हैदराबाद : बाघम्बरी गद्दी के महंत नरेंद्र गिरि को संत परंपरा के तहत प्रयागराज के उनके मठ में भू-समाधि दी गई. नरेंद्र गिरि सोमवार शाम मठ के गेस्ट हाउस में मृत पाए गए थे.
वैसे तो वैदिक संस्कृति में मृत शरीर के अंतिम संस्कार तीन विधियों से किया जाता है. पहला अग्निदाह, जिसमें शरीर को लकड़ियों के सहारे जला दिया जाता है. दूसरा जल समाधि, इसमें शव को वजनी वस्तु से बांधकर नदी में प्रवाहित करते हैं. अंतिम संस्कार का तीसरा तरीका भू-समाधि भी है, जिसमें मृत शरीर को जमीन के भीतर दफन कर देते हैं.
संतों को भूमि या जल समाधि देने का विधान
भारतीय संतों की परंपरा में ब्रह्मलीन या देह त्याग के बाद संतों की जल समाधि या भू समाधि देने का विधान है. उनका अग्नि से दाह संस्कार नहीं होता है. आदिगुरु शंकराचार्य को भी 492 ईसा पूर्व केदारनाथ धाम में भू समाधि दी गई थी. जनवरी 2019 में लिंगायत समुदाय के धर्मगुरू और कर्नाटक के तुमकुर स्थित सिद्धगंगा मठ के महंत शिवकुमार स्वामीजी को भी भू समाधि दी गई थी. ब्रज के संत देवरहा बाबा को जल समाधि दी गई थी. भक्ति काल के कई संतों की समाधि देश के प्रमुख मंदिरों और मठों में मौजूद हैं. 2014 में महंत अवैद्यनाथ को भी गोरखनाथ मंदिर परिसर में समाधि दी गई थी. उनकी समाधि गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ की समाधि स्थल के बगल में है. मगर कई वैष्णव परंपरा के कई संतों को उनकी इच्छा के अनुसार ब्रह्मलीन होने के बाद अग्निदाह किया गया.
संत क्यों होते हैं ब्रह्मलीन, समाधि क्या है
जब गृहस्थ यानी सामाजिक लोक व्यवहार से जीवन जीने वाले की सांसें थम जाती हैं, उन्हें सामान्यत: मृत्यु कहा जाता है. मगर जब संत-महात्मा देह त्याग करते हैं, उन्हें ब्रह्मलीन माना जाता है. पुराणों के अनुसार, जीवित अवस्था में मोक्ष या मुक्ति के लिए 6 प्रकार से समाधि ली जाती है. इसका उद्देश्य ईश्वर या ब्रह्म के साथ एकाकार या ब्रह्म स्वरूप होना है. जब योगी या संत ब्रह्म या ईश्वर के साथ एकाकार हो जाते हैं तो उन्हें समाधि अवस्था कहते हैं. इस अवस्था में इंद्रियों से अनुभव करने वाली इच्छा स्पर्श, रस, गंध, रूप एवं शब्द के प्रति मोह या अनुराग खत्म हो जाता है. बाहरी जगत या दुनिया में होने वाली कोई भी हलचल संत को प्रभावित नहीं कर पाती. इस अवस्था के बाद संत जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं. समाधि से पहले ध्यान के अभ्यास को बताया गया है.
अकाल मृत्यु के कारण गंगा स्नान जरूरी
माना जाता है कि संत परंपरा के महात्मा अपनी जिंदगी में ही समाधि की अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं. इसलिए जब साधु-संत शरीर त्याग करते हैं तो उन्हें उसी अवस्था में भूमि या जल समाधि दी जाती है. समाधि देने से पहले संत नरेंद्र गिरि को भू-समाधि देने से पहले गंगा स्नान कराया गया. क्योंकि विधान के अनुसार, अकाल मृत्यु या पंचक के दौरान मरने वाले के शरीर को गंगा स्नान कराने से दोष खत्म हो जाते हैं. गंगा स्नान के बाद समाधि में नरेंद्र गिरी के पार्थिव शरीर पर चीनी-नमक डाला गया. पार्थिव देह चंदन का लेप लगाकर बैठने की मुद्रा में रखी गई. भक्त, अनुयायी और आम जन ने अंतिम दर्शन कर उन्हें पुष्प अर्पित किए. इसके बाद मिट्टी डालकर समाधि देने की प्रक्रिया पूरी हुई.
संत नरेंद्र गिरि के ब्रह्मलीन होने के तीन दिन बाद धूल रोट का आयोजन होगा, जिसके तहत गुरुवार को महात्माओं को रोटी में चीनी मिलाकर बांटा जाएगा. भक्तों के बीच चावल दाल का प्रसाद वितरित होगा.