नई दिल्ली : अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे और अमेरिकी सैनिकों की पूर्ण वापसी के बाद युद्धग्रस्त देश के निवासी डर और अनिश्चितताओं के कारण पड़ोसी देशों की ओर भाग रहे हैं. तालिबान के तमाम आश्वासन के बावजूद अधिकांश अफगान पिछले तालिबान शासन के दौरान किए गए तांडव से डरे हुए हैं. यही वजह है कि अपने देश से भागने को मजबूर हैं और दूसरे देशों में शरण ले रहे हैं.
प्राचीन काल से ही भारत उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों का सुरक्षित घर रहा है, लेकिन भारत के पास शरणार्थी संकट से निपटने के लिए कोई घोषित शरणार्थी नीति नहीं है, ऐसे समय में अब देश में इसकी आवश्यकता महसूस हो रही है.
अफगानिस्तान संकट के चलते 2019 का नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) एक बार फिर से सुर्खियों में है. विपक्षी दलों ने युद्धग्रस्त अफगानिस्तान के हालिया घटनाक्रम को देखते हुए सरकार से सीएए की समीक्षा करने का आग्रह किया है.
साथ ही, भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन या 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है और न ही भारत की अपनी कोई शरणार्थी नीति या शरणार्थी कानून है. लेकिन भारत 1979 के बाद से अफगान शरणार्थियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह की तरह रहा है.
कूटनीतिक रुख अपनाते हुए पूर्व राजदूत जितेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि भारत सरकार ने सीएए में सुनिश्चित किया है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के सिख और हिंदू शरणार्थियों को स्वीकार किया जाएगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य धर्मों के शरणार्थियों को स्वीकार नहीं किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि अफगान शरणार्थियों को उनकी स्थिति के आधार पर स्वीकार किया जाएगा और यह किया जा रहा है. पूर्व राजनयिक ने कहा कि भारत द्वारा अफगानिस्तान से निकालकर लाए गए लोगों में न सिर्फ अफगान हिंदू हैं, बल्कि कई अफगान मुस्लिम भी आए हैं.
उन्होंने कहा कि तेजी से बिगड़ती सुरक्षा स्थिति के साथ, भारत को शरण के हर मामले की बहुत सावधानी से जांच करनी चाहिए, क्योंकि हर किसी को शरण नहीं दी जा सकती है. शरण मांगने वालों में कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं, जो शरणार्थियों की आड़ में आतंकवादी हैं. इसलिए भारत को हर मामलों की सावधानीपूर्वक और सख्ती से जांच करनी चाहिए और फिर शरणार्थियों को आने देना चाहिए.
भारत ने 550 से अधिक लोगों को अफगानिस्तान से निकाला
अफगानिस्तान संकट के बाद, भारत ने कई शरणार्थियों को निकाला हैं, जिनमें ज्यादातर अफगान सांसद व छात्र हैं या जिनके पास भारतीय वीजा है. कुछ दिन पहले, विदेश मंत्रालय ने कहा था कि उसने 550 से अधिक लोगों को अफगानिस्तान से निकाला है, जिनमें से 260 भारतीय हैं. भारत ने कुछ अफगान नागरिकों के साथ-साथ अन्य देशों के नागरिकों को भी निकासी की है, इनमें अफगान सिख और हिंदू भी थे.
इस बीच, ईटीवी भारत से बात करते हुए, अफगान शरणार्थी और भारत में पांच साल से अधिक समय से रह रहे राजनीतिक कार्यकर्ता निसार अहमद शेरजई ने कहा कि पांच साल पहले, मैं तालिबान द्वारा किए गए अत्याचारों के डर से अफगानिस्तान से भाग निकला था. तब से, मैं यूएनएचसीआर से अफगान शरणार्थियों की मदद करने का अनुरोध कर रहा हूं, जिसके बाद उन्होंने मेरा मामला बंद कर दिया. मेरे जैसे कई अफगान शरणार्थी इसी समस्या का सामना कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, यहां तक कि मेरा वीजा भी एक्स्पायर्ड हो गया है. कई अफगान नागरिक फोन कर रहे हैं और चिंता व्यक्त कर रहे हैं कि वे पिछले 10 दिनों से सरकार द्वारा हाल ही में पेश किए गए ई-वीजा के लिए ऑनलाइन आवेदन करने में असमर्थ हैं और वहां फंसे हुए हैं. हमें उम्मीद है कि भारत सरकार ही हमारी मदद कर सकती है.
निसार अहमद ने कहा, 'मैं भारत सरकार से नागरिकता देने का आग्रह करता हूं क्योंकि हम यहां कई वर्षों से रह रहे हैं. इसके अलावा, मैंने सरकार और यूएनएचसीआर से भारत में दीर्घकालिक वीजा के लिए आवेदन करने के लिए शरणार्थी कार्ड प्रदान करने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने का आग्रह किया है.
यह भी पढ़ें- भारत लौटी महिला ने बताया- तालिबानियों ने जला दिया घर, अफगानी सांसद रोने लगे, देखें VIDEO
इससे पहले, यूएनएचसीआर इंडिया के सहायक विदेश संबंध अधिकारी कीरी अत्री ने ईटीवी भारत को बताया कि भारत में जुलाई 2021 तक 15,467 अफगान शरणार्थियों और शरण चाहने वालों ने यूएनएचसीआर के साथ पंजीकरण कराया है. वहीं, यूएनएचसीआर इंडिया की जून 2021 की फैक्टशीट में कहा गया है कि वर्तमान में 208,065 शरणार्थी भारत में रहते हैं. इनमें से 95,829 श्रीलंकाई शरणार्थी और 73,404 तिब्बती शरणार्थी पंजीकृत हैं.