हल्द्वानी : मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाओं को तलाशने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा भेजे अंतरिक्ष यान में उत्तराखंड के हल्द्वानी की दो छात्राओं शिवानी मिश्र और हिमानी मिश्र के नाम भी शामिल हैं. बीते शुक्रवार को नासा का यह अंतरिक्ष यान मंगल पर सकुशल पहुंच गया.
नासा ने अंतरिक्ष में रुचि रखने वाले लोगों से 30 सितंबर, 2019 तक नाम मांगे थे, जिस पर लोगों ने अपने नाम भेजे. उन्हें ऑनलाइन बोर्डिंग पास दिए गए. सभी नामों को एक सिलिकॉन वेफर माइक्रोचिप पर एक इलेक्ट्रॉनिक बीम की मदद से उकेरा गया है. यह चिप हमेशा के लिए मंगल (Mars) पर रहेगी. नासा का मंगल मिशन जुलाई 2020 में लॉन्च किया गया था.
कैलिफोर्निया स्थित नासा के जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी के ब्रूस बैनर्ड ने कहा कि मंगल अंतरिक्ष में रुचि रखने वाले सभी आयु के लोगों को रोमांचित करता है. यह मौका उन्हें उस अंतरिक्ष यान का हिस्सा बनने का मौका देगा, जो मंगल ग्रह के बारे में अध्ययन करेंगे.
शिवानी मिश्र एमबीपीजी से भौतिक विज्ञान में शोध कर रही हैं. हिमानी मिश्र महिला महाविद्यालय से भौतिक विज्ञान में एमएससी कर रही हैं.
नासा के मंगल मिशन का उद्देश्य कई सवालों के जवाब खोजना है. मंगल ग्रह पर जीवन की कितनी संभावनाएं हैं? या क्या मंगल पर कभी जीवन था? नासा का रोवर मंगल पर खुदाई करके वहां की मिट्टी के सैंपल भी इकट्ठा करेगा. रोवर ये सैंपल वहीं छोड़ देगा और भविष्य में जाने वाला एयरक्राफ्ट इस सैंपल को धरती पर लेकर आएगा.
दोनों बहनों शिवानी और हिमानी को विश्वास है कि भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो जल्द ही मानवयुक्त यान मंगल पर भेजने में कामयाब होगी. वे कहती हैं कि दुनिया हमें ज्ञान गुरु के रूप में तो जानती ही है, परन्तु अब हम भारतीयों को विज्ञान गुरु बनने की जरूरत है.
छह साल पहले भी छाई थी शिवानी
जुलाई 2014 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की ओर से दुनियाभर में विश्व पृथ्वी दिवस पर चलाए गए अभियान में भारत से केवल एक छात्रा की तस्वीर नासा की वेबसाइट पर लगाई गई थी. वो छात्रा शिवानी मिश्र थीं. नासा ने शिवानी द्वारा भेजी गई हिम्मतपुर तल्ला तस्वीर को नासा की वेबसाइट पर अपलोड किया था.
नासा द्वारा विश्व पृथ्वी दिवस पर नागरिकों से 'पृथ्वी पर अभी आप कहां?' प्रश्न के साथ आग्रह किया गया था कि अपने वातावरण के साथ अपनी तस्वीरें भेजकर पृथ्वी ग्रह को बचाने और संवारने के लिए एकजुटता दिखाएं. सभी महाद्वीपों के 113 देशों के लगभग 50,000 लोगों ने इस अभियान में प्रतिभागिता की थी.
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अपने ग्रह को बचाने की मुहिम में शिवानी मिश्र के इस प्रयास को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की उपस्थिति के रूप में दर्ज किया गया था. शिवानी के पिता डॉ. संतोष मिश्र एमबी कॉलेज में हिंदी के एसोसिएट प्रोफेसर हैं.