नई दिल्ली : वित्तीय वर्ष 2020-21 में 11.19 करोड़ लोगों को रोजगार मिला था जिसके सहारे 389.23 करोड़ व्यक्ति-दिवस का सृजन हुआ.
राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की स्थिति मनरेगा के तहत रोजगार के मामले में क्या है? इसकी बात करें तो वित्तीय वर्ष 2021-22 में अबतक आंध्र प्रदेश में 71.46, अरुणाचल 0.73, असम 21.32, बिहार 31.33, छत्तीसगढ़ 39.91, गोवा 0.01, गुजरात 12.81, हरियाणा 3.29, हिमाचल प्रदेश 4.72, जम्मू कश्मीर 1.81, झारखंड 19.33, कर्नाटक 41.51, केरल 8.02, लद्दाख 0.02, मध्य प्रदेश 65.37, महाराष्ट्र 17.65, मणिपुर 0.50, मेघालय 2.01, मिजोरम 2.06, नागालैंड 2.98, ओडिशा 35.31, पंजाब 6.96, राजस्थान 52.55, सिक्किम 0.45, तमिलनाडु 54.99, तेलंगाना 42.27, त्रिपुरा 6.03, उत्तर प्रदेश 45.78, उत्तराखंड 3.34, पश्चिम बंगाल 57.08, अंडमान एवं निकोबार 0.02, लक्ष्यद्वीप 0.00, पुडुचेरी में 0.16 श्रमिकों को रोजगार मिला है.
केंद्र सरकार द्वारा इस योजना के लिए वित्तीय वर्ष 2021-22 में अब तक 41,187.06 करोड़ रुपये जारी किये जा चुके हैं. वहीं वित्तीय वर्ष 2020-21 में इस योजना के लिए 1,11,170.86 रुपये जारी किये गये थे. वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट में मनरेगा के लिए 73000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है जो वित्तीय वर्ष 2020-21 के मुकाबले 11,500 करोड़ ज्यादा है.
मनरेगा का मुख्य उद्देश ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार देना है जिससे उत्पादक संपत्ति (Productive Assets) बनाया जा सके. वित्तीय वर्ष 2021-22 में अब तक 25 लाख उत्पादक संपत्ति बनाये जा चुके हैं. मनरेगा में प्रावधान है कि कुल खर्च का 60 % उत्पादक संपत्ति बनाने में लगाये जाए जो मुख्य रूप से कृषि व उससे जुड़े गतिविधि जैसे खेत, पानी और पेड़ के विकास में लगाया जाये. ध्यान देने वाली बात है कि माैजूदा वित्तीय वर्ष 2021-22 में 73% राशि का खर्च कृषि व उससे जुड़े गतिविधि के विकास में किया गया है.
बता दें मनरेगा केंद्र सरकार की योजना है जो देश के ग्रामीण श्रमिकों को रोजगार एवं आजीविका प्रदान करती है. इस योजना का उद्देश्य 1 वित्तीय वर्ष में 100 दिन का रोजगार प्रदान करना है. यह एकमात्र ऐसी योजना है जो रोजगार की गारंटी देती है व रोजगार न मिलने की स्थिति में लाभार्थी बेरोजगारी भत्ते का दावा कर सकते हैं. यह योजना मुख्य रूप से ग्राम पंचायतों द्वारा लागू किया जाता है. इसमें कोई ठेकेदार शामिल नहीं रहता.
2006 में इस योजना की शुरुआत की गई थी. यह दुनिया की सबसे बड़ी सामाजिक कल्याण योजना है. शुरू के 10 सालों में इस योजना पर 3.14 लाख रुपये खर्च किए गए थे. कोविड-19, नोटबंदी, जीएसटी से प्रभावित लोगों को इस योजना ने रोजगार मुहैया कराने में मदद की. गौर करने वाली बात है कि इस योजना में श्रमिकों को प्राथमिक चिकित्सा प्रदान की जाती है तथा स्वच्छ पेयजल जैसी सुविधाएं भी दी जाती हैं.
इस योजना के तहत ग्रामीण इलाके का हर वो नागरिक रोजगार पा सकता है जो आर्थिक रूप से कमजोर है. इस योजना के तहत एक परिवार के सभी सदस्यों को 1 वित्तीय वर्ष में 100 दिन का रोजगार दिया जाता है. जो लोग इस योजना के तहत रोजगार पाना चाहते हैं उसके पास जॉब कार्ड होना जरूरी है. जॉब कार्ड ग्राम पंचायत सा ग्राम समिति में बनता है. मजदूरी के पैसे सीधे बैंक खाते में आते हैं.
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1 दिन की मजदूरी दर की बात करें तो यूपी में 201 रुपये, बंगाल 204 रुपये, बिहार 194 रुपये, हरियाणा 309 रुपये, गुजरात 224 रुपये, आंध्र प्रदेश 237 रुपये, असम 213 रुपये, झारखंड 194 रुपये, कर्नाटक 275, मध्य प्रदेश 190 रुपये, पंजाब 263 रुपये, राजस्थान 220 रुपये, केरल 291 रुपये, उड़ीसा में 207 रुपये हैं.