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जिस पार्टी ने यहां हासिल की जीत, उत्तराखंड में उसी की बनी सरकार, 70 सालों से 'जादू' बरकरार

गंगोत्री विधानसभा से जिस भी पार्टी का विधायक जीतता है, हमेशा प्रदेश में उसी दल ने सरकार बनाई है. आजादी के बाद से ही ये क्रम लगातार चलता आ रहा है. उत्तराखंड बनने से पहले ये सीट उत्तरकाशी विधानसभा के नाम से जानी जाती थी. उत्तराखंड बनने के बाद उत्तरकाशी को तीन विधानसभा क्षेत्रों में बांटा गया है.

गंगोत्री विधानसभा
गंगोत्री विधानसभा
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Published : Sep 7, 2021, 5:37 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड में 2022 विधानसभा चुनाव के लिए महज कुछ ही महीनों का वक्त बचा है. ऐसे में सभी राजनीतिक दल दमखम से चुनावी तैयारियों में जुट गये हैं. वहीं, चुनाव, उससे जुड़ी तैयारियों, सीटों के गुणा भाग के साथ ही मिथकों की बातें भी अभी से शुरू होने लगी हैं. उत्तरकाशी के गंगोत्री विधानसभा क्षेत्र से जुड़ा एक मिथक ऐसा ही है. माना जाता है कि गंगोत्री विधानसभा सीट से जिस भी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव जीतता है, वो पार्टी सत्ता पर काबिज होती है.

सनातन धर्म में गंगा को विशेष महत्व दिया गया है. यही वजह है कि गंगोत्री धाम से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. जहां एक और गंगोत्री धाम करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है. वहीं, गंगोत्री विधानसभा सीट की भी प्रदेश की राजनीति में एक अहम भूमिका रही है. देश की आजादी के बाद से ही यहां एक ऐसा संयोग बनता रहा है, जो आज तक कायम है. माना जाता है जिस भी पार्टी का प्रत्याशी इस विधानसभा सीट से चुनाव जीतता है, उसी पार्टी की प्रदेश में सरकार बनती है. अब विधानसभा चुनाव में कुछ ही वक्त बचा है. ऐसे में राजनीतिक गलियारों में इस मिथक को लेकर बातें शुरू हो गई हैं.

गंगोत्री सीट का मिथक.

70 साल से बकरार है गंगोत्री सीट का मिथक: गंगोत्री विधानसभा सीट से जुड़े इस मिथक को एक मात्र संयोग कहें या कुछ और मगर यह सच है. देश की आजाद के बाद शुरू हुए विधानसभा चुनाव से ही इस मिथक की शुरुआत हुई, जो आज तक नहीं टूटा है. इस बात को करीब 70 साल हो गए हैं. तब से ही यह मिथक बरकरार है. उत्तराखंड राज्य गठन से पहले गंगोत्री विधानसभा सीट न होकर उत्तरकाशी विधानसभा सीट हुआ करती थी. उस दौरान भी यह मिथक बरकरार था. इस मिथक के बरकरार होने का सिलसिला अभी भी जारी है.

ये भी पढ़ें - लोकसभा चुनाव काफी दूर, पर सलमान खुर्शीद ने माना, 130 पर सिमटेगी कांग्रेस !

1993 में हुए चुनाव ने इस मिथक को दिया बल: गंगोत्री विधानसभा सीट से जुड़े मिथक को उत्तर प्रदेश में साल 1993 में हुए विधानसभा चुनाव की स्थिति और बल दे रही है. 1993 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के 177, समाजवादी पार्टी को 109 और बहुजन समाजवादी पार्टी को 67 सीटें मिली. उस दौरान राजनीतिक समीकरण कुछ ऐसे घूमे कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी ने मिलकर सरकार बना दी. उस दौरान समाजवादी पार्टी की सरकार सत्ता पर काबिज हुई. खास बात यह रही कि उस दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के ही प्रत्याशी बर्फिया लाल चुनाव जीते थे.

गंगोत्री विधानसभा सीट की स्थिति: टिहरी रियासत का हिस्सा रहे उत्तरकाशी विधानसभा सीट को साल 1960 में अलग जिला बनाया गया. साल 2000 तक उत्तरकाशी जिला विधानसभा सीट ही रही. साल 2000 में पहाड़ी राज्य बनने के बाद उत्तरकाशी जिले को तीन विधानसभा क्षेत्र में बांट दिया गया. जिसमें पुरोला, गंगोत्री और यमुनोत्री विधानसभा सीट शामिल हैं.

उत्तरकाशी जिले का मुख्यालय गंगोत्री क्षेत्र ही है. गंगोत्री विधानसभा सीट में कुल मतदाताओं में 43003 पुरुष मतदाता हैं, जबकि यहां महिला मतदाताओं की संख्या 40278 है. वहीं, जातिगत आधार के अनुसार इस विधानसभा में ठाकुर 62%, ब्राह्मण 17% हैं. अनुसूचित जाति 19% और अनुसूचित जनजाति 15% है. इसके साथ ही यहां मुस्लिम आबादी 0.5 फीसदी है.

ये भी पढ़ें - बंगाल उपचुनाव: ममता के खिलाफ उम्मीदवार उतारेगी कांग्रेस

गंगोत्री विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी की पकड़ मजबूत: राज्य गठन के बाद से ही गंगोत्री विधानसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस से दो ही नेताओं की बड़ी पकड़ रही है. जिसमें कांग्रेस से विजयपाल सजवाण और भाजपा से गोपाल सिंह रावत का नाम सबसे आगे हैं. यही दोनों नेता बारी-बारी से गंगोत्री विधानसभा सीट से विधायक बनते रहे हैं.

साल 2021 में अस्वस्थ होने के चलते गंगोत्री विधानसभा सीट से विधायक रहे गोपाल सिंह रावत का निधन हो गया. जिसके बाद से ही यह विधानसभा सीट खाली चल रही है. वर्तमान समय में गंगोत्री विधानसभा क्षेत्र में सबसे मजबूत नेता विजयपाल सजवाण को ही माना जा रहा है.

गंगोत्री विधानसभा सीट से राजनीतिक दलों के प्रत्याशी लगभग तय: गंगोत्री विधानसभा सीट से प्रदेश की मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस विजयपाल सजवाण को ही अपना उम्मीदवार घोषित करने जा रही है. कांग्रेस की ओर से गंगोत्री विधानसभा सीट पर कोई और चेहरा नहीं है. वहीं भाजपा की ओर से इस सीट पर गोपाल सिंह रावत की पत्नी को उम्मीदवार बनाया जा सकता है. जिससे भाजपा सदभावना वोट भी हासिल कर सके.

यही नहीं, प्रदेश में थर्ड फ्रंट के रूप में उभर रही आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल यहां से चुनाव लड़ सकते हैं. अभी फिलहाल किसी भी पार्टी ने उम्मीदवारों के नाम पर आधिकारिक मुहर नहीं लगाई है, मगर चर्चाएं फिलहाल यही है कि इन्हीं नेताओं को इस विधानसभा सीट से उम्मीदवार घोषित किया जाएगा.

तीरथ सिंह रावत गंगोत्री विधानसभा सीट से लड़ने वाले थे चुनाव: साल 2021 में नेतृत्व परिवर्तन के बाद सत्ता पर काबिज हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधानसभा का चुनाव लड़ना जरूरी था. तीरथ सिंह रावत लोकसभा सांसद हैं. ऐसे में गंगोत्री विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद हाल ही विधानसभा सीट से तीरथ सिंह रावत को चुनाव लड़ने की तैयारी की जा रही थी. यही नहीं, भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को चुनाव लड़ाने के लिए यमुनोत्री विधानसभा क्षेत्र में सर्वे भी करा दिए थे, लेकिन संवैधानिक संकट के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को इस्तीफा देना पड़ा.

लोगों की भावनाएं होती हैं परिलक्षित: वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही राज्य में अभी तक 4 चुनाव हुए हैं. चारों चुनाव में गंगोत्री विधानसभा सीट से जिस भी पार्टी का उम्मीदवार जीता है, उसी ने राज्य में सरकार बनाई है. उन्होंने कहा उत्तराखंड के लोगों की जो भावनाएं हैं, वह गंगोत्री विधानसभा सीट से परिलक्षित होती हैं.

ये भी पढ़ें - सामाजिक न्याय दिवस के रूप में मनेगी पेरियार की जयंती: सीएम स्टालिन

राजनीतिक दलों की अलग-अलग राय: वहीं, इस मामले में राजनीतिक दलों के अपने-अपने मत हैं. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भी इस बात को मान रही है कि गंगोत्री विधानसभा सीट से जिस भी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव जीता है, वह पार्टी सत्ता पर काबिज होती है. वहीं भाजपा इस बात को मात्र एक संयोग बता रही है. भाजपा का कहना है जो पार्टी बहुमत हासिल करती है. वह सत्ता पर काबिज होती है. वहीं आम आदमी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल भी इस बात को मानते हैं.

उत्तरकाशी विस सीट से सत्ता काबिज होने का इतिहास

  • देश की आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में 1952 में हुई पहली विधानसभा चुनाव के दौरान यह सीट गंगोत्री विधानसभा सीट नहीं बल्कि उत्तरकाशी विधानसभा सीट हुआ करती थी. 1952 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से जयेंद्र सिंह बिष्ट निर्दलीय चुनाव जीते. वे कांग्रेस में शामिल हो गए. उस दौरान उत्तर प्रदेश में पं. गोविंद बल्लभ पंत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी थी.
  • साल 1957 के विधानसभा चुनाव में जयेंद्र निर्विरोध निर्वाचित हुए. फिर कांग्रेस ही सत्तासीन हुई, लेकिन साल 1958 में उत्तरकाशी से विधायक जयेंद्र की मृत्यु के बाद कांग्रेस के रामचंद्र उनियाल विधायक बने.
  • साल 1962 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कृष्ण सिंह ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी.
  • साल 1967 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कृष्ण सिंह ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी.
  • साल 1969 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कृष्ण सिंह ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी.
  • साल 1974 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट को रिजर्व कर दी गई. उस दौरान कांग्रेस प्रत्याशी बलदेव सिंह आर्य ने चुनाव जीता. तब उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी.
  • साल 1977 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से जनता पार्टी से प्रत्याशी बर्फिया लाल ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी.
  • साल 1980 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी बलदेव सिंह आर्य ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी.
  • साल 1985 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी बलदेव सिंह आर्य ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी.
  • साल 1989 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से जनता पार्टी से प्रत्याशी बर्फिया लाल ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी.
  • साल 1991 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी से प्रत्याशी ज्ञान चंद्र ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी.
  • साल 1993 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी से प्रत्याशी बलदेव सिंह आर्य ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी.
  • साल 1996 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी से प्रत्याशी ज्ञान चंद्र ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी.

गंगोत्री विस सीट से सत्ता काबिज होने का इतिहास

  • 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के बाद भी यह मिथक बरकरार रहा. ये बात अलग है कि उत्तरकाशी विधानसभा सीट का नाम बदलकर गंगोत्री विधानसभा सीट कर दिया गया.
  • उत्तराखंड में साल 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में गंगोत्री सीट से कांग्रेस के विजयपाल सजवाण ने चुनाव जीता. तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी.
  • साल 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में गंगोत्री सीट से भाजपा के गोपाल सिंह रावत ने चुनाव जीता. तब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी.
  • साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में गंगोत्री सीट से कांग्रेस के विजयपाल सजवाण चुनाव जीता. उस दौरान प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी.
  • साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में गंगोत्री सीट से भाजपा के गोपाल सिंह रावत ने चुनाव जीता. अभी प्रदेश में भाजपा की सरकार है.
  • साल 2021 में विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद से यह विधानसभा सीट खाली है.

देहरादून: उत्तराखंड में 2022 विधानसभा चुनाव के लिए महज कुछ ही महीनों का वक्त बचा है. ऐसे में सभी राजनीतिक दल दमखम से चुनावी तैयारियों में जुट गये हैं. वहीं, चुनाव, उससे जुड़ी तैयारियों, सीटों के गुणा भाग के साथ ही मिथकों की बातें भी अभी से शुरू होने लगी हैं. उत्तरकाशी के गंगोत्री विधानसभा क्षेत्र से जुड़ा एक मिथक ऐसा ही है. माना जाता है कि गंगोत्री विधानसभा सीट से जिस भी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव जीतता है, वो पार्टी सत्ता पर काबिज होती है.

सनातन धर्म में गंगा को विशेष महत्व दिया गया है. यही वजह है कि गंगोत्री धाम से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. जहां एक और गंगोत्री धाम करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है. वहीं, गंगोत्री विधानसभा सीट की भी प्रदेश की राजनीति में एक अहम भूमिका रही है. देश की आजादी के बाद से ही यहां एक ऐसा संयोग बनता रहा है, जो आज तक कायम है. माना जाता है जिस भी पार्टी का प्रत्याशी इस विधानसभा सीट से चुनाव जीतता है, उसी पार्टी की प्रदेश में सरकार बनती है. अब विधानसभा चुनाव में कुछ ही वक्त बचा है. ऐसे में राजनीतिक गलियारों में इस मिथक को लेकर बातें शुरू हो गई हैं.

गंगोत्री सीट का मिथक.

70 साल से बकरार है गंगोत्री सीट का मिथक: गंगोत्री विधानसभा सीट से जुड़े इस मिथक को एक मात्र संयोग कहें या कुछ और मगर यह सच है. देश की आजाद के बाद शुरू हुए विधानसभा चुनाव से ही इस मिथक की शुरुआत हुई, जो आज तक नहीं टूटा है. इस बात को करीब 70 साल हो गए हैं. तब से ही यह मिथक बरकरार है. उत्तराखंड राज्य गठन से पहले गंगोत्री विधानसभा सीट न होकर उत्तरकाशी विधानसभा सीट हुआ करती थी. उस दौरान भी यह मिथक बरकरार था. इस मिथक के बरकरार होने का सिलसिला अभी भी जारी है.

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1993 में हुए चुनाव ने इस मिथक को दिया बल: गंगोत्री विधानसभा सीट से जुड़े मिथक को उत्तर प्रदेश में साल 1993 में हुए विधानसभा चुनाव की स्थिति और बल दे रही है. 1993 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के 177, समाजवादी पार्टी को 109 और बहुजन समाजवादी पार्टी को 67 सीटें मिली. उस दौरान राजनीतिक समीकरण कुछ ऐसे घूमे कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी ने मिलकर सरकार बना दी. उस दौरान समाजवादी पार्टी की सरकार सत्ता पर काबिज हुई. खास बात यह रही कि उस दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के ही प्रत्याशी बर्फिया लाल चुनाव जीते थे.

गंगोत्री विधानसभा सीट की स्थिति: टिहरी रियासत का हिस्सा रहे उत्तरकाशी विधानसभा सीट को साल 1960 में अलग जिला बनाया गया. साल 2000 तक उत्तरकाशी जिला विधानसभा सीट ही रही. साल 2000 में पहाड़ी राज्य बनने के बाद उत्तरकाशी जिले को तीन विधानसभा क्षेत्र में बांट दिया गया. जिसमें पुरोला, गंगोत्री और यमुनोत्री विधानसभा सीट शामिल हैं.

उत्तरकाशी जिले का मुख्यालय गंगोत्री क्षेत्र ही है. गंगोत्री विधानसभा सीट में कुल मतदाताओं में 43003 पुरुष मतदाता हैं, जबकि यहां महिला मतदाताओं की संख्या 40278 है. वहीं, जातिगत आधार के अनुसार इस विधानसभा में ठाकुर 62%, ब्राह्मण 17% हैं. अनुसूचित जाति 19% और अनुसूचित जनजाति 15% है. इसके साथ ही यहां मुस्लिम आबादी 0.5 फीसदी है.

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गंगोत्री विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी की पकड़ मजबूत: राज्य गठन के बाद से ही गंगोत्री विधानसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस से दो ही नेताओं की बड़ी पकड़ रही है. जिसमें कांग्रेस से विजयपाल सजवाण और भाजपा से गोपाल सिंह रावत का नाम सबसे आगे हैं. यही दोनों नेता बारी-बारी से गंगोत्री विधानसभा सीट से विधायक बनते रहे हैं.

साल 2021 में अस्वस्थ होने के चलते गंगोत्री विधानसभा सीट से विधायक रहे गोपाल सिंह रावत का निधन हो गया. जिसके बाद से ही यह विधानसभा सीट खाली चल रही है. वर्तमान समय में गंगोत्री विधानसभा क्षेत्र में सबसे मजबूत नेता विजयपाल सजवाण को ही माना जा रहा है.

गंगोत्री विधानसभा सीट से राजनीतिक दलों के प्रत्याशी लगभग तय: गंगोत्री विधानसभा सीट से प्रदेश की मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस विजयपाल सजवाण को ही अपना उम्मीदवार घोषित करने जा रही है. कांग्रेस की ओर से गंगोत्री विधानसभा सीट पर कोई और चेहरा नहीं है. वहीं भाजपा की ओर से इस सीट पर गोपाल सिंह रावत की पत्नी को उम्मीदवार बनाया जा सकता है. जिससे भाजपा सदभावना वोट भी हासिल कर सके.

यही नहीं, प्रदेश में थर्ड फ्रंट के रूप में उभर रही आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल यहां से चुनाव लड़ सकते हैं. अभी फिलहाल किसी भी पार्टी ने उम्मीदवारों के नाम पर आधिकारिक मुहर नहीं लगाई है, मगर चर्चाएं फिलहाल यही है कि इन्हीं नेताओं को इस विधानसभा सीट से उम्मीदवार घोषित किया जाएगा.

तीरथ सिंह रावत गंगोत्री विधानसभा सीट से लड़ने वाले थे चुनाव: साल 2021 में नेतृत्व परिवर्तन के बाद सत्ता पर काबिज हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधानसभा का चुनाव लड़ना जरूरी था. तीरथ सिंह रावत लोकसभा सांसद हैं. ऐसे में गंगोत्री विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद हाल ही विधानसभा सीट से तीरथ सिंह रावत को चुनाव लड़ने की तैयारी की जा रही थी. यही नहीं, भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को चुनाव लड़ाने के लिए यमुनोत्री विधानसभा क्षेत्र में सर्वे भी करा दिए थे, लेकिन संवैधानिक संकट के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को इस्तीफा देना पड़ा.

लोगों की भावनाएं होती हैं परिलक्षित: वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही राज्य में अभी तक 4 चुनाव हुए हैं. चारों चुनाव में गंगोत्री विधानसभा सीट से जिस भी पार्टी का उम्मीदवार जीता है, उसी ने राज्य में सरकार बनाई है. उन्होंने कहा उत्तराखंड के लोगों की जो भावनाएं हैं, वह गंगोत्री विधानसभा सीट से परिलक्षित होती हैं.

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राजनीतिक दलों की अलग-अलग राय: वहीं, इस मामले में राजनीतिक दलों के अपने-अपने मत हैं. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भी इस बात को मान रही है कि गंगोत्री विधानसभा सीट से जिस भी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव जीता है, वह पार्टी सत्ता पर काबिज होती है. वहीं भाजपा इस बात को मात्र एक संयोग बता रही है. भाजपा का कहना है जो पार्टी बहुमत हासिल करती है. वह सत्ता पर काबिज होती है. वहीं आम आदमी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल भी इस बात को मानते हैं.

उत्तरकाशी विस सीट से सत्ता काबिज होने का इतिहास

  • देश की आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में 1952 में हुई पहली विधानसभा चुनाव के दौरान यह सीट गंगोत्री विधानसभा सीट नहीं बल्कि उत्तरकाशी विधानसभा सीट हुआ करती थी. 1952 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से जयेंद्र सिंह बिष्ट निर्दलीय चुनाव जीते. वे कांग्रेस में शामिल हो गए. उस दौरान उत्तर प्रदेश में पं. गोविंद बल्लभ पंत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी थी.
  • साल 1957 के विधानसभा चुनाव में जयेंद्र निर्विरोध निर्वाचित हुए. फिर कांग्रेस ही सत्तासीन हुई, लेकिन साल 1958 में उत्तरकाशी से विधायक जयेंद्र की मृत्यु के बाद कांग्रेस के रामचंद्र उनियाल विधायक बने.
  • साल 1962 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कृष्ण सिंह ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी.
  • साल 1967 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कृष्ण सिंह ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी.
  • साल 1969 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कृष्ण सिंह ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी.
  • साल 1974 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट को रिजर्व कर दी गई. उस दौरान कांग्रेस प्रत्याशी बलदेव सिंह आर्य ने चुनाव जीता. तब उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी.
  • साल 1977 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से जनता पार्टी से प्रत्याशी बर्फिया लाल ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी.
  • साल 1980 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी बलदेव सिंह आर्य ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी.
  • साल 1985 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी बलदेव सिंह आर्य ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी.
  • साल 1989 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से जनता पार्टी से प्रत्याशी बर्फिया लाल ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी.
  • साल 1991 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी से प्रत्याशी ज्ञान चंद्र ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी.
  • साल 1993 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी से प्रत्याशी बलदेव सिंह आर्य ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी.
  • साल 1996 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरकाशी विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी से प्रत्याशी ज्ञान चंद्र ने चुनाव जीता. उस दौरान उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी.

गंगोत्री विस सीट से सत्ता काबिज होने का इतिहास

  • 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के बाद भी यह मिथक बरकरार रहा. ये बात अलग है कि उत्तरकाशी विधानसभा सीट का नाम बदलकर गंगोत्री विधानसभा सीट कर दिया गया.
  • उत्तराखंड में साल 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में गंगोत्री सीट से कांग्रेस के विजयपाल सजवाण ने चुनाव जीता. तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी.
  • साल 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में गंगोत्री सीट से भाजपा के गोपाल सिंह रावत ने चुनाव जीता. तब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी.
  • साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में गंगोत्री सीट से कांग्रेस के विजयपाल सजवाण चुनाव जीता. उस दौरान प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी.
  • साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में गंगोत्री सीट से भाजपा के गोपाल सिंह रावत ने चुनाव जीता. अभी प्रदेश में भाजपा की सरकार है.
  • साल 2021 में विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद से यह विधानसभा सीट खाली है.
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