इंदौर। भाजपा के एक कार्यक्रम का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है. इसमें भाजपा के प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव (Muralidhar Rao statement) मंच से यह कहते नजर आ रहे हैं कि, सिंधिया समर्थक दोनों मंत्री विभीषण हैं. जो अब इस परंपरा से निकलकर भाजपा में शामिल हो गए हैं.(Mission MP 2023 Saal Chunavi Hai) इसके अलावा कांग्रेस में रहे अन्य विभीषण भी भाजपा में शामिल हो गए हैं. वीडियो में दिख रहा है कि, मंच पर राज्य सरकार के दोनों मंत्री भी मौजूद हैं. जो मुरलीधर राव के बयान पर खुद को राम का सेवक बताते नजर आ रहे हैं.
स्वाभिमान पर टिप्पणी: इस वीडियो को वायरल होते ही कांग्रेस ने भाजपा को गिरते हुए दोनों मंत्रियों को विभीषण कहने पर स्वाभिमान को लेकर टिप्पणी की थी. जिसमें कांग्रेस के प्रदेश मीडिया प्रभारी केके मिश्रा ने ट्वीट भी किया था. इसके जवाब में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा कि, विभीषण राम के सेवक थे. इस तरह की संज्ञा अनुचित नहीं है. यदि कांग्रेस कोई आरोप लगा रही है तो उसे आत्ममंथन करना चाहिए.
विभीषण शब्दसंयोग या भविष्य में पुनरावृति का संकेत: स्वामी भक्ति और अपने जिन अग्रज की कृपा से दशकों संघर्ष के बाद फर्श से उठकर अर्श तक पहुंचे, राजनीति में उनके प्रति वफादार रहते हुए उनके आदेश पर कुछ भी कर गुजर जाने से बढ़कर कोई आत्म सम्मान या पद नहीं है. इसी मूल मंत्र को एक बार फिर चरितार्थ कर गए सिंधिया समर्थक महेंद्र सिंह सिसोदिया और प्रद्युम्न सिंह तोमर, जो अपनी ही पार्टी के प्रभारी महासचिव द्वारा सार्वजनिक रूप से विभीषण कहे जाने के शब्द बाण को हंसी ठिठोली और संभावित सहानुभूति की ढाल से झेल गए. हालांकि मुरलीधर राव का यह बयान सिंधिया खेमे के खिलाफ जारी रहने वाले कांग्रेसी हमले का सटीक हथियार भी बना.
अपनों की परवाह नहीं: यह पहला मौका नहीं है, जब महाराज के कांग्रेस छोड़ने के बाद भाजपा में खुद महाराज एवं उनके समर्थकों को ऐसी असहज स्थिति का सामना ना करना पड़ा हो, लेकिन सरकार बनाए रखने के लिए खुद भाजपा ने बीते कुछ सालों में अपनों की कभी परवाह नहीं की. इधर यह बात भी काबिले गौर है कि, अपने महाराज के फैसले के मुताबिक सिंधिया समर्थकों ने भी भाजपा और सरकार में रहते नई पार्टी में घुल मिल जाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. दोनों पार्टियों का स्वभाव और कार्यकर्ताओं का डीएनए अलग-अलग होने के फलस्वरूप भाजपा में आज भी असंतुष्ट पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की एक जमात ऐसी है. जो सिंधिया समर्थक मंत्रियों और कार्यकर्ताओं के प्रति स्वभावगत उपेक्षा का एक अलग नजरिया रखती है. संभवत यही नजरिया पहली बार पार्टी के प्रभारी महामंत्री के शब्दों से उजागर हुआ है.
मौन रहकर जवाब देने की कला: जाहिर है सार्वजनिक तौर पर इस शब्द बाण की कोई प्रतिक्रिया ना हो लेकिन मौन रहकर भी हजार जवाब देने की शैली के फलस्वरुप यह मामला शांत हो गया.हालांकि यह शब्दबाण महाराज समर्थकों के जरिए खुद महाराज की भाजपा के प्रति निष्ठा पर दूरगामी घाव जरूर छोड़ सकता है. हालांकि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में सिंधिया के सहारे से बनी शिवराज सरकार अपना कार्यकाल पूर्ण करने जा रही है. खुद सिंधिया समेत उनके समर्थकों की प्राथमिकता और मजबूरी भाजपा के साथ हर स्थिति में सामंजस्य बनाकर चलने की भी है.
कैसे संतुष्ट होंगे महराज के समर्थक: इधर दूसरी तरफ सिंधिया के प्रभाव वाले ग्वालियर चंबल अंचल के बदले हालातों में 2023 के चुनाव के लिहाज से सभी सिंधिया समर्थकों को संतुष्ट कर पाना भाजपा के लिए भी आसान नहीं है. यहां सिंधिया के समानांतर 2024 के लिए नरेंद्र सिंह तोमर और अगले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर नरोत्तम मिश्रा अपनी चुनावी रणनीति तैयार कर रहे हैं. इन हालातोंं में सिंधिया समर्थक प्रद्दुम्न सिंह तोमर, ओपीएस भदौरिया, महेंद्र सिंह सिसोदिया जैसे मंत्री शिवराज सरकार में अपने परफॉर्मेंस और संगठन के हिसाब से 2023 में टिकट के लिए फिट बैठे ऐसा जरूरी नहीं है.
स्थानीय नेताओं की किरकिरी: इसी स्थिति में गिरिराज दंडोतिया, रघुराज कंसाना, इमरती देवी, कमलेश जाटव जैसे पूर्व और वर्तमान विधायक हैं. जो आज भी स्थानीय भाजपा नेताओं के लिए कहीं ना कहीं किरकिरी बने हुए हैं. ग्वालियर चंबल के अलावा सागर में सिंधिया के करीबी गोविंद सिंह राजपूत का विरोध नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह के रिश्तेदार बाहरी प्रत्याशी बताकर अभी से कर रहे हैं.
परफॉर्मेंस पर सवाल: कमोबेश यही स्थिति सिंधिया खेमे के अन्य जिलों के मंत्रियों की उनके अपने विधानसभा क्षेत्रों में हैं. जिनके परफॉर्मेंस को लेकर एक तरफ जहां शिवराज सरकार के बीच भी लगातार सवाल उठते रहे हैं. स्थानीय स्तर पर लगभग सभी भाजपा संगठन से जुड़ेे पुराने कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के निशाने पर हैं. इन हालातों में यदि इन्हें टिकट मिलना मुश्किल हुआ तो कोई आश्चर्यजनक नहींं होगा.
विभीषण जैसा शब्दबाण: इस बार कांग्रेस के संदर्भ में नहीं बल्कि टिकट से वंचित दावेदारों के जरिए भाजपा के संदर्भ में चरितार्थ हो जाए. जाहिर है, जिन्हें टिकट नहीं मिलेगा उनका असंतोष भितरघात की वजह बन सकता है.फिर से टिकट मिलने पर सिंधिया समर्थकों को भी इसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है. लिहाजा चुनावी वर्ष में भाजपा के प्रभारी महामंत्री के मुख से निकला यह शब्द महज संयोग नहीं बल्कि आगामी राजनीतिक परिदृश्य का संकेत एवंं विभीषणवादी फैसले की पुनरावृति के निहितार्थ भी माना जा सकता है.