गोरखपुर: फैक्ट्रियों से निकलने वाले गंदे व प्रदूषित पानी को साफ करने के लिए तो कई तकनीक अपनाई जा रही हैं, लेकिन मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (MMMTU) के रसायन शास्त्र विभाग के प्रोफेसर व शोधार्थियों ने मिलकर एक ऐसा माइक्रोजेल तैयार किया है, जो बेहद किफायती है. यह एक हजार लीटर गंदे पानी को मात्र 60 रुपये में साफ करेगा. खास बात यह है कि इसके लिए न तो किसी प्लांट की जरूरत है और न ही कोई विशेष उपाय करने होंगे. बताया गया कि जिस तरह से फैक्ट्रियों से गंदा पानी निकलता है, ठीक उसी सूरत में उसमें माइक्रोजेल को डालना होगा और मिनट भर में पानी स्वच्छ हो जाएगा. जिसका लाभ यह होगा कि फैक्ट्रियों से निकलकर जो गंदा पानी नदी, नालों, तालाबों और पोखरों में जाता है उसे प्रदूषित नहीं होने से बचाया जा सकेगा. साथ ही जलीय जीवों को भी इससे कोई खतरा नहीं होगा.
इस फार्मूले की खोज से पर्यावरण विज्ञान को बड़ा लाभ मिलने वाला है. जिसे मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के रसायन एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ. कृष्ण कुमार के निर्देशन में शोधार्थियों ने अंजाम दिया है. उनकी शोध टीम में बीआरडीपीजी कॉलेज देवरिया के असिस्टेंट प्रोफेसर विनय सिंह, शैलजा राय, राजकीय पॉलिटेक्निक बस्ती के प्रवक्ता तारकेश्वर भी शामिल रहे हैं. इस टीम ने करीब 2 साल के अथक परिश्रम के बाद माइक्रोजेल नामक पॉलीमर को विकसित किया है, जो पाउडर की तरह है.
इस माइक्रोजेल की खासियत: इस पर लिखा गया शोध पत्र अंतर्राष्ट्रीय जरनल 'द रॉयल सोसायटी ऑफ केमेस्ट्री लंदन' में प्रकाशित हो चुका है. शोधकर्ता कृष्ण कुमार और विनय सिंह कहते हैं कि माइक्रोजेल विषाक्त पदार्थ को हानि रहित पदार्थ में बदलने में बेहद उपयोगी है. उनके अनुसार फैक्ट्रियों के पास एक बड़ा हौज बनाया जाएगा. गंदे पानी को इसमें एकत्र करके उसमें माइक्रोजेल को एक निश्चित मात्रा में डाला जाएगा. पाउडर की तरह दिखने वाले इस माइक्रोजेल की खासियत यह है कि यह कितना भी तापमान बढ़ेगा वह पानी में खुलेगा नहीं और गंदे पानी को स्वच्छ बनाने के अपने क्रिया को आगे बढ़ाएगा. गंदे पानी में मिले विषाक्त पदार्थ को भी अलग करते हुए उसे हानि रहित पदार्थ में बदल देगा.
क्या होता है पॉलीमर: पॉलीमर एक पदार्थ है, जिनके अणु आकार में बहुत बड़े होते हैं. सरल अणुओं से मिलकर यह बने होते हैं. सेल्यूलोज, लकड़ी, रेशम, आदि प्राकृतिक पॉलीमर हैं. यह खुली अवस्था में प्रकृति में पाए जाते हैं. इन्हें पौधों व जीव धारियों से प्राप्त किया जाता है. शोधार्थियों ने जिस माइक्रोजेल पॉलीमर को तैयार किया है, उसके तहत अपने शोध को धरातल पर लाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. इसके के लिए हरदोई की एक फैक्ट्री से करार हुआ है, जहां इसकी उपयोगिता को जांचा और परखा भी गया है. जो फैक्ट्रियां बचत के लिए अपने प्लांट में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगाना चाहती हैं, उनके लिए यह शोध और तैयार पॉलीमर जेल बेहद उपयोगी होगा. जिससे पर्यावरण में उत्पन्न होने वाले खतरा को भी काफी हद तक कम किया जा सकेगा.
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