थिति जटिल होती जा रही है. ये डिग्री एक उज्ज्वल भविष्य की नौकरी का वादा नहीं कर पा रहीं हैं. समस्या-समाधान के लिए अकादमिक ज्ञान को प्रभावी ढंग से अपनाने जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उनकी अक्षमता के कारण अधिकांश युवा गुणवत्तापूर्ण नौकरियों की तलाश में असफल हो रहे हैं.

अंत में, उन्हें किसी भी प्रकार की नौकरी के लिए अपर्याप्त वेतन के साथ समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. यह किसी राष्ट्र के लिए अच्छा नहीं है, यदि उसके युवा, जिन्हें देश की प्रगति का नेतृत्व और प्रेरणा देने वाला माना जाता है, को इस तरह से हतोत्साहित और निराश किया जाता है. यदि स्कूल स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाती है, और शिक्षा और उद्योग के बीच एक कड़ी का निर्माण नहीं किया जाता है, तो देश को लंबे समय में और भी अधिक नुकसान होगा. कौशल-विकास कार्यक्रमों और शिक्षण संस्थानों के कामकाज की निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए और उनकी खामियों को दूर किया जाना चाहिए. व्यावहारिक शिक्षा के लिए हर स्तर पर रास्ते बनाए जाने चाहिए. जब शासक ऐसा करने का संकल्प लेंगे, तभी भविष्य में हमें एक ऐसा वर्कफोर्स मिलेगा, जो राष्ट्र को समावेशी प्रगति के पथ पर आगे लेकर जा सकता है.

आज के समय में वही आगे बढ़ सकता है जो अपने कार्यों को यूनिक और रचनात्मक तरीके से करने की क्षमता रखता है. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी विगत में कई अवसरों पर इसे दोहराते रहे हैं. वे आज की पीढ़ी को किसी न किसी क्षेत्र में दक्षता (स्किल) हासिल करने के लिए प्रेरित करते रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि यही हमारे आत्मनिर्भर भारत का आधार भी बनेगा. इस मोर्चे पर भारत की तुलना में दक्षिण कोरिया, जापान, जर्मनी, यूके, यूएसए, चीन आदि जैसे देश काफी आगे हैं. इन देशों ने पेशेवर दक्षता को बढ़ाने पर जोर दिया, जिसकी वजह से उनका नेशनल वर्कफोर्स बढ़ा है.

भारत में सालों से क्लारूम की पढ़ाई और औद्योगिक कौशल के बीच एक गैप रहा है. आईटी, इंजीनियरिंग और अन्य सेवाओं में 60 प्रतिशत से अधिक संगठन कुशल मानव संसाधनों की कमी का सामना कर रहे हैं. अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के सूत्रों का यह भी कहना है कि हालांकि पूरे भारत में 10 करोड़ नौकरियां उपलब्ध हैं, लेकिन प्रतिभाशाली पेशेवरों की कमी है, जो इन नौकरियों को सुरक्षित कर सकते हैं. यदि युवा किसी न किसी स्किल को आत्मसात करें, तो वे इसके लिए योग्य हो सकते हैं. और अंततः वे गरीबी-उन्मूलन और संपत्ति सृजन में भी योगदान कर पाएंगे.

आज की तारीख में 20 से अधिक केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों की देखरेख में कार्यान्वित किए जा रहे विभिन्न कौशल-विकास कार्यक्रम जारी हैं. वे इस दिशा में सीमित तरीके से सहायता कर रहे हैं. वैसे 30 महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों, जहां पर रोजगार सृजन की अधिक क्षमता है, इनके लिए युवाओं को दक्ष बनाने के लिए केंद्र सरकार ने एक करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित करने का फैसला किया है, वह भी बिल्कुल मुफ्त. एआईसीटीई के तत्वावधान में उन लोगों को ट्रेनिंग दी जाएगी. इसमें वे शामिल होंगे, जिन्होंने 7 वीं कक्षा और उससे ऊपर की परीक्षा पास की है. यदि भारत को विश्व डिजिटल-कौशल केंद्र बनाने की सरकार की महत्वाकांक्षा को साकार करना है, तो पूरे देश में छात्रों की बौद्धिक फिटनेस को निखारना होगा. इस उद्देश्य के लिए, लघु और दीर्घकालिक रणनीतियों वाले प्रशिक्षण कार्यक्रमों को व्यापक रूप से लागू किया जाना चाहिए. केंद्र और राज्य सरकारों को समन्वित प्रयासों के साथ इसके लिए बुनियादी ढांचा तैयार करना चाहिए. उन्हें इसमें निवेश करना चाहिए.

पहले की रिपोर्ट बताती रहीं हैं कि एक नॉलेज बेस्ट सोसाइटी में 80 प्रतिशत इंजीनियरिंग स्नातकों के पास नई नौकरियों या सेवाओं के लिए योग्यता होनी चाहिए. ये अध्ययन यह भी बताते हैं कि केवल कुछ ही प्रतिशत व्यक्ति हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना झंडा गाड़ने के लिए आवश्यक क्षेत्रों में अपने कौशल को बढ़ा रहे हैं. जैसे कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन-लर्निंग, डेटा-साइंस, वायरलेस तकनीक वगैरह. एमबीए, एमसीए और इसी तरह के अन्य पाठ्यक्रमों में डिग्री हासिल करने वाले वर्तमान युवाओं की भी ऐसी ही स्थिति है. समय और व्यावहारिक प्रशिक्षण को ध्यान में रखते हुए शैक्षिक पाठ्यक्रम के आधुनिकीकरण की संस्थागत लापरवाही के कारण ही स्थिति जटिल होती जा रही है. ये डिग्री एक उज्ज्वल भविष्य की नौकरी का वादा नहीं कर पा रहीं हैं. समस्या-समाधान के लिए अकादमिक ज्ञान को प्रभावी ढंग से अपनाने जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उनकी अक्षमता के कारण अधिकांश युवा गुणवत्तापूर्ण नौकरियों की तलाश में असफल हो रहे हैं.

अंत में, उन्हें किसी भी प्रकार की नौकरी के लिए अपर्याप्त वेतन के साथ समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. यह किसी राष्ट्र के लिए अच्छा नहीं है, यदि उसके युवा, जिन्हें देश की प्रगति का नेतृत्व और प्रेरणा देने वाला माना जाता है, को इस तरह से हतोत्साहित और निराश किया जाता है. यदि स्कूल स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाती है, और शिक्षा और उद्योग के बीच एक कड़ी का निर्माण नहीं किया जाता है, तो देश को लंबे समय में और भी अधिक नुकसान होगा. कौशल-विकास कार्यक्रमों और शिक्षण संस्थानों के कामकाज की निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए और उनकी खामियों को दूर किया जाना चाहिए. व्यावहारिक शिक्षा के लिए हर स्तर पर रास्ते बनाए जाने चाहिए. जब शासक ऐसा करने का संकल्प लेंगे, तभी भविष्य में हमें एक ऐसा वर्कफोर्स मिलेगा, जो राष्ट्र को समावेशी प्रगति के पथ पर आगे लेकर जा सकता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.