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मेट्रो रेल के विकास पर 'द इकोनॉमिस्ट' को मंत्रालय जवाब, कहा- रिपोर्ट में 'तथ्यात्मक अशुद्धियां'

Growth Of Metro Rail In India : आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने किया ‘द इकोनॉमिस्ट’ के लेख का खंडन किया है. 'द इकोनॉमिस्ट' ने अपने लेख में भारत में मेट्रो रेल के विकास पर सवाल उठाये थे. मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि 'द इकोनॉमिस्ट' रिपोर्ट में तथ्यात्मक अशुद्धियां हैं. इसके साथ ही आवश्यक संदर्भ भी अनुपस्थित हैं.

Growth Of Metro Rail In India
दिल्ली मेट्रो में सफर करते आवास एवं शहरी कार्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी. (तस्वीर : एक्स/@HardeepSPuri)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 6, 2024, 2:20 PM IST

नई दिल्ली: आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने ‘द इकोनॉमिस्ट’ में 23 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित एक रिपोर्ट का खंडन किया है. मंत्रालय की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि 'द इकोनॉमिस्ट' ने साल के अंतिम 'क्रिसमस डबल' शीर्षक वाले अंक में भारत की मेट्रो रेल प्रणालियों के बारे में एक लेख में इस तथ्य की गलत व्याख्या की है.

'द इकोनॉमिस्ट' ने अपने लेख में लिखा है कि भारत की विशाल मेट्रो व्यवस्था पर्याप्त संख्या में यात्रियों को आकर्षित करने में विफल हो रही है. मंत्रालय ने इस रिपोर्ट का खंडन करते हुए कहा कि लेख में तथ्यात्मक अशुद्धियां होने के साथ-साथ वैसे आवश्यक संदर्भ भी अनुपस्थित हैं.

मंत्रालय की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि 'द इकोनॉमिस्ट' के लेख का केंद्रीय बिंदु यह है कि भारत की किसी भी मेट्रो रेल प्रणाली ने अपनी अनुमानित यात्री संख्या का आधा हिस्सा भी हासिल नहीं कर पाई है. लेकिन ऐसा बताते हुए, इस तथ्य की अनदेखी कर दी गई है कि भारत के वर्तमान मेट्रो रेल नेटवर्क के तीन-चौथाई से अधिक हिस्से की कल्पना और उसका निर्माण एवं संचालन दस साल से भी कम समय पहले शुरू किया गया है.

मंत्रालय ने कहा कि कई मेट्रो रेल प्रणालियां तो महज कुछ ही वर्ष पुरानी हैं. फिर भी, देश की सभी मेट्रो प्रणालियों में दैनिक यात्रियों की संख्या पहले ही 10 मिलियन का आंकड़ा पार कर चुकी है. अगले एक या दो वर्षों में इसके 12.5 मिलियन से अधिक हो जाने की आशा है.

मंत्रालय ने कहा है कि भारत में मेट्रो यात्रियों की संख्या में भारी वृद्धि देखी जा रही है. जैसे-जैसे हमारी मेट्रो प्रणाली विकसित होगी, यह संख्या बढ़ती जायेगी. यह भी गौर दिया जाना चाहिए कि देश की लगभग सभी मेट्रो रेल प्रणालियां वर्तमान में परिचालन लाभ अर्जित कर रही हैं. दिल्ली मेट्रो जैसी एक परिपक्व मेट्रो प्रणाली में दैनिक यात्रियों की संख्या पहले ही सात मिलियन से अधिक हो गई है. यह आंकड़ा 2023 के अंत तक दिल्ली मेट्रो के लिए अनुमानित संख्या से कहीं अधिक है.

मंत्रालय ने कहा है कि वास्तव में, विश्लेषणों से यह पता चलता है कि दिल्ली मेट्रो से शहर के भीड़भाड़ वाले गलियारों पर दबाव कम करने में मदद मिली है. भीड़भाड़ के इस दबाव से अकेले सार्वजनिक बस प्रणालियों के सहारे नहीं निपटा जा सकता था. इस तथ्य को शहर के कुछ गलियारों में परखा जा सकता है जहां डीएमआरसी बहुत अधिक भीड़भाड़ वाले घंटों (पीक-आवर) और भीड़भाड़ वाली दिशा (पीक-डायरेक्शन) में यातायात के क्रम में 50,000 से अधिक लोगों को सेवा प्रदान करता है.

अकेले सार्वजनिक बसों के माध्यम से इतनी अधिक यातायात संबंधी मांग को पूरा करने हेतु, उन गलियारों में एक घंटे के भीतर 715 बसों को एक ही दिशा में यात्रा करने की आवश्यकता होगी यानी प्रत्येक बस के बीच लगभग पांच सेकंड की दूरी - एक असंभव परिदृश्य! दिल्ली मेट्रो के बिना दिल्ली में सड़क यातायात की स्थिति की कल्पना करना डरावना-सा है.

मंत्रालय ने कहा कि भारत जैसे विविधता भरे देश में, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली का हर माध्यम महत्वपूर्ण है, पृथक रूप से भी और यात्रियों के लिए एक एकीकृत पेशकश के रूप में भी. भारत सरकार आरामदायक, भरोसेमंद और ऊर्जा में मामले में किफायती आवागमन की ऐसी सुविधा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है जो टिकाऊ तरीके से दीर्घकालिक अवधि के लिए परिवहन संबंधी विविध विकल्पों का संयोजन प्रदान करेगी. सरकार ने हाल ही में बस परिवहन प्रणालियों को बढ़ावा देने हेतु पीएम ई-बस सेवा योजना शुरू की है, जिसमें 500,000 से चार मिलियन के बीच की आबादी वाले शहरों में 10,000 ई-बसें तैनात की जायेंगी.

मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि चार मिलियन से अधिक आबादी वाले शहरों के लिए बस परिवहन से जुड़े उपाय पहले से ही सरकार की ‘फेम’ योजना में शामिल हैं. ई-बसें और मेट्रो प्रणालियां जहां विद्युत चालित हैं, वहीं विशिष्ट ऊर्जा की खपत एवं दक्षता की दृष्टि से मेट्रो प्रणालियां काफी आगे हैं. हमारे शहरों के निरंतर विस्तार और व्यापक प्रथम-मील एवं अंतिम-मील कनेक्टिविटी का लक्ष्य हासिल करने के साथ, भारत की मेट्रो प्रणालियों में यात्रियों की संख्या में वृद्धि होगी.

इस लेख में यह भी कहा गया है कि छोटी यात्राएं करने वाले यात्री परिवहन के अन्य साधनों का उपयोग करना पसंद करते हैं. इससे यह संकेत मिलता है कि 'महंगे परिवहन वाला बुनियादी ढांचा' समाज के सभी वर्गों की सेवा नहीं कर रहा है. इस कथन में फिर से संदर्भ का अभाव है क्योंकि यह इस तथ्य की व्याख्या कर पाने में विफल है कि भारतीय शहरों का विस्तार हो रहा है. 20 साल से अधिक पुरानी डीएमआरसी मेट्रो प्रणाली की औसत यात्रा लंबाई 18 किलोमीटर की है.

भारत की मेट्रो प्रणालियां, जिनमें से अधिकांश पांच या दस वर्ष से कम पुरानी हैं, अगले 100 वर्षों के लिए भारत के शहरी क्षेत्रों की यातायात संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने की दृष्टि से योजनाबद्ध और संचालित की गई हैं. साक्ष्य पहले से ही इस तथ्य की पुष्टि कर चुके हैं कि ऐसा बदलाव हो रहा है - मेट्रो रेल प्रणाली महिलाओं और शहरी युवा वर्ग के लिए यात्रा का सबसे पसंदीदा साधन है.

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नई दिल्ली: आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने ‘द इकोनॉमिस्ट’ में 23 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित एक रिपोर्ट का खंडन किया है. मंत्रालय की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि 'द इकोनॉमिस्ट' ने साल के अंतिम 'क्रिसमस डबल' शीर्षक वाले अंक में भारत की मेट्रो रेल प्रणालियों के बारे में एक लेख में इस तथ्य की गलत व्याख्या की है.

'द इकोनॉमिस्ट' ने अपने लेख में लिखा है कि भारत की विशाल मेट्रो व्यवस्था पर्याप्त संख्या में यात्रियों को आकर्षित करने में विफल हो रही है. मंत्रालय ने इस रिपोर्ट का खंडन करते हुए कहा कि लेख में तथ्यात्मक अशुद्धियां होने के साथ-साथ वैसे आवश्यक संदर्भ भी अनुपस्थित हैं.

मंत्रालय की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि 'द इकोनॉमिस्ट' के लेख का केंद्रीय बिंदु यह है कि भारत की किसी भी मेट्रो रेल प्रणाली ने अपनी अनुमानित यात्री संख्या का आधा हिस्सा भी हासिल नहीं कर पाई है. लेकिन ऐसा बताते हुए, इस तथ्य की अनदेखी कर दी गई है कि भारत के वर्तमान मेट्रो रेल नेटवर्क के तीन-चौथाई से अधिक हिस्से की कल्पना और उसका निर्माण एवं संचालन दस साल से भी कम समय पहले शुरू किया गया है.

मंत्रालय ने कहा कि कई मेट्रो रेल प्रणालियां तो महज कुछ ही वर्ष पुरानी हैं. फिर भी, देश की सभी मेट्रो प्रणालियों में दैनिक यात्रियों की संख्या पहले ही 10 मिलियन का आंकड़ा पार कर चुकी है. अगले एक या दो वर्षों में इसके 12.5 मिलियन से अधिक हो जाने की आशा है.

मंत्रालय ने कहा है कि भारत में मेट्रो यात्रियों की संख्या में भारी वृद्धि देखी जा रही है. जैसे-जैसे हमारी मेट्रो प्रणाली विकसित होगी, यह संख्या बढ़ती जायेगी. यह भी गौर दिया जाना चाहिए कि देश की लगभग सभी मेट्रो रेल प्रणालियां वर्तमान में परिचालन लाभ अर्जित कर रही हैं. दिल्ली मेट्रो जैसी एक परिपक्व मेट्रो प्रणाली में दैनिक यात्रियों की संख्या पहले ही सात मिलियन से अधिक हो गई है. यह आंकड़ा 2023 के अंत तक दिल्ली मेट्रो के लिए अनुमानित संख्या से कहीं अधिक है.

मंत्रालय ने कहा है कि वास्तव में, विश्लेषणों से यह पता चलता है कि दिल्ली मेट्रो से शहर के भीड़भाड़ वाले गलियारों पर दबाव कम करने में मदद मिली है. भीड़भाड़ के इस दबाव से अकेले सार्वजनिक बस प्रणालियों के सहारे नहीं निपटा जा सकता था. इस तथ्य को शहर के कुछ गलियारों में परखा जा सकता है जहां डीएमआरसी बहुत अधिक भीड़भाड़ वाले घंटों (पीक-आवर) और भीड़भाड़ वाली दिशा (पीक-डायरेक्शन) में यातायात के क्रम में 50,000 से अधिक लोगों को सेवा प्रदान करता है.

अकेले सार्वजनिक बसों के माध्यम से इतनी अधिक यातायात संबंधी मांग को पूरा करने हेतु, उन गलियारों में एक घंटे के भीतर 715 बसों को एक ही दिशा में यात्रा करने की आवश्यकता होगी यानी प्रत्येक बस के बीच लगभग पांच सेकंड की दूरी - एक असंभव परिदृश्य! दिल्ली मेट्रो के बिना दिल्ली में सड़क यातायात की स्थिति की कल्पना करना डरावना-सा है.

मंत्रालय ने कहा कि भारत जैसे विविधता भरे देश में, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली का हर माध्यम महत्वपूर्ण है, पृथक रूप से भी और यात्रियों के लिए एक एकीकृत पेशकश के रूप में भी. भारत सरकार आरामदायक, भरोसेमंद और ऊर्जा में मामले में किफायती आवागमन की ऐसी सुविधा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है जो टिकाऊ तरीके से दीर्घकालिक अवधि के लिए परिवहन संबंधी विविध विकल्पों का संयोजन प्रदान करेगी. सरकार ने हाल ही में बस परिवहन प्रणालियों को बढ़ावा देने हेतु पीएम ई-बस सेवा योजना शुरू की है, जिसमें 500,000 से चार मिलियन के बीच की आबादी वाले शहरों में 10,000 ई-बसें तैनात की जायेंगी.

मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि चार मिलियन से अधिक आबादी वाले शहरों के लिए बस परिवहन से जुड़े उपाय पहले से ही सरकार की ‘फेम’ योजना में शामिल हैं. ई-बसें और मेट्रो प्रणालियां जहां विद्युत चालित हैं, वहीं विशिष्ट ऊर्जा की खपत एवं दक्षता की दृष्टि से मेट्रो प्रणालियां काफी आगे हैं. हमारे शहरों के निरंतर विस्तार और व्यापक प्रथम-मील एवं अंतिम-मील कनेक्टिविटी का लक्ष्य हासिल करने के साथ, भारत की मेट्रो प्रणालियों में यात्रियों की संख्या में वृद्धि होगी.

इस लेख में यह भी कहा गया है कि छोटी यात्राएं करने वाले यात्री परिवहन के अन्य साधनों का उपयोग करना पसंद करते हैं. इससे यह संकेत मिलता है कि 'महंगे परिवहन वाला बुनियादी ढांचा' समाज के सभी वर्गों की सेवा नहीं कर रहा है. इस कथन में फिर से संदर्भ का अभाव है क्योंकि यह इस तथ्य की व्याख्या कर पाने में विफल है कि भारतीय शहरों का विस्तार हो रहा है. 20 साल से अधिक पुरानी डीएमआरसी मेट्रो प्रणाली की औसत यात्रा लंबाई 18 किलोमीटर की है.

भारत की मेट्रो प्रणालियां, जिनमें से अधिकांश पांच या दस वर्ष से कम पुरानी हैं, अगले 100 वर्षों के लिए भारत के शहरी क्षेत्रों की यातायात संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने की दृष्टि से योजनाबद्ध और संचालित की गई हैं. साक्ष्य पहले से ही इस तथ्य की पुष्टि कर चुके हैं कि ऐसा बदलाव हो रहा है - मेट्रो रेल प्रणाली महिलाओं और शहरी युवा वर्ग के लिए यात्रा का सबसे पसंदीदा साधन है.

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