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भारत की सैन्य कूटनीति से शीर्ष नगा विद्रोहियों ने की घर वापसी - शीर्ष नगा विद्रोहियों ने की घर वापसी

भारतीय सेना अब कूटनीतिक जिम्मेदारियों को भी निभा रही है. यही कारण है कि नगा भूमिगत नेताओं की घर वापसी हो रही है. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की इस रिपोर्ट में जानें भारतीय सेना प्रमुख के दौरों का रहस्य.

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सेना प्रमुख
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Published : Dec 28, 2020, 10:37 PM IST

नई दिल्ली : नेहरूवादी युग में सेना को सख्ती से एक सीमा के भीतर काम करना होता था मगर अब भारतीय सेना कूटनीतिक जिम्मेदारियां भी निभाने लगी है. 31 दिसंबर 2019 को कार्यभार संभालने के बाद भारतीय सेना प्रमुख के रूप में जनरल मनोज मुकुंद नरवणे अब तक आधिकारिक तौर पर म्यांमार, नेपाल, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब का दौरा कर चुके हैं. आज से वह दक्षिण कोरिया की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं.

भारतीय सेना को काफी सफलता मिली

अगर बात सिर्फ नगा मुद्दे पर करें तो भारतीय सेना को अब तक काफी सफलता मिली है. नगा भूमिगत नेताओं में निकी सूमी की 19 दिसंबर को नगा हिल्स में वापसी और 25 दिसंबर को 54 से अधिक छापामार समर्थकों के साथ स्टारसन लामकांग की वापसी भारतीय सेना के कूटनीतिक प्रयासों की एक बड़ी सफलता है. म्यांमार सेना के साथ समन्वय कर भारतीय सेना ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के विद्रोही समूहों पर काफी हद तक लगाम लगा दी है. भारत-म्यांमार सैन्य सामरिक सहयोग का एक स्पष्ट परिणाम फरवरी 2019 में दिखा था. म्यांमार की सेना के साथ मिलकर भारतीय सेना ने तगा में विभिन्न पूर्वोत्तर भारतीय विद्रोही समूहों के एकीकृत मुख्यालय पर हमला किया था.

हथियारों के उपहार से म्यांमार ने की सख्ती

नागालैंड के कोहिमा में असम राइफल्स को इंस्पेक्टर जनरल (उत्तर) के रूप में कमान संभालने के कारण म्यांमार से जुड़ी सीमा के बारे में जनरल नरवणे की पूर्वोत्तर में उग्रवाद की स्थिति के बारे में काफी अच्छी समझ है. 4 अक्टूबर 2020 को म्यांमार की आधिकारिक यात्रा पर जनरल नरवणे गए तो यह आश्चर्य की बात नहीं थी. आश्चर्य की बात यह थी कि विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला साथ थे. इससे सेना के राजनयिक विश्वास को बढ़ाया गया. एक आधिकारिक सूत्र ने ईटीवी भारत को बताया कि टाटमाडा में अक्टूबर 2020 में विशेष रूप से निकी सुमी समूह को लक्षित करते हुए सैन्य अभियान चलाया गया था. इस समूह ने नागालैंड के फेक जिले में अपना कैंप बना लिया था. हथियारों और गोला-बारूद के उपहार ने म्यांमार को नगा विद्रोहियों पर सख्त होने के लिए मजबूर कर दिया. सुमी और स्टारसन क्रमशः नागालैंड और मणिपुर में सेमा और लामकांग नगा जनजातियों से एनएससीएन (खापलांग) गुट में नेता थे. इससे पहले 27 सितंबर को एक और एनएससीएन (के) नेता न्यामलांग कोन्याक भी सरकार के साथ चल रही वार्ता प्रक्रिया में शामिल हुए थे.

वांछित रहे नेताओं सरकार ले सकती है बड़ा फैसला

वापसी करने वाले नगा नेताओं पर एनआईए ने कई मामले दर्ज किए हुए हैं. यह संभावना है कि सरकार परिस्थितियों के कारण इन नेताओं के साथ विचारशील व्यवहार करे. इन प्रमुख नेताओं के आने से शांति प्रक्रिया मजबूत हुई है और एक सौहार्दपूर्ण और व्यापक रूप से स्वीकार्य समाधान के लिए स्थितियां बन रहीं हैं. सूत्रों ने कहा कि कई नेता एनआईए द्वारा पिछले मामलों में वांछित हैं, इसपर सरकार बड़ा फैसला ले सकती है. एनएससीएन (आईएसएके-एमयूआईवीएएच) से टूटकर एनएससीएन (के) का गठन नागालैंड की स्वतंत्रता के लिए 1988 में किया गया था. संगठन ने 2001 में भारत सरकार के साथ एक युद्धविराम समझौता किया था, मगर 2015 में यह आरोप लगाकर समझौता तोड़ दिया कि एनएससीएन (आईएम) के साथ सरकार की वार्ता में उसे आमंत्रित नहीं किया गया.

नई दिल्ली : नेहरूवादी युग में सेना को सख्ती से एक सीमा के भीतर काम करना होता था मगर अब भारतीय सेना कूटनीतिक जिम्मेदारियां भी निभाने लगी है. 31 दिसंबर 2019 को कार्यभार संभालने के बाद भारतीय सेना प्रमुख के रूप में जनरल मनोज मुकुंद नरवणे अब तक आधिकारिक तौर पर म्यांमार, नेपाल, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब का दौरा कर चुके हैं. आज से वह दक्षिण कोरिया की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं.

भारतीय सेना को काफी सफलता मिली

अगर बात सिर्फ नगा मुद्दे पर करें तो भारतीय सेना को अब तक काफी सफलता मिली है. नगा भूमिगत नेताओं में निकी सूमी की 19 दिसंबर को नगा हिल्स में वापसी और 25 दिसंबर को 54 से अधिक छापामार समर्थकों के साथ स्टारसन लामकांग की वापसी भारतीय सेना के कूटनीतिक प्रयासों की एक बड़ी सफलता है. म्यांमार सेना के साथ समन्वय कर भारतीय सेना ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के विद्रोही समूहों पर काफी हद तक लगाम लगा दी है. भारत-म्यांमार सैन्य सामरिक सहयोग का एक स्पष्ट परिणाम फरवरी 2019 में दिखा था. म्यांमार की सेना के साथ मिलकर भारतीय सेना ने तगा में विभिन्न पूर्वोत्तर भारतीय विद्रोही समूहों के एकीकृत मुख्यालय पर हमला किया था.

हथियारों के उपहार से म्यांमार ने की सख्ती

नागालैंड के कोहिमा में असम राइफल्स को इंस्पेक्टर जनरल (उत्तर) के रूप में कमान संभालने के कारण म्यांमार से जुड़ी सीमा के बारे में जनरल नरवणे की पूर्वोत्तर में उग्रवाद की स्थिति के बारे में काफी अच्छी समझ है. 4 अक्टूबर 2020 को म्यांमार की आधिकारिक यात्रा पर जनरल नरवणे गए तो यह आश्चर्य की बात नहीं थी. आश्चर्य की बात यह थी कि विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला साथ थे. इससे सेना के राजनयिक विश्वास को बढ़ाया गया. एक आधिकारिक सूत्र ने ईटीवी भारत को बताया कि टाटमाडा में अक्टूबर 2020 में विशेष रूप से निकी सुमी समूह को लक्षित करते हुए सैन्य अभियान चलाया गया था. इस समूह ने नागालैंड के फेक जिले में अपना कैंप बना लिया था. हथियारों और गोला-बारूद के उपहार ने म्यांमार को नगा विद्रोहियों पर सख्त होने के लिए मजबूर कर दिया. सुमी और स्टारसन क्रमशः नागालैंड और मणिपुर में सेमा और लामकांग नगा जनजातियों से एनएससीएन (खापलांग) गुट में नेता थे. इससे पहले 27 सितंबर को एक और एनएससीएन (के) नेता न्यामलांग कोन्याक भी सरकार के साथ चल रही वार्ता प्रक्रिया में शामिल हुए थे.

वांछित रहे नेताओं सरकार ले सकती है बड़ा फैसला

वापसी करने वाले नगा नेताओं पर एनआईए ने कई मामले दर्ज किए हुए हैं. यह संभावना है कि सरकार परिस्थितियों के कारण इन नेताओं के साथ विचारशील व्यवहार करे. इन प्रमुख नेताओं के आने से शांति प्रक्रिया मजबूत हुई है और एक सौहार्दपूर्ण और व्यापक रूप से स्वीकार्य समाधान के लिए स्थितियां बन रहीं हैं. सूत्रों ने कहा कि कई नेता एनआईए द्वारा पिछले मामलों में वांछित हैं, इसपर सरकार बड़ा फैसला ले सकती है. एनएससीएन (आईएसएके-एमयूआईवीएएच) से टूटकर एनएससीएन (के) का गठन नागालैंड की स्वतंत्रता के लिए 1988 में किया गया था. संगठन ने 2001 में भारत सरकार के साथ एक युद्धविराम समझौता किया था, मगर 2015 में यह आरोप लगाकर समझौता तोड़ दिया कि एनएससीएन (आईएम) के साथ सरकार की वार्ता में उसे आमंत्रित नहीं किया गया.

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