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एक से अधिक वार्ड पार्षद का होना कमजोर तबके के सशक्तिकरण को बेअसर नहीं करता : सुप्रीम कोर्ट

गुजरात में 2015 के स्थानीय निकाय चुनाव को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा कि एक वार्ड से एक से अधिक प्रतिनिधित्व होना कमजोर तबके के सशक्तिकरण को बेअसर नहीं करता है. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Feb 24, 2021, 10:36 PM IST

supreme court
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नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि किसी वार्ड से एक से अधिक प्रतिनिधित्व रहना किसी भी तरीके से कमजोर तबके के सशक्तिकरण को बेअसर नहीं करता है, बल्कि यह उन्हें और अधिक सशक्त करता है.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने गुजरात प्रांतीय नगर निगम अधिनियम, 1949 के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता भी कायम रखी, जिनके तहत एक वार्ड में पार्षदों की की संख्या बढ़ा कर चार कर दी गई है.

न्यायालय ने कहा कि राज्य विधानमंडल को एक ऐसा कानून बनाने से संविधान नहीं रोकता है, जो एक निर्वाचन क्षेत्र (वार्ड) से एक से अधिक प्रतिनिधि के चुनाव का प्रावधान करता हो.

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 243 आर और 243 एस (वार्ड समितियों के गठन एवं उनकी संरचना) इस बारे में कोई रोक नहीं लगाते हैं कि एक वार्ड से सिर्फ एक सदस्य (प्रतिनिधि) होगा.

न्यायालय ने कहा कि समाज के कमजोर तबके के लोगों को आरक्षण का लाभ मुहैया करने के विचार का उद्देश्य न सिर्फ उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना है, बल्कि उनकी काफी हद तक बेहतरी करने की कोशिश भी करना है.

पढ़ें :- लेटरल भर्ती में आरक्षण को लेकर संगठनों ने दी भारत बंद की चेतावनी

न्यायालय ने यह टिप्पणी गुजरात में 2015 के स्थानीय निकाय चुनाव को चुनौती देने वाली एक याचिका पर की है.

न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की यह दलील खारिज कर दी कि किसी वार्ड से एक से अधिक प्रतिनिधित्व होना महिला, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे कमजोर तबके सशक्तिकरण की अवधारणा को बेअसर करता है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि किसी वार्ड से एक से अधिक प्रतिनिधित्व रहना किसी भी तरीके से कमजोर तबके के सशक्तिकरण को बेअसर नहीं करता है, बल्कि यह उन्हें और अधिक सशक्त करता है.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने गुजरात प्रांतीय नगर निगम अधिनियम, 1949 के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता भी कायम रखी, जिनके तहत एक वार्ड में पार्षदों की की संख्या बढ़ा कर चार कर दी गई है.

न्यायालय ने कहा कि राज्य विधानमंडल को एक ऐसा कानून बनाने से संविधान नहीं रोकता है, जो एक निर्वाचन क्षेत्र (वार्ड) से एक से अधिक प्रतिनिधि के चुनाव का प्रावधान करता हो.

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 243 आर और 243 एस (वार्ड समितियों के गठन एवं उनकी संरचना) इस बारे में कोई रोक नहीं लगाते हैं कि एक वार्ड से सिर्फ एक सदस्य (प्रतिनिधि) होगा.

न्यायालय ने कहा कि समाज के कमजोर तबके के लोगों को आरक्षण का लाभ मुहैया करने के विचार का उद्देश्य न सिर्फ उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना है, बल्कि उनकी काफी हद तक बेहतरी करने की कोशिश भी करना है.

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न्यायालय ने यह टिप्पणी गुजरात में 2015 के स्थानीय निकाय चुनाव को चुनौती देने वाली एक याचिका पर की है.

न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की यह दलील खारिज कर दी कि किसी वार्ड से एक से अधिक प्रतिनिधित्व होना महिला, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे कमजोर तबके सशक्तिकरण की अवधारणा को बेअसर करता है.

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