हैदराबाद: म्युचुअल फंड शेयरधारकों की ओर वित्त पोषित इन्वेस्टमेंट प्रोग्राम है जो कई तरह की होल्डिंग्स में ट्रेड करता है. इसे अब प्रफेशनली मैनेज किया जाता है. बदली हुई टेक्नॉलजी के कारण पहले के मुकाबले अब म्यूचुअल फंड के जरिये निवेश करना भी आसान है. बस एक क्लिक के जरिये म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं और जरूरत पड़ने पर एक क्लिक से रकम निकाल भी सकते हैं. मगर हमें अपने निवेश की गई रकम को वापस निकालने से पहले दो बार सोचना चाहिए? यह हमें पता होना चाहिए कि पता करें कि म्यूचुअल फंड रिडीम करते समय क्या करना चाहिए और क्या नहीं.
लक्ष्यों के करीब (Closer to the goals)
हर निवेश का एक मकसद होना चाहिए. हमें कितना निवेश करना है, इसके लिए लक्ष्य निर्धारित करने की जरूरत होती है. म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट करने के बाद जब तक आप अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच जाते, तब तक उसमें से एक रुपया भी नहीं निकालें. कई बार निवेशक उम्मीद के मुताबिक तय समय के भीतर आवश्यक राशि जमा नहीं कर पाते और मैच्युरिटी में दो-तीन साल का लंबा समय बाकी रह जाता है, तब वह अपनी इन्वेस्ट की गई रकम को बचाने का प्रयास करते हैं. ऐसे समय में निवेश को जोखिम से बचने वाली योजनाओं जैसे इक्विटी से डेब्ट स्कीम ( debt schemes) की ओर मोड़ देना चाहिए.
इसके लिए सिस्टेमैटिक ट्रांसफर प्लैनर (STP) का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. ZIP की तरह, यह आपके निवेश को धीरे-धीरे इक्विटी से डेब्ट में बदल देता है. समय के साथ हमारे लक्ष्य भी बदल सकते हैं. हम शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट को लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट में बदल सकते हैं. अगर आपका निवेश का लक्ष्य पूरा हो जाता है तो निवेश की गई रकम को अपने बदलते लक्ष्यों के हिसाब से नए प्लान में डाल सकते हैं.
एक्सपर्टस का मानना है कि लंबे समय तक म्यूचुअल फंड में निवेश करने पर अच्छे रिटर्न की संभावना बनी रहती है. निवेश का यह सिद्धांत अच्छा है मगर यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि जो फंड बेहतर परफॉर्म नहीं कर रहे हैं, उसमें पैसा नहीं लगाया जाए. इसके लिए साल में साल में कम से कम एक बार अपने फंड के परफॉर्मेंस की समीक्षा करना जरूरी है. आप उसी कैटिगरी के के अन्य फंडों के साथ अपने निवेश की तुलना करें. यदि उससे बेहतर रिटर्न नहीं मिल रहा हो तो निवेश के विकल्पों में बदलाव करें .
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