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मां की ममता...32 साल के बेटे को बचाने के लिए दी अपनी किडनी, AIIMS Rishikesh में दूसरी बार हुआ Kidney Transplant

Mother donated her kidney to her son in Rishikesh AIIMS जिंदगी के लिए जद्दोजहद कर रहे दिल्ली के 32 साल युवक की जान मां ने अपनी किडनी देकर बचाई है. Rishikesh AIIMS में दूसरा सफल किडनी ट्रांसप्लांट (kidney transplant) किया औैर 32 के युवक की जान बचाई.

Rishikesh AIIMS
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 17, 2023, 7:10 PM IST

Updated : Oct 17, 2023, 8:28 PM IST

ऋषिकेश (उत्तराखंड): जब कभी भी बच्चे की जान पर आती है तो मां बड़ी से बड़ी मुश्किल झेल जाती है. मां की ममता का ऐसा ही एक उदाहरण अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश (ऋषिकेश एम्स) से सामने आया है. अपने 32 साल के बेटे की जान बचाने के लिए मां ने अपनी किडनी डोनेट कर दी. मां की किडनी से बेटे को नया जीवन मिला है. ऋषिकेश एम्स (All Indian institute of medical sciences) में किडनी ट्रांसप्लांट का ये दूसरा मामला है.

32 साल के सचिन को मां ने दिया नया जीवन: Rishikesh AIIMS के डॉक्टरों ने बताया कि सीमा सड़क संगठन यानी Border Roads Organisation-BRO कार्यालय देहरादून में तैनात 32 साल के सचिन पिछले तीन सालों से किडनी की समस्या से परेशान हैं, जिस कारण उनका डायलिसिस चल रहा था. सचिन मूल से दिल्ली के नंगला गांव के रहने वाले हैं.
पढ़ें- वर्ल्ड ट्रामा सप्ताह: सड़क हादसे में घायल व्यक्ति की Golden Hour में करें मदद, बच जाएगी जान

सचिन को हार्ट में भी संक्रमण की शिकायत थी: डॉक्टरों ने बताया कि सचिन का हेमोडायलिसिस फेल हो चुका था. सचिन में मई साल 2022 में नेफ्रोलॉजी विभाग से संपर्क किया था और स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को अपनी बीमारी के बारे में बताया था. Rishikesh AIIMS के डॉक्टरों ने जब सचिन की जांच कराई तो सामने आया कि वो न सिर्फ किडनी की समस्या से ग्रस्त हैं, बल्कि उसके हार्ट में भी संक्रमण की शिकायत थी.

Rishikesh AIIMS
एम्स ऋषिकेश और दिल्ली के डॉक्टरों की संयुक्त टीम ने Kidney Transplant का सफल ऑपरेशन किया.

हेमोडालिसिस करने में दिक्कत आई: नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉक्टर डॉ. शेरोन कंडारी ने बताया कि सबसे पहले सचिन का करीब चार महीने तक क्षय रोग (Tuberculosis) का इलाज किया गया. इस दौरान उसका डायलिसिस भी जारी था. डॉक्टरों की मानें तो समस्या तब ज्यादा गंभीर हो गई, जब रोगी का शरीर कमजोर होने के कारण हेमोडालिसिस करने में दिक्कत आई.
पढ़ें- एम्स की एयर एम्बुलेंस साबित हो रही वरदान, इतने मरीजों की बचाई जा चुकी जान

तीन महीने तक पेरिटोनियल डायलिसिस करना पड़ा: ऐसे हालात में डॉक्टरों ने विकल्प के तौर पर अगले 3 महीनों तक रोगी को पेरिटोनियल डायलिसिस (प्रत्यक्ष रूप से पेट के निचले हिस्से में सर्जरी करके एक नली डालकर शरीर के बेकार पदार्थों को बाहर निकालने की प्रक्रिया) से गुजरना पड़ा. इसके बाद डॉक्टरों ने सचिन की किडनी ट्रांसप्लांट करने का निर्णय लिया. सचिन की मां अपने बेटे का जीवन बचाने के लिए किडनी डोनेट करने को तैयार थी. इसके बाद डॉक्टरों ने सचिन की मां की सभी जांच की. जांच के आधार पर डॉक्टरों ने किडनी ट्रांसप्लांट को हरी झंडी दी.

दिल्ली से बुलाई गई विशेष टीम: इस टीम में शामिल एम्स के यूरोलॉजिस्ट और यूरोलॉजी विभाग के हेड डॉक्टर अंकुर मित्तल ने बताया कि स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में शरीर के किसी ऑर्गन (अंग) ट्रांसप्लांट तकनीक की यह प्रक्रिया काफी जटिल होती है. मरीज के स्वास्थ्य की स्थिति सामान्य होने पर दिल्ली से आई विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम के मार्गदर्शन में 16 सितंबर को पेशेंट सचिन के शरीर में गुर्दा प्रत्यारोपित (ट्रांसप्लांट) कर दिया गया. इस प्रक्रिया में लगभग 4 घंटे का समय लगा.
पढ़ें- World Trauma Day : कई मानसिक समस्याओं का कारण बन सकता है ट्रॉमा,विश्व ट्रॉमा दिवस विशेष

पहला किडनी ट्रांसप्लांट साल 2023 अप्रैल में किया था: डॉक्टर अंकुर मित्तल ने बताया कि इससे पहले अप्रैल 2023 में एम्स ऋषिकेश में पहला किडनी ट्रांसप्लांट किया गया था. उस दौरान नैनीताल के रहने वाले 27 साल के युवक की किडनी प्रत्यारोपित की गई थी. डॉक्टर अंकुर मित्तल ने अनुसार किसी व्यक्ति के शरीर की जब दोनों किडनियां काम करना बंद कर देती हैं तो उसे किडनी ट्रांसप्लांट (kidney transplant) की आवश्यकता होती है.

संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर डॉक्टर मीनू सिंह ने गुर्दा प्रत्यारोपण करने वाले डॉक्टरों की टीम को बधाई दी और कहा कि ऋषिकेश एम्स के विशेषज्ञ चिकित्सकों के प्रयास से किडनी ट्रांसप्लांट से संबंधित प्रक्रियाएं अब रूटीन स्तर पर होने लगी हैं. चिकित्सा अधीक्षक प्रो. संजीव कुमार मित्तल ने भी ट्रांसप्लांट करने वाली टीम की प्रशंसा की है.

एम्स दिल्ली के चिकित्सकों का मिला सहयोग: ट्रांसप्लांट के लिए एम्स दिल्ली की ट्रांसप्लांट टीम के विशेषज्ञ चिकित्सकों को बतौर मार्गदर्शन के लिए बुलाया गया था. इस टीम में एम्स दिल्ली की ट्रांसप्लांट टीम के प्रो. वीरेन्द्र कुमार बंसल, प्रो. संदीप महाजन, प्रो. लोकेश कश्यप, डॉ. असुरी कृष्णा, डॉ. ओम प्रकाश प्रजापति और डॉ. साई कौस्तुभ आदि शामिल थे.

ऋषिकेश (उत्तराखंड): जब कभी भी बच्चे की जान पर आती है तो मां बड़ी से बड़ी मुश्किल झेल जाती है. मां की ममता का ऐसा ही एक उदाहरण अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश (ऋषिकेश एम्स) से सामने आया है. अपने 32 साल के बेटे की जान बचाने के लिए मां ने अपनी किडनी डोनेट कर दी. मां की किडनी से बेटे को नया जीवन मिला है. ऋषिकेश एम्स (All Indian institute of medical sciences) में किडनी ट्रांसप्लांट का ये दूसरा मामला है.

32 साल के सचिन को मां ने दिया नया जीवन: Rishikesh AIIMS के डॉक्टरों ने बताया कि सीमा सड़क संगठन यानी Border Roads Organisation-BRO कार्यालय देहरादून में तैनात 32 साल के सचिन पिछले तीन सालों से किडनी की समस्या से परेशान हैं, जिस कारण उनका डायलिसिस चल रहा था. सचिन मूल से दिल्ली के नंगला गांव के रहने वाले हैं.
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सचिन को हार्ट में भी संक्रमण की शिकायत थी: डॉक्टरों ने बताया कि सचिन का हेमोडायलिसिस फेल हो चुका था. सचिन में मई साल 2022 में नेफ्रोलॉजी विभाग से संपर्क किया था और स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को अपनी बीमारी के बारे में बताया था. Rishikesh AIIMS के डॉक्टरों ने जब सचिन की जांच कराई तो सामने आया कि वो न सिर्फ किडनी की समस्या से ग्रस्त हैं, बल्कि उसके हार्ट में भी संक्रमण की शिकायत थी.

Rishikesh AIIMS
एम्स ऋषिकेश और दिल्ली के डॉक्टरों की संयुक्त टीम ने Kidney Transplant का सफल ऑपरेशन किया.

हेमोडालिसिस करने में दिक्कत आई: नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉक्टर डॉ. शेरोन कंडारी ने बताया कि सबसे पहले सचिन का करीब चार महीने तक क्षय रोग (Tuberculosis) का इलाज किया गया. इस दौरान उसका डायलिसिस भी जारी था. डॉक्टरों की मानें तो समस्या तब ज्यादा गंभीर हो गई, जब रोगी का शरीर कमजोर होने के कारण हेमोडालिसिस करने में दिक्कत आई.
पढ़ें- एम्स की एयर एम्बुलेंस साबित हो रही वरदान, इतने मरीजों की बचाई जा चुकी जान

तीन महीने तक पेरिटोनियल डायलिसिस करना पड़ा: ऐसे हालात में डॉक्टरों ने विकल्प के तौर पर अगले 3 महीनों तक रोगी को पेरिटोनियल डायलिसिस (प्रत्यक्ष रूप से पेट के निचले हिस्से में सर्जरी करके एक नली डालकर शरीर के बेकार पदार्थों को बाहर निकालने की प्रक्रिया) से गुजरना पड़ा. इसके बाद डॉक्टरों ने सचिन की किडनी ट्रांसप्लांट करने का निर्णय लिया. सचिन की मां अपने बेटे का जीवन बचाने के लिए किडनी डोनेट करने को तैयार थी. इसके बाद डॉक्टरों ने सचिन की मां की सभी जांच की. जांच के आधार पर डॉक्टरों ने किडनी ट्रांसप्लांट को हरी झंडी दी.

दिल्ली से बुलाई गई विशेष टीम: इस टीम में शामिल एम्स के यूरोलॉजिस्ट और यूरोलॉजी विभाग के हेड डॉक्टर अंकुर मित्तल ने बताया कि स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में शरीर के किसी ऑर्गन (अंग) ट्रांसप्लांट तकनीक की यह प्रक्रिया काफी जटिल होती है. मरीज के स्वास्थ्य की स्थिति सामान्य होने पर दिल्ली से आई विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम के मार्गदर्शन में 16 सितंबर को पेशेंट सचिन के शरीर में गुर्दा प्रत्यारोपित (ट्रांसप्लांट) कर दिया गया. इस प्रक्रिया में लगभग 4 घंटे का समय लगा.
पढ़ें- World Trauma Day : कई मानसिक समस्याओं का कारण बन सकता है ट्रॉमा,विश्व ट्रॉमा दिवस विशेष

पहला किडनी ट्रांसप्लांट साल 2023 अप्रैल में किया था: डॉक्टर अंकुर मित्तल ने बताया कि इससे पहले अप्रैल 2023 में एम्स ऋषिकेश में पहला किडनी ट्रांसप्लांट किया गया था. उस दौरान नैनीताल के रहने वाले 27 साल के युवक की किडनी प्रत्यारोपित की गई थी. डॉक्टर अंकुर मित्तल ने अनुसार किसी व्यक्ति के शरीर की जब दोनों किडनियां काम करना बंद कर देती हैं तो उसे किडनी ट्रांसप्लांट (kidney transplant) की आवश्यकता होती है.

संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर डॉक्टर मीनू सिंह ने गुर्दा प्रत्यारोपण करने वाले डॉक्टरों की टीम को बधाई दी और कहा कि ऋषिकेश एम्स के विशेषज्ञ चिकित्सकों के प्रयास से किडनी ट्रांसप्लांट से संबंधित प्रक्रियाएं अब रूटीन स्तर पर होने लगी हैं. चिकित्सा अधीक्षक प्रो. संजीव कुमार मित्तल ने भी ट्रांसप्लांट करने वाली टीम की प्रशंसा की है.

एम्स दिल्ली के चिकित्सकों का मिला सहयोग: ट्रांसप्लांट के लिए एम्स दिल्ली की ट्रांसप्लांट टीम के विशेषज्ञ चिकित्सकों को बतौर मार्गदर्शन के लिए बुलाया गया था. इस टीम में एम्स दिल्ली की ट्रांसप्लांट टीम के प्रो. वीरेन्द्र कुमार बंसल, प्रो. संदीप महाजन, प्रो. लोकेश कश्यप, डॉ. असुरी कृष्णा, डॉ. ओम प्रकाश प्रजापति और डॉ. साई कौस्तुभ आदि शामिल थे.

Last Updated : Oct 17, 2023, 8:28 PM IST
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