ETV Bharat / bharat

कर्नाटक के शिवमोग्गा में फिर से मंकी फीवर, लोगों में डर - monkey fever Shivamogga Karnataka

शिवमोग्गा में लोग कई वर्षों से मंकी फीवर से पीड़ित हैं, जिसे क्यासानूर वन रोग (केएफडी) के नाम से जाना जाता है. इस रोग का पता पहली बार 1957 में क्यासानूर में चला था. मंकी फीवर को क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज (KFD) भी कहते हैं. यह क्यासानूर फॉरेस्ट में पहली बार मिला था इसलिए इसका नाम क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज पड़ा.

RAW
RAw
author img

By

Published : May 6, 2022, 9:15 AM IST

शिवमोग्गा: शिवमोग्गा में लोग कई वर्षों से मंकी फीवर से पीड़ित हैं, जिसे क्यासानूर वन रोग (केएफडी) के नाम से जाना जाता है. इस रोग का पता पहली बार 1957 में क्यासानूर में चला था. मंकी फीवर को क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज (KFD) भी कहते हैं. यह क्यासानूर फॉरेस्ट में पहली बार मिला था इसलिए इसका नाम क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज पड़ा. क्योंकि केएफडी से सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है. सागर तालुक अरलागोडु के रामास्वामी करमाने (55) की 3 मई को केएफडी से मृत्यु हो गई. वह ग्राम पंचायत के सदस्य थे. एक 85 वर्षीय महिला की भी पिछले महीने उत्तर कन्नड़ जिले के सिद्धपुर तालुका में केएफडी से मौत हो गई थी.

पढ़ें: कर्नाटक में मंकी फीवर का पहला मामला मिला

क्यासानूर फॉरेस्ट में अचानक बंदरों की मौत होने लगी. दो बंदरों की मौत के बाद जांच की गई तो उनमें यह बीमारी मिली इसलिए इसे मंकी फीवर भी नाम दिया गया. मंकी फीवर का पहला मामला 1957 में सामने आया था. भारत में मंकी फीवर के केसेस अधिकांश कर्नाटक, गोवा और केरल में मिले हैं. ये इलाके सबसे ज्यादा संवेदनशील माने जाते हैं. पिछले साल महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में मंकी फीवर के कुछ केस मिले थे.

पढ़ें: कर्नाटक : मुख्यमंत्री के सुरक्षा गार्डों पर ड्रग्स तस्करी के लगे आरोप

नीलगिरि और बांदीपुर नैशनल पार्क में भी कुछ मामले सामने आए थे. मंकी फीवर एक वायरस से फैलता है. यह फ्लावि वायरस होता है. इससे होने वाली बीमारी को टिक बॉर्न एन्सेफलाइटिस (टीबीई) कहते हैं. बंदरों के संपर्क में आने से यह वायरस इंसानों को भी अपनी चपेट में ले लेता है. मंकी फीवर को लेकर राहत भरी बात यह है कि यह एक इंसान से दूसरे इंसान में नहीं फैलती है. बल्क संक्रमित जानवरों का पंजा लगने या उसके संपर्क में आने से होता है. मंकी फीवर के मरीज सामान्यता दो हफ्ते के अंदर ठीक हो जाते हैं. हालांकि एक हफ्ते के बाद इसके लक्षण गंभीर भी हो जाते हैं.

शिवमोग्गा: शिवमोग्गा में लोग कई वर्षों से मंकी फीवर से पीड़ित हैं, जिसे क्यासानूर वन रोग (केएफडी) के नाम से जाना जाता है. इस रोग का पता पहली बार 1957 में क्यासानूर में चला था. मंकी फीवर को क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज (KFD) भी कहते हैं. यह क्यासानूर फॉरेस्ट में पहली बार मिला था इसलिए इसका नाम क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज पड़ा. क्योंकि केएफडी से सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है. सागर तालुक अरलागोडु के रामास्वामी करमाने (55) की 3 मई को केएफडी से मृत्यु हो गई. वह ग्राम पंचायत के सदस्य थे. एक 85 वर्षीय महिला की भी पिछले महीने उत्तर कन्नड़ जिले के सिद्धपुर तालुका में केएफडी से मौत हो गई थी.

पढ़ें: कर्नाटक में मंकी फीवर का पहला मामला मिला

क्यासानूर फॉरेस्ट में अचानक बंदरों की मौत होने लगी. दो बंदरों की मौत के बाद जांच की गई तो उनमें यह बीमारी मिली इसलिए इसे मंकी फीवर भी नाम दिया गया. मंकी फीवर का पहला मामला 1957 में सामने आया था. भारत में मंकी फीवर के केसेस अधिकांश कर्नाटक, गोवा और केरल में मिले हैं. ये इलाके सबसे ज्यादा संवेदनशील माने जाते हैं. पिछले साल महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में मंकी फीवर के कुछ केस मिले थे.

पढ़ें: कर्नाटक : मुख्यमंत्री के सुरक्षा गार्डों पर ड्रग्स तस्करी के लगे आरोप

नीलगिरि और बांदीपुर नैशनल पार्क में भी कुछ मामले सामने आए थे. मंकी फीवर एक वायरस से फैलता है. यह फ्लावि वायरस होता है. इससे होने वाली बीमारी को टिक बॉर्न एन्सेफलाइटिस (टीबीई) कहते हैं. बंदरों के संपर्क में आने से यह वायरस इंसानों को भी अपनी चपेट में ले लेता है. मंकी फीवर को लेकर राहत भरी बात यह है कि यह एक इंसान से दूसरे इंसान में नहीं फैलती है. बल्क संक्रमित जानवरों का पंजा लगने या उसके संपर्क में आने से होता है. मंकी फीवर के मरीज सामान्यता दो हफ्ते के अंदर ठीक हो जाते हैं. हालांकि एक हफ्ते के बाद इसके लक्षण गंभीर भी हो जाते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.