ETV Bharat / bharat

MP News: पीएम मोदी ने इस खतरनाक बीमारी पर जताई चिंता, जानें मरीजों की जिंदगी को कैसे नासूर बना देता है सिकलसेल

01 जुलाई को पीएम मोदी ने एमपी के शहडोल जिले से सिकलसेल बीमारी की रोकथोम के लिए राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन लॉन्च किया. पीएम ने इस बीमारी पर चिंता जताई है. जानें क्या है सिकलसेल...

sickle cell anaemia disease
सिकलसेल बीमारी
author img

By

Published : Jul 2, 2023, 11:02 PM IST

सिकलसेल बीमारी से छुटकारा

जबलपुर। जनजातीय आबादी के बीच लगातार पैर पसार रही सिकलसेल बीमारी का खात्मा करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया जा रहा है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शहडोल से इस अभियान की शुरुआत की है. खास बात यह है कि इस मिशन की गाइडलाइन बनाने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान को सौंपी गई है जो कि जबलपुर में स्थित है. कितनी जटिल है यह बीमारी और किस तरीके से इस मिशन को कामयाब बनाया जाएगा.. जानिए इस खास रिपोर्ट में

खतरनाक है ये बीमारी: सिकल सेल एनीमिया एक ऐसी बीमारी है जिसकी चपेट में आने के बाद जिंदगी नासूर बन जाती है. यही वजह है कि इसकी चपेट में आने के बाद मरीज घुट-घुट कर जीने मजबूर हो जाता है. उंगलियों की लंबाई में अंतर से लेकर हड्डियों का दर्द, वजन का न बढ़ना, थकान जैसे शुरुआती लक्षण पाए जाते हैं. सिकलसेल बीमारी की रोकथाम के लिए अभी राष्ट्रीय स्तर पर कोई गाइडलाइन नहीं है. लिहाजा भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय ने इसकी गाइडलाइन बनाने का जिम्मा जबलपुर के राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान यानी नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्राईबल हेल्थ को सौंपा है. इस संस्थान के द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर गाइडलाइन तो बनाई ही जा रही है साथ ही आशा उषा कार्यकर्ताओं के अलावा अन्य संगठनों से जुड़े स्वास्थ्य कर्मियों को भी ट्रेनिंग दी जा रही है ताकि वे व्यापक तौर पर स्क्रीनिंग करके सिकल सेल एनीमिया की बीमारी के फैलाव को रोक सके. प्रदेश स्तर पर स्क्रीनिंग के लिए 89 विकास खंडों का चयन किया गया है.

नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्राईबल हेल्थ
नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्राईबल हेल्थ

इन समस्याओं से जूझते हैं पीड़ित: जबलपुर जिले के ग्राम बगरई के रहने वाले 32 वर्षीय संजय बर्मन ने बताया कि सिकलसेल नाम की बीमारी उनकी मां को थी और उसके बाद उनके पास आई लेकिन अब इस बीमारी से उनकी 5 साल के बेटी जान्हवी बर्मन भी जूझ रही है. साथ ही उनकी 25 वर्षीय पत्नी सपना बर्मन को भी यह बीमारी है. संजय ने बताया कि उनकी बेटी जान्हवी 3 साल की थी तब उसे बुखार आने के बाद दस्त लगने लगे जिसकी मेडिकल अस्पताल में जांच कराई गई तो पता चला कि बेटी को सिकलसेल नाम की बीमारी है. जिसके बाद से लगातार बेटी का इलाज चल रहा है. हर 3 माह में बेटी को खून की कमी आ जाती है जिसके कारण खून चढ़ाना पड़ता है. ऐसा नहीं करने पर जान को भी खतरा हो सकता है.

Also Read

पीढ़ी दर पीढ़ी फैलती है बीमारी: कुछ ऐसी ही कहानी ग्राम बगरई के ही रहने वाले 46 वर्षीय फुल्लू बर्मन के 17 वर्षीय बेटा सचिन बर्मन की भी है जो पिछले 17 सालों से इस बीमारी से जूझ रहा है. फुल्लू बर्मन औऱ उनकी 40 वर्षीय पत्नी रमा बर्मन भी इस बीमारी से झूझ रही हैं. फुल्लू बर्मन ने बताया कि उनका बेटा सचिन 1 साल का था तब उसके हाथ पैर की उंगली सूजन आने लगी काफी इलाज कराने के बाद जब आराम नहीं लगा तो इसकी जांच कराई गई तब पता चला कि जिस बीमारी से उनके मां-बाप जूझ रहे थे वही बीमारी सचिन को है.

आदिवासी इलाकों में इसका असर: पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार को अपनी चपेट में लेने वाली घातक बीमारी सिकल सेल एनीमिया ने आदिवासी जिलों की सरहदों को पार कर अब जबलपुर में भी पैर पसारने शुरू कर दिए हैं. अकेले जबलपुर जिले में अब तक 63 सिकलसेल एनीमिया के केस सामने आए हैं, सरकारी रिकॉर्ड में ये केस दर्ज भी हो चुके हैं और इनका इलाज भी किया जा रहा है. स्वास्थ्य विभाग इनकी रोकथाम की कोशिशों में भी जुट गया है. सिकलसेल बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए पीएम मोदी राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन की शुरुआत कर चुके हैं और लक्ष्य रखा गया है कि 2047 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में पैर पसार चुकी सिकल सेल डिजीज को जड़ से खत्म किया जाना है. ऐसे में यह योजना स्वास्थ्य की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है.

सिकलसेल बीमारी से छुटकारा

जबलपुर। जनजातीय आबादी के बीच लगातार पैर पसार रही सिकलसेल बीमारी का खात्मा करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया जा रहा है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शहडोल से इस अभियान की शुरुआत की है. खास बात यह है कि इस मिशन की गाइडलाइन बनाने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान को सौंपी गई है जो कि जबलपुर में स्थित है. कितनी जटिल है यह बीमारी और किस तरीके से इस मिशन को कामयाब बनाया जाएगा.. जानिए इस खास रिपोर्ट में

खतरनाक है ये बीमारी: सिकल सेल एनीमिया एक ऐसी बीमारी है जिसकी चपेट में आने के बाद जिंदगी नासूर बन जाती है. यही वजह है कि इसकी चपेट में आने के बाद मरीज घुट-घुट कर जीने मजबूर हो जाता है. उंगलियों की लंबाई में अंतर से लेकर हड्डियों का दर्द, वजन का न बढ़ना, थकान जैसे शुरुआती लक्षण पाए जाते हैं. सिकलसेल बीमारी की रोकथाम के लिए अभी राष्ट्रीय स्तर पर कोई गाइडलाइन नहीं है. लिहाजा भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय ने इसकी गाइडलाइन बनाने का जिम्मा जबलपुर के राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान यानी नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्राईबल हेल्थ को सौंपा है. इस संस्थान के द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर गाइडलाइन तो बनाई ही जा रही है साथ ही आशा उषा कार्यकर्ताओं के अलावा अन्य संगठनों से जुड़े स्वास्थ्य कर्मियों को भी ट्रेनिंग दी जा रही है ताकि वे व्यापक तौर पर स्क्रीनिंग करके सिकल सेल एनीमिया की बीमारी के फैलाव को रोक सके. प्रदेश स्तर पर स्क्रीनिंग के लिए 89 विकास खंडों का चयन किया गया है.

नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्राईबल हेल्थ
नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्राईबल हेल्थ

इन समस्याओं से जूझते हैं पीड़ित: जबलपुर जिले के ग्राम बगरई के रहने वाले 32 वर्षीय संजय बर्मन ने बताया कि सिकलसेल नाम की बीमारी उनकी मां को थी और उसके बाद उनके पास आई लेकिन अब इस बीमारी से उनकी 5 साल के बेटी जान्हवी बर्मन भी जूझ रही है. साथ ही उनकी 25 वर्षीय पत्नी सपना बर्मन को भी यह बीमारी है. संजय ने बताया कि उनकी बेटी जान्हवी 3 साल की थी तब उसे बुखार आने के बाद दस्त लगने लगे जिसकी मेडिकल अस्पताल में जांच कराई गई तो पता चला कि बेटी को सिकलसेल नाम की बीमारी है. जिसके बाद से लगातार बेटी का इलाज चल रहा है. हर 3 माह में बेटी को खून की कमी आ जाती है जिसके कारण खून चढ़ाना पड़ता है. ऐसा नहीं करने पर जान को भी खतरा हो सकता है.

Also Read

पीढ़ी दर पीढ़ी फैलती है बीमारी: कुछ ऐसी ही कहानी ग्राम बगरई के ही रहने वाले 46 वर्षीय फुल्लू बर्मन के 17 वर्षीय बेटा सचिन बर्मन की भी है जो पिछले 17 सालों से इस बीमारी से जूझ रहा है. फुल्लू बर्मन औऱ उनकी 40 वर्षीय पत्नी रमा बर्मन भी इस बीमारी से झूझ रही हैं. फुल्लू बर्मन ने बताया कि उनका बेटा सचिन 1 साल का था तब उसके हाथ पैर की उंगली सूजन आने लगी काफी इलाज कराने के बाद जब आराम नहीं लगा तो इसकी जांच कराई गई तब पता चला कि जिस बीमारी से उनके मां-बाप जूझ रहे थे वही बीमारी सचिन को है.

आदिवासी इलाकों में इसका असर: पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार को अपनी चपेट में लेने वाली घातक बीमारी सिकल सेल एनीमिया ने आदिवासी जिलों की सरहदों को पार कर अब जबलपुर में भी पैर पसारने शुरू कर दिए हैं. अकेले जबलपुर जिले में अब तक 63 सिकलसेल एनीमिया के केस सामने आए हैं, सरकारी रिकॉर्ड में ये केस दर्ज भी हो चुके हैं और इनका इलाज भी किया जा रहा है. स्वास्थ्य विभाग इनकी रोकथाम की कोशिशों में भी जुट गया है. सिकलसेल बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए पीएम मोदी राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन की शुरुआत कर चुके हैं और लक्ष्य रखा गया है कि 2047 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में पैर पसार चुकी सिकल सेल डिजीज को जड़ से खत्म किया जाना है. ऐसे में यह योजना स्वास्थ्य की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.