हैदराबाद : प्राकृतिक चिकित्सा या नेचरोपैथी ना सिर्फ देश में बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में आजकल वैकल्पिक चिकित्सा के सबसे प्रचलित ट्रेंड में गिनी जाती है. प्राकृतिक चिकित्सा में प्राकृतिक संसाधनों व क्रियाओं के माध्यम से रोगों के उपचार व शरीर को प्राकृतिक रूप से स्वस्थ बनाने के लिए प्रयास किया जाता है. प्राकृतिक चिकित्सा को लेकर लोगों में जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर साल 18 नवंबर को भारत के आयुष मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस या नेशनल नेचरोपैथी डे मनाया जाता है.
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For a harmonious health journey, it's crucial to take Ayush medicines under the watchful eye of skilled Ayush physicians or consultants. Don't be misled by the 'natural' or 'herbal' tag as every Ayush remedy has its nuances.#PharmaCOvigilance #AyushSuraksha #AyushWellness pic.twitter.com/qnGYc24nu1
— Ministry of Ayush (@moayush) November 17, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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Barnyard Millet (Shyamak), stands out as a nutritional powerhouse with its tiny white seeds that are packed with health benefits. Abundant in fiber, carbohydrates, and protein, this millet not only promotes bone growth but also aids in weight loss.#Millets #shreeanna #AyushAahar pic.twitter.com/YfBE55lg7v
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क्या है प्राकृतिक चिकित्सा
प्राकृतिक चिकित्सा या नैचरोपैथी एक प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है, जिसमें स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी अलग-अलग विधियों का उपयोग किया जाता है. इसका उपयोग दुनिया के कई हिस्सों में किया जाता है, विशेषतौर पर भारत में इस चिकित्सा पद्धति का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या काफी है. दरअसल भारत में बहुत से लोग आयुर्वेद तथा प्राकृतिक चिकित्सा को लेकर भ्रमित भी रहते हैं क्योंकि इन दोनों चिकित्सा पद्धतियों के सिद्धांत, उद्देश्य तथा नियम आपस में काफी मिलते हैं.
इंदौर के ‘प्रकृति आरोग्य केंद्र’ के चिकित्सक शैलेश कुमार बताते हैं कि प्राकृतिक चिकित्सा या नेचुरोपैथी केवल एक उपचार पद्धति नहीं है, बल्कि यह एक जीवनशैली हैं. जिसमें स्वस्थ व निरोगी रहने के लिए प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग तथा प्रकृति के सामान्य नियमों के पालन पर जोर दिया जाता है.
प्राकृतिक चिकित्सा में कई अलग-अलग प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज किया जाता है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखना है. जिसके लिए प्राकृतिक चिकित्सा में खान-पान एवं रहन-सहन की आदतों संबंधी नियमों का पालन करने के लिए कहा जाता है. इसके अलावा प्राकृतिक चिकित्सा में इलाज के लिए प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग तथा उनके उपयोग से जुड़ी क्रियाओं व अभ्यास का पालन किया जाता है, जैसे शुद्धि कर्म तथा जल, सूर्य व मृदा से जुड़ी क्रियाएं व चिकित्सा आदि.
शैलेश कुमार बताते हैं कि प्राकृतिक चिकित्सा में भी रोगों के इलाज से पहले उनसे बचाव को अधिक महत्व दिया जाता है. इसे प्राकृतिक चिकित्सा का सबसे प्रमुख नियम भी माना जाता है. इस चिकित्सा पद्धति में मरीज के शरीर की प्रकृति, उसके वातावरण और उसकी जीवनशैली को ध्यान में रखकर किसी भी रोग या स्वास्थ्य समस्या का इलाज किया जाता है. इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा में एक ही रोग का इलाज अलग-अलग व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न हो सकते हैं.
इसके अलावा इस चिकित्सा पद्धति में उन प्राकृतिक दवाओं, थेरेपियों तथा व्यायाम का उपयोग किया जाता है, जिनके शरीर को बिल्कुल नहीं या कम से कम नुकसान पहुंचते हैं. शैलेश कुमार ने आगे बताया कि इस पद्धति में रोगों का इलाज करने के साथ-साथ मरीज के स्वास्थ्य को प्राकृतिक रूप से बेहतर बनाने के लिए प्रयास किया जाता है. वहीं प्राकृतिक चिकित्सा का एक फायदा यह भी है भी इसका पालन एलोपैथी व अन्य चिकित्सा पद्धतियों के साथ भी किया जा सकता है.
प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास
प्राकृतिक चिकित्सा के जन्म की बार करें तो सबसे पहले स्कॉटलैण्ड के थॉमस एलिन्सन द्वारा वर्ष 1880 में 'हाइजेनिक मेडिसिन' का प्रचार किए जाने की बात सामने आती है. जो सेहतमंद तथा निरोगी रहने के लिए प्राकृतिक आहार व नियमित व्यायाम को अपनाने के साथ तम्बाकू आदि सेहत के लिए नुकसानदायक तत्वों के इस्तेमाल से परहेज की सलाह देते थे. लेकिन 'नेचुरोपैथी' को वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में लोगों में चर्चित करने का श्रेय अमेरिका के प्राकृतिक चिकित्सक बेनेडिक्ट लस्ट को जाता है. इसलिए उन्हे यूएस में नेचुरोपैथी का जनक भी कहा जाता है. नेचुरोपैथी दरअसल लैटिन भाषा के शब्द नेचुरा तथा यूनानी भाषा के शब्द पैथो से बना है. नेचुरा शब्द का अर्थ है प्रकृति और पैथो का अर्थ है पीड़ा या दर्द. इन दोनों शब्दों को मिलाकर नेचुरोपैथी शब्द बनाया गया था जिसका अर्थ होता है प्राकृतिक उपचार.
वहीं अपने देश में प्राकृतिक चिकित्सा की शुरुआत व प्रसार का कुछ श्रेय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को दिया जाता है. दरअसल 18 नवंबर 1945 को महात्मा गांधी, ऑल इंडिया नेचर क्योर फाउंडेशन ट्रस्ट के आजीवन अध्यक्ष बने थे और उन्होंने सभी वर्गों के लोगों को नेचर क्योर के लाभ उपलब्ध कराने के उद्देश्य से विलेख पर हस्ताक्षर किए थे. इसके कई सालों बाद भारत सरकार द्वारा आयुष मंत्रालय के गठन के बाद मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 में पहली बार 18 नवंबर को प्राकृतिक चिकित्सा दिवस (नेचुरोपैथी डे) मनाये जाने की परंपरा की शुरुआत की गई.
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