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कौन था वो फ्रांसीसी...जिसे भोपाल ने शायर बना दिया, फ्रांसीसी की ज़ुबान उर्दू का शेर...मेरे मरने की वो खबर सुनकर , बोले अच्छा हुआ ठिकाने लगे

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Published : Jun 21, 2023, 9:12 PM IST

Updated : Jun 21, 2023, 11:00 PM IST

आपने कई शायर और उनकी शायरी के बारे में सुना और पढ़ा होगा. लोग अक्सर अपनी बातों, प्यार के इजहार, वक्त और परिस्थिति को लेकर शायरी करते रहते हैं. आज हम आपको एक ऐसे शायर के बारे में बताएंगे, जो मूलत: भारत के नहीं थे. जी हां एक ऐसे फ्रांसीसी शख्स जो भारत आए और दुनिया उन्हें शायर के नाम से जानने लगी.

India first French Urdu poet
शायर ए फ्रांसीसी
फ्रांसीसी को भोपाल ने बनाया शायर

भोपाल। कौन था वो फ्रांसीसी शख्स जो भारत आया...और शायर बन गया. इन्हें आप भारत का पहला फ्रांसीसी शायर भी कह सकते हैं. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ये फ्रांसीसी भोपाल के उर्दू अदब की बदौलत शायर बने. कौन थे बालथज़र दे बोर्बन...जो भोपाल आकर हकीम शहज़ाद मसीह हो गए...और तखल्लुस लिखा फितरत...कौन से शेर कहे इस फ्रांसीसी ने...और कौन थे वो दो फ्रांसीसी जो भोपाल आकर भोपाली भी हुए और फिर जमकर की शायरी...

फ्रांसीसी कैसे बनें ‘फितरती’ शायर: भोपाल और फ्रांस का क्या है कनेक्शन. कैसे भोपाल आए फ्रांसीसी और कैसे उर्दू फारसी सीखी...कैसे शायरी का शौक हुआ. बालथज़र द बोर्बन जिन्होंने भोपाल आकर अपना नाम हकीम शहजाद मसीह रख लिया और तखल्लुस कर लिया फितरत. असल में बालथज़र अपने पिता सिलवाट बोरबन के साथ भारत और भोपाल आए थे और फिर यहीं बस गए. हकीम शहजाद मसीह के नाम से भोपाली हुए फ्रांसीसी नवाब हुजुर मोहम्मद खान के दौर ए हुकूमत में दीवान ए रियासत थे. जब 1818 में भोपाल स्टेट का एग्रीमेंट ईस्ट इंडिया कंपनी से हुआ था. इस एग्रीमेंट पर बालथज़र द बोर्बन के ही दस्तखत थे. फितरत तखल्लुस से लिखने वाले फ्रांसीसी उर्दू फारसी दोनों में शेर करते थे. उस दौर के मशहूर शायर इंशा से मुत्तासिर थे शायर शहजाद मसीह.

Balthazar de Bourbon
बालथज़र दे बोर्बन

फ्रांसीसी शायर की जुबान से निकले शेर सुनिए...

फ्रांसीसी शायर बालथज़र द बोर्बन ने जो शेर कहे हैं. अब उनमें से चुनिंदा ही उपलब्ध हैं. गौर फरमाएं.

गर्मी से इस निगाह की दिल किस तरह ना पिघले,

आईना अब होकर हैरत से बह गया था...

बहा ना इस कदर आंसू के बह जाएं सभी आलम

ना करना मुझो हम चश्मों में तू ए श्म तर झूठा

जाने भी दे मुझे जान का आहंग ना कर तू
ए हसरते दिल इतना भी अब तंग ना कर तू

फ्रांस से आए एक और शायर थामस जेम्स बेट

फ्रांस से भोपाल आने वालों में एक और नाम था थामस जेम्स बेट का. 1867 में पैदा हुए बेट ने 1894 में मुसलमान धर्म धारण किया और नाम रखा मोहम्मद सुलेमान. मोहम्मद सुलेमान अच्छे साहब नफीस तखल्लुस से लिखा करते थे. भोपाल के जहांगीराबाद इलाके में बाकायदा पूरा एक मोहल्ला इनके नाम का है. शेर सुनें...

गैर के घर फिर आने जाने लगे
देखो फिर तुम हमें सताने लगे
मेरे मरने की वो खबर सुनकर
बोले अच्छा हुआ ठिकाने लगे

क्यों भारत आए थे फ्रांसीसी: असल में फ्रांसीसी राजपरिवार के लोग फ्रांस में हुई क्रांति के बाद भारत आए थे. इनमें से कुछ मुगल दरबार में मुलाज़िम हुए. कुछ ग्वालियर गए और कई सारे भोपाल आकर यहां बस गए थे.

MP News
इतिहासकार सैय्यद खालिद गनी

यहां पढ़ें...

भारत में फ्रांसीसी शायर किसकी रिसर्च: भोपाल के इतिहासकार सैय्यद खालिद गनी भोपाल से जुड़े ऐसे ही दिलचस्प जानकारियां ईटीवी भारत के जरिए पहुंचा रहे हैं. सैय्यद खालिद गनी ने उर्दू गजल 1947 के बाद अनिसा खातून के पीएचडी वर्क के हवाले से ये जानकारी दी है. अनिसा खातून ने भोपाल में 1947 के बाद की उर्दू शायरी पर ये रिसर्च किया है.

फ्रांसीसी को भोपाल ने बनाया शायर

भोपाल। कौन था वो फ्रांसीसी शख्स जो भारत आया...और शायर बन गया. इन्हें आप भारत का पहला फ्रांसीसी शायर भी कह सकते हैं. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ये फ्रांसीसी भोपाल के उर्दू अदब की बदौलत शायर बने. कौन थे बालथज़र दे बोर्बन...जो भोपाल आकर हकीम शहज़ाद मसीह हो गए...और तखल्लुस लिखा फितरत...कौन से शेर कहे इस फ्रांसीसी ने...और कौन थे वो दो फ्रांसीसी जो भोपाल आकर भोपाली भी हुए और फिर जमकर की शायरी...

फ्रांसीसी कैसे बनें ‘फितरती’ शायर: भोपाल और फ्रांस का क्या है कनेक्शन. कैसे भोपाल आए फ्रांसीसी और कैसे उर्दू फारसी सीखी...कैसे शायरी का शौक हुआ. बालथज़र द बोर्बन जिन्होंने भोपाल आकर अपना नाम हकीम शहजाद मसीह रख लिया और तखल्लुस कर लिया फितरत. असल में बालथज़र अपने पिता सिलवाट बोरबन के साथ भारत और भोपाल आए थे और फिर यहीं बस गए. हकीम शहजाद मसीह के नाम से भोपाली हुए फ्रांसीसी नवाब हुजुर मोहम्मद खान के दौर ए हुकूमत में दीवान ए रियासत थे. जब 1818 में भोपाल स्टेट का एग्रीमेंट ईस्ट इंडिया कंपनी से हुआ था. इस एग्रीमेंट पर बालथज़र द बोर्बन के ही दस्तखत थे. फितरत तखल्लुस से लिखने वाले फ्रांसीसी उर्दू फारसी दोनों में शेर करते थे. उस दौर के मशहूर शायर इंशा से मुत्तासिर थे शायर शहजाद मसीह.

Balthazar de Bourbon
बालथज़र दे बोर्बन

फ्रांसीसी शायर की जुबान से निकले शेर सुनिए...

फ्रांसीसी शायर बालथज़र द बोर्बन ने जो शेर कहे हैं. अब उनमें से चुनिंदा ही उपलब्ध हैं. गौर फरमाएं.

गर्मी से इस निगाह की दिल किस तरह ना पिघले,

आईना अब होकर हैरत से बह गया था...

बहा ना इस कदर आंसू के बह जाएं सभी आलम

ना करना मुझो हम चश्मों में तू ए श्म तर झूठा

जाने भी दे मुझे जान का आहंग ना कर तू
ए हसरते दिल इतना भी अब तंग ना कर तू

फ्रांस से आए एक और शायर थामस जेम्स बेट

फ्रांस से भोपाल आने वालों में एक और नाम था थामस जेम्स बेट का. 1867 में पैदा हुए बेट ने 1894 में मुसलमान धर्म धारण किया और नाम रखा मोहम्मद सुलेमान. मोहम्मद सुलेमान अच्छे साहब नफीस तखल्लुस से लिखा करते थे. भोपाल के जहांगीराबाद इलाके में बाकायदा पूरा एक मोहल्ला इनके नाम का है. शेर सुनें...

गैर के घर फिर आने जाने लगे
देखो फिर तुम हमें सताने लगे
मेरे मरने की वो खबर सुनकर
बोले अच्छा हुआ ठिकाने लगे

क्यों भारत आए थे फ्रांसीसी: असल में फ्रांसीसी राजपरिवार के लोग फ्रांस में हुई क्रांति के बाद भारत आए थे. इनमें से कुछ मुगल दरबार में मुलाज़िम हुए. कुछ ग्वालियर गए और कई सारे भोपाल आकर यहां बस गए थे.

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इतिहासकार सैय्यद खालिद गनी

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भारत में फ्रांसीसी शायर किसकी रिसर्च: भोपाल के इतिहासकार सैय्यद खालिद गनी भोपाल से जुड़े ऐसे ही दिलचस्प जानकारियां ईटीवी भारत के जरिए पहुंचा रहे हैं. सैय्यद खालिद गनी ने उर्दू गजल 1947 के बाद अनिसा खातून के पीएचडी वर्क के हवाले से ये जानकारी दी है. अनिसा खातून ने भोपाल में 1947 के बाद की उर्दू शायरी पर ये रिसर्च किया है.

Last Updated : Jun 21, 2023, 11:00 PM IST
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