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Uttarakhand Assembly Election: पहाड़ की राजनीति से जुड़े दिलचस्प मिथक, आप भी जानें

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Published : Feb 13, 2022, 4:51 PM IST

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव (assembly elections in uttarakhand) के सोमवार को मतदान होगा. 70 विधानसभा सीटों पर 632 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद होगी. लेकिन मतदान वाले दिन आपके लिए उत्तराखंड की राजनीति से जुड़े मिथ्य जानना (Myths related to politics in Uttarakhand) भी जरूरी है.

Symbolic photo
प्रतीकात्मक फोटो

देहरादून : उत्तराखंड की सियासत कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी के इर्द-गिर्द घूमती रही है. लेकिन इस बार बीजेपी इस इतिहास को बदलने की कोशिश में जुटी हुई है, तो वहीं कांग्रेस फिर सत्ता पर काबिज होने के लिए उत्सुक है. लेकिन उत्तराखंड राजनीति में मिथक भी जुड़े हुए हैं, ऐसे में इन मिथकों से राजनीति दल पार पा पाएंगे या नहीं ये तो 10 मार्च को ही पता चल पाएगा. आइए आपको बताते हैं उन मिथकों के बारे में.

प्रदेश में कड़ाके की ठंड के बाद भी सियासी कोयला सुलगा हुआ है. गली-चौराहों से लेकर खेत ही पगडंडियों तक सियासत तेज हो गई है. इस दौरान राजनीतिक गलियारों में इन विधानसभा सीटों से जुड़े मिथक भी खासे चर्चा में बने हुए हैं. जहां प्रत्याशियों के जीत पर सरकार बनती आई है. ये मिथक दशकों से चले आ रहे हैं और हर पार्टी इनकों हलके में लेने की भूल नहीं करती है. आइए आपको रूबरू कराते हैं उत्तराखंड की राजनीति के उन बड़े मिथकों से, जिन्होंने सियासत की तस्वीर साफ की है.

गंगोत्री सीट से तय होती है सरकार : उत्तराखंड में गंगोत्री सीट को लेकर अपना एक पुराना मिथक है. इस मिथक के अनुसार जो भी विधायक गंगोत्री सीट पर चुनकर आता है, प्रदेश में उसी पार्टी की सरकार बनती है. खास बात यह है कि ये मिथन यूपी के समय से देखने को मिल रहा है. उत्तराखंड राज्य गठन से पहले भी गंगोत्री क्षेत्र से जो विधायक जीतता था, यूपी में उसी की सरकार बनती थी, जो आजतक बरकरार है. यही वजह है कि राजनीतिक दलों के लिए गंगोत्री सीट काफी अहम रहती है और इस सीट पर अपने मजबूत प्रत्याशी को उतारने की कोशिश राजनीतिक दल करते हैं.

साल 2002 के चुनाव में कांग्रेस के विजयपाल सजवाण जीते, उन्होंने 7878 वोट हासिल किए जबकि सीपीआई के कमला राम नौटियाल यहां 7268 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे. तब कांग्रेस की सरकार बनी थी. साल 2007 विधानसभा चुनाव की करें तो यहां भाजपा प्रत्याशी गोपाल सिंह रावत जीते थे और उन्हें 24250 वोट मिले थे.

वहीं, दूसरे नंबर पर रहने वाले कांग्रेस के विजयपाल सजवाण ने 18704 वोट मिले थे. तब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी. 2012 के चुनाव में कांग्रेस के विजयपाल सजवाण ने यहां से जीत हासिल की थी, उन्हें 20246 मत मिले थे. जबकि भाजपा के गोपाल सिंह रावत 13223 वोटों के साथा दूसरे स्थान पर रहे थे. तब प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी थी. साल 2017 के चुनाव में भाजपा के गोपाल सिंह रावत जीते थे. उन्होंने 25683 वोट हासिल किए थे जबकि 16073 वोटों के साथ कांग्रेस के विजयपाल सजवाण दूसरे नंबर पर रहे थे. तब सूबे में भाजपा की सरकार बनी.

बदरीनाथ सीट पर रहती है सबकी नजर : बदरीनाथ सीट से भी मिथक जुड़ा हुआ है, यहां से कहा जाता है कि जिसका विधायक बनता है उसकी ही सरकार बनती है. इसलिए राजनीतिक दल इस सीट को गंभीरता से लेते हुए जिताऊ प्रत्याशी को ही खड़ा करते हैं. यहां से साल 2002 में कांग्रेस के प्रत्याशी डॉ. अनुसूइया प्रसाद मैखुरी जीते थे उन्हें तब 11145 मत पड़े थे. जबकि 10154 वोटों के साथ भाजपा के केदार सिंह फोनिया को दूसरे नंबर से संतोष करना पड़ा था.

साल 2007 में भाजपा के केदार सिंह फोनिया 16607 वोटों के साथ जीते थे, जबकि 12742 वोटों के साथ कांग्रेस के अनुसूया प्रसाद मैखुरी दूसरे नंबर पर रहे थे. फोनिया के जीत के साथ ही ही भाजपा सत्ता पर काबिज हुई थी. साल 2012 की बात करें तो यहां से कांग्रेस के राजेंद्र सिंह भंडारी 21492 वोटों के साथ जीते थे, तब उन्हें 11291 मत पड़े थे. वहीं भाजपा के प्रेम बल्लभ भट्ट दूसरे नंबर पर रहे थे और कांग्रेस की सरकार बनी थी. 2017 में भाजपा के महेंद्र भट्ट 29676 वोटों के साथ जीते जबकि 24042 वोटों के साथ कांग्रेस के राजेंद्र भंडारी दूसरे नंबर पर रहे. सरकार भाजपा की बनी.

रानीखेत सीट से जुड़ा मिथक : रानीखेत सीट के मिथक को कभी भी कांग्रेस और बीजेपी हलके में नहीं लेती है. इस सीट को लेकर कहा जाता है कि जो यहां हारता है उसकी सरकार बनती है. इस सीट से साल 2002 चुनाव में भाजपा के अजय भट्ट 10199 वोटों के साथ जीते और 7897 वोटों के साथ कांग्रेस के पूरन सिंह दूसरे नंबर पर रहे थे. तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी. साल 2007 की बात करें तो कांग्रेस के करन माहरा जीते थे, उन्हें 13503 वोट पड़े थे. जबकि भाजपा के अजय भट्ट 13298 वोट पाकर हार गए थे. लेकिन सूबे में बीजेपी की सरकार बनी.

साल 2012 में भाजपा के प्रत्याशी अजय भट्ट इस सीट से जीते थे और उन्हें 14089 मत पड़े थे. जबकि 14011 वोटों के साथ कांग्रेस के करन माहरा दूसरे नंबर पर रहे थे. भाजपा प्रत्याशी के जीतने के बाद भी सूबे में कांग्रेस की सरकार बनी थी. साल 2017 में कांग्रेस के करन माहरा 19035 वोटों के साथ जीते, जबकि भाजपा के अजय भट्ट यहां 14054 वोट हासिल कर हार गए थे. लेकिन प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी.

रामनगर सीट को लेकर मिथक : कुमाऊं की रामनगर सीट को काफी अहम माना जाता है. यहां से पूर्व सीएम स्वं नारायण दत्त तिवारी भी चुनाव लड़ चुके हैं. इसलिए इस सीट को काफी खास माना जाता है. कहा जाता है कि इस सीट से जो प्रत्याशी जीतता है, उसी की सरकार बनती है. इस सीट से साल 2002 में कांग्रेस के योगंबर सिंह जीते थे, जिन्हें 16271 मत पड़े थे. जबकि 11356 वोटों के साथ भाजपा प्रत्याशी दीवान सिंह बिष्ट दूसरे नंबर पर रहे. सरकार कांग्रेस की बनी.

साल 2007 की करें तो यहां से भाजपा के दीवान सिंह बिष्ट ने जीत दर्ज की थी. जबकि कांग्रेस के योगेंबर सिंह रावत दूसरे नंबर पर रहे थे लेकिन सरकार भाजपा की बनी. साल 2012 में कांग्रेस की अमृता रावत 23851 वोटों के साथ जीती जबकि 20122 वोटों के साथ दीवान सिंह दूसरे नंबर पर रहे, सरकार कांग्रेस की बनी. साल 2017 विधानसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा के दीवान सिंह 35839 वोटों के साथ विजेता रहे थे. वहीं कांग्रेस के रंजीत रावत दूसरे नंबर पर रहे थे, तब उन्हें 27228 वोट मिले थे. लेकिन प्रदेश में सरकार भाजपा की बनी.

यह भी पढ़ें- assembly election 2022 : कल गोवा-उत्तराखंड में वोटिंग, यूपी में भी दूसरे चरण का मतदान

उत्तराखंड का शिक्षा मंत्री से जुड़ा मिथक : उत्तराखंड में मिथक है कि जो विधायक शिक्षा मंत्री बनता है, उसके बाद वह अगला चुनाव हार जाता है. जैसे कि 2000 में अंतरिम सरकार में प्रदेश के पहले शिक्षा मंत्री तीरथ सिंह रावत बने. लेकिन 2002 के विधानसभा चुनाव में वह हार गए. 2002 में एनडी तिवारी की सरकार बनी और नरेंद्र सिंह भंडारी को शिक्षा मंत्री बनाया गया. हालांकि, 2007 के विधानसभा चुनाव में नरेंद्र सिंह भंडारी हार गए.

इसके बाद 2007 में भाजपा की सरकार आई और शिक्षा मंत्री के तौर पर खजान दास और गोविंद सिंह बिष्ट ने बारी-बारी से कार्यभार संभाला. लेकिन अगले ही 2012 के चुनाव में दोनों ही नेता चुनाव हार गए. इसके बाद 2012 में कांग्रेस की सरकार बनी. इस दौरान यूकेडी से कांग्रेस को समर्थन देने वाले मंत्री प्रसाद नैथानी को शिक्षा मंत्री बनाया गया. लेकिन 2017 के चुनाव में मंत्री प्रसाद नैथानी विधानसभा चुनाव हार गए. इसी क्रम में 2017 में भाजपा की सरकार आई और अरविंद पांडे शिक्षा मंत्री बनाया गया. सवाल है कि क्या इस बार मिथक टूटेगा या बरकरार रहेगा.

देहरादून : उत्तराखंड की सियासत कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी के इर्द-गिर्द घूमती रही है. लेकिन इस बार बीजेपी इस इतिहास को बदलने की कोशिश में जुटी हुई है, तो वहीं कांग्रेस फिर सत्ता पर काबिज होने के लिए उत्सुक है. लेकिन उत्तराखंड राजनीति में मिथक भी जुड़े हुए हैं, ऐसे में इन मिथकों से राजनीति दल पार पा पाएंगे या नहीं ये तो 10 मार्च को ही पता चल पाएगा. आइए आपको बताते हैं उन मिथकों के बारे में.

प्रदेश में कड़ाके की ठंड के बाद भी सियासी कोयला सुलगा हुआ है. गली-चौराहों से लेकर खेत ही पगडंडियों तक सियासत तेज हो गई है. इस दौरान राजनीतिक गलियारों में इन विधानसभा सीटों से जुड़े मिथक भी खासे चर्चा में बने हुए हैं. जहां प्रत्याशियों के जीत पर सरकार बनती आई है. ये मिथक दशकों से चले आ रहे हैं और हर पार्टी इनकों हलके में लेने की भूल नहीं करती है. आइए आपको रूबरू कराते हैं उत्तराखंड की राजनीति के उन बड़े मिथकों से, जिन्होंने सियासत की तस्वीर साफ की है.

गंगोत्री सीट से तय होती है सरकार : उत्तराखंड में गंगोत्री सीट को लेकर अपना एक पुराना मिथक है. इस मिथक के अनुसार जो भी विधायक गंगोत्री सीट पर चुनकर आता है, प्रदेश में उसी पार्टी की सरकार बनती है. खास बात यह है कि ये मिथन यूपी के समय से देखने को मिल रहा है. उत्तराखंड राज्य गठन से पहले भी गंगोत्री क्षेत्र से जो विधायक जीतता था, यूपी में उसी की सरकार बनती थी, जो आजतक बरकरार है. यही वजह है कि राजनीतिक दलों के लिए गंगोत्री सीट काफी अहम रहती है और इस सीट पर अपने मजबूत प्रत्याशी को उतारने की कोशिश राजनीतिक दल करते हैं.

साल 2002 के चुनाव में कांग्रेस के विजयपाल सजवाण जीते, उन्होंने 7878 वोट हासिल किए जबकि सीपीआई के कमला राम नौटियाल यहां 7268 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे. तब कांग्रेस की सरकार बनी थी. साल 2007 विधानसभा चुनाव की करें तो यहां भाजपा प्रत्याशी गोपाल सिंह रावत जीते थे और उन्हें 24250 वोट मिले थे.

वहीं, दूसरे नंबर पर रहने वाले कांग्रेस के विजयपाल सजवाण ने 18704 वोट मिले थे. तब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी. 2012 के चुनाव में कांग्रेस के विजयपाल सजवाण ने यहां से जीत हासिल की थी, उन्हें 20246 मत मिले थे. जबकि भाजपा के गोपाल सिंह रावत 13223 वोटों के साथा दूसरे स्थान पर रहे थे. तब प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी थी. साल 2017 के चुनाव में भाजपा के गोपाल सिंह रावत जीते थे. उन्होंने 25683 वोट हासिल किए थे जबकि 16073 वोटों के साथ कांग्रेस के विजयपाल सजवाण दूसरे नंबर पर रहे थे. तब सूबे में भाजपा की सरकार बनी.

बदरीनाथ सीट पर रहती है सबकी नजर : बदरीनाथ सीट से भी मिथक जुड़ा हुआ है, यहां से कहा जाता है कि जिसका विधायक बनता है उसकी ही सरकार बनती है. इसलिए राजनीतिक दल इस सीट को गंभीरता से लेते हुए जिताऊ प्रत्याशी को ही खड़ा करते हैं. यहां से साल 2002 में कांग्रेस के प्रत्याशी डॉ. अनुसूइया प्रसाद मैखुरी जीते थे उन्हें तब 11145 मत पड़े थे. जबकि 10154 वोटों के साथ भाजपा के केदार सिंह फोनिया को दूसरे नंबर से संतोष करना पड़ा था.

साल 2007 में भाजपा के केदार सिंह फोनिया 16607 वोटों के साथ जीते थे, जबकि 12742 वोटों के साथ कांग्रेस के अनुसूया प्रसाद मैखुरी दूसरे नंबर पर रहे थे. फोनिया के जीत के साथ ही ही भाजपा सत्ता पर काबिज हुई थी. साल 2012 की बात करें तो यहां से कांग्रेस के राजेंद्र सिंह भंडारी 21492 वोटों के साथ जीते थे, तब उन्हें 11291 मत पड़े थे. वहीं भाजपा के प्रेम बल्लभ भट्ट दूसरे नंबर पर रहे थे और कांग्रेस की सरकार बनी थी. 2017 में भाजपा के महेंद्र भट्ट 29676 वोटों के साथ जीते जबकि 24042 वोटों के साथ कांग्रेस के राजेंद्र भंडारी दूसरे नंबर पर रहे. सरकार भाजपा की बनी.

रानीखेत सीट से जुड़ा मिथक : रानीखेत सीट के मिथक को कभी भी कांग्रेस और बीजेपी हलके में नहीं लेती है. इस सीट को लेकर कहा जाता है कि जो यहां हारता है उसकी सरकार बनती है. इस सीट से साल 2002 चुनाव में भाजपा के अजय भट्ट 10199 वोटों के साथ जीते और 7897 वोटों के साथ कांग्रेस के पूरन सिंह दूसरे नंबर पर रहे थे. तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी. साल 2007 की बात करें तो कांग्रेस के करन माहरा जीते थे, उन्हें 13503 वोट पड़े थे. जबकि भाजपा के अजय भट्ट 13298 वोट पाकर हार गए थे. लेकिन सूबे में बीजेपी की सरकार बनी.

साल 2012 में भाजपा के प्रत्याशी अजय भट्ट इस सीट से जीते थे और उन्हें 14089 मत पड़े थे. जबकि 14011 वोटों के साथ कांग्रेस के करन माहरा दूसरे नंबर पर रहे थे. भाजपा प्रत्याशी के जीतने के बाद भी सूबे में कांग्रेस की सरकार बनी थी. साल 2017 में कांग्रेस के करन माहरा 19035 वोटों के साथ जीते, जबकि भाजपा के अजय भट्ट यहां 14054 वोट हासिल कर हार गए थे. लेकिन प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी.

रामनगर सीट को लेकर मिथक : कुमाऊं की रामनगर सीट को काफी अहम माना जाता है. यहां से पूर्व सीएम स्वं नारायण दत्त तिवारी भी चुनाव लड़ चुके हैं. इसलिए इस सीट को काफी खास माना जाता है. कहा जाता है कि इस सीट से जो प्रत्याशी जीतता है, उसी की सरकार बनती है. इस सीट से साल 2002 में कांग्रेस के योगंबर सिंह जीते थे, जिन्हें 16271 मत पड़े थे. जबकि 11356 वोटों के साथ भाजपा प्रत्याशी दीवान सिंह बिष्ट दूसरे नंबर पर रहे. सरकार कांग्रेस की बनी.

साल 2007 की करें तो यहां से भाजपा के दीवान सिंह बिष्ट ने जीत दर्ज की थी. जबकि कांग्रेस के योगेंबर सिंह रावत दूसरे नंबर पर रहे थे लेकिन सरकार भाजपा की बनी. साल 2012 में कांग्रेस की अमृता रावत 23851 वोटों के साथ जीती जबकि 20122 वोटों के साथ दीवान सिंह दूसरे नंबर पर रहे, सरकार कांग्रेस की बनी. साल 2017 विधानसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा के दीवान सिंह 35839 वोटों के साथ विजेता रहे थे. वहीं कांग्रेस के रंजीत रावत दूसरे नंबर पर रहे थे, तब उन्हें 27228 वोट मिले थे. लेकिन प्रदेश में सरकार भाजपा की बनी.

यह भी पढ़ें- assembly election 2022 : कल गोवा-उत्तराखंड में वोटिंग, यूपी में भी दूसरे चरण का मतदान

उत्तराखंड का शिक्षा मंत्री से जुड़ा मिथक : उत्तराखंड में मिथक है कि जो विधायक शिक्षा मंत्री बनता है, उसके बाद वह अगला चुनाव हार जाता है. जैसे कि 2000 में अंतरिम सरकार में प्रदेश के पहले शिक्षा मंत्री तीरथ सिंह रावत बने. लेकिन 2002 के विधानसभा चुनाव में वह हार गए. 2002 में एनडी तिवारी की सरकार बनी और नरेंद्र सिंह भंडारी को शिक्षा मंत्री बनाया गया. हालांकि, 2007 के विधानसभा चुनाव में नरेंद्र सिंह भंडारी हार गए.

इसके बाद 2007 में भाजपा की सरकार आई और शिक्षा मंत्री के तौर पर खजान दास और गोविंद सिंह बिष्ट ने बारी-बारी से कार्यभार संभाला. लेकिन अगले ही 2012 के चुनाव में दोनों ही नेता चुनाव हार गए. इसके बाद 2012 में कांग्रेस की सरकार बनी. इस दौरान यूकेडी से कांग्रेस को समर्थन देने वाले मंत्री प्रसाद नैथानी को शिक्षा मंत्री बनाया गया. लेकिन 2017 के चुनाव में मंत्री प्रसाद नैथानी विधानसभा चुनाव हार गए. इसी क्रम में 2017 में भाजपा की सरकार आई और अरविंद पांडे शिक्षा मंत्री बनाया गया. सवाल है कि क्या इस बार मिथक टूटेगा या बरकरार रहेगा.

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