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पुष्कर मेले में दशाश्वमेध घाट पर तेलगु भाषा में श्रद्धालुओं को जागरूक कर रही एनडीआरएफ की टीम

वाराणसी में पुष्कर मेले की शुरुआत आज से हो चुकी है. तेलंगाना, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे हैं. एनडीआरएफ की टीम अलग-अलग भाषाओं में लोगों को जागरूक कर रही है.

पुष्कर मेले में तेलगू भाषा में श्रद्धालुओं को जागरूक किया गया.
पुष्कर मेले में तेलगू भाषा में श्रद्धालुओं को जागरूक किया गया.
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Published : Apr 22, 2023, 12:22 PM IST

पुष्कर मेले में तेलगू भाषा में श्रद्धालुओं को जागरूक किया गया.

वाराणसी : धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में आज से पुष्कर मेला प्रारंभ हो गया है. 12 वर्षों में यह मेला एक बार ही लगता है. 22 अप्रैल से शुरू हुए इस मेले का समापन 3 मई को होगा. काशी के विभिन्न घाटों पर तेलंगाना, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से काफी संख्या में आए श्रद्धालु स्नान कर रहे हैं. दशाश्वमेध घाट पर एनडीआरएफ की टीम ने तेलगु भाषा में अनाउंसमेंट कर श्रद्धालुओं को जागरूक किया. लोगों को गहरे पानी में जाने से मना किया. टीम अलग-अलग भाषाओं में श्रद्धालुओं को सचेत कर रही है. दूसरे राज्य में अपनी भाषा सुनकर श्रद्धालु भी काफी खुश दिखाई दिए.

काशी में लगे पुष्कर मेले का आध्यात्मिक महत्व है. मान्यता है कि इससे पहले आज से 12 वर्ष पूर्व 2011 में पुष्कर मेले का आयोजन किया गया था. उस समय जबरदस्त भीड़ जुटी थी. श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा था. इस बार भी जिला प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद है. नगर निगम द्वारा स्वच्छता का भी ध्यान रखा गया है.

शनिवार को तेलंगाना, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश आदि राज्यों से आए श्रद्धालु विभिन्न घाटों पर स्नान के लिए पहुंचे. श्रद्धालुओं को गहरे पानी में जाने से बचाने और कोई भी हादसा होने से रोकने के लिए एनडीआरएफ की टीम ने श्रद्धालुओं को उन्हीं की भाषा में माइक लेकर जागरूक करना शुरू कर दिया. एनडीआरएफ की महिला रेस्क्यूर्स की ओर से भी तेलगु में श्रद्धालुओं को सचेत किया जा रहा है. एनडीआरएफ के साथ समय-समय पर जल पुलिस भी गश्त कर लोगों को जागरूक कर रही है.

श्रद्धालु काशी के तमाम प्राचीन मंदिरों में सबसे पहले बाबा काल भैरव का दर्शन करेंगे. उसके बाद बाबा श्री काशी विश्वनाथ, मां अन्नपूर्णा का दर्शन करेंगे. संकट मोचन मंदिर, दुर्गा मंदिर और उसके बाद केदारखंड के केदारेश्वर महादेव महामृत्युंजय मंदिर के साथ ही विशालाक्षी देवी आदि मंदिरों में भी पूजा-पाठ करेंगे. स्थानीय निवासी गौरव श्रीवास्तव ने बताया कि काशी में साउथ से जो श्रद्धालु आए हैं, उन्हें उनकी भाषा में जागरूक किया जा रहा है. वह गहरे पानी में नहीं जा रहे हैं.

यह भी पढ़ें : मानसरोवर घाट पर भव्य अनुष्ठान के साथ मेले की शुरुआत, जुटेगी लाखों की भीड़

पुष्कर मेले में तेलगू भाषा में श्रद्धालुओं को जागरूक किया गया.

वाराणसी : धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में आज से पुष्कर मेला प्रारंभ हो गया है. 12 वर्षों में यह मेला एक बार ही लगता है. 22 अप्रैल से शुरू हुए इस मेले का समापन 3 मई को होगा. काशी के विभिन्न घाटों पर तेलंगाना, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से काफी संख्या में आए श्रद्धालु स्नान कर रहे हैं. दशाश्वमेध घाट पर एनडीआरएफ की टीम ने तेलगु भाषा में अनाउंसमेंट कर श्रद्धालुओं को जागरूक किया. लोगों को गहरे पानी में जाने से मना किया. टीम अलग-अलग भाषाओं में श्रद्धालुओं को सचेत कर रही है. दूसरे राज्य में अपनी भाषा सुनकर श्रद्धालु भी काफी खुश दिखाई दिए.

काशी में लगे पुष्कर मेले का आध्यात्मिक महत्व है. मान्यता है कि इससे पहले आज से 12 वर्ष पूर्व 2011 में पुष्कर मेले का आयोजन किया गया था. उस समय जबरदस्त भीड़ जुटी थी. श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा था. इस बार भी जिला प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद है. नगर निगम द्वारा स्वच्छता का भी ध्यान रखा गया है.

शनिवार को तेलंगाना, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश आदि राज्यों से आए श्रद्धालु विभिन्न घाटों पर स्नान के लिए पहुंचे. श्रद्धालुओं को गहरे पानी में जाने से बचाने और कोई भी हादसा होने से रोकने के लिए एनडीआरएफ की टीम ने श्रद्धालुओं को उन्हीं की भाषा में माइक लेकर जागरूक करना शुरू कर दिया. एनडीआरएफ की महिला रेस्क्यूर्स की ओर से भी तेलगु में श्रद्धालुओं को सचेत किया जा रहा है. एनडीआरएफ के साथ समय-समय पर जल पुलिस भी गश्त कर लोगों को जागरूक कर रही है.

श्रद्धालु काशी के तमाम प्राचीन मंदिरों में सबसे पहले बाबा काल भैरव का दर्शन करेंगे. उसके बाद बाबा श्री काशी विश्वनाथ, मां अन्नपूर्णा का दर्शन करेंगे. संकट मोचन मंदिर, दुर्गा मंदिर और उसके बाद केदारखंड के केदारेश्वर महादेव महामृत्युंजय मंदिर के साथ ही विशालाक्षी देवी आदि मंदिरों में भी पूजा-पाठ करेंगे. स्थानीय निवासी गौरव श्रीवास्तव ने बताया कि काशी में साउथ से जो श्रद्धालु आए हैं, उन्हें उनकी भाषा में जागरूक किया जा रहा है. वह गहरे पानी में नहीं जा रहे हैं.

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