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MP Puppet Fair: शिक्षा के अभाव में यहां 200 साल पहले शुरु हुआ था पुतरियों का मेला, आज भी पांडेय परिवार ने निभा रहा परंपरा - एमपी न्यूज

एमपी के बुंदेलखंड में 200 साल पहले धर्मजागरण के लिए पुतरियों के मेले की शुरुआती की गई थी. यह परंपरा इस क्षेत्र में आज भी कायम है. पांडेय परिवार इस परंपरा को बड़ी लगन से निभा रहे हैं. इस मेले को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. सागर से संवाददाता कपिल तिवारी की रिपोर्ट में पढ़िए क्या पुतरियों का मेला.

MP Puppet Fair
पुतरियों का मेला
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 4, 2023, 9:31 PM IST

Updated : Oct 4, 2023, 11:00 PM IST

यहां लगता है पुतरियों का मेला

सागर। आज से दो सौ साल पहले जब संचार के साधन नहीं थे, तब ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के अभाव के कारण धर्म जागरण के लिए पंडित और पुजारी तरह-तरह के तरीके अपनाते थे. इसी कड़ी में आज से दो साल पहले सागर जिले के रहली विकासखंड के काछी पिपरिया गांव के एक ब्राह्मण परिवार ने धर्म जागरण के लिए पुतलों के मेले की शुरूआत की. जिसे बुंदेलखंड के लोग पुतरियों के मेले के नाम से पुकारते हैं. इस मेले में चित्रकला और मूर्तिकला के जरिए उन्होंने धार्मिक झांकियां लगाना शुरू की. धीरे-धीरे इस मेले की ख्याति बुंदेलखंड में फैलने लगी और आसपास के लोगों के अलावा दूर-दूर से भी लोग मेला देखने पहुंचने लगे. खास बात ये है कि दो साल पहले शुरू हुए इस मेले की परम्परा को पांडेय परिवार आज भी निभा रहा है. उनकी चौथी पीढ़ी उसी शिद्दत के साथ पुतरियों के मेले का आयोजन करती है, जिसे देखने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं.

Puppet fair in Bundelkhand
पं जगदीश प्रसाद पांडेय का घर

अशिक्षा के माहौल में धर्मजागरण की पहल: दरअसल आज से दो सौ साल पहले भारत देश के क्या हालत होगे, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. ना तो संचार के साधन हुआ करते थे और ना ही गांव-गांव तक शिक्षा का विस्तार हुआ था. आज जो शहर और महानगरों की शक्ल ले चुके हैं. तब कस्बे हुआ करते थे और इन कस्बों में भी शिक्षा के लिए एकाध स्कूल हुआ करता था. इन हालातों में धर्मकर्म से जुडे़ ब्राह्मण और पंडित के सामने चुनौती थी कि वो लोगों को धर्म और आध्यात्म्य से जोड़ने के लिए क्या करें. ऐसे में जिले के रहली ब्लाॅक के काछी पिपरिया गांव में स्वर्गीय दुर्गाप्रसाद पांडेय ने एक अभिनव पहल की थी. मूर्तिकला और चित्रकला में पारंगत दुर्गाप्रसाद पांडेय ने अपने घर की दीवारों पर धार्मिक चित्र उकेरे और अथक मेहनत करके करीब एक हजार बड़े-छोटे पुतले बनाए, जो धार्मिक कथाओं से जुडे़ पात्र थे. इसके बाद शुरू हुआ पुतरियों के मेले का सिलसिला, जो आज तक जारी है.

Puppet fair in Bundelkhand
पुतलों के जरिए पारीवारिक कहानी दर्शाते

कब और कहां लगता है पुतरियों का मेला: सागर जिले के रहली विकासखंड के एक छोटे से गांव काछी पिपरिया की बात करें तो इस गांव में पिछले 206 साल से ये परम्परा चली आ रही है. स्थानीय पांडेय परिवार के पूर्वज स्वर्गीय दुर्गाप्रसाद पांडे ने इसकी शुरूआत की थी. अपनी चित्रकला और मूर्तिकला के माध्यम से धार्मिक जागरण के उद्देश्य से भाद्रपद की पूर्णिमा पर पुतरियों का मेला लगाना शुरू किया था. दरअसल दुर्गा प्रसाद पांडेय की चिंता थी कि लोगों को धर्म और आध्यात्म्य के प्रति कैसे जागरूक किया जाए. उस समय संचार के आधुनिक साधन नहीं थे, लोगों के पास रेडियो, टेलीविजन और मोबाइल जैसी चीजे भी नहीं थी. इसलिए दुर्गाप्रसाद पांडे ने महीनों मशक्कत करके जहां करीब एक हजार छोटे-बडे़ पुतले बनाए, वहीं अपने घर की दीवारों पर धार्मिक कथाएं चित्रकला के जरिए उकेरी और पुतरियों के ऐतिहासिक मेले की शुरूआत की, जो आज तक जारी है.

मेले के जरिए धर्म और समाजसुधार के संदेश: पुतरियों के मेले के जरिए पांडेय परिवार धर्मजागरण का कार्य करता है. साथ ही समाज सुधार के संदेश भी देता है. मेले में नशा मुक्ति, गौपालन, शिक्षा के महत्व और महिला सम्मान जैसी चीजों को पुतरियों के माध्यम से पेश कर लोगों को जागरूक किया जाता है. खास बात ये है कि एक समय इस मेले को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे. पूरे बुंदेलखंड में पुतरियों का मेला चर्चा का विषय रहता था, लेकिन समय के साथ-साथ संचार के साधन बढ़ने से मेले की चमक थोड़ी फीकी जरूर हुई है, लेकिन पांडेय परिवार का जोश आज भी बरकरार है और अपनी परम्परा को निभा रहे हैं.

Puppet fair in Bundelkhand
पुतलों से बनाए गए भगवान

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Puppet Fair In Sagar
पुतरियों का मेला

चौथी पीढ़ी आज भी निभा रही है परम्परा: जहां तक पुतरियों के मेले की परम्परा की बात करें, तो स्व.दुर्गाप्रसाद पाण्डेय के बाद उनके बेटे स्वर्गीय बैजनाथ प्रसाद पाण्डेय ने मेले को आगे बढ़ाया. इसके बाद तीसरी पीढ़ी के जगदीश प्रसाद पाण्डेय अपने पूर्वजों की परम्परा को संजोकर रखते हुए आज भी पुतरियों का मेला लगा रहा है. खास बात ये है कि इस काम में पांडेय परिवार ना तो किसी तरह का चंदा करता है और ना ही शासन की तरफ से मिलने वाले अनुदान के भरोसे रहता है. संस्कृति विभाग ने भी आज तक इस अनूठी परम्परा को लेकर कोई पहल नहीं की है.

यहां लगता है पुतरियों का मेला

सागर। आज से दो सौ साल पहले जब संचार के साधन नहीं थे, तब ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के अभाव के कारण धर्म जागरण के लिए पंडित और पुजारी तरह-तरह के तरीके अपनाते थे. इसी कड़ी में आज से दो साल पहले सागर जिले के रहली विकासखंड के काछी पिपरिया गांव के एक ब्राह्मण परिवार ने धर्म जागरण के लिए पुतलों के मेले की शुरूआत की. जिसे बुंदेलखंड के लोग पुतरियों के मेले के नाम से पुकारते हैं. इस मेले में चित्रकला और मूर्तिकला के जरिए उन्होंने धार्मिक झांकियां लगाना शुरू की. धीरे-धीरे इस मेले की ख्याति बुंदेलखंड में फैलने लगी और आसपास के लोगों के अलावा दूर-दूर से भी लोग मेला देखने पहुंचने लगे. खास बात ये है कि दो साल पहले शुरू हुए इस मेले की परम्परा को पांडेय परिवार आज भी निभा रहा है. उनकी चौथी पीढ़ी उसी शिद्दत के साथ पुतरियों के मेले का आयोजन करती है, जिसे देखने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं.

Puppet fair in Bundelkhand
पं जगदीश प्रसाद पांडेय का घर

अशिक्षा के माहौल में धर्मजागरण की पहल: दरअसल आज से दो सौ साल पहले भारत देश के क्या हालत होगे, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. ना तो संचार के साधन हुआ करते थे और ना ही गांव-गांव तक शिक्षा का विस्तार हुआ था. आज जो शहर और महानगरों की शक्ल ले चुके हैं. तब कस्बे हुआ करते थे और इन कस्बों में भी शिक्षा के लिए एकाध स्कूल हुआ करता था. इन हालातों में धर्मकर्म से जुडे़ ब्राह्मण और पंडित के सामने चुनौती थी कि वो लोगों को धर्म और आध्यात्म्य से जोड़ने के लिए क्या करें. ऐसे में जिले के रहली ब्लाॅक के काछी पिपरिया गांव में स्वर्गीय दुर्गाप्रसाद पांडेय ने एक अभिनव पहल की थी. मूर्तिकला और चित्रकला में पारंगत दुर्गाप्रसाद पांडेय ने अपने घर की दीवारों पर धार्मिक चित्र उकेरे और अथक मेहनत करके करीब एक हजार बड़े-छोटे पुतले बनाए, जो धार्मिक कथाओं से जुडे़ पात्र थे. इसके बाद शुरू हुआ पुतरियों के मेले का सिलसिला, जो आज तक जारी है.

Puppet fair in Bundelkhand
पुतलों के जरिए पारीवारिक कहानी दर्शाते

कब और कहां लगता है पुतरियों का मेला: सागर जिले के रहली विकासखंड के एक छोटे से गांव काछी पिपरिया की बात करें तो इस गांव में पिछले 206 साल से ये परम्परा चली आ रही है. स्थानीय पांडेय परिवार के पूर्वज स्वर्गीय दुर्गाप्रसाद पांडे ने इसकी शुरूआत की थी. अपनी चित्रकला और मूर्तिकला के माध्यम से धार्मिक जागरण के उद्देश्य से भाद्रपद की पूर्णिमा पर पुतरियों का मेला लगाना शुरू किया था. दरअसल दुर्गा प्रसाद पांडेय की चिंता थी कि लोगों को धर्म और आध्यात्म्य के प्रति कैसे जागरूक किया जाए. उस समय संचार के आधुनिक साधन नहीं थे, लोगों के पास रेडियो, टेलीविजन और मोबाइल जैसी चीजे भी नहीं थी. इसलिए दुर्गाप्रसाद पांडे ने महीनों मशक्कत करके जहां करीब एक हजार छोटे-बडे़ पुतले बनाए, वहीं अपने घर की दीवारों पर धार्मिक कथाएं चित्रकला के जरिए उकेरी और पुतरियों के ऐतिहासिक मेले की शुरूआत की, जो आज तक जारी है.

मेले के जरिए धर्म और समाजसुधार के संदेश: पुतरियों के मेले के जरिए पांडेय परिवार धर्मजागरण का कार्य करता है. साथ ही समाज सुधार के संदेश भी देता है. मेले में नशा मुक्ति, गौपालन, शिक्षा के महत्व और महिला सम्मान जैसी चीजों को पुतरियों के माध्यम से पेश कर लोगों को जागरूक किया जाता है. खास बात ये है कि एक समय इस मेले को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे. पूरे बुंदेलखंड में पुतरियों का मेला चर्चा का विषय रहता था, लेकिन समय के साथ-साथ संचार के साधन बढ़ने से मेले की चमक थोड़ी फीकी जरूर हुई है, लेकिन पांडेय परिवार का जोश आज भी बरकरार है और अपनी परम्परा को निभा रहे हैं.

Puppet fair in Bundelkhand
पुतलों से बनाए गए भगवान

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Puppet Fair In Sagar
पुतरियों का मेला

चौथी पीढ़ी आज भी निभा रही है परम्परा: जहां तक पुतरियों के मेले की परम्परा की बात करें, तो स्व.दुर्गाप्रसाद पाण्डेय के बाद उनके बेटे स्वर्गीय बैजनाथ प्रसाद पाण्डेय ने मेले को आगे बढ़ाया. इसके बाद तीसरी पीढ़ी के जगदीश प्रसाद पाण्डेय अपने पूर्वजों की परम्परा को संजोकर रखते हुए आज भी पुतरियों का मेला लगा रहा है. खास बात ये है कि इस काम में पांडेय परिवार ना तो किसी तरह का चंदा करता है और ना ही शासन की तरफ से मिलने वाले अनुदान के भरोसे रहता है. संस्कृति विभाग ने भी आज तक इस अनूठी परम्परा को लेकर कोई पहल नहीं की है.

Last Updated : Oct 4, 2023, 11:00 PM IST
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