मैसूर: उम्र संबंधी बीमारी से पीड़ित सेवानिवृत्त मेजर जनरल सीके करुंबैया (88) का गुरुवार को मैसूर तालुक के हेम्मनहल्ली स्थित उनके फार्महाउस में निधन हो गया. उनके पीछे पत्नी, पुत्र व पुत्री सहित बड़ा परिवार है. पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि सीके करुंबैया का अंतिम संस्कार आज विजयनगर स्थित श्मशान घाट पर किया जाएगा.
3 दिसंबर 1936 को मदिकेरी में डॉ. करुंबैया का जन्म सीबी करियप्पा के बेटे के रूप में हुआ था. उन्हें फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा का करीबी रिश्तेदार बताया जाता है. सेंट्रल हाई स्कूल, गवर्नमेंट कॉलेज, मदिकेरी में शिक्षा प्राप्त करने के बाद, वह 1957 में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में शामिल हो गए.
मराठा लाइट इन्फैंट्री की 5वीं बटालियन में अपना करियर शुरू किया. नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा में सैन्य अभियानों में भाग लिया. 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उन्होंने राजस्थान सीमा पर लड़ाई लड़ी और पाकिस्तान के कई गांवों पर कब्ज़ा कर लिया.
वह 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में हजारों पाकिस्तानी सैनिकों के आत्मसमर्पण के लिए जिम्मेदार थे. उन्होंने तब मगुरा में हथियार ले जा रहे 300 पाकिस्तानी ट्रक जब्त किए गए. उनकी इस सफलता के लिए उन्हें राष्ट्रपति ने सम्मान से सम्मानित किया गया. बाद में सेना में उनके उत्कृष्ठ योगदान के लिए उन्हें सेना मेडल से भी सम्मानित किया गया.
उनकी बटालियन ने नाथुला, सिक्किम में ब्लैक कैट ट्रॉफी जीती. उन्होंने डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज, वेलिंगटन से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी. बाद में वह बेलगाम और हिमाचल प्रदेश में आर्मी स्कूलों के स्टेशन कमांडर और छावनी बोर्ड के अध्यक्ष रहे. करुंबैया ने लद्दाख में 121 इन्फैंट्री ब्रिगेड समूह की कमान संभाली और अतिरिक्त सैन्य सचिव के रूप में भी कार्य किया. भारतीय सेना में 35 वर्षों तक विभिन्न पदों पर सेवा देने के बाद वह 31 दिसंबर, 1991 को सेवा से सेवानिवृत्त हो गये थे.