नई दिल्ली : नागालैंड राज्य की राजनीति (state politics of Nagaland) में हुए हाल के घटनाक्रम ने राज्य विधानसभा (state assembly) के विरोध मुक्त नियोजित विलय होने की पोल खोल दी है और नई संयुक्त इकाई के ताने-बाने की कलह सामने आ गई है. राज्य में हाल के दिनों में जो भी घटा उसने एक पुरानी कहावत 'एकता हर मामले में मजबूती प्रदान नहीं करती' को ठीक साबित कर दिया है.
मामले में परिचित एक सूत्र ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए ईटीवी भारत को बताया कि विवादास्पद मुद्दों को अपने दम पर हल करने में असमर्थ (Unable to resolve) राज्य के सभी विधायक पार्टी (MLAs of the state) के वरिष्ठों के 'उपलब्ध मार्गदर्शन' के साथ विचार-मंथन करने के लिए नई दिल्ली के लिए उड़ान भरने (flying to New Delhi) की प्रक्रिया में हैं, जबकि लगभग 16 विधायक पहले से ही राष्ट्रीय राजधानी (national capital) में डेरा डाले हुए हैं. बाकी के गुरुवार तक दिल्ली पहुंचने की उम्मीद है. वहीं कुछ विधायकों ने कहा कि वे 'प्रशिक्षण' के उद्देश्य से दिल्ली में हैं.
बता दें कि राज्य में 60 सदस्यीय नागालैंड विधानसभा (Nagaland state assembly) में वर्तमान में तीन मुख्य राजनीतिक दल(three main political entities) हैं. विधानसभा में नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (National Democratic Progressive Party ) के 20 विधायक हैं, भाजपा के पास 12 और साथ नेशनल पीपुल्स फ्रंट (National People's Front ) के पास 26 विधायक हैं.
पीपुल्स डेमोक्रेटिक अलायंस (People's Democratic Alliance ) नामक सत्तारूढ़ सरकार का नेतृत्व NDPP प्रमुख, नेफिउ रियो (Chief Minister Neiphiu Rio) कर रहे हैं. गठबंधन में भाजपा 2018 के चुनाव पूर्व गठबंधन के बाद जूनियर पार्टनर है. एनपीएफ एकमात्र विपक्ष था, दिलचस्प बात यह है कि राज्य चुनावों से पहले एनपीएफ रियो के नेतृत्व वाली पार्टी थी.
हालांकि बीते16 अगस्त को सीएम रियो ने एनपीएफ के सत्तारूढ़ शासन में विलय की घोषणा की. इस संबंध में उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, 'मुझे खुशी है कि नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, नागालैंड और नागा पीपुल्स फ्रंट (Naga People's Front) ने 'नागा राजनीतिक मुद्दे' के शीघ्र और शांतिपूर्ण समाधान के लिए हमारे साझा लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक विपक्ष-विहीन सरकार के लिए एक साथ आए.'
इससे पहले 19 जुलाई को एनपीएफ ने नागा राजनीतिक मुद्दे (Naga political issue) को सुविधाजनक बनाने के लिए पीडीए के साथ "विपक्ष-विहीन सरकार की अवधारणा का सर्वसम्मति से समर्थन किया था और एक नई इकाई का गठन किया गया था.
तीनों दलों द्वारा हस्ताक्षरित एक विज्ञप्ति में भव्य रूप से घोषणा की गई कि अब से सरकार के नए नामकरण को नागालैंड एकता सरकार (Nagaland Unity Government) कहा जाएगा. हालांकि NUG के जन्म में असंतोष के बीज भी थे जिसने कटुता को जन्म दिया.
2023 में होने वाले अगले राज्य चुनावों के साथ, तीनों संस्थाएं पहले से ही एक-दूसरे पर संदेह की नजर से देख रही हैं.
विलय के बाद एनपीएफ मंत्री पद की मांग कर सकते हैं. एनडीपीपी इसका विरोध कर सकता है, जबकि भाजपा को संदेह है कि एनडीपीपी अपने निर्वाचन क्षेत्र को नष्ट कर सकता है.
वहीं इस संबंध में अग्रणी नागा कार्यकर्ता (leading Naga activist) ने कहा है कि ये राजनीतिक दल नगा शांति प्रक्रिया (Naga peace process) के बहाने अपने स्वयं के हितों को देख रहे हैं. अगर उन्होंने राज्य में विपक्ष रहित सरकार बनाने का फैसला किया है, तो उनका प्राथमिक कर्तव्य लंबे समय से चले आ रहे नगा मुद्दे को हल करने का प्रयास और जोर होना चाहिए.
बता दें कि आत्मनिर्णय के अधिकारों (self-determination rights) का हवाला देते हुए, नागा आंदोलन की शुरुआत कुल संप्रभुता की मांग के साथ हुई थी, लेकिन जो अब काफी हद तक अधिक स्वायत्तता और संसाधनों पर नियंत्रण की मांग तक सिमट गई है.
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सरकार नागा आंदोलन के नेताओं के साथ बातचीत कर रही है, जो 1997 में नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (Nationalist Socialist Council of Nagalim) के इसाक-मुइवा (Isak-Muivah ) गुट के साथ शुरू हुआ था.
पिछले 24 सालों में दिल्ली और नागालैंड के अलावा पेरिस, जिनेवा, ज्यूरिख, एम्स्टर्डम, चियांग माई (थाईलैंड), लंदन, ओसाका, मलेशिया और द हेग में भी इस मामले में बातचीत हुई है.
इस मामले में 2015 में एक महत्वपूर्ण घटना उस समय हुई जब सरकार और NSCN (IM) के बीच एक रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिसमें पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और केंद्रीय गृह मंत्री (Union home minister) शामिल थे, लेकिन मामले में अंतिम समाधान अब तक मायावी रहा है.