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NCERT के पास नहीं है मुगलों से जुड़े इस तथ्य का जवाब, आरटीआई से खुलासा - इस तथ्य का जवाब

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी रायपुर के छात्र शिवांक वर्मा ने एनसीईआरटी से हिस्ट्री की किताब में मुगलकाल से संबंधित किए गए दावों पर आरटीआई लगाकर स्पष्टीकरण मांगा, जिसके जवाब में एनसीईआरटी ने कहा कि इस संबंध में फाइल में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है. वहीं एनसीईआरटी का यह जवाब सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है.

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Published : Jan 16, 2021, 7:54 PM IST

नई दिल्लीः स्कूली किताबों को जानकारी का सबसे बेहतर स्रोत माना जाता है. खास तौर पर भारत के इतिहास से संबंधित सभी जानकारियां छात्र यही किताबें पढ़कर हासिल करते हैं, लेकिन 12 वीं की किताब में दी गई एक जानकारी को लेकर एनसीईआरटी को जवाबदेही भारी पड़ रही है.

बता दें कि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी रायपुर के छात्र शिवांक वर्मा ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) से हिस्ट्री की किताब में मुगलकाल से संबंधित किए गए दावों पर आरटीआई लगाकर स्पष्टीकरण मांगा, जिसके जवाब में एनसीईआरटी ने कहा कि इस संबंध में फाइल में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है.

किताब में लिखे स्रोत की छात्र ने मांगी जानकारी

वहीं एनसीईआरटी का यह जवाब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है और कहा जा रहा है कि पाठ्य पुस्तकों में मुगल काल को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जा रहा है. बता दें कि 12वीं क्लास में पढ़ाई जाने वाली एनसीईआरटी की इतिहास की किताब-थीम्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री पार्ट टू में यह दावा किया गया है कि शाहजहां और औरंगजेब के शासन काल में युद्ध के दौरान, जो मंदिर टूटे थे उनकी मरम्मत के लिए धन दिए गए थे.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

इस संबंध में शिवांक वर्मा नाम के एक छात्र ने आरटीआई लगाकर एनसीईआरटी से कुछ सवालों के जवाब मांगे हैं. शिवांक का पहला सवाल था कि इस तथ्य का स्रोत क्या है और दूसरा सवाल यह है कि औरंगजेब और शाहजहां ने कितने मंदिरों की मरम्मत करवाई.

पढ़ें - एक सोशल मीडिया पोस्ट ने बदल दी इस कश्मीरी कलाकार की जिंदगी

एनसीईआरटी के पास छात्र के सवाल का नहीं कोई जवाब

शिवांक वर्मा के इस सवाल पर एनसीईआरटी विभाग के पास पुख्ता तौर पर कोई जवाब नहीं पाया गया. एनसीईआरटी ने जो जवाब दिया वह सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. एनसीईआरटी की ओर से शिवांक के आरटीआई के जवाब में यह कह दिया गया है कि विभाग के पास मांगी गई जानकारी के संबंध में फाइल में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है.

वहीं शिवांक का कहना है कि वर्ष 2018 में 12वीं कक्षा में पढ़ते समय जब उन्होंने इन तथ्यों को पढ़ा, तो उनके मन में इस तरह के सवाल उठे थे और ऐसे में उन्होंने अपने सूचना के अधिकार के तहत एनसीईआरटी से इस विषय में जानकारी मांगी थी.

नई दिल्लीः स्कूली किताबों को जानकारी का सबसे बेहतर स्रोत माना जाता है. खास तौर पर भारत के इतिहास से संबंधित सभी जानकारियां छात्र यही किताबें पढ़कर हासिल करते हैं, लेकिन 12 वीं की किताब में दी गई एक जानकारी को लेकर एनसीईआरटी को जवाबदेही भारी पड़ रही है.

बता दें कि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी रायपुर के छात्र शिवांक वर्मा ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) से हिस्ट्री की किताब में मुगलकाल से संबंधित किए गए दावों पर आरटीआई लगाकर स्पष्टीकरण मांगा, जिसके जवाब में एनसीईआरटी ने कहा कि इस संबंध में फाइल में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है.

किताब में लिखे स्रोत की छात्र ने मांगी जानकारी

वहीं एनसीईआरटी का यह जवाब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है और कहा जा रहा है कि पाठ्य पुस्तकों में मुगल काल को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जा रहा है. बता दें कि 12वीं क्लास में पढ़ाई जाने वाली एनसीईआरटी की इतिहास की किताब-थीम्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री पार्ट टू में यह दावा किया गया है कि शाहजहां और औरंगजेब के शासन काल में युद्ध के दौरान, जो मंदिर टूटे थे उनकी मरम्मत के लिए धन दिए गए थे.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

इस संबंध में शिवांक वर्मा नाम के एक छात्र ने आरटीआई लगाकर एनसीईआरटी से कुछ सवालों के जवाब मांगे हैं. शिवांक का पहला सवाल था कि इस तथ्य का स्रोत क्या है और दूसरा सवाल यह है कि औरंगजेब और शाहजहां ने कितने मंदिरों की मरम्मत करवाई.

पढ़ें - एक सोशल मीडिया पोस्ट ने बदल दी इस कश्मीरी कलाकार की जिंदगी

एनसीईआरटी के पास छात्र के सवाल का नहीं कोई जवाब

शिवांक वर्मा के इस सवाल पर एनसीईआरटी विभाग के पास पुख्ता तौर पर कोई जवाब नहीं पाया गया. एनसीईआरटी ने जो जवाब दिया वह सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. एनसीईआरटी की ओर से शिवांक के आरटीआई के जवाब में यह कह दिया गया है कि विभाग के पास मांगी गई जानकारी के संबंध में फाइल में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है.

वहीं शिवांक का कहना है कि वर्ष 2018 में 12वीं कक्षा में पढ़ते समय जब उन्होंने इन तथ्यों को पढ़ा, तो उनके मन में इस तरह के सवाल उठे थे और ऐसे में उन्होंने अपने सूचना के अधिकार के तहत एनसीईआरटी से इस विषय में जानकारी मांगी थी.

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