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नए आईटी नियम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए घातक: याचिकाकर्ता - समाचार वेबसाइट ‘द लीफलेट

बंबई उच्च न्यायालय में सूचना एवं प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमावली, 2021 के प्रावधानों को चुनौती देने के उद्देश्य से दायर की गई दो याचिकाओं में कहा गया कि यह नियम अस्पष्ट और दमनकारी हैं.

बंबई उच्च न्यायालय
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Published : Aug 9, 2021, 5:32 PM IST

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय में सूचना एवं प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमावली, 2021 के प्रावधानों को चुनौती देने के उद्देश्य से दायर की गई दो याचिकाओं में कहा गया कि यह नियम अस्पष्ट और दमनकारी हैं.

समाचार वेबसाइट 'द लीफलेट' और पत्रकार निखिल वागले की ओर से यह याचिकाएं दायर की गई हैं. याचिकाकर्ताओं ने अदालत में कहा कि आईटी नियमों का प्रेस तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर घातक असर होगा.

आपको को बता दें कि 'द लीफलेट' की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील डेरियस खम्बाटा ने मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की पीठ से आग्रह किया कि नए नियमों पर तत्काल रोक लगाई जाए.याचिकाकर्ताओं ने कहा कि नए नियमों के तहत नागरिकों और पत्रकारों द्वारा तथा डिजिटल समाचार वेबसाइट आदि पर प्रकाशित सामग्री पर कई पाबंदियां लगाई गई हैं. उन्होंने कहा कि सामग्री के नियमन और उत्तरदायित्व की मांग करना ऐसे मापदंडों पर आधारित है जो अस्पष्ट हैं और वर्तमान आईटी नियमों के प्रावधानों तथा संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के परे हैं.

इसे भी पढ़े-ED ने कंस्ट्रक्शन कारोबारी अविनाश भोसले की 4 करोड़ की संपत्ति की कुर्क, मनी लॉन्ड्रिंग का है मामला

खम्बाटा ने कहा, ऐसा पहली बार हो रहा है कि सामग्री पर खुलकर प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं. यह नियम आईटी कानून के मापदंडों से परे जाते हैं. यह नियम अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रावधानों से भी परे जाते हैं.

उन्होंने कहा, यह नियम अस्पष्ट और दमनकारी हैं. इससे लेखकों, प्रकाशकों, सामान्य नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर घातक असर होगा जो इंटरनेट पर कुछ भी डाल देते हैं.यह नियम तर्क के परे हैं.वागले की ओर से पेश हुए वकील अभय नेवागी ने अदालत को बताया कि यह नियम अविवेकपूर्ण, अवैध और नागरिकों के निजता के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध हैं.

(पीटीआई-भाषा)

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय में सूचना एवं प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमावली, 2021 के प्रावधानों को चुनौती देने के उद्देश्य से दायर की गई दो याचिकाओं में कहा गया कि यह नियम अस्पष्ट और दमनकारी हैं.

समाचार वेबसाइट 'द लीफलेट' और पत्रकार निखिल वागले की ओर से यह याचिकाएं दायर की गई हैं. याचिकाकर्ताओं ने अदालत में कहा कि आईटी नियमों का प्रेस तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर घातक असर होगा.

आपको को बता दें कि 'द लीफलेट' की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील डेरियस खम्बाटा ने मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की पीठ से आग्रह किया कि नए नियमों पर तत्काल रोक लगाई जाए.याचिकाकर्ताओं ने कहा कि नए नियमों के तहत नागरिकों और पत्रकारों द्वारा तथा डिजिटल समाचार वेबसाइट आदि पर प्रकाशित सामग्री पर कई पाबंदियां लगाई गई हैं. उन्होंने कहा कि सामग्री के नियमन और उत्तरदायित्व की मांग करना ऐसे मापदंडों पर आधारित है जो अस्पष्ट हैं और वर्तमान आईटी नियमों के प्रावधानों तथा संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के परे हैं.

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खम्बाटा ने कहा, ऐसा पहली बार हो रहा है कि सामग्री पर खुलकर प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं. यह नियम आईटी कानून के मापदंडों से परे जाते हैं. यह नियम अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रावधानों से भी परे जाते हैं.

उन्होंने कहा, यह नियम अस्पष्ट और दमनकारी हैं. इससे लेखकों, प्रकाशकों, सामान्य नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर घातक असर होगा जो इंटरनेट पर कुछ भी डाल देते हैं.यह नियम तर्क के परे हैं.वागले की ओर से पेश हुए वकील अभय नेवागी ने अदालत को बताया कि यह नियम अविवेकपूर्ण, अवैध और नागरिकों के निजता के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध हैं.

(पीटीआई-भाषा)

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