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एमपी के इस गांव को मिली बरगद से पहचान: 5 एकड़ में फैला पेड़ का कुनबा, इसकी छांव में मुगलकालीन सेना करती थी आराम

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Published : May 30, 2023, 11:41 AM IST

Updated : May 30, 2023, 1:17 PM IST

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा के एक गांव में एक बरगद का कुनबा करीब 5 एकड़ में फैला हुआ है, जिसके नीचे मुगलकालीन सेना आराम करती थी और वहां अपने घोड़े बांधती थी. फिलहाल आज इस बरगद के पेड़ के नाम से गांव को पहचान मिल गई है, जो कौमी एकता की मिसाल पेश करता है.

Chhindwara giant banyan tree
गांव को मिली बरगद से पहचान
एमपी के इस गांव को मिली बरगद से पहचान

छिंदवाड़ा। एमपी के छिंदवाड़ा इलाके का गांव बड़ चिचौली....जो पूरा गांव एक बरगद की बदौलत बस पाया. गांव के बरगद की शाखा के नीचे मुगलकालीन सेना आराम फरमाती थी और सैनिकों के घोड़े भी बांधे जाते थे. बाद में बरगद से ही कई और बरगद के पौधे पनप गए, इसके बाद बरगद यानि बढ़ के ही नाम पर इसे कहा जाने लगा बढ़ चिचौली. संभवत एमपी में बरगद की बदौलत बसाया और उसी पर नाम पाया ये इकलौता गांव है.आइए जानते हैं क्या है छिंदवाड़ा के बड़चिचोली के बरगद क पेड़ की कहानी और क्यों दी जाती है, यहां की कौमी एकता की मिसाल.

करीब 5 एकड़ में फैला एक बरगद का कुनबा: क्या कभी सोचा है... करीब 5 एकड़ जमीन में सिर्फ एक बरगद ने अपनी सल्तनत बना रखी है, एक पेड़ से ही अब हजारों पेड़ इस वाटिका में नजर आते हैं. जी हां ऐसा ही है, मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के एक गांव के मालगुजार मधुकरराव बताते हैं कि "पहले इस गांव का नाम चिचोली था. गांव के नजदीक सालों पहले एक बरगद का पेड़ हुआ करता था, धीरे-धीरे बरगद का पेड़ करीब 5 एकड़ जमीन में फैल गया. एक दौर था जब घना जंगल होता था, वहां पर लोग जाने से भी डरते थे, लेकिन धीरे-धीरे जब विकास होता गया तो फिर इसी में से कई पेड़ काट दिए गए, लेकिन अभी भी करीब 5 एकड़ जमीन में हजारों बरगद के पेड़ एक ही पेड़ की शाखा से तैयार हुए हैं. इसी पेड़ के कारण अब गांव का नाम बरगद (बड़) यानि बड़चिचोली हो गया है.

मुगलकालीन सेना करती थी आराम, बांधे जाते थे घोड़े: ग्रामीण बुजुर्गों ने बताया कि उनके गांव के रहने वाले बुजुर्गों से वे एक कहानी सुनते आए हैं कि इसी बरगद के नीचे मुगलकालीन सेना जब युद्ध के लिए जाया करती थी, तो आराम करती थी. मुगलकालीन सेना के हजारों घोड़े इसी बरगद के नीचे बांधा करते थे.

दरगाह के साथ मंदिर, कौमी एकता की मिसाल: इसी विशाल बरगद के नीचे बैठकर बाबा फरीद ने कई दिनों तक अपनी धूनी रमाई थी, इसके साथ ही बाबा फरीद की दरगाह के बगल में भगवान शंकर का और भगवान गणेश का मंदिर कौमी एकता की मिसाल के लिए जाने जाते हैं, जहां हर दिन सैकड़ों लोग इबादत और पूजा करने के लिए पहुंचते हैं. इस एक ही परिसर में जहां हर साल बाबा फरीद के नाम पर उर्स का आयोजन होता है, तो ही भगवान शंकर और हनुमान जी के लिए पूजा भी की जाती है. मुस्लिम धर्म के लोग यहां पर पहुंचकर इबादत और हिंदू धर्म के लोग यहां पहुंच कर पूजा-अर्चना करते हैं. कहा जाता है कि इस बरगद के पेड़ का दूध या फल खाने से कई रोग ठीक हो जाते हैं.

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बरगद के नाम से मिली गांव को पहचान: भोपाल से नागपुर के नेशनल हाईवे पर छिंदवाड़ा जिले में स्थित इस गांव का नाम पहले चिचोली हुआ करता था, लेकिन एक ही पेड़ की इतनी शाखाओं से बने हजारों पेड़ के कारण इस गांव की पहचान बरगद से ही होने लगी और बाद में इसका नाम बड़चिचोली हो गया.

वटवृक्ष है लाभकारी: कहा जाता है कि धरती पर मौजूद समस्त बौद्ध प्रजातियों में सबसे लंबा जीवन वटवृक्ष का ही होता है, जेठ मास की अमावस्या को हिंदू महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए और कहीं-कहीं संतान प्राप्ति एवं उनकी लंबी आयु की कामना के लिए वट सावित्री का पूजन भी होता है. इस पेड़ की पवित्रता के कारण ही कोई इस वृक्ष को काटता नहीं है, चौरई गवर्नमेंट कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर विकास शर्मा ने बताया कि "वट वृक्ष अपने आप में एक छोटा पारिस्थितिक तंत्र होता है, हजारों प्रकार की कीटों के लिए है भोजन एवं आश्रय का स्थान होता है. इस तरह पक्षी के भोजन एवं रहने के लिए एक बेहतरीन ठिकाना भी माना जाता है, मैना, तोता, कौवे सहित अन्य पक्षी इसके स्वादिष्ट फलों से अपनी भूख मिटाते हैं और बदले में इसके बीजों को समस्त भूभाग पर फैलाते हैं. वटवृक्ष कई असाध्य रोगों के लिए भी बेहतरीन औषधि माना गया है, जिसका प्रयोग नपुंसकता, चर्म रोग, मधुमेह तथा सौंदर्य निखारने में भी किया जाता है.

एमपी के इस गांव को मिली बरगद से पहचान

छिंदवाड़ा। एमपी के छिंदवाड़ा इलाके का गांव बड़ चिचौली....जो पूरा गांव एक बरगद की बदौलत बस पाया. गांव के बरगद की शाखा के नीचे मुगलकालीन सेना आराम फरमाती थी और सैनिकों के घोड़े भी बांधे जाते थे. बाद में बरगद से ही कई और बरगद के पौधे पनप गए, इसके बाद बरगद यानि बढ़ के ही नाम पर इसे कहा जाने लगा बढ़ चिचौली. संभवत एमपी में बरगद की बदौलत बसाया और उसी पर नाम पाया ये इकलौता गांव है.आइए जानते हैं क्या है छिंदवाड़ा के बड़चिचोली के बरगद क पेड़ की कहानी और क्यों दी जाती है, यहां की कौमी एकता की मिसाल.

करीब 5 एकड़ में फैला एक बरगद का कुनबा: क्या कभी सोचा है... करीब 5 एकड़ जमीन में सिर्फ एक बरगद ने अपनी सल्तनत बना रखी है, एक पेड़ से ही अब हजारों पेड़ इस वाटिका में नजर आते हैं. जी हां ऐसा ही है, मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के एक गांव के मालगुजार मधुकरराव बताते हैं कि "पहले इस गांव का नाम चिचोली था. गांव के नजदीक सालों पहले एक बरगद का पेड़ हुआ करता था, धीरे-धीरे बरगद का पेड़ करीब 5 एकड़ जमीन में फैल गया. एक दौर था जब घना जंगल होता था, वहां पर लोग जाने से भी डरते थे, लेकिन धीरे-धीरे जब विकास होता गया तो फिर इसी में से कई पेड़ काट दिए गए, लेकिन अभी भी करीब 5 एकड़ जमीन में हजारों बरगद के पेड़ एक ही पेड़ की शाखा से तैयार हुए हैं. इसी पेड़ के कारण अब गांव का नाम बरगद (बड़) यानि बड़चिचोली हो गया है.

मुगलकालीन सेना करती थी आराम, बांधे जाते थे घोड़े: ग्रामीण बुजुर्गों ने बताया कि उनके गांव के रहने वाले बुजुर्गों से वे एक कहानी सुनते आए हैं कि इसी बरगद के नीचे मुगलकालीन सेना जब युद्ध के लिए जाया करती थी, तो आराम करती थी. मुगलकालीन सेना के हजारों घोड़े इसी बरगद के नीचे बांधा करते थे.

दरगाह के साथ मंदिर, कौमी एकता की मिसाल: इसी विशाल बरगद के नीचे बैठकर बाबा फरीद ने कई दिनों तक अपनी धूनी रमाई थी, इसके साथ ही बाबा फरीद की दरगाह के बगल में भगवान शंकर का और भगवान गणेश का मंदिर कौमी एकता की मिसाल के लिए जाने जाते हैं, जहां हर दिन सैकड़ों लोग इबादत और पूजा करने के लिए पहुंचते हैं. इस एक ही परिसर में जहां हर साल बाबा फरीद के नाम पर उर्स का आयोजन होता है, तो ही भगवान शंकर और हनुमान जी के लिए पूजा भी की जाती है. मुस्लिम धर्म के लोग यहां पर पहुंचकर इबादत और हिंदू धर्म के लोग यहां पहुंच कर पूजा-अर्चना करते हैं. कहा जाता है कि इस बरगद के पेड़ का दूध या फल खाने से कई रोग ठीक हो जाते हैं.

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बरगद के नाम से मिली गांव को पहचान: भोपाल से नागपुर के नेशनल हाईवे पर छिंदवाड़ा जिले में स्थित इस गांव का नाम पहले चिचोली हुआ करता था, लेकिन एक ही पेड़ की इतनी शाखाओं से बने हजारों पेड़ के कारण इस गांव की पहचान बरगद से ही होने लगी और बाद में इसका नाम बड़चिचोली हो गया.

वटवृक्ष है लाभकारी: कहा जाता है कि धरती पर मौजूद समस्त बौद्ध प्रजातियों में सबसे लंबा जीवन वटवृक्ष का ही होता है, जेठ मास की अमावस्या को हिंदू महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए और कहीं-कहीं संतान प्राप्ति एवं उनकी लंबी आयु की कामना के लिए वट सावित्री का पूजन भी होता है. इस पेड़ की पवित्रता के कारण ही कोई इस वृक्ष को काटता नहीं है, चौरई गवर्नमेंट कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर विकास शर्मा ने बताया कि "वट वृक्ष अपने आप में एक छोटा पारिस्थितिक तंत्र होता है, हजारों प्रकार की कीटों के लिए है भोजन एवं आश्रय का स्थान होता है. इस तरह पक्षी के भोजन एवं रहने के लिए एक बेहतरीन ठिकाना भी माना जाता है, मैना, तोता, कौवे सहित अन्य पक्षी इसके स्वादिष्ट फलों से अपनी भूख मिटाते हैं और बदले में इसके बीजों को समस्त भूभाग पर फैलाते हैं. वटवृक्ष कई असाध्य रोगों के लिए भी बेहतरीन औषधि माना गया है, जिसका प्रयोग नपुंसकता, चर्म रोग, मधुमेह तथा सौंदर्य निखारने में भी किया जाता है.

Last Updated : May 30, 2023, 1:17 PM IST
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