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कृषि कानून के खिलाफ संसद के बाहर सांसदों का विरोध

संसद का मानसून सत्र शुरू होते ही किसानों के समर्थन में विरोध के स्वर भी तेज हो गए हैं. इस बीच संसद के बाहर कृषि कानून के खिलाफ सांसदों ने विरोध-प्रदर्शन किया. ये विरोध शिरोमणी अकाली दल के साथ-साथ बसपा के सांसदों और नेताओं द्वारा दर्ज किया गया.

सांसदों का विरोध
सांसदों का विरोध
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Published : Jul 19, 2021, 3:15 PM IST

नई दिल्ली : संसद का मानसून सत्र (monsoon session of parliament) आज से शुरू हो गया है. इसी के साथ कृषि कानूनों (agricultural law) के खिलाफ एक बार फिर से आंदोलन ने जोर पकड़ लिया है. एक तरफ जहां भारतीय किसान यूनियन (Indian Farmer Union) ने 22 जुलाई को संसद के घेराव का एलान किया है. वहीं दूसरी ओर संसद के बाहर आज शिरोमणि अकाली दल और बसपा के सांसदों-नेताओं अपना विरोध जाहिर किया.

संसद के बाहर विरोध करते सांसद

बता दें कि संसद के बाहर हुए विरोध प्रदर्शन में शिरोमणि अकाली दल के साथ-साथ अन्य पार्टियों के सांसद और नेता बढ़चढ़ कर शामिल हुए. विरोध प्रदर्शन को लेकर अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कहा, देश के किसान इंसाफ चाहते हैं. हम चाहते हैं कि सारी पार्टी एकजुट होकर केंद्र सरकार के खिलाफ खड़ी हों और कानून वापस लेने का दबाव डालें.

वहीं, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Agriculture Minister Narendra Singh Tomar) द्वारा किसानों से बात करने के बयान पर बसपा महासचिव सतीश मिश्रा (BSP General Secretary Satish Mishra) ने कहा, वो साल भर से बात कर रहे हैं, लेकिन इस मसले पर किसी तरह का हल नहीं निकाला है. इस मामले पर शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) की सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल (Former Union Minister Harsimrat Kaur Badal) का कहना है कि सभी पार्टियों को मिलकर सरकार को मजबूर करना होगा और किसानों की बात रखनी होगी.

पढ़ें- साइकिल चलाकर संसद पहुंचे तृणमूल सांसद, ईंधन की कीमतों में वृद्धि का किया विरोध

आपको बता दें कि किसानों और सरकार के बीच अब तक 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन किसान और सरकार दोनों के अड़ियल रवैये के चलते वार्ता बेनतीजा रही है. दरअसल, तीन अध्यादेशों को जिनमें कृषि उपज, उनकी बिक्री, जमाखोरी, कृषि विपणन और अनुबंध कृषि सुधारों के साथ अन्य चीजों से संबंधित थे, उन्हें 15 और 18 सितंबर 2020 को लोकसभा में एक बिल के रूप में पारित किया गया. बाद में 20 सितंबर को राज्यसभा को भेज दिया गया.

जहां 22 सितंबर को तीनों विधेयकों को पारित कर दिया गया. 28 सितंबर को विधेयकों पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करते ही वो कानून बन गए, जिसके विरोध में पिछले आठ महीने से किसान संगठन दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. इस विरोध प्रदर्शन में कई किसानों ने अपनी जान भी गंवा दी.

नई दिल्ली : संसद का मानसून सत्र (monsoon session of parliament) आज से शुरू हो गया है. इसी के साथ कृषि कानूनों (agricultural law) के खिलाफ एक बार फिर से आंदोलन ने जोर पकड़ लिया है. एक तरफ जहां भारतीय किसान यूनियन (Indian Farmer Union) ने 22 जुलाई को संसद के घेराव का एलान किया है. वहीं दूसरी ओर संसद के बाहर आज शिरोमणि अकाली दल और बसपा के सांसदों-नेताओं अपना विरोध जाहिर किया.

संसद के बाहर विरोध करते सांसद

बता दें कि संसद के बाहर हुए विरोध प्रदर्शन में शिरोमणि अकाली दल के साथ-साथ अन्य पार्टियों के सांसद और नेता बढ़चढ़ कर शामिल हुए. विरोध प्रदर्शन को लेकर अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कहा, देश के किसान इंसाफ चाहते हैं. हम चाहते हैं कि सारी पार्टी एकजुट होकर केंद्र सरकार के खिलाफ खड़ी हों और कानून वापस लेने का दबाव डालें.

वहीं, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Agriculture Minister Narendra Singh Tomar) द्वारा किसानों से बात करने के बयान पर बसपा महासचिव सतीश मिश्रा (BSP General Secretary Satish Mishra) ने कहा, वो साल भर से बात कर रहे हैं, लेकिन इस मसले पर किसी तरह का हल नहीं निकाला है. इस मामले पर शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) की सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल (Former Union Minister Harsimrat Kaur Badal) का कहना है कि सभी पार्टियों को मिलकर सरकार को मजबूर करना होगा और किसानों की बात रखनी होगी.

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आपको बता दें कि किसानों और सरकार के बीच अब तक 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन किसान और सरकार दोनों के अड़ियल रवैये के चलते वार्ता बेनतीजा रही है. दरअसल, तीन अध्यादेशों को जिनमें कृषि उपज, उनकी बिक्री, जमाखोरी, कृषि विपणन और अनुबंध कृषि सुधारों के साथ अन्य चीजों से संबंधित थे, उन्हें 15 और 18 सितंबर 2020 को लोकसभा में एक बिल के रूप में पारित किया गया. बाद में 20 सितंबर को राज्यसभा को भेज दिया गया.

जहां 22 सितंबर को तीनों विधेयकों को पारित कर दिया गया. 28 सितंबर को विधेयकों पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करते ही वो कानून बन गए, जिसके विरोध में पिछले आठ महीने से किसान संगठन दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. इस विरोध प्रदर्शन में कई किसानों ने अपनी जान भी गंवा दी.

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