शिमला: इन दिनों राजनीति का जिक्र परिवारवाद के बिना मानो अधूरा है. भाजपाई कांग्रेस के परिवारवाद पर वार करने का कोई मौका चूकते, साथ में परिवारवाद की रवायत को दूर करने का दावा भी करते हैं. हिमाचल विधानसभा चुनाव में परिवारवाद इस बार भी मुद्दा बन सकता है और हो सकता ही कि बीजेपी इसे लेकर कांग्रेस पर हमलावर हो. लेकिन परिवारवाद का दाग दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी पर भी लगता रहा है. हिमाचल विधानसभा चुनाव के लिए सभी 68 सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान करने वाली भाजपा का दावा चूर-चूर हुआ है. कांग्रेस को परिवारवाद पर घेरने और कोसने वाली भाजपा में इस बार खुद वंशवाद की राजनीति का सिक्का चला है. बीजेपी उम्मीदवारों की सूची में परिवारवाद की झलक दिखती है. (Himachal BJP Candidate List) (Dynastic politics in Himachal) (Nepotism in Himachal Election 2022)
बीजेपी और परिवारवाद- चाहे जुब्बल सीट से पूर्व मंत्री नरेंद्र बरागट के बेटे चेतन बरागटा को टिकट देने का मामला हो या फिर धर्मपुर धर्मपुर से कैबिनेट मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर के बेटे रजत ठाकुर का, भाजपा के कंधे परिवारवाद के मोर्चे पर इस बार झुके हुए नजर आए हैं. वैसे परिवारवाद की बात की जाए तो इस समय भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग सिंह ठाकुर केंद्रीय मंत्री हैं. बेशक अनुराग ठाकुर अपनी मेहनत और प्रतिभा के बूते आगे बढ़े हैं, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि प्रेम कुमार धूमल के परिवार से होने के नाते उन्हें एडवांटेज मिला है. (Nepotism in BJP) (Nepotism in Himachal Pradesh) (BJP candidate list in Himachal) (Dynastic Politics in BJP)
हिमाचल में जयराम सरकार के सबसे कद्दावर मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर को जब टिकट नहीं देने की बात चली तो उन्होंने धर्मपुर सीट से अपने बेटे रजत ठाकुर को टिकट की पैरवी की. चूंकि धर्मपुर सीट पर महेंद्र सिंह मजबूत नेता हैं, लिहाजा सीट निकालने के लिए हाईकमान को उनकी मांग के समक्ष झुकना पड़ा. बड़ी बात ये है कि महेंद्र सिंह ठाकुर की बेटी वंदना गुलेरिया भी टिकट चाहती थी. जब टिकट रजत को मिल गया तो वंदना गुलेरिया ने बगावत कर दी. ऊपरी शिमला के बड़े भाजपा नेता स्व. नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा निरंतर पार्टी में सक्रिय रहे हैं. उपचुनाव में उन्हें टिकट नहीं दिया गया. वहां से वे निर्दलीय लड़े और भाजपा की प्रत्याशी नीलम सरैक की जमानत जब्त हो गई. चेतन सिंह बरागटा को अब टिकट दिया गया है. पहले कहा जाता था कि परिवार के सदस्य को टिकट नहीं मिलेगा, परंतु जुब्बल में बरागटा परिवार के रसूख को देखते हुए चेतन को उम्मीदवार बनाना पड़ा है. (Nepotism in Himachal BJP) (Nepotism and BJP candidate list in Himachal) (Dynastic politics in BJP)
इसी तरह हमीरपुर की बड़सर सीट से भाजपा नेता बलदेव शर्मा की पत्नी माया शर्मा को टिकट मिला है. ये भी परिवारवाद का ही उदाहरण कहा जाएगा. वैसे इस समय भाजपा में कुल्लू से गोविंद सिंह ठाकुर भी अपने पिता कुंजलाल ठाकुर की विरासत को संभाल रहे हैं. गोविंद ठाकुर मौजूदा सरकार में मंत्री हैं और इस बार भी मनाली सीट से प्रत्याशी हैं. सोलन सीट से भाजपा ने डॉ. राजेश कश्यप को फिर से टिकट दिया है. उनके भाई वीरेंद्र कश्यप दो बार शिमला सीट से सांसद रहे हैं. ये भी परिवारवाद का उदाहरण माना जाएगा.
हमीरपुर जिले की भोरंज सीट से बीजेपी ने अनिल धीमान को भी टिकट दिया है हालांकि वो पहले भी विधायक रह चुके हैं लेकिन उनकी पहचान उनके पिता पूर्व कैबिनेट मंत्री आईडी धीमान से है. जो प्रेम कुमार धूमल के गुरु रहे और उनकी ही सरकार में शिक्षा मंत्री भी बने. हमीरपुर सीट पर ही नरेंद्र ठाकुर को बीजेपी ने टिकट दिया है. वो जगदेव ठाकुर के बेटे हैं जो संघ और बीजेपी के बड़े नेता थे.
परिवारवाद का एक और उदाहरण मंडी से है. यहां पंडित सुखराम के बेटे अनिल शर्मा भाजपा से लगतार दूसरी बार उम्मीदवार हैं. 2017 से पहले पूरा परिवार कांग्रेस में था और अनिल शर्मा वीरभद्र सिंह सरकार में मंत्री थे. पंडित सुखराम भी केंद्रीय मंत्री रहे और हिमाचल की राजनीति का बड़ा चेहरा थे. उनकी विरासत को बेटे अनिल शर्मा आगे बढ़ा रहे हैं. अनिल शर्मा के बेटे आश्रय शर्मा भी कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आ गए हैं, उन्होंने 2019 लोकसभा चुनाव कांग्रेस की टिकट पर मंडी से लड़ा था और बीजेपी के रामस्वरूप शर्मा से हार गए थे.
बीजेपी में परिवारवाद को लेकर वरिष्ठ पत्रकार धनंजय शर्मा का कहना है कि परिवारवाद को परिभाषित करना आसान नहीं है. परिवार में यदि कोई अगली पीढ़ी का युवा नेता राजनीति में अपनी प्रतिभा से जगह बनाता है तो उसे मौका मिलना चाहिए. अलबत्ता यदि पैराशूट से परिवार के किसी सदस्य को राजनीति में उतारा जाता है तो गलत है. जहां तक अनुराग ठाकुर, चेतन बरागटा आदि की बात है वे अपने पिता के समय से ही राजनीति में न केवल सक्रिय थे, बल्कि अनुराग ने तो अपनी निजी पहचान भी बनाई है. वैसे भी समय के इस दौर में परिवार से योग्य व्यक्ति को राजनीति में अपनी पहचान बनाने का अवसर मिलना कोई बुरी बात नहीं है. लेकिन ये भी सत्य है कि राजनीति लंबे समय तक परिवार विशेष तक नहीं सिमटनी चाहिए. धनंजय शर्मा का कहना है कि भाजपा हाईकमान ने यूं तो परिवार व उम्र का पैमाना बनाया था, लेकिन परिवारवाद के मसले पर पार्टी के तेवर ढीले हुए हैं. उम्र के पैमाने को बेशक पार्टी ने लागू किया है. इस चुनाव में चेतन बरागटा और रजत ठाकुर का टिकट बताता है कि पार्टी सिद्धांतों में समय के अनुसार परिवर्तन कर लेती है. हां, उम्र के अनुसार प्रेम कुमार धूमल, कर्नल इंद्र सिंह, गुलाब सिंह ठाकुर, महेंद्र ठाकुर को टिकट नहीं दिया है. ये निकट भविष्य में उदाहरण बन सकता है.