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MP के जैविक उत्पादों को नहीं मिल रहा पर्याप्त दाम, सरकार की नीतियों का किसान को उठाना पड़ रहा खामियाजा - जैविक किसानों को घाटा

मध्यप्रदेश के जैविक उत्पादों को पर्याप्त दाम नहीं मिल रहा है. लिहाजा यह जैविक खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है.

MP Organic products
जैविक उत्पादों को नहीं मिल रहा पर्याप्त दाम,
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Published : May 12, 2023, 8:21 PM IST

Updated : May 13, 2023, 10:09 AM IST

जबलपुर। मध्य प्रदेश में जैविक खेती करने वाले किसानों को अपनी फसल का सही दाम नहीं मिल पा रहा है. उसकी मुख्य वजह मध्य प्रदेश की जैविक कृषि नीति है. मध्यप्रदेश में जैविक खेती पीजीएस के तहत की जाती है. लैब के सर्टिफिकेट नहीं मिलने की वजह से मध्यप्रदेश के ऑर्गेनिक प्रोडक्ट को बाजार में नहीं मिल रहा है. जैविक उत्पाद के सर्टिफिकेशन का यह तरीका विवादित रहा है. इसमें जैविक उत्पादों के सर्टिफिकेशन के लिए आसपास के किसानों का एक समूह बन जाता है. जो इस बात पर सहमति देते हैं कि वह अपने खेत में किसी किस्म के रासायनिक उर्वरक और पेस्टिसाइड का इस्तेमाल नहीं करेंगे.

क्या होती है जैविक खेती: एक पौधे को विकसित होने के लिए भोजन के रूप में हवा पोषक तत्व और पानी की जरूरत होती है. हवा और पानी की जरूरत तो आसानी से पूरी हो जाती है, लेकिन पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए किसान को फसल को खुराक देनी होती है. पोषक तत्व में मुख्य रूप से नाइट्रोजन पोटेशियम और फास्फोरस किसी पौधे के विकास के लिए बहुत जरूरी है. किसी भी पौधे में यह रासायनिक तत्व दो तरीके से पहुंच सकते हैं. इसका पहला तरीका है, जिसे हम रासायनिक खेती के नाम से जानते हैं. इसमें यूरिया डीएपी और दूसरे खादों के माध्यम से खेत में छिड़ककर पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है. इसी का दूसरा तरीका जैविक के नाम से जाना जाता है. जिसमें इन तत्वों को प्राकृतिक स्रोतों के जरिए पौधे को दिया जाता है. इसमें गोबर की खाद और बायो फर्टिलाइजर के जरिए पौधे के पोषक तत्वों की मांग को पूरा किया जाता है.

Organic Products of MP
एमपी के जैविक उत्पाद

कीट प्रबंधन: इसी तरीके से फसल के पौधों में लगने वाले कीटों के प्रबंधन के लिए भी दो तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं. पहला है रासायनिक जिसमें पेस्टिसाइड डालकर हानिकारक कीट पतंगों को मार दिया जाता है. दूसरा तरीका है जिसमें प्राकृतिक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें नीम से बने कीटनाशक मिट्टी से बने कीटनाशक परजीवी कीट नियंत्रण जैसे कुछ तरीके हैं जिनमें रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता.

हारमोंस और ग्रोथ केमिकल: रासायनिक खेती में अभी तक फर्टिलाइजर और पेस्टिसाइड ही इस्तेमाल हो रहे थे, लेकिन अब कुछ ऐसे रासायनिक तत्व भी खेती में इस्तेमाल हो रहे हैं. जिन्हें ग्रोथ हार्मोन के नाम से जाना जाता है. इनके इस्तेमाल से पेड़ पौधों में असीमित ग्रोथ और उत्पादन में बढ़ोतरी मिलती है, लेकिन इनके रासायनिक प्रभाव फसल पर छूट जाते हैं. इन्हीं फसलों से जो अनाज सब्जी और फल पैदा होते हैं. उनका इस्तेमाल हम खाने पीने में करते हैं. अनाज फल और सब्जियों में इन रसायनों की जरूरत से ज्यादा मौजूदगी मानव शरीर के लिए घातक है. रासायनिक तरीके से जिन खेतों में खेती की जा रही है. उस अनाज में जरूरत से ज्यादा रासायनिक तत्व पाए जा रहे हैं. यहां तक की यदि 2 सालों तक रासायनिक तत्वों का इस्तेमाल ना भी किया जाए तो भी अनाज में रासायनिक तत्व पाए जाते हैं, लगातार चार पांच साल तक बिना रासायनिक तत्वों के जब खेती की जाती है. तब जाकर प्राकृतिक अनाज पैदा हो पाता है. जिसे जैविक अन्न कहा जाता है.

जैविक उत्पाद का सर्टिफिकेशन: शहर में बैठे हुए उपभोक्ता को कैसे पता लगे कि जिस उत्पाद को वह खरीद रहा है. वह जैविक है या नहीं इसके लिए सरकार ने एक व्यवस्था बनाई है. इसमें कुछ सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं हैं, जो ऑर्गेनिक प्रोडक्ट को सर्टिफिकेशन जारी करती हैं. लेकिन जबलपुर में बीते 10 सालों से जैविक उत्पाद बेचने वाली महिला कारोबारी संध्या बोरकर का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केबल उन्हीं जैविक उत्पादों को जैविक माना जाता है, जिनके पास पेस्टिसाइड रेस्क्यूडल लैब का सर्टिफिकेट होता है, यह लैब अनाज में मौजूद पेस्टिसाइड की मात्रा की जांच करती है. भारत में सरकारी क्षेत्र में ऐसी केवल दो ही लैब हैं. जबलपुर के कृषि विश्वविद्यालय में यह लैब है, लेकिन इसका इस्तेमाल जैविक उत्पादों के सर्टिफिकेशन में नहीं हो रहा है.

जैविक उत्पादों को नहीं मिल रहा पर्याप्त दाम

मध्यप्रदेश की जैविक उत्पाद नीति में कमी: जैविक उत्पादन के सर्टिफिकेशन के बहुत से तरीके हैं, इनमें से मध्य प्रदेश सरकार ने जैविक उत्पादन सर्टिफिकेशन के लिए पीजीएस सिस्टम को अपनाया है. इसे पार्टिसिपेशन गारंटी सिस्टम के नाम से जाना जाता है. जैविक उत्पाद के सर्टिफिकेशन का यह तरीका विवादित रहा है. इसमें जैविक उत्पादों के सर्टिफिकेशन के लिए आसपास के किसानों का एक समूह बन जाता है. जो इस बात पर सहमति देते हैं कि वह अपने खेत में किसी किस्म के रासायनिक उर्वरक और पेस्टिसाइड का इस्तेमाल नहीं करेंगे और इस आधार पर जो भी उत्पाद पैदा होगा, उसे जैविक का सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है, लेकिन कई बार मौसम की परिस्थिति बिगड़ने और कीट पतंगों के ज्यादा नुकसान करने की वजह से इन फसलों में रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल कर लेते हैं और सभी लोग मिलकर इस बात की जानकारी नहीं होने देते. इसलिए मध्यप्रदेश के जैविक उत्पाद लैब टेस्ट में फेल हो जाते हैं. जबकि इस मामले में राजस्थान नॉर्थ ईस्ट और दक्षिण भारत की कुछ राज्यों की स्थिति मध्यप्रदेश से बेहतर है.

मध्यप्रदेश का दावा: हमें और आपको बाजार में भले ही जैविक अनाज ना मिले या मिले भी तो बहुत अधिक दाम पर मिले लेकिन मध्यप्रदेश सरकार का दावा सुनकर आप हैरान रह जाएंगे. सरकारी आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में 1637000 हेक्टेयर जमीन में जैविक खेती हो रही है. इसमें लगभग 2402000 मेट्रिक टन जैविक अनाज पैदा किया जा रहा है और मध्य प्रदेश को निर्यात के जरिए लगभग ढाई हजार करोड़ रुपए का राजस्व भी प्राप्त हो रहा है. बल्कि मध्य प्रदेश पूरे देश में जैविक अनाज उपजाने में नंबर 1 की स्थिति में है.

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  2. अन्नदातों पर दबाव बनाकर समर्थन मूल्य से कम पर हो रही खरीदी, कांग्रेस ने सरकार पर लगाया दोहरा खेल खेलने का आरोप
  3. MP Fertilizer Shortage: प्रदेश में खाद की किल्लत जारी, सरकार का दावा पर्याप्त खाद है

फिर क्यों नहीं मिल रहा है किसानों को दाम: सरकार का दावा है कि वह लगभग 25 लाख मैट्रिक टन जैविक अनाज पैदा कर रहे हैं. सामान्य बाजार में जैविक अनाज की कीमत हम ₹50 किलो भी यदि मान लें तो 2500000 मीट्रिक टन अनाज की बिक्री से 12500 करोड़ों रुपया मिलना चाहिए था, लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही केबल ढाई हजार करोड़ रुपया ही मिल पा रहा है. मतलब एकदम साफ है कि मध्यप्रदेश के जैविक उत्पादक किसान को उसके उत्पात का दाम नहीं मिल रहा है.

जबलपुर। मध्य प्रदेश में जैविक खेती करने वाले किसानों को अपनी फसल का सही दाम नहीं मिल पा रहा है. उसकी मुख्य वजह मध्य प्रदेश की जैविक कृषि नीति है. मध्यप्रदेश में जैविक खेती पीजीएस के तहत की जाती है. लैब के सर्टिफिकेट नहीं मिलने की वजह से मध्यप्रदेश के ऑर्गेनिक प्रोडक्ट को बाजार में नहीं मिल रहा है. जैविक उत्पाद के सर्टिफिकेशन का यह तरीका विवादित रहा है. इसमें जैविक उत्पादों के सर्टिफिकेशन के लिए आसपास के किसानों का एक समूह बन जाता है. जो इस बात पर सहमति देते हैं कि वह अपने खेत में किसी किस्म के रासायनिक उर्वरक और पेस्टिसाइड का इस्तेमाल नहीं करेंगे.

क्या होती है जैविक खेती: एक पौधे को विकसित होने के लिए भोजन के रूप में हवा पोषक तत्व और पानी की जरूरत होती है. हवा और पानी की जरूरत तो आसानी से पूरी हो जाती है, लेकिन पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए किसान को फसल को खुराक देनी होती है. पोषक तत्व में मुख्य रूप से नाइट्रोजन पोटेशियम और फास्फोरस किसी पौधे के विकास के लिए बहुत जरूरी है. किसी भी पौधे में यह रासायनिक तत्व दो तरीके से पहुंच सकते हैं. इसका पहला तरीका है, जिसे हम रासायनिक खेती के नाम से जानते हैं. इसमें यूरिया डीएपी और दूसरे खादों के माध्यम से खेत में छिड़ककर पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है. इसी का दूसरा तरीका जैविक के नाम से जाना जाता है. जिसमें इन तत्वों को प्राकृतिक स्रोतों के जरिए पौधे को दिया जाता है. इसमें गोबर की खाद और बायो फर्टिलाइजर के जरिए पौधे के पोषक तत्वों की मांग को पूरा किया जाता है.

Organic Products of MP
एमपी के जैविक उत्पाद

कीट प्रबंधन: इसी तरीके से फसल के पौधों में लगने वाले कीटों के प्रबंधन के लिए भी दो तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं. पहला है रासायनिक जिसमें पेस्टिसाइड डालकर हानिकारक कीट पतंगों को मार दिया जाता है. दूसरा तरीका है जिसमें प्राकृतिक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें नीम से बने कीटनाशक मिट्टी से बने कीटनाशक परजीवी कीट नियंत्रण जैसे कुछ तरीके हैं जिनमें रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता.

हारमोंस और ग्रोथ केमिकल: रासायनिक खेती में अभी तक फर्टिलाइजर और पेस्टिसाइड ही इस्तेमाल हो रहे थे, लेकिन अब कुछ ऐसे रासायनिक तत्व भी खेती में इस्तेमाल हो रहे हैं. जिन्हें ग्रोथ हार्मोन के नाम से जाना जाता है. इनके इस्तेमाल से पेड़ पौधों में असीमित ग्रोथ और उत्पादन में बढ़ोतरी मिलती है, लेकिन इनके रासायनिक प्रभाव फसल पर छूट जाते हैं. इन्हीं फसलों से जो अनाज सब्जी और फल पैदा होते हैं. उनका इस्तेमाल हम खाने पीने में करते हैं. अनाज फल और सब्जियों में इन रसायनों की जरूरत से ज्यादा मौजूदगी मानव शरीर के लिए घातक है. रासायनिक तरीके से जिन खेतों में खेती की जा रही है. उस अनाज में जरूरत से ज्यादा रासायनिक तत्व पाए जा रहे हैं. यहां तक की यदि 2 सालों तक रासायनिक तत्वों का इस्तेमाल ना भी किया जाए तो भी अनाज में रासायनिक तत्व पाए जाते हैं, लगातार चार पांच साल तक बिना रासायनिक तत्वों के जब खेती की जाती है. तब जाकर प्राकृतिक अनाज पैदा हो पाता है. जिसे जैविक अन्न कहा जाता है.

जैविक उत्पाद का सर्टिफिकेशन: शहर में बैठे हुए उपभोक्ता को कैसे पता लगे कि जिस उत्पाद को वह खरीद रहा है. वह जैविक है या नहीं इसके लिए सरकार ने एक व्यवस्था बनाई है. इसमें कुछ सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं हैं, जो ऑर्गेनिक प्रोडक्ट को सर्टिफिकेशन जारी करती हैं. लेकिन जबलपुर में बीते 10 सालों से जैविक उत्पाद बेचने वाली महिला कारोबारी संध्या बोरकर का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केबल उन्हीं जैविक उत्पादों को जैविक माना जाता है, जिनके पास पेस्टिसाइड रेस्क्यूडल लैब का सर्टिफिकेट होता है, यह लैब अनाज में मौजूद पेस्टिसाइड की मात्रा की जांच करती है. भारत में सरकारी क्षेत्र में ऐसी केवल दो ही लैब हैं. जबलपुर के कृषि विश्वविद्यालय में यह लैब है, लेकिन इसका इस्तेमाल जैविक उत्पादों के सर्टिफिकेशन में नहीं हो रहा है.

जैविक उत्पादों को नहीं मिल रहा पर्याप्त दाम

मध्यप्रदेश की जैविक उत्पाद नीति में कमी: जैविक उत्पादन के सर्टिफिकेशन के बहुत से तरीके हैं, इनमें से मध्य प्रदेश सरकार ने जैविक उत्पादन सर्टिफिकेशन के लिए पीजीएस सिस्टम को अपनाया है. इसे पार्टिसिपेशन गारंटी सिस्टम के नाम से जाना जाता है. जैविक उत्पाद के सर्टिफिकेशन का यह तरीका विवादित रहा है. इसमें जैविक उत्पादों के सर्टिफिकेशन के लिए आसपास के किसानों का एक समूह बन जाता है. जो इस बात पर सहमति देते हैं कि वह अपने खेत में किसी किस्म के रासायनिक उर्वरक और पेस्टिसाइड का इस्तेमाल नहीं करेंगे और इस आधार पर जो भी उत्पाद पैदा होगा, उसे जैविक का सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है, लेकिन कई बार मौसम की परिस्थिति बिगड़ने और कीट पतंगों के ज्यादा नुकसान करने की वजह से इन फसलों में रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल कर लेते हैं और सभी लोग मिलकर इस बात की जानकारी नहीं होने देते. इसलिए मध्यप्रदेश के जैविक उत्पाद लैब टेस्ट में फेल हो जाते हैं. जबकि इस मामले में राजस्थान नॉर्थ ईस्ट और दक्षिण भारत की कुछ राज्यों की स्थिति मध्यप्रदेश से बेहतर है.

मध्यप्रदेश का दावा: हमें और आपको बाजार में भले ही जैविक अनाज ना मिले या मिले भी तो बहुत अधिक दाम पर मिले लेकिन मध्यप्रदेश सरकार का दावा सुनकर आप हैरान रह जाएंगे. सरकारी आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में 1637000 हेक्टेयर जमीन में जैविक खेती हो रही है. इसमें लगभग 2402000 मेट्रिक टन जैविक अनाज पैदा किया जा रहा है और मध्य प्रदेश को निर्यात के जरिए लगभग ढाई हजार करोड़ रुपए का राजस्व भी प्राप्त हो रहा है. बल्कि मध्य प्रदेश पूरे देश में जैविक अनाज उपजाने में नंबर 1 की स्थिति में है.

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फिर क्यों नहीं मिल रहा है किसानों को दाम: सरकार का दावा है कि वह लगभग 25 लाख मैट्रिक टन जैविक अनाज पैदा कर रहे हैं. सामान्य बाजार में जैविक अनाज की कीमत हम ₹50 किलो भी यदि मान लें तो 2500000 मीट्रिक टन अनाज की बिक्री से 12500 करोड़ों रुपया मिलना चाहिए था, लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही केबल ढाई हजार करोड़ रुपया ही मिल पा रहा है. मतलब एकदम साफ है कि मध्यप्रदेश के जैविक उत्पादक किसान को उसके उत्पात का दाम नहीं मिल रहा है.

Last Updated : May 13, 2023, 10:09 AM IST
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