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'मोरारजी देसाई ने कादर वाहिनी से समर्थन ले लिया था वापस' - Morarji Desai withdrew support

बांग्लादेश के संस्थापक दिवंगत शेख मुजीब-उर-रहमान के एक करीबी सहयोगी द्वारा हाल ही में जारी संस्मरणों पर आधारित किताब में दावा किया गया है कि 1977 में भारत के प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभालने वाले मोरारजी देसाई ने पूर्व-स्वतंत्रता सेनानियों के समूह कादर वाहिनी से समर्थन वापस ले लिया था, जो सैन्य रूप से नए शासन के खिलाफ था.

मोरारजी
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Published : Aug 15, 2021, 8:44 PM IST

कोलकाता : जाने-माने अर्थशास्त्री और बांग्लादेश के पहले योजना आयोग के सदस्य रहमान शोभन की किताब 'अनट्रैंक्विल रिकॉलेक्शन्स: नेशन बिल्डिंग इन पोस्ट-लिबरेशन बांग्लादेश' में कहा गया है कि स्वतंत्रता सेनानी कादर सिद्दीकी 46 साल पहले 15 अगस्त को तड़के मुजीब और उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों की हत्या का विरोध करने वाले एकमात्र व्यक्ति थे.

कादर ने तख्तापलट करने वाले नेताओं को चुनौती देने के लिये कादर वाहिनी का गठन किया था. किताब में लिखा है कि कादर के निचले स्तर के विद्रोह ने मुक्ति वाहिनी के स्वतंत्रता सेनानियों का इस्तेमाल करते हुए बांग्लादेश के तत्कालीन शासन के खिलाफ कई वर्षों तक विरोध जारी रखा.

साथ ही किताब में दावा किया कि यह विरोध अंततः समाप्त हो गया जब मोरारजी देसाई ने 1977 में इंदिरा गांधी की जगह प्रधानमंत्री का पदभार संभाला.

आरोप लगाया जाता है कि देसाई ने कादर वाहिनी से समर्थन वापस लेकर उसे उसके हाल पर छोड़ दिया.

इसे भी पढ़ें :बांग्लादेश ने 1975 के तख्तापलट के चार भगोड़े अधिकारियों का वीरता पुरस्कार खत्म किया

सेज पब्लिकेशंस द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक में शोभन कहते हैं कि मोरारजी के शासन ने कादर के विद्रोह से समर्थन वापस ले लिया. बांग्लादेश सेना ने पीछे से कादर के बलों पर हमला कर उसे खत्म कर दिया.

(पीटीआई-भाषा)

कोलकाता : जाने-माने अर्थशास्त्री और बांग्लादेश के पहले योजना आयोग के सदस्य रहमान शोभन की किताब 'अनट्रैंक्विल रिकॉलेक्शन्स: नेशन बिल्डिंग इन पोस्ट-लिबरेशन बांग्लादेश' में कहा गया है कि स्वतंत्रता सेनानी कादर सिद्दीकी 46 साल पहले 15 अगस्त को तड़के मुजीब और उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों की हत्या का विरोध करने वाले एकमात्र व्यक्ति थे.

कादर ने तख्तापलट करने वाले नेताओं को चुनौती देने के लिये कादर वाहिनी का गठन किया था. किताब में लिखा है कि कादर के निचले स्तर के विद्रोह ने मुक्ति वाहिनी के स्वतंत्रता सेनानियों का इस्तेमाल करते हुए बांग्लादेश के तत्कालीन शासन के खिलाफ कई वर्षों तक विरोध जारी रखा.

साथ ही किताब में दावा किया कि यह विरोध अंततः समाप्त हो गया जब मोरारजी देसाई ने 1977 में इंदिरा गांधी की जगह प्रधानमंत्री का पदभार संभाला.

आरोप लगाया जाता है कि देसाई ने कादर वाहिनी से समर्थन वापस लेकर उसे उसके हाल पर छोड़ दिया.

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सेज पब्लिकेशंस द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक में शोभन कहते हैं कि मोरारजी के शासन ने कादर के विद्रोह से समर्थन वापस ले लिया. बांग्लादेश सेना ने पीछे से कादर के बलों पर हमला कर उसे खत्म कर दिया.

(पीटीआई-भाषा)

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