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यूपी में गोल्ड मेडलिस्ट नेशनल प्लेयर की कहानी, भैंस के सहारे कैसे गुजारे जिंदगानी

नेशनल नेटबॉल टीम से खेलते हुए तीन सिलवर, दो कांस्य और दो गोल्ड मेडल हासिल करने वाला खिलाड़ी वर्तमान में आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. कोरोना काल में अंशकालीन मानदेय कोच की नौकरी छिन जाने से यूपी में इस खिलाड़ी का परिवार आर्थिक तंगी से परेशान है.

गोल्ड मेडलिस्ट नेशनल प्लेयर की कहानी
गोल्ड मेडलिस्ट नेशनल प्लेयर की कहानी
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Published : May 31, 2021, 11:30 PM IST

मिर्जापुर : कोरोना काल में नेटबॉल नेशनल खिलाड़ी विवेक कुमार मिश्रा की नौकरी चले जाने से उनका परिवार भुखमरी की कगार पर है.

बतौर अंशकालीन मानदेय कोच के पद पर कार्यरत रहा खिलाड़ी आज मुसीबत में पड़ गया है. ये बेरोजगार नेशनल खिलाड़ी अब घर पर पिता के साथ भैंस की देखरेख कर और उसके दूध को बेचकर जीवकोपार्जन करने को मजबूर है.

नेशनल प्लेयर का बुरा हाल

भैंस पाल कर गुजारा कर रहा नेशनल खिलाड़ी

भैंस के सहारे कैसे गुजरेगी जिंदगानी
भैंस के सहारे कैसे गुजरेगी जिंदगानी

कहते हैं कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती. लेकिन कभी-कभार आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण प्रतिभाएं हाशिए पर चली जाती हैं. मिर्जापुर जिले के पहाड़ी ब्लॉक स्थित चंदेलवा गांव निवासी विवेक कुमार मिश्रा (25) नेटबॉल के राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं.

उन्होंने मिर्जापुर जसोवर स्टेडियम में खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के लिए साल 2019 से बतौर अंशकालीन मानदेय प्रशिक्षक (कोच) की नौकरी ज्वाइन की थी. लेकिन कोरोना महामारी की दस्तक देते ही खिलाड़ी के सामने मुसीबत आन पड़ी.

कोरोना का हवाला देकर उनकी संविदा पर नौकरी को आगे नहीं बढ़ाया गया. सरकार ने अंशकालीन मानदेय प्रशिक्षक पद का नवीनीकरण नहीं किया, जिसके चलते उनकी नौकरी छिन गई.

दिव्यांग बहन की फीस नहीं जमा कर पाया खिलाड़ी

नेशनल नेटबॉल में प्रतिभाग कर चुके खिलाड़ी व कोच का परिवार वर्तमान में आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगत हो जाए, इसके लिए वो भैंस पाल कर परिवार और अपना गुजारा कर रहे हैं.

प्रशिक्षण से चलता था गुजारा
प्रशिक्षण से चलता था गुजारा

इस युवा खिलाड़ी के कंधे पर बीमार दादा-दादी, पत्नी, एक छोटे बच्चे और दिव्यांग बहन की जिम्मेदारी है. बहन बीएड की छात्रा है. लिहाजा उसकी पढ़ाई के लिए विवेक ने कर्ज लिया है. विवेक के माता-पिता बटाई का खेत लेकर किसानी करते हैं.

विवेक 2014 से अभी तक प्रदेश की सीनियर टीम के सदस्य हैं. अब तक उन्होंने तीन सिलवर, दो कांस्य और दो गोल्ड मेडल हासिल कर जिले और प्रदेश का नाम रोशन किया है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिखकर मांगी मदद

बेरोजगार हो चुके विवेक ने हाल ही में प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ को एक चिट्ठी लिखी थी. जिस पर उन्होंने अपनी व्यथा का जिक्र कर मदद की गुहार लगाई थी. उन्होंने लिखा था- 'मैं उत्तर प्रदेश के लिए खेलता हूं, मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसे भी दिन देखने पड़ेंगे.' सरकार से हाथ जोड़कर आर्थिक मदद के लिए निवेदन किया था, ताकि वो अपना कर्ज उतार सकें.

पढ़ें- इंदौर में 15 फीसदी मरीजों के मस्तिष्क में मिला ब्लैक फंगस

विवेक बताते हैं कि इस साल वो बहन की फीस तक नहीं जमा कर पाये. लिहाजा सरकार इस संकट से उबरने में उनकी मदद करे, जिससे मैं आगे भी प्रदेश के लिए खेल सकूं. विवेक की मंशा है कि वो बच्चों को प्रशिक्षण देकर प्रतियोगिताओं के लिए तैयार करें.

मिर्जापुर : कोरोना काल में नेटबॉल नेशनल खिलाड़ी विवेक कुमार मिश्रा की नौकरी चले जाने से उनका परिवार भुखमरी की कगार पर है.

बतौर अंशकालीन मानदेय कोच के पद पर कार्यरत रहा खिलाड़ी आज मुसीबत में पड़ गया है. ये बेरोजगार नेशनल खिलाड़ी अब घर पर पिता के साथ भैंस की देखरेख कर और उसके दूध को बेचकर जीवकोपार्जन करने को मजबूर है.

नेशनल प्लेयर का बुरा हाल

भैंस पाल कर गुजारा कर रहा नेशनल खिलाड़ी

भैंस के सहारे कैसे गुजरेगी जिंदगानी
भैंस के सहारे कैसे गुजरेगी जिंदगानी

कहते हैं कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती. लेकिन कभी-कभार आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण प्रतिभाएं हाशिए पर चली जाती हैं. मिर्जापुर जिले के पहाड़ी ब्लॉक स्थित चंदेलवा गांव निवासी विवेक कुमार मिश्रा (25) नेटबॉल के राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं.

उन्होंने मिर्जापुर जसोवर स्टेडियम में खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के लिए साल 2019 से बतौर अंशकालीन मानदेय प्रशिक्षक (कोच) की नौकरी ज्वाइन की थी. लेकिन कोरोना महामारी की दस्तक देते ही खिलाड़ी के सामने मुसीबत आन पड़ी.

कोरोना का हवाला देकर उनकी संविदा पर नौकरी को आगे नहीं बढ़ाया गया. सरकार ने अंशकालीन मानदेय प्रशिक्षक पद का नवीनीकरण नहीं किया, जिसके चलते उनकी नौकरी छिन गई.

दिव्यांग बहन की फीस नहीं जमा कर पाया खिलाड़ी

नेशनल नेटबॉल में प्रतिभाग कर चुके खिलाड़ी व कोच का परिवार वर्तमान में आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगत हो जाए, इसके लिए वो भैंस पाल कर परिवार और अपना गुजारा कर रहे हैं.

प्रशिक्षण से चलता था गुजारा
प्रशिक्षण से चलता था गुजारा

इस युवा खिलाड़ी के कंधे पर बीमार दादा-दादी, पत्नी, एक छोटे बच्चे और दिव्यांग बहन की जिम्मेदारी है. बहन बीएड की छात्रा है. लिहाजा उसकी पढ़ाई के लिए विवेक ने कर्ज लिया है. विवेक के माता-पिता बटाई का खेत लेकर किसानी करते हैं.

विवेक 2014 से अभी तक प्रदेश की सीनियर टीम के सदस्य हैं. अब तक उन्होंने तीन सिलवर, दो कांस्य और दो गोल्ड मेडल हासिल कर जिले और प्रदेश का नाम रोशन किया है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिखकर मांगी मदद

बेरोजगार हो चुके विवेक ने हाल ही में प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ को एक चिट्ठी लिखी थी. जिस पर उन्होंने अपनी व्यथा का जिक्र कर मदद की गुहार लगाई थी. उन्होंने लिखा था- 'मैं उत्तर प्रदेश के लिए खेलता हूं, मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसे भी दिन देखने पड़ेंगे.' सरकार से हाथ जोड़कर आर्थिक मदद के लिए निवेदन किया था, ताकि वो अपना कर्ज उतार सकें.

पढ़ें- इंदौर में 15 फीसदी मरीजों के मस्तिष्क में मिला ब्लैक फंगस

विवेक बताते हैं कि इस साल वो बहन की फीस तक नहीं जमा कर पाये. लिहाजा सरकार इस संकट से उबरने में उनकी मदद करे, जिससे मैं आगे भी प्रदेश के लिए खेल सकूं. विवेक की मंशा है कि वो बच्चों को प्रशिक्षण देकर प्रतियोगिताओं के लिए तैयार करें.

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