छिंदवाड़ा। भूत प्रेत हमेशा से ही जिज्ञासा का विषय रहा है. मानव के क्रियाकलाप अचानक बदल जाते हैं और वह ऐसी हरकत करने लगते हैं. जिसे आम व्यक्ति सोच भी नहीं सकता. इसी तरह की हरकतों को आदिवासी ग्रामीण अंचलों में भूत प्रेत का साया माना जाता है. मनुष्य के शरीर से ऐसे ही प्रेत बाधाओं को दूर करने के लिए पड़िहार और तांत्रिक पूजा पाठ करते हैं. जिसमें मुर्गी-मुर्गियों से लेकर बकरा तक की बलि दी जाती है. माना जाता है कि ऐसी पूजा करने से शरीर में व्याप्त बुरी शक्तियां खत्म हो जाती हैं. छिंदवाड़ा के आदिवासी अंचल में लगने वाले इसी तरह के एक अनोखे मेले को भूतों का मेला कहा जाता है. MP Bhoot mela
प्रेत बाधा से परेशान व्यक्तियों को ठीक करने का दावा: छिंदवाड़ा के जुन्नारदेव के तालखमरा गांव में भूतों का प्रसिद्ध मेला लगता है. इस मेले की खासियत यह है कि प्रेत बाधा से परेशान और मानसिक रुप से विक्षिप्त रोगियों का उपचार इस मेले में किया जाता है. प्रेत बाधा से से ग्रसित व्यक्ति का उपचार तांत्रिक मंत्रों की शक्ति से करते हैं. उसके बाद प्रेत बाधा से ग्रसित व्यक्ति के हाव भाव देखकर देखने वाले घबरा जाते हैं. रात के समय में रोंगटे खडे़ कर देने वाला ये नजारा तालखमरा मेले मे दिखायी देता है.
पहले तालाब में लगती है डुबकी फिर होती है तांत्रिक क्रिया: तालखमरा मेले में तांत्रिक परेशान व्यक्ति को तालाब में डुबकी लगवाई जाती है. इसके बाद वटव्रक्ष जिसे दईयत बाबा कहा जाता है, के समीप उसे ले जाकर वहां उस व्यक्ति को कच्चे धागा से बांधकर तांत्रिक पूजा की जाती है. इसके बाद पास में बने मालनमाई के मंदिर में ले जाकर पूजा अर्चना की जाती है, फिर वह व्यक्ति सामान्य हो जाता है. यह मेला सादियों पुराना है. इस मेले में दूर-दूर से आदीवासी ग्रामीणों के साथ अन्य समाज के लोग आकर अपना और अपने परिवार का उपचार करवाते हैं. यहां पर जिले के अलावा अन्य जिले व प्रदेश से परेशान परिवार आते हैं.
बलि प्रथा का है रिवाज मुर्गे और बकरे की होती है बलि: भले ही विज्ञान ने तरक्की के पुल खड़े कर दिए हों, लेकिन आज भी कुछ एसे अनसुलझे पहलु हैं, जिन्हें लोग सदियों ने मानते चले आ रहे हैं. उसी का एक उदाहरण इस भूतिया मेले में देखने को मिलता है. जिसे हम आस्था या अंधविश्वास कहते हैं. तांत्रिक के कहे अनुसार मेले में अपनी प्रेत बाधाओं को दूर करने का दावा करने वाले लोगों से बलि प्रथा का भी पालन करवाया जाता है. जिसमें मुर्गी मुर्गियों से लेकर बकरा तक की बलि दी जाती है.
घने जंगल के बीच 15 दिनों तक चलता है मेला: घने जंगलों के बीच भूतों का यह मेला 15 दिनों तक चलता है. एकादशी से शुरू होने वाले इस मेले में पारंपरिक दुकानों के साथ ही खिलौने से लेकर मुर्गी-मुर्गियां और बकरा तक लोगों को उपलब्ध करा दिए जाते हैं. जंगल का यह सुनसान इलाका इस मेले के बाद वीरान हो जाता है. हालांकि मेले को लेकर किसी तरीके की प्रशासनिक अनुमति नहीं होती है, लेकिन रिवाज के चलते सुरक्षा के लिहाज से प्रशासन और पुलिस यहां पर अपने इंतजाम जरूर करता है.
यहां पढ़ें... |
क्या कहना है मेला समिति के अध्यक्ष का: वहीं इस भूत मेले को लेकर मेला समिति के अध्यक्ष मदन ऊइके ने बताया कि 'तालखमरा का मेला भूतों के मेला के नाम से प्रसिद्ध है. जो एकादशी से 15 दिनों के लिए लगता है. यहां पर किसी को अगर बुरी बला भूत प्रेत का साया होता है, तो पढ़ीहार पूजा-अर्चना कर उस बाधा को दूर करते हैं. मालनमाई में मंदिर के पास एक तालाब है, वहीं पर ही मेला लगता है.