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सोशल मीडिया मंचों के दुरूपयोग से चुनावी प्रक्रिया को खतरा : उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि लोकतांत्रिक सरकार की आधारशिला चुनावी प्रक्रिया है और सोशल मीडिया के कारण होने वाले हेरफेर से उनको खतरा होता है. न्यायालय ने कहा कि डिजिटल मंच कई बार पूरी तरह अनियंत्रित होते हैं और उनकी अपनी चुनौतियां होती हैं.

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Published : Jul 8, 2021, 10:25 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि डिजिटल युग में सूचना विस्फोट नई चुनौतियां पैदा करने में सक्षम है जो ऐसे मुद्दों पर बहस को अलग दिशा दे देता है जहां विचार पूरी तरह बंटे हुए होते हैं. उदारवादी लोकतंत्र के सफलतापूर्वक काम करने के लिए आवश्यक है कि नागरिक सूचनाओं के आधार पर निर्णय कर सकें.

न्यायमूर्ति एसके कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इन सोशल मीडिया की क्षमता काफी ज्यादा है जो सीमाओं से परे है और ये बहुराष्ट्रीय कॉरपोरेट हैं जिनके पास काफी संपत्ति होती है. वे प्रभाव डालने में सक्षम होते हैं. पीठ ने कहा कि इन मंचों का प्रभाव सीमा पार की आबादी तक होता है. फेसबुक ऐसा ही एक मंच है.

पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हृषिकेश राय भी शामिल थे. शीर्ष अदालत ने 188 पन्नों के अपने फैसले में यह टिप्पणी की. अदालत ने फेसबुक इंडिया के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अजित मोहन एवं अन्य की तरफ से दायर याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की.

इसने कहा कि प्रौद्योगिकी युग ने डिजिटल मंच पेश किया है. रेलवे प्लेटफॉर्म की तरह नहीं जहां रेलगाड़ियों के आने-जाने को नियंत्रित किया जाता है. कई बार ये डिजिटल मंच अनियंत्रित हो जाते हैं और उनकी अपनी चुनौतियां होती हैं. इसने कहा कि भारत में फेसबुक सबसे लोकप्रिय सोशल मीडिया मंच है जहां इसके करीब 27 करोड़ पंजीकृत उपयोगकर्ता हैं. इसने कहा कि इस तरह की अत्यधिक शक्तियों के साथ जिम्मेदारी आवश्यक है.

यह भी पढ़ें-आईटी नियमों के उल्लंघन पर सरकार ट्विटर पर कार्रवाई के लिए स्वतंत्र : हाईकोर्ट

शीर्ष अदालत ने कहा कि पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक देश इसके दुष्प्रभावों का सामना कर रहे हैं और वे चिंतित हैं. पीठ ने कहा कि दिल्ली विधानसभा और इसकी समितियों के पास विशेषाधिकार है कि इन मंचों के सदस्यों एवं बाहरी लोगों को पेश होने के लिए बुलाए.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि डिजिटल युग में सूचना विस्फोट नई चुनौतियां पैदा करने में सक्षम है जो ऐसे मुद्दों पर बहस को अलग दिशा दे देता है जहां विचार पूरी तरह बंटे हुए होते हैं. उदारवादी लोकतंत्र के सफलतापूर्वक काम करने के लिए आवश्यक है कि नागरिक सूचनाओं के आधार पर निर्णय कर सकें.

न्यायमूर्ति एसके कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इन सोशल मीडिया की क्षमता काफी ज्यादा है जो सीमाओं से परे है और ये बहुराष्ट्रीय कॉरपोरेट हैं जिनके पास काफी संपत्ति होती है. वे प्रभाव डालने में सक्षम होते हैं. पीठ ने कहा कि इन मंचों का प्रभाव सीमा पार की आबादी तक होता है. फेसबुक ऐसा ही एक मंच है.

पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हृषिकेश राय भी शामिल थे. शीर्ष अदालत ने 188 पन्नों के अपने फैसले में यह टिप्पणी की. अदालत ने फेसबुक इंडिया के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अजित मोहन एवं अन्य की तरफ से दायर याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की.

इसने कहा कि प्रौद्योगिकी युग ने डिजिटल मंच पेश किया है. रेलवे प्लेटफॉर्म की तरह नहीं जहां रेलगाड़ियों के आने-जाने को नियंत्रित किया जाता है. कई बार ये डिजिटल मंच अनियंत्रित हो जाते हैं और उनकी अपनी चुनौतियां होती हैं. इसने कहा कि भारत में फेसबुक सबसे लोकप्रिय सोशल मीडिया मंच है जहां इसके करीब 27 करोड़ पंजीकृत उपयोगकर्ता हैं. इसने कहा कि इस तरह की अत्यधिक शक्तियों के साथ जिम्मेदारी आवश्यक है.

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शीर्ष अदालत ने कहा कि पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक देश इसके दुष्प्रभावों का सामना कर रहे हैं और वे चिंतित हैं. पीठ ने कहा कि दिल्ली विधानसभा और इसकी समितियों के पास विशेषाधिकार है कि इन मंचों के सदस्यों एवं बाहरी लोगों को पेश होने के लिए बुलाए.

(पीटीआई-भाषा)

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