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मुकुल रोहतगी बनेंगे अगले अटॉर्नी जनरल, वेणुगोपाल का कार्यकाल इसी महीने तक - AG rohatgi

वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी एक बार फिर से अक्टूबर में भारत का अटॉर्नी जनरल बनेंगे. मामले से परिचित सूत्रों ने यह जानकारी दी. इससे पहले रोहतगी जून 2014 से जून 2017 के बीच देश के अटॉर्नी जनरल रहे थे.

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मुकुल रोहतगी
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Published : Sep 14, 2022, 10:45 PM IST

नई दिल्ली : वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी एक बार फिर से अक्टूबर में भारत का अटॉर्नी जनरल बनेंगे. मामले से परिचित सूत्रों ने यह जानकारी दी. इससे पहले रोहतगी जून 2014 से जून 2017 के बीच देश के अटॉर्नी जनरल रहे थे.

कानून मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, मौजूदा अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल (91) को 29 जून को तीन महीने के लिए एक बारि फिर देश का शीर्ष कानूनी अधिकारी नियुक्त किया गया था. उन्होंने कहा था कि वह निजी कारणों के चलते पद पर बने रहने के इच्छुक नहीं हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने सरकार का अनुरोध स्वीकार कर लिया था. अटॉर्नी जनरल का कार्यकाल आमतौर पर तीन वर्ष का होता है.

साल 2020 में जब अटॉर्नी जनरल के तौर पर वेणुगोपाल का पहला कार्यकाल खत्म हुआ था, तब उन्होंने सरकार से अपनी आयु का हवाला देते हुए जिम्मेदारियों से मुक्त करने का अनुरोध किया था. बाद में उन्होंने एक साल का नया कार्यकाल स्वीकार कर लिया था, क्योंकि सरकार उनके द्वारा संभाले जा रहे चर्चित मामलों और उनके विशाल अनुभव को देखते हुए उन्हें पद पर बरकरार रखना चाहती थी.

एक अनुभवी वकील रोहतगी शीर्ष अदालत के साथ-साथ देशभर के उच्च न्यायालयों में कई चर्चित मामलों में सरकार का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित जकिया जाफरी की याचिका पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के दौरान विशेष जांच दल (एसआईटी) की पैरवी की थी.

कांग्रेस के नेता एहसान जाफरी की 28 फरवरी 2002 को गुजरात के अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी में हुई हिंसा के दौरान हत्या कर दी गई थी. एसआईटी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 64 लोगों को क्लीन चिट दे दी थी, जिसके खिलाफ जकिया ने शीर्ष अदालत का रुख किया था. इस साल जून में उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगा मामले में मोदी और 63 अन्य को दी गई एसआईटी की क्लीन चिट को बरकरार रखा था.

नई दिल्ली : वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी एक बार फिर से अक्टूबर में भारत का अटॉर्नी जनरल बनेंगे. मामले से परिचित सूत्रों ने यह जानकारी दी. इससे पहले रोहतगी जून 2014 से जून 2017 के बीच देश के अटॉर्नी जनरल रहे थे.

कानून मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, मौजूदा अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल (91) को 29 जून को तीन महीने के लिए एक बारि फिर देश का शीर्ष कानूनी अधिकारी नियुक्त किया गया था. उन्होंने कहा था कि वह निजी कारणों के चलते पद पर बने रहने के इच्छुक नहीं हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने सरकार का अनुरोध स्वीकार कर लिया था. अटॉर्नी जनरल का कार्यकाल आमतौर पर तीन वर्ष का होता है.

साल 2020 में जब अटॉर्नी जनरल के तौर पर वेणुगोपाल का पहला कार्यकाल खत्म हुआ था, तब उन्होंने सरकार से अपनी आयु का हवाला देते हुए जिम्मेदारियों से मुक्त करने का अनुरोध किया था. बाद में उन्होंने एक साल का नया कार्यकाल स्वीकार कर लिया था, क्योंकि सरकार उनके द्वारा संभाले जा रहे चर्चित मामलों और उनके विशाल अनुभव को देखते हुए उन्हें पद पर बरकरार रखना चाहती थी.

एक अनुभवी वकील रोहतगी शीर्ष अदालत के साथ-साथ देशभर के उच्च न्यायालयों में कई चर्चित मामलों में सरकार का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित जकिया जाफरी की याचिका पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के दौरान विशेष जांच दल (एसआईटी) की पैरवी की थी.

कांग्रेस के नेता एहसान जाफरी की 28 फरवरी 2002 को गुजरात के अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी में हुई हिंसा के दौरान हत्या कर दी गई थी. एसआईटी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 64 लोगों को क्लीन चिट दे दी थी, जिसके खिलाफ जकिया ने शीर्ष अदालत का रुख किया था. इस साल जून में उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगा मामले में मोदी और 63 अन्य को दी गई एसआईटी की क्लीन चिट को बरकरार रखा था.

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