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बिहार में भी खजुराहो, 17 खंभों पर उकेरी गई कामकला बनाती इसे खास

बिहार के कई ऐसे ऐतिहासिक धरोहर हैं, जो अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. उन्हीं में से एक नाम बिहार के नेपाली मंदिर का भी है, जो बर्बादी के कगार पर पहुंच चुका है. इसकी खासियत जानकार आपको मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर की याद आ जाएगी. देखिये ये रिपोर्ट....

बिहार में भी खजुराहो
बिहार में भी खजुराहो
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Published : Apr 11, 2022, 7:22 PM IST

वैशाली : भारत का खजुराहो मंदिर (world famous khajuraho temple) अपनी अद्भूत कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है. जहां हर साल लाखों पर्यटक इसके दर्शन के लिए आते हैं. लेकिन आपको जानकर ये हैरानी होगी कि बिहार में भी एक मिनी खजुराहो मंदिर (khajuraho temple bihar) है. जिसे बहुत कम ही लोग जानते हैं. बिहार की राजधानी पटना से महज 26 किलोमीटर दूर हाजीपुर के कौनहारा घाट में नेपाली मंदिर स्थित है. जहां कामकला का व्यापक चित्रण मौजूद है. मंदिर में लगे लकड़ी के खंभों पर कामकला के अलग-अलग आसनों का चित्रण है. यही कारण है कि इसे बिहार का खजुराहो कहा जता है. इस मंदिर को देखने कभी दूर-दूर से पर्यटक आया करते थे. लेकिन आज इसकी हालत देखकर स्थानीय लोग मायूस हैं.

मंदिर का इतिहास : बताया जाता है कि नेपाल के राजा ने भारत के लिए यह अद्भुत मंदिर बनवाई थी. हालांकि, मंदिर को लेकर कई तरह की बातें कहीं जाती हैं. कई पुस्तकों में अलग-अलग उल्लेख मिलता है. 18वीं शताब्दी में नेपाल के राजा के आदेश पर नेपाली सेना के कमांडर मातबर सिंह थापा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. इसलिए आम लोगों में यह 'नेपाली छावनी' के तौर पर भी लोकप्रिय है.

500 साल पुराना है इतिहास
500 साल पुराना है इतिहास

मंदिर की खासियत : नेपाली वस्तु कला शैली के इस मंदिर में कामकला के अलग-अलग आसनों का चित्र लकड़ी पर किया गया है. भगवान शिव के इस मंदिर में कष्ट कला का खूबसूरत कारीगरी की गई है. मंदिर के निर्माण में एक लौह स्तंभ, पत्थरों की चट्टाने और लकड़ियों की पट्टियों का भरपूर इस्तेमाल हुआ है. मंदिर के गर्भ गृह में पत्थर का शिवलिंग विद्यमान है. बताया यह भी जाता है कि इस मंदिर में उत्तर की नागर शैली, दक्षिण की द्रविड़ शैली, के साथ बेलसर शैली और स्थानीय शिल्प कौशल का भी प्रयोग किया गया है. कई अभिलेखों के मुताबिक यह मंदिर लगभग 550 वर्ष पूर्व निर्माण कराया गया था. जिसमें नेपाल के महाराज हरि सिंह के दादा रणजीत सिंह के द्वारा भी मंदिर निर्माण की बात कहीं गई है.

कार्तिक माह में भक्तों की लगती है भीड़ : यहां श्रवण मास और कार्तिक माह में भक्तों का अधिक आगमन होता है. खासकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगने वाले गंगा स्नान मेले के दौरान पर्यटकों की काफी भीड़ देखी जाती है. मंदिर के ऊपर लगे 17 खम्भों में काम कला के विभिन्न मुद्राओं का चित्रण है. मंदिर के पास बुटन दास मठ है. यहा रहने वाले महंथ अर्जुन दास ने बताया कि इस मंदिर में कई अष्टधातु की मूर्तियां थी. साथ ही एक अद्भुत शिवलिंग भी था, जो 2008 में गायब हो गया.

बिहार का खजुराहो

अर्जुन दास के मुताबिक, कामशास्त्र के बारे में पूरी जानकारी इस मंदिर में दी गई है. साथ में नियंत्रित रहना भी सिखाया गया है. उन्होंने आगे बताया कि शिवपुराण में वर्णित है कि चारों दिशा में दरवाजा होने वाले शिव मंदिर बेहद महत्वपूर्ण होते हैं. इस मंदिर में भी चारों दिशा में दरवाजे खुलते हैं. स्थानीय निवासी निशांत कुमार ने कहा, 'बचपन से देख रहा हूं. लकड़ी पर जो कशीदाकारी है, वह अद्भुत है. सरकार के साथ-साथ आम लोगों को भी जागरूक होकर इस धरोहर को बचाना चाहिए. मंदिर में काम कला की तस्वीरें यह बताती है कि काम वासना को छोड़कर मंदिर में आइए.'

नेपाली छावनी शिव मंदिर में तैनात एक गार्ड विजय शाह की तैनाती की गई है. लेकिन उनको पैसा नहीं मिलता है तो वे मंदिर के गेट पर ही भूंजा बेचते हैं. उनका कहना है कि उनके आने से पहले मंदिर की मूर्तियां चोरी हुई हैं. उनके आने के बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ है. भूंजा भेचने के सवाल पर उन्होंने कहा कि उन्हें कुछ मिलता ही नहीं है तो वह क्या करेंगे. स्थानीय लोग बताते हैं कि मंदिर से थोड़ी दूरी पर चिता भी जलाई जाती है. पास में ही एक घाट भी है, जहां लोग स्नान करते हैं. चंद कदमों पर यहां नारायणी और गंगा का संगम होता है. मान्यता है कि इसी घाट पर गज और ग्राह की लड़ाई हुई थी. इसलिए इस घाट का नाम कौनहारा घाट रखा गया है. लेकिन आज ये मंदिर जुआरियों और नशेड़ियों का अड्डा बन गया है. कई जगहों पर लोग जुआ खेलते नजर आते हैं. तो कुछ लोग इसी मंदिर में छुपकर गांजा पीते हैं. हालात ये है कि मंदिर के चारों तरफ गंदगी फैली हुई है.

पुरातात्विक निदेशालय ने की थी पहल : हालांकि, इसके संरक्षण को लेकर पुरातात्विक निदेशालय (बिहार सरकार) द्वारा 2018 में भवन निर्माण विभाग को इसके सुधार के लिए राशि आवंटित की गई थी. मगर उनके पास इस काम के लिए दक्ष अभियंताओं की कमी के कारण वह इसके लिए तैयार नहीं हुए. पुरातात्विक निदेशालय की ओर से उस समय ये भी कहा क गया था कि नेपाली मंदिर के संरक्षण को लेकर सरकार गंभीर है और इसके लिए इनटैक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हैरिटेज) से संपर्क साधा गया है. ताकि संरक्षण का काम प्रारंभ किया जा सके. लेकिन ये सारी बातें हवा हवाई ही साबित हुई, ना मंदिर का संरक्षण हुआ ना विकास का कोई कार्य.

अब सवाल ये है कि राजधानी से महज कुछ दूरी पर स्थित इस आकर्षक मंदिर को सहेज कर रखना क्या सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं, सुशासन बाबू सिर्फ अपने गृह जिले नालंदा को चमकाने में लगे हैं, लेकिन मुख्यालय से सटे वैशाली जिले की इस अद्भूत मंदिर पर उनकी नजर क्यों नहीं पड़ी. अगर सरकार इस ऐतिहासिक धरोहर पर ध्यान दे, तो ये मंदिर बिहार के पर्यटन की दिशा और दशा दोनों बदल सकती है.

वैशाली : भारत का खजुराहो मंदिर (world famous khajuraho temple) अपनी अद्भूत कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है. जहां हर साल लाखों पर्यटक इसके दर्शन के लिए आते हैं. लेकिन आपको जानकर ये हैरानी होगी कि बिहार में भी एक मिनी खजुराहो मंदिर (khajuraho temple bihar) है. जिसे बहुत कम ही लोग जानते हैं. बिहार की राजधानी पटना से महज 26 किलोमीटर दूर हाजीपुर के कौनहारा घाट में नेपाली मंदिर स्थित है. जहां कामकला का व्यापक चित्रण मौजूद है. मंदिर में लगे लकड़ी के खंभों पर कामकला के अलग-अलग आसनों का चित्रण है. यही कारण है कि इसे बिहार का खजुराहो कहा जता है. इस मंदिर को देखने कभी दूर-दूर से पर्यटक आया करते थे. लेकिन आज इसकी हालत देखकर स्थानीय लोग मायूस हैं.

मंदिर का इतिहास : बताया जाता है कि नेपाल के राजा ने भारत के लिए यह अद्भुत मंदिर बनवाई थी. हालांकि, मंदिर को लेकर कई तरह की बातें कहीं जाती हैं. कई पुस्तकों में अलग-अलग उल्लेख मिलता है. 18वीं शताब्दी में नेपाल के राजा के आदेश पर नेपाली सेना के कमांडर मातबर सिंह थापा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. इसलिए आम लोगों में यह 'नेपाली छावनी' के तौर पर भी लोकप्रिय है.

500 साल पुराना है इतिहास
500 साल पुराना है इतिहास

मंदिर की खासियत : नेपाली वस्तु कला शैली के इस मंदिर में कामकला के अलग-अलग आसनों का चित्र लकड़ी पर किया गया है. भगवान शिव के इस मंदिर में कष्ट कला का खूबसूरत कारीगरी की गई है. मंदिर के निर्माण में एक लौह स्तंभ, पत्थरों की चट्टाने और लकड़ियों की पट्टियों का भरपूर इस्तेमाल हुआ है. मंदिर के गर्भ गृह में पत्थर का शिवलिंग विद्यमान है. बताया यह भी जाता है कि इस मंदिर में उत्तर की नागर शैली, दक्षिण की द्रविड़ शैली, के साथ बेलसर शैली और स्थानीय शिल्प कौशल का भी प्रयोग किया गया है. कई अभिलेखों के मुताबिक यह मंदिर लगभग 550 वर्ष पूर्व निर्माण कराया गया था. जिसमें नेपाल के महाराज हरि सिंह के दादा रणजीत सिंह के द्वारा भी मंदिर निर्माण की बात कहीं गई है.

कार्तिक माह में भक्तों की लगती है भीड़ : यहां श्रवण मास और कार्तिक माह में भक्तों का अधिक आगमन होता है. खासकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगने वाले गंगा स्नान मेले के दौरान पर्यटकों की काफी भीड़ देखी जाती है. मंदिर के ऊपर लगे 17 खम्भों में काम कला के विभिन्न मुद्राओं का चित्रण है. मंदिर के पास बुटन दास मठ है. यहा रहने वाले महंथ अर्जुन दास ने बताया कि इस मंदिर में कई अष्टधातु की मूर्तियां थी. साथ ही एक अद्भुत शिवलिंग भी था, जो 2008 में गायब हो गया.

बिहार का खजुराहो

अर्जुन दास के मुताबिक, कामशास्त्र के बारे में पूरी जानकारी इस मंदिर में दी गई है. साथ में नियंत्रित रहना भी सिखाया गया है. उन्होंने आगे बताया कि शिवपुराण में वर्णित है कि चारों दिशा में दरवाजा होने वाले शिव मंदिर बेहद महत्वपूर्ण होते हैं. इस मंदिर में भी चारों दिशा में दरवाजे खुलते हैं. स्थानीय निवासी निशांत कुमार ने कहा, 'बचपन से देख रहा हूं. लकड़ी पर जो कशीदाकारी है, वह अद्भुत है. सरकार के साथ-साथ आम लोगों को भी जागरूक होकर इस धरोहर को बचाना चाहिए. मंदिर में काम कला की तस्वीरें यह बताती है कि काम वासना को छोड़कर मंदिर में आइए.'

नेपाली छावनी शिव मंदिर में तैनात एक गार्ड विजय शाह की तैनाती की गई है. लेकिन उनको पैसा नहीं मिलता है तो वे मंदिर के गेट पर ही भूंजा बेचते हैं. उनका कहना है कि उनके आने से पहले मंदिर की मूर्तियां चोरी हुई हैं. उनके आने के बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ है. भूंजा भेचने के सवाल पर उन्होंने कहा कि उन्हें कुछ मिलता ही नहीं है तो वह क्या करेंगे. स्थानीय लोग बताते हैं कि मंदिर से थोड़ी दूरी पर चिता भी जलाई जाती है. पास में ही एक घाट भी है, जहां लोग स्नान करते हैं. चंद कदमों पर यहां नारायणी और गंगा का संगम होता है. मान्यता है कि इसी घाट पर गज और ग्राह की लड़ाई हुई थी. इसलिए इस घाट का नाम कौनहारा घाट रखा गया है. लेकिन आज ये मंदिर जुआरियों और नशेड़ियों का अड्डा बन गया है. कई जगहों पर लोग जुआ खेलते नजर आते हैं. तो कुछ लोग इसी मंदिर में छुपकर गांजा पीते हैं. हालात ये है कि मंदिर के चारों तरफ गंदगी फैली हुई है.

पुरातात्विक निदेशालय ने की थी पहल : हालांकि, इसके संरक्षण को लेकर पुरातात्विक निदेशालय (बिहार सरकार) द्वारा 2018 में भवन निर्माण विभाग को इसके सुधार के लिए राशि आवंटित की गई थी. मगर उनके पास इस काम के लिए दक्ष अभियंताओं की कमी के कारण वह इसके लिए तैयार नहीं हुए. पुरातात्विक निदेशालय की ओर से उस समय ये भी कहा क गया था कि नेपाली मंदिर के संरक्षण को लेकर सरकार गंभीर है और इसके लिए इनटैक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हैरिटेज) से संपर्क साधा गया है. ताकि संरक्षण का काम प्रारंभ किया जा सके. लेकिन ये सारी बातें हवा हवाई ही साबित हुई, ना मंदिर का संरक्षण हुआ ना विकास का कोई कार्य.

अब सवाल ये है कि राजधानी से महज कुछ दूरी पर स्थित इस आकर्षक मंदिर को सहेज कर रखना क्या सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं, सुशासन बाबू सिर्फ अपने गृह जिले नालंदा को चमकाने में लगे हैं, लेकिन मुख्यालय से सटे वैशाली जिले की इस अद्भूत मंदिर पर उनकी नजर क्यों नहीं पड़ी. अगर सरकार इस ऐतिहासिक धरोहर पर ध्यान दे, तो ये मंदिर बिहार के पर्यटन की दिशा और दशा दोनों बदल सकती है.

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