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220 साल पुराना अंग्रेजों का कानून बदलेगी मोदी सरकार, रक्षा भूमि नीति में व्यापक बदलाव

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Published : Jul 21, 2021, 12:48 PM IST

सरकार के विचाराधीन रक्षा भूमि सुधारों की श्रृंखला सरकार पेश करने वाली है. जिससे 220 पुराने अंग्रेजों के बनाए कानून को बदला जाएगा. दरअसल सेना के किसी भी उद्देश्य के लिए देश की रक्षा भूमि के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. लेकिन अब देशभर में खाली और बेकार पड़ी सेना की 17.95 लाख एकड़ जमीन को बेचकर सेनाओं के आधुनिक बनाने का काम किया जाएगा.

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हैदराबाद : अप्रैल 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल इन काउंसिल ने आदेश दिया था कि किसी भी छावनी में बने बंगले और क्वार्टर को किसी भी व्यक्ति द्वारा बेचने या कब्जा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी जो सेना से संबंधित है. माना जा रहा है कि अब 2021 में इसमें महत्वपूर्ण बदलाव किया जाएगा.

अब तक भारत में रक्षा भूमि के बारे में कोई सख्त नीति नहीं रही है जिसकी वजह से देश भर पड़ी सैन्य जमीनों पर बड़े पैमाने पर कब्जे हो चुके हैं. केंद्र सरकार करीब 220 साल पुराने डिफेंस लैंड पॉलिसी को बदलने जा रही है जिसके बाद सेना की जमीन का इस्तेमाल पब्लिक प्रोजेक्ट के लिए किया जा सकेगा.

रक्षा मंत्रालय के पास इस वक्त 17.95 लाख एकड़ जमीन है. जिसमें से 16.35 लाख एकड़ जमीन कुल 62 सैन्य छावनियों से बाहर है. यह ज्यादातर जमीन जीटी रोड से सटी हुई है. दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय-ब्रिटिश सेना द्वारा बनाए गए कैंपिंग ग्राउंड, पुराने डिपो, छोड़ दी गई छावनियां, मैदान व पुराने हवाई क्षेत्र हैं, जो अब उपयोग में नहीं हैं.

क्या है नया विकास

नरेंद्र मोदी सरकार ने नए नियमों को मंजूरी दी है जो सशस्त्र बलों के लिए उनसे खरीदी गई जमीन के बदले समान मूल्य के बुनियादी ढांचे (ईवीआई) के विकास की अनुमति देते हैं. नए नियम रक्षा भूमि सुधारों की श्रृंखला से पहले आते हैं जो सरकार के विचाराधीन है.

रक्षा मंत्रालय (MoD) के अधिकारियों के अनुसार प्रमुख सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए आवश्यक रक्षा भूमि जैसे मेट्रो, सड़क, रेलवे और फ्लाईओवर का निर्माण केवल समकक्ष मूल्य की भूमि के लिए या उसके बाद ही आदान-प्रदान किया जा सकता है.

नए नियमों के तहत आठ ईवीआई परियोजनाओं की पहचान की गई है, जिन्हें प्राप्त करने वाला पक्ष संबंधित सेवा के समन्वय से बुनियादी ढांचा प्रदान कर सकता है. इनमें निर्माण इकाइयां और सड़कें, अन्य परियोजनाओं के अलावा शामिल हैं. नए नियमों के अनुसार, भूमि का मूल्य स्थानीय सैन्य प्राधिकरण की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा निर्धारित किया जाएगा.

जल्द कैबिनेट के सामने होगा पेश

छावनी के बाहर की जमीन के लिए जिलाधिकारी दर तय करेंगे. वित्त मंत्रालय (MoF) ने प्रस्तावित गैर-व्यापगत आधुनिकीकरण कोष के लिए राजस्व उत्पन्न करने के लिए रक्षा भूमि के मुद्रीकरण को एकमात्र तरीका माना है. अधिकारियों के मुताबिक रक्षा आधुनिकीकरण कोष की स्थापना पर कैबिनेट नोट के मसौदे पर अभी अंतर-मंत्रालयी विचार-विमर्श चल रहा है और जल्द ही इस पर अंतिम फैसला आने की उम्मीद है.

जिसके बाद इसे मंजूरी के लिए केंद्रीय कैबिनेट के सामने रखा जाएगा. लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग (सेवानिवृत्त) कहते हैं कि चूंकि रक्षा भूमि पूरे देश में सबसे प्रमुख क्षेत्रों में हैं, वर्षों से राजनेताओं और नागरिक अधिकारियों ने मांग की है कि उनका उपयोग विकास गतिविधियों के लिए किया जाए.

अब ऐसा लगता है, यह हो रहा है. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत की अध्यक्षता में सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) ने पिछले साल सरकार को बताया था कि रक्षा भूमि मुद्रीकरण से प्राप्त आय सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शायद ही पर्याप्त होगी.

शरद पवार ने की थी पहल

1991 में तत्कालीन रक्षा मंत्री शरद पवार ने सबसे पहले छावनियों को खत्म करने का विचार रखा था. एक औपनिवेशिक अतीत के ये अवशेष ताकि अतिरिक्त भूमि का उपयोग किया जा सके. हालांकि इसके बाद हुई नाराजगी को देखते हुए उन्होंने यह कहते हुए मामले को शांत कर दिया कि छावनियों को खत्म नहीं किया जाएगा. रक्षा संपदा महानिदेशालय के अनुसार रक्षा मंत्रालय के पास लगभग 17.95 लाख एकड़ जमीन है, जिसमें से लगभग 16.35 लाख एकड़ देश में 62 छावनियों के बाहर है. यह ध्यान रहे कि इसमें हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, भारत डायनेमिक लिमिटेड, भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड गार्डन रीच वर्कशॉप कोलकाता और मझगांव डॉक्स मुंबई सहित एमओडी के तहत सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) के साथ भूमि शामिल नहीं है. विशाल सीमा सड़क संगठन, जिसने 50,000 किमी से अधिक सड़कों का निर्माण किया है.

अब तक क्या हुआ

2003-2004 के अंतरिम बजट में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री जसवंत सिंह ने 25000 करोड़ रुपये के ऐसे फंड की घोषणा की थी. जिसे MoD को उपलब्ध कराया जाएगा. हालांकि बाद के वर्षों में वित्त मंत्रालय ने फंड की स्थापना पर बार-बार आपत्ति जताई.

15वें वित्त आयोग ने अब इस फंड की फिर से सिफारिश की है, जिसने इस साल 1 फरवरी को अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक की थी. उसी महीने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि उनका मंत्रालय फंड के लिए सैद्धांतिक रूप से सहमत था.

सीतारमण ने लोकसभा को बताया कि तौर-तरीकों और ढांचे पर काम किया जाएगा. लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ (सेवानिवृत्त) जैसे अन्य लोगों का मानना ​​है कि सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिए अतिरिक्त रक्षा भूमि का मुद्रीकरण किया जा सकता है. उत्पन्न पूंजी को केवल आधुनिकीकरण के लिए एक उपयोग किया जाएगा

क्या होगा इससे फायदा

अधिकारी मानते हैं कि रक्षा भूमि का अतिक्रमण एक बड़ा मुद्दा है. 2017-2020 के बीच रक्षा भूमि पर 55 एकड़ से अधिक अतिक्रमण या अनधिकृत निर्माण का पता चला. भारत जैसे देश में जहां बढ़ती आबादी है और शहरी जीवन की मांग नागरिक योजनाकारों पर भारी पड़ती है, रक्षा क्षेत्रों को नागरिक आवासों से दूर रखने का पुराना विचार भी टूट रहा है.

एक पूर्व सेनाध्यक्ष ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हर देश के पास विशेष रक्षा भूमि है, जो नागरिक प्रशासन के दायरे से बाहर है. भारतीय सेना में एक अधिकारी का मानना ​​​​है कि नई रक्षा भूमि उपयोग योजनाएं आत्मानिर्भर (आत्मनिर्भर) भारत के विचार के अनुरूप हैं.

दरअसल, अंग्रेज सेना को नागरिक आबादी से दूर रखने के इच्छुक थे. इसलिए उनकी योजना उसी तर्ज पर आधारित थी. अब उसकी जरुरत नहीं है. रक्षा संपदा महानिदेशालय भारत में रक्षा भूमि का अंतिम मध्यस्थ है.

यह भी पढ़ें-बकरीद पर जम्मू-कश्मीर में दिखा संदिग्ध ड्रोन, सुरक्षा बल अलर्ट

लॉर्ड क्लाइव ने तत्कालीन शहरी क्षेत्रों से थोड़ा दूर, कंपनी की सेनाओं के लिए विशेष आवास स्थापित करने की नीति शुरू की. वे अंग्रेजों के बीच बातचीत को बनाए रखना चाहते थे और स्थानीय आबादी को दूर रखना चाहते थे. हालांकि मोदी सरकार अब उस नीति को बदलने जा रही है.

हैदराबाद : अप्रैल 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल इन काउंसिल ने आदेश दिया था कि किसी भी छावनी में बने बंगले और क्वार्टर को किसी भी व्यक्ति द्वारा बेचने या कब्जा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी जो सेना से संबंधित है. माना जा रहा है कि अब 2021 में इसमें महत्वपूर्ण बदलाव किया जाएगा.

अब तक भारत में रक्षा भूमि के बारे में कोई सख्त नीति नहीं रही है जिसकी वजह से देश भर पड़ी सैन्य जमीनों पर बड़े पैमाने पर कब्जे हो चुके हैं. केंद्र सरकार करीब 220 साल पुराने डिफेंस लैंड पॉलिसी को बदलने जा रही है जिसके बाद सेना की जमीन का इस्तेमाल पब्लिक प्रोजेक्ट के लिए किया जा सकेगा.

रक्षा मंत्रालय के पास इस वक्त 17.95 लाख एकड़ जमीन है. जिसमें से 16.35 लाख एकड़ जमीन कुल 62 सैन्य छावनियों से बाहर है. यह ज्यादातर जमीन जीटी रोड से सटी हुई है. दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय-ब्रिटिश सेना द्वारा बनाए गए कैंपिंग ग्राउंड, पुराने डिपो, छोड़ दी गई छावनियां, मैदान व पुराने हवाई क्षेत्र हैं, जो अब उपयोग में नहीं हैं.

क्या है नया विकास

नरेंद्र मोदी सरकार ने नए नियमों को मंजूरी दी है जो सशस्त्र बलों के लिए उनसे खरीदी गई जमीन के बदले समान मूल्य के बुनियादी ढांचे (ईवीआई) के विकास की अनुमति देते हैं. नए नियम रक्षा भूमि सुधारों की श्रृंखला से पहले आते हैं जो सरकार के विचाराधीन है.

रक्षा मंत्रालय (MoD) के अधिकारियों के अनुसार प्रमुख सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए आवश्यक रक्षा भूमि जैसे मेट्रो, सड़क, रेलवे और फ्लाईओवर का निर्माण केवल समकक्ष मूल्य की भूमि के लिए या उसके बाद ही आदान-प्रदान किया जा सकता है.

नए नियमों के तहत आठ ईवीआई परियोजनाओं की पहचान की गई है, जिन्हें प्राप्त करने वाला पक्ष संबंधित सेवा के समन्वय से बुनियादी ढांचा प्रदान कर सकता है. इनमें निर्माण इकाइयां और सड़कें, अन्य परियोजनाओं के अलावा शामिल हैं. नए नियमों के अनुसार, भूमि का मूल्य स्थानीय सैन्य प्राधिकरण की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा निर्धारित किया जाएगा.

जल्द कैबिनेट के सामने होगा पेश

छावनी के बाहर की जमीन के लिए जिलाधिकारी दर तय करेंगे. वित्त मंत्रालय (MoF) ने प्रस्तावित गैर-व्यापगत आधुनिकीकरण कोष के लिए राजस्व उत्पन्न करने के लिए रक्षा भूमि के मुद्रीकरण को एकमात्र तरीका माना है. अधिकारियों के मुताबिक रक्षा आधुनिकीकरण कोष की स्थापना पर कैबिनेट नोट के मसौदे पर अभी अंतर-मंत्रालयी विचार-विमर्श चल रहा है और जल्द ही इस पर अंतिम फैसला आने की उम्मीद है.

जिसके बाद इसे मंजूरी के लिए केंद्रीय कैबिनेट के सामने रखा जाएगा. लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग (सेवानिवृत्त) कहते हैं कि चूंकि रक्षा भूमि पूरे देश में सबसे प्रमुख क्षेत्रों में हैं, वर्षों से राजनेताओं और नागरिक अधिकारियों ने मांग की है कि उनका उपयोग विकास गतिविधियों के लिए किया जाए.

अब ऐसा लगता है, यह हो रहा है. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत की अध्यक्षता में सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) ने पिछले साल सरकार को बताया था कि रक्षा भूमि मुद्रीकरण से प्राप्त आय सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शायद ही पर्याप्त होगी.

शरद पवार ने की थी पहल

1991 में तत्कालीन रक्षा मंत्री शरद पवार ने सबसे पहले छावनियों को खत्म करने का विचार रखा था. एक औपनिवेशिक अतीत के ये अवशेष ताकि अतिरिक्त भूमि का उपयोग किया जा सके. हालांकि इसके बाद हुई नाराजगी को देखते हुए उन्होंने यह कहते हुए मामले को शांत कर दिया कि छावनियों को खत्म नहीं किया जाएगा. रक्षा संपदा महानिदेशालय के अनुसार रक्षा मंत्रालय के पास लगभग 17.95 लाख एकड़ जमीन है, जिसमें से लगभग 16.35 लाख एकड़ देश में 62 छावनियों के बाहर है. यह ध्यान रहे कि इसमें हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, भारत डायनेमिक लिमिटेड, भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड गार्डन रीच वर्कशॉप कोलकाता और मझगांव डॉक्स मुंबई सहित एमओडी के तहत सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) के साथ भूमि शामिल नहीं है. विशाल सीमा सड़क संगठन, जिसने 50,000 किमी से अधिक सड़कों का निर्माण किया है.

अब तक क्या हुआ

2003-2004 के अंतरिम बजट में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री जसवंत सिंह ने 25000 करोड़ रुपये के ऐसे फंड की घोषणा की थी. जिसे MoD को उपलब्ध कराया जाएगा. हालांकि बाद के वर्षों में वित्त मंत्रालय ने फंड की स्थापना पर बार-बार आपत्ति जताई.

15वें वित्त आयोग ने अब इस फंड की फिर से सिफारिश की है, जिसने इस साल 1 फरवरी को अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक की थी. उसी महीने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि उनका मंत्रालय फंड के लिए सैद्धांतिक रूप से सहमत था.

सीतारमण ने लोकसभा को बताया कि तौर-तरीकों और ढांचे पर काम किया जाएगा. लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ (सेवानिवृत्त) जैसे अन्य लोगों का मानना ​​है कि सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिए अतिरिक्त रक्षा भूमि का मुद्रीकरण किया जा सकता है. उत्पन्न पूंजी को केवल आधुनिकीकरण के लिए एक उपयोग किया जाएगा

क्या होगा इससे फायदा

अधिकारी मानते हैं कि रक्षा भूमि का अतिक्रमण एक बड़ा मुद्दा है. 2017-2020 के बीच रक्षा भूमि पर 55 एकड़ से अधिक अतिक्रमण या अनधिकृत निर्माण का पता चला. भारत जैसे देश में जहां बढ़ती आबादी है और शहरी जीवन की मांग नागरिक योजनाकारों पर भारी पड़ती है, रक्षा क्षेत्रों को नागरिक आवासों से दूर रखने का पुराना विचार भी टूट रहा है.

एक पूर्व सेनाध्यक्ष ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हर देश के पास विशेष रक्षा भूमि है, जो नागरिक प्रशासन के दायरे से बाहर है. भारतीय सेना में एक अधिकारी का मानना ​​​​है कि नई रक्षा भूमि उपयोग योजनाएं आत्मानिर्भर (आत्मनिर्भर) भारत के विचार के अनुरूप हैं.

दरअसल, अंग्रेज सेना को नागरिक आबादी से दूर रखने के इच्छुक थे. इसलिए उनकी योजना उसी तर्ज पर आधारित थी. अब उसकी जरुरत नहीं है. रक्षा संपदा महानिदेशालय भारत में रक्षा भूमि का अंतिम मध्यस्थ है.

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लॉर्ड क्लाइव ने तत्कालीन शहरी क्षेत्रों से थोड़ा दूर, कंपनी की सेनाओं के लिए विशेष आवास स्थापित करने की नीति शुरू की. वे अंग्रेजों के बीच बातचीत को बनाए रखना चाहते थे और स्थानीय आबादी को दूर रखना चाहते थे. हालांकि मोदी सरकार अब उस नीति को बदलने जा रही है.

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