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राष्ट्रीय पोषण सप्ताह : स्वस्थ रहने के लिए पोषक और संतुलित आहार खाइए

कोई भी देश तभी तरक्की कर सकता है कि जब उसकी जनता स्वस्थ हो. हमारे देश में आज भी बड़ी संख्या में बच्चे और महिलाएं पोषक भोजन के अभाव में कुपोषण का शिकार हो रहे हैं, इसलिए पोषण जरूरी है. हर साल की तरह इस साल भी 1 सितंबर से 7 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जा रहा है. जानिए इससे जुड़ी बातें.

संतुलित आहार खाइए
संतुलित आहार खाइए
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Published : Sep 1, 2021, 5:02 AM IST

हैदराबाद : बेहतर स्वास्थ्य के लिए पोषण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए 1 सितंबर से 7 सितंबर तक हर साल राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जाता है. इस साल भारत में 39वां राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जा रहा है.

पोषण का मतलब केवल इतना ही नहीं होता है कि आप क्या खा रहे हैं कितना खा रहे हैं, कितनी बार खा रहे हैं. इसका मतलब है कि आपके शरीर को कितने जरूरी पोषक तत्व मिल रहे हैं. सरल शब्दों में पोषण एक स्वस्थ और संतुलित आहार खाने के बारे में है. भोजन और पेय आपको स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक ऊर्जा और पोषक तत्व प्रदान करते हैं. इन पोषण शर्तों को समझने से आपके लिए बेहतर भोजन विकल्प बनाना आसान हो सकता है.

जानियों क्यों मनाया जाता है?
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह (National Nutrition Week) भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत खाद्य और पोषण बोर्ड द्वारा आयोजित एक वार्षिक पोषण कार्यक्रम है. देश में हर साल एक से सात सितंबर को यह मनाया जाता है. लोगों को इस दौरान पोषण के प्रति जागरूक किया जाता है. प्रत्येक व्यक्ति के बेहतर जीवन के लिए बेहतर स्वास्थ्य का होना जरूरी है.

जानिए भारत में कब हुई शुरुआत
मार्च 1973 में अमेरिकन डायटेटिक एसोसिएशन (अब एकेडमी ऑफ न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स) के सदस्यों ने डायटेटिक्स के पेशे को बढ़ावा देते हुए राष्ट्रीय पोषण सप्ताह पोषण शिक्षा संदेश को जनता तक पहुंचाने के लिए शुरू किया था. 1980 में जनता ने इसके प्रति बहुत अच्छी प्रतिक्रिया दिखाई. इस पर सप्ताह भर चलने वाला कार्यक्रम एक महीने का बन गया.

वर्ष 1982 में भारत में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय पोषण सप्ताह समारोह की शुरुआत की गई थी. यह अभियान लोगों को पोषण के महत्व को समझने और स्वस्थ, टिकाऊ जीवन शैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए शुरू किया गया था. जैसा कि हम जानते हैं कि कुपोषण देश के समग्र विकास में मुख्य बाधाओं में से एक है जिसे दूर करने और इसे रोकने के लिए राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जाता है. 1993 में सरकार द्वारा राष्ट्रीय पोषण नीति (NNP) को अपनाया गया था.

पोषण का महत्व
मानव शरीर को सात प्रमुख प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. सभी पोषक तत्व ऊर्जा प्रदान नहीं करते हैं लेकिन फिर भी पानी और फाइबर की तरह महत्वपूर्ण हैं. सूक्ष्म पोषक तत्व भी महत्वपूर्ण हैं लेकिन कम मात्रा में आवश्यक हैं. आवश्यक कार्बनिक यौगिक विटामिन होते हैं जिन्हें शरीर संश्लेषित नहीं कर सकता है. अच्छा पोषण आवश्यक है क्योंकि स्वस्थ वजन का प्रबंधन करने में मदद करता है. इसकी मदद से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. ये ऊर्जा प्रदान करता है. व्यक्ति ज्यादा समय तक जवान रहता है. इससे पुरानी बीमारियों के जोखिम कम होते हैं. स्वस्थ भोजन हमारे मूड को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है. स्वस्थ आहार मनुष्य के जीवन काल को बढ़ाता है. हेल्दी डाइट से काम पर भी फोकस बढ़ता है.

कुपोषण के दोहरे बोझ का सामना कर रही दुनिया
आज दुनिया कुपोषण के दोहरे बोझ का सामना कर रही है खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वैज्ञानिक विकास के शुरुआती चरणों से शुरू होने वाले कुपोषण के सभी रूपों से उत्पन्न जोखिमों की पड़ताल करते है. वह खोज करते हैं कि कैसे स्वास्थ्य प्रणाली सीधे तौर पर अन्य क्षेत्रों को प्रभावित करती है. कुपोषण को न केवल गरीबी के परिणाम के रूप में समझा जाना चाहिए,बल्कि ये एक राष्ट्रीय समस्या के रूप में भी है जिससे उत्पादकता पर असर पड़ता है.

भारत में पोषण संबंधी समस्याएं
माताओं से बच्चों में प्रसारित होने वाले कुपोषण का यह अंतर-पीढ़ी चक्र भारत के वर्तमान और भविष्य पर बहुत प्रभाव डालता है. कुपोषित बच्चों में संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है. भारत उन कई देशों में से एक है जहां बाल कुपोषण गंभीर समस्या है. भारत में बाल मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण कुपोषण भी है. भारत में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण IV (2014-2015 ) के अनुसार 5 वर्ष से कम आयु के 38.4 प्रतिशत बच्चे स्टंटिंग, 21 प्रतिशत वेस्टिंग और 35.7% बच्चे कम वजन से पीड़ित हैं. भारत में गंभीर तीव्र कुपोषण (एसएएम) की व्यापकता 7.5% है.

पढ़ें- पोषण पखवाड़ा का हुआ समापन, दिया गया संदेश

ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) 2020 में भारत को 107 देशों में 94वां स्थान मिला है. 27.2 स्कोर के साथ भारत में भूख का स्तर गंभीर है. अब तक किए गए 22 राज्यों के एनएफएचएस (2019-2021) के पांचवें दौर के आंकड़ों के अनुसार, केवल नौ में अविकसित बच्चों की संख्या में गिरावट देखी गई, 10 राज्यों में कमजोर बच्चों और छह राज्यों में कम वजन वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है.

पढ़ें- क्या फोर्टिफाइड चावल से कुपोषण मुक्त होगा भारत?

हैदराबाद : बेहतर स्वास्थ्य के लिए पोषण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए 1 सितंबर से 7 सितंबर तक हर साल राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जाता है. इस साल भारत में 39वां राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जा रहा है.

पोषण का मतलब केवल इतना ही नहीं होता है कि आप क्या खा रहे हैं कितना खा रहे हैं, कितनी बार खा रहे हैं. इसका मतलब है कि आपके शरीर को कितने जरूरी पोषक तत्व मिल रहे हैं. सरल शब्दों में पोषण एक स्वस्थ और संतुलित आहार खाने के बारे में है. भोजन और पेय आपको स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक ऊर्जा और पोषक तत्व प्रदान करते हैं. इन पोषण शर्तों को समझने से आपके लिए बेहतर भोजन विकल्प बनाना आसान हो सकता है.

जानियों क्यों मनाया जाता है?
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह (National Nutrition Week) भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत खाद्य और पोषण बोर्ड द्वारा आयोजित एक वार्षिक पोषण कार्यक्रम है. देश में हर साल एक से सात सितंबर को यह मनाया जाता है. लोगों को इस दौरान पोषण के प्रति जागरूक किया जाता है. प्रत्येक व्यक्ति के बेहतर जीवन के लिए बेहतर स्वास्थ्य का होना जरूरी है.

जानिए भारत में कब हुई शुरुआत
मार्च 1973 में अमेरिकन डायटेटिक एसोसिएशन (अब एकेडमी ऑफ न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स) के सदस्यों ने डायटेटिक्स के पेशे को बढ़ावा देते हुए राष्ट्रीय पोषण सप्ताह पोषण शिक्षा संदेश को जनता तक पहुंचाने के लिए शुरू किया था. 1980 में जनता ने इसके प्रति बहुत अच्छी प्रतिक्रिया दिखाई. इस पर सप्ताह भर चलने वाला कार्यक्रम एक महीने का बन गया.

वर्ष 1982 में भारत में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय पोषण सप्ताह समारोह की शुरुआत की गई थी. यह अभियान लोगों को पोषण के महत्व को समझने और स्वस्थ, टिकाऊ जीवन शैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए शुरू किया गया था. जैसा कि हम जानते हैं कि कुपोषण देश के समग्र विकास में मुख्य बाधाओं में से एक है जिसे दूर करने और इसे रोकने के लिए राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जाता है. 1993 में सरकार द्वारा राष्ट्रीय पोषण नीति (NNP) को अपनाया गया था.

पोषण का महत्व
मानव शरीर को सात प्रमुख प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. सभी पोषक तत्व ऊर्जा प्रदान नहीं करते हैं लेकिन फिर भी पानी और फाइबर की तरह महत्वपूर्ण हैं. सूक्ष्म पोषक तत्व भी महत्वपूर्ण हैं लेकिन कम मात्रा में आवश्यक हैं. आवश्यक कार्बनिक यौगिक विटामिन होते हैं जिन्हें शरीर संश्लेषित नहीं कर सकता है. अच्छा पोषण आवश्यक है क्योंकि स्वस्थ वजन का प्रबंधन करने में मदद करता है. इसकी मदद से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. ये ऊर्जा प्रदान करता है. व्यक्ति ज्यादा समय तक जवान रहता है. इससे पुरानी बीमारियों के जोखिम कम होते हैं. स्वस्थ भोजन हमारे मूड को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है. स्वस्थ आहार मनुष्य के जीवन काल को बढ़ाता है. हेल्दी डाइट से काम पर भी फोकस बढ़ता है.

कुपोषण के दोहरे बोझ का सामना कर रही दुनिया
आज दुनिया कुपोषण के दोहरे बोझ का सामना कर रही है खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वैज्ञानिक विकास के शुरुआती चरणों से शुरू होने वाले कुपोषण के सभी रूपों से उत्पन्न जोखिमों की पड़ताल करते है. वह खोज करते हैं कि कैसे स्वास्थ्य प्रणाली सीधे तौर पर अन्य क्षेत्रों को प्रभावित करती है. कुपोषण को न केवल गरीबी के परिणाम के रूप में समझा जाना चाहिए,बल्कि ये एक राष्ट्रीय समस्या के रूप में भी है जिससे उत्पादकता पर असर पड़ता है.

भारत में पोषण संबंधी समस्याएं
माताओं से बच्चों में प्रसारित होने वाले कुपोषण का यह अंतर-पीढ़ी चक्र भारत के वर्तमान और भविष्य पर बहुत प्रभाव डालता है. कुपोषित बच्चों में संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है. भारत उन कई देशों में से एक है जहां बाल कुपोषण गंभीर समस्या है. भारत में बाल मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण कुपोषण भी है. भारत में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण IV (2014-2015 ) के अनुसार 5 वर्ष से कम आयु के 38.4 प्रतिशत बच्चे स्टंटिंग, 21 प्रतिशत वेस्टिंग और 35.7% बच्चे कम वजन से पीड़ित हैं. भारत में गंभीर तीव्र कुपोषण (एसएएम) की व्यापकता 7.5% है.

पढ़ें- पोषण पखवाड़ा का हुआ समापन, दिया गया संदेश

ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) 2020 में भारत को 107 देशों में 94वां स्थान मिला है. 27.2 स्कोर के साथ भारत में भूख का स्तर गंभीर है. अब तक किए गए 22 राज्यों के एनएफएचएस (2019-2021) के पांचवें दौर के आंकड़ों के अनुसार, केवल नौ में अविकसित बच्चों की संख्या में गिरावट देखी गई, 10 राज्यों में कमजोर बच्चों और छह राज्यों में कम वजन वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है.

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