हैदराबाद : केंद्र सरकार ने मैनुअल स्कैवेंजिंग को खत्म करने के लिए एक नई योजना शुरू की है. इसके तहत यंत्रीकृत सीवर सफाई को बढ़ावा दिया जाएगा. इसका नाम है सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज. 19 नवंबर को आवास और शहरी मामलों के केंद्रीय मंत्रालय ने इसे शुरू किया था.
बता दें कि हर वर्ष 19 नवंबर को विश्व शौचालय दिवस मनाया जाता है. इसी दिन देश के 243 शहरों में सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज योजना की शुरुआत की गई. आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि इस योजना का उद्देश्य है कि 30 अप्रैल 2021 तक 243 शहरों में सीवर की सफाई पूरी तरह से यंत्रीकृत हो जाए.
योजना का उद्देश्य
सिंह के कहा कि इस योजना का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई में किसी भी सफाई कर्मी की जान न जाए.
राष्ट्रीय सर्वेक्षण के मुताबिक जनवरी 31, 2020 तक देश के 18 राज्यों में 48,345 सफाई कर्मी हैं.
मैनुअल स्कैवेंजिंग की समस्या
2011 की जनगणना के मुताबिक प्रतिबंधित होने के बावजूद 1.8 लाख दलितों के लिए यही उनकी आय का स्रोत है. सफाई कर्मचारी आंदोलन द्वारा एकत्र किए गए डेटा के मुताबिक पिछले 20 वर्षों में मैनुअल स्कैवेंजिंग का काम करते हुए 1,760 लोगों की मौत हो गई है.
जान के खतरों को जानते हुए भी 1993 से 7.7 लाख कर्मचारियों को सीवरों में सफाई करने के लिए भेजा गया है. देशभर में करीब 26 लाख ड्राई टॉयलेट है, जिनको साफ करके लोग अपनी रोजीरोटी कमाते हैं.
मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने के लिए नीतियों का संक्षिप्त इतिहास
1955 में, नागरिक अधिकारों के संरक्षण अधिनियम ने अस्पृश्यता के आधार पर मल ढोने या झाडू लगाने को खत्म करने का आह्वान किया गया था. इसे 1977 में एक सख्त कार्यान्वयन के लिए संशोधित किया गया था.
केंद्र सरकार ने 1980-81 में ड्राई टॉयलेट को पिट टॉयलेट में बदलने के लिए योजना शुरू की थी. इसका उद्देश्य ड्राई टॉयलेट की सफाई में लगे लोगों को अमानवीय कार्य से मुक्त करना था.
सरकार को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वित्त और विकास निगम बनाने में आठ साल का समय लगा और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त और विकास निगम को बनाने में और समय लगा. यह मैनुअल स्कैवेंजर्स को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया था.
सफाई कर्मियों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए 1989 का अत्याचार निवारण अधिनियम महत्वपूर्ण साबित हुआ. मैनुअल स्कैवेंजिंग के काम में लगे ज्यादातर लोग अनुसूचित जाति के थे.
सफाई कर्मियों के अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में 1992 में लाया गया संविधान का 74वां संशोधन मील का पत्थर था. इससे नगरपालिका प्रशासन को संवैधिनिक सहारा मिला. 1993 में, द एम्प्लॉयमेंट ऑफ़ मैनुअल स्केवेंजर्स एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ़ ड्राई लैट्रिन्स (प्रोहिबिशन) एक्ट के माध्यम से सफाई कर्मियों को अमानवीय कार्य से मुक्त करने का मार्ग प्रशस्त हुआ.
1994 में सफाई कर्मचारियों के लिए राष्ट्रीय कमीशन का गठन किया गया. इस सांविधिक निकाय का गठन 1993 के कानून से हुआ था, जिसे पहले 1997 तक और बाद में अनिश्चित काल तक के लिए वैध बना दिया गया.
2000 में कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 1993 में लाए कानून का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पा रहा है. तब से, विभिन्न संगठन जैसे सफाई कर्मचारी आंदोलन (एसकेए) और दलित मानवाधिकार पर राष्ट्रीय अभियान (एनसीडीएचआर) मैनुअल स्कैवेंजिंग को मिटाने के लिए काम कर रहे हैं.
2002 में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया कि 79 मिलियन से अधिक लोग इस काम में लगे हुए हैं.
मैनुअल स्कैवेंजिंग के दौरान हुई मौतें
पिछले एक दशक में 631 लोगों की मैनुअल स्कैवेंजिंग के दौरान मौत हो चुकी है. सफाई कर्मचारियों के लिए राष्ट्रीय कमिशन ने यह जानकारी दी है.