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आस्था या अंधविश्वास! बीमारियों से निजात पाने को शरीर में लोहे की सुई से धागे पिरोकर नाचते हैं लोग

इसे आस्था कहें या अंधविश्वास मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में आज भी लोग बीमारियों से निजात पाने के लिए मन्नतों (Betul people are following the old tradition) का सहारा लेते हैं. बैतूल में कई ऐसे गांव हैं. जहां लोग मन्नत पूरी होने पर अपने शरीर में लोहे की नुकीली सुई से धागे को पिरोकर नाचते हैं और बैल बनकर बैलगाड़ियों को खीचते हैं. (Nada Gada Parampara Betul)

nada gada
आस्था या अंधविश्वास
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Published : Apr 19, 2022, 3:19 PM IST

बैतूल : सैकड़ों साल पुरानी परंपरा आज भी निभाई जा रही है. इस परंपरा पर यकीन करना मुश्किल है. यहां लोग बीमारी दूर करने के लिए देवी से मन्नत मांगते हैं. मनोकामना पूर्ण होने पर नाड़ा-गाड़ा परंपरा निभाते हैं. इस परंपरा के तहत लोग मन्नत पूरी होने पर अपने शरीर में लोहे की नुकीली सुई से धागे पिरोकर नाचते हैं. इतना ही नहीं, बैल बनकर बैलगाड़ी खींचते हैं. यह समारोह चैत्र माह में किया जाता है. शरीर में नाड़े पिरोकर नाचने की यह परम्परा सदियों से चली आ रही है. चिकित्सक इसे सेहत के लिए घातक बताते हैं. लेकिन अंधश्रद्धा का ये अंधेरा गहराता जा रहा है. (MP betul Old Tradition)

नाड़ा-गाड़ा से देवी का आभार : यकीन ना हो तो तस्वीरें देखिए ये बैतूल के चिचोलाढाना गांव की हैं. भगत भुमका का वेश बनाए बूढ़े और बच्चे मदमस्त होकर नाच रहे हैं. जबकि, उनके शरीर में लोहे की सुई से नाड़े पिरो (old tradition for the treatment of diseases piercing the body with iron needle and thread) दिए गए हैं. इस आयोजन को नाड़ा गाड़ा (Nada Gada Parampara betul) कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि बीमारियों से निजात पाने के लिए लोग देवी से मन्नत मांगते हैं और जब मन्नत पूरी हो जाती है तो देवी का आभार जताने के लिए अपने शरीर मे नाड़े पिरोकर नाचते हैं.

बीमारियों से निजात पाने का खतरनाक तरीका

खुशी से पिरोते हैं नाड़ा: हर साल चैत्र माह में यह आयोजन होता है. मन्नत पूरी होने की खुशी में ग्रामीण खुशी से अपने शरीर में नाड़ा पिरोते हैं. सूती धागों को गूंथकर नाड़े तैयार किए जाते हैं. जिस पर मक्खन का लेप चढ़ाया जाता है. लोहे की मोटी सुई की मदद से शरीर के दोनों तरफ चमड़ी में पिरो दिया जाता है. इसके बाद इन नाड़ों को दो छोर पर लोग पकड़कर खड़े होते हैं. भगत बना शख्स नाड़ों के बीच नृत्य करता है.

शरीर में लोहे की सुई से धागे पिरोकर नाचते हैं
शरीर में लोहे की सुई से धागे पिरोकर नाचते हैं
कई गांव में होता है आयोजन : बैतूल जिले के आठनेर, मुलताई, आमला और भैंसदेही तहसील के कई गांव में यह आयोजन होता है. शरीर में नाड़े पिरोने का नज़ारा देखने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. लेकिन जिनके शरीर में नाड़ा पिरोया जाता है वह टस से मस नहीं होता. मन्नत पूरी होने पर देवी को सम्मान देना ही उनका मकसद होता है. ये लोग शरीर नाड़े पिरोने को शुभ मानते हैं.
बैल बनकर खींचते बैलगाड़ी
बैल बनकर खींचते बैलगाड़ी

इस वजह से पड़ा परंपरा का नाम: स्थानीय निवासियो के मुताबिक शरीर में नाड़े पिरोने की वजह से इस आयोजन के नाम में नाड़ा शब्द जुड़ा है, जबकि गाड़ा शब्द बैलगाड़ी का प्रतीक है. कुछ लोग शरीर में नाड़े पिरोकर मन्नत पूरी करते हैं, तो वहीं दूसरे आयोजन गाड़ा में कई बैलगाड़ियों को एक लकीर में बांध दिया जाता है. फिर इन बैलगाड़ियों को बैलों की मदद से नहीं खुद ग्रामीण बैल बनकर खींचते हैं. इस तरह से ये आयोजन नाड़ा-गाड़ा कहलाता है.

आस्था का घातक तरीका: चिकित्सकों का कहना है कि, शरीर में लोहे की सुई से नाड़े पिरोना इंफेक्शन को न्यौता देने जैसा है. स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि हर गांव तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मौजूद हैं. तब भी लोग ना जाने क्यों इस प्रपंच में फंसे हैं. बीमारियों से निजात पाने का ऐसा खतरनाक तरीका लोगों की आस्था का हिस्सा है. लेकिन ये कितना घातक हो सकता है इसका अनुमान लगाना मुश्किल है. डिजिटल भारत में इस तरह के नजारे सामने आना हैरत में डाल देते हैं. जागरूकता की कमी और कुरीतियों में बदल चुकी परम्पराएं भी बड़ी वजह हो सकती हैं.

पढ़ें- अनोखी परंपरा : यहां एक-दूसरे पर गोबर के उपले से होता है हमला

बैतूल : सैकड़ों साल पुरानी परंपरा आज भी निभाई जा रही है. इस परंपरा पर यकीन करना मुश्किल है. यहां लोग बीमारी दूर करने के लिए देवी से मन्नत मांगते हैं. मनोकामना पूर्ण होने पर नाड़ा-गाड़ा परंपरा निभाते हैं. इस परंपरा के तहत लोग मन्नत पूरी होने पर अपने शरीर में लोहे की नुकीली सुई से धागे पिरोकर नाचते हैं. इतना ही नहीं, बैल बनकर बैलगाड़ी खींचते हैं. यह समारोह चैत्र माह में किया जाता है. शरीर में नाड़े पिरोकर नाचने की यह परम्परा सदियों से चली आ रही है. चिकित्सक इसे सेहत के लिए घातक बताते हैं. लेकिन अंधश्रद्धा का ये अंधेरा गहराता जा रहा है. (MP betul Old Tradition)

नाड़ा-गाड़ा से देवी का आभार : यकीन ना हो तो तस्वीरें देखिए ये बैतूल के चिचोलाढाना गांव की हैं. भगत भुमका का वेश बनाए बूढ़े और बच्चे मदमस्त होकर नाच रहे हैं. जबकि, उनके शरीर में लोहे की सुई से नाड़े पिरो (old tradition for the treatment of diseases piercing the body with iron needle and thread) दिए गए हैं. इस आयोजन को नाड़ा गाड़ा (Nada Gada Parampara betul) कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि बीमारियों से निजात पाने के लिए लोग देवी से मन्नत मांगते हैं और जब मन्नत पूरी हो जाती है तो देवी का आभार जताने के लिए अपने शरीर मे नाड़े पिरोकर नाचते हैं.

बीमारियों से निजात पाने का खतरनाक तरीका

खुशी से पिरोते हैं नाड़ा: हर साल चैत्र माह में यह आयोजन होता है. मन्नत पूरी होने की खुशी में ग्रामीण खुशी से अपने शरीर में नाड़ा पिरोते हैं. सूती धागों को गूंथकर नाड़े तैयार किए जाते हैं. जिस पर मक्खन का लेप चढ़ाया जाता है. लोहे की मोटी सुई की मदद से शरीर के दोनों तरफ चमड़ी में पिरो दिया जाता है. इसके बाद इन नाड़ों को दो छोर पर लोग पकड़कर खड़े होते हैं. भगत बना शख्स नाड़ों के बीच नृत्य करता है.

शरीर में लोहे की सुई से धागे पिरोकर नाचते हैं
शरीर में लोहे की सुई से धागे पिरोकर नाचते हैं
कई गांव में होता है आयोजन : बैतूल जिले के आठनेर, मुलताई, आमला और भैंसदेही तहसील के कई गांव में यह आयोजन होता है. शरीर में नाड़े पिरोने का नज़ारा देखने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. लेकिन जिनके शरीर में नाड़ा पिरोया जाता है वह टस से मस नहीं होता. मन्नत पूरी होने पर देवी को सम्मान देना ही उनका मकसद होता है. ये लोग शरीर नाड़े पिरोने को शुभ मानते हैं.
बैल बनकर खींचते बैलगाड़ी
बैल बनकर खींचते बैलगाड़ी

इस वजह से पड़ा परंपरा का नाम: स्थानीय निवासियो के मुताबिक शरीर में नाड़े पिरोने की वजह से इस आयोजन के नाम में नाड़ा शब्द जुड़ा है, जबकि गाड़ा शब्द बैलगाड़ी का प्रतीक है. कुछ लोग शरीर में नाड़े पिरोकर मन्नत पूरी करते हैं, तो वहीं दूसरे आयोजन गाड़ा में कई बैलगाड़ियों को एक लकीर में बांध दिया जाता है. फिर इन बैलगाड़ियों को बैलों की मदद से नहीं खुद ग्रामीण बैल बनकर खींचते हैं. इस तरह से ये आयोजन नाड़ा-गाड़ा कहलाता है.

आस्था का घातक तरीका: चिकित्सकों का कहना है कि, शरीर में लोहे की सुई से नाड़े पिरोना इंफेक्शन को न्यौता देने जैसा है. स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि हर गांव तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मौजूद हैं. तब भी लोग ना जाने क्यों इस प्रपंच में फंसे हैं. बीमारियों से निजात पाने का ऐसा खतरनाक तरीका लोगों की आस्था का हिस्सा है. लेकिन ये कितना घातक हो सकता है इसका अनुमान लगाना मुश्किल है. डिजिटल भारत में इस तरह के नजारे सामने आना हैरत में डाल देते हैं. जागरूकता की कमी और कुरीतियों में बदल चुकी परम्पराएं भी बड़ी वजह हो सकती हैं.

पढ़ें- अनोखी परंपरा : यहां एक-दूसरे पर गोबर के उपले से होता है हमला

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