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तेलंगाना में 'मेदाराम जतारा' की धूम, जानें देश के दूसरे बड़े मेले की खासियत

तेलंगाना में 16 फरवरी से 'मेदाराम जतारा' ट्राइबल फेस्टिवल शुरू हुआ. कुंभ मेले के बाद मेदारम जतारा देश का दूसरा सबसे बड़ा मेला है, जिसे तेलंगाना की कोया जनजातीय मनाती है. मेदाराम जतारा, देवी सम्माक्का और सरलम्मा के सम्मान में आयोजित किया जाता है. यह चार दिवसीय उत्सव हर दो वर्षों में माघ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. देवी सम्माक्का की बेटी का नाम सरलअम्मा था. उनकी प्रतिमा कान्नेपल्ली के मंदिर में स्थापित है.

Sammakka Saralamma Jatara
मेदाराम जतारा मेला
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Published : Feb 18, 2022, 5:29 PM IST

हैदराबाद : तेलंगाना में 16 फरवरी से ट्राइबल फेस्टिवल 'मेदाराम जतारा' शुरू हुआ. मेले का तीसरा दिन अहम माना जाता है. गुरुवार को सरलम्मा, पागीडिड्डा राजू और गोविंद राजू के प्रतिक चिह्नों का जुलूस निकाला गया था. आज सम्माक्का को चिलकालगुट्टा में पहुंचाया गया है. ये जुलूस बड़े धूमधाम से निकाला गया, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में भीड़ सड़क के किनारे नजर आई. श्रद्धालुओं ने सम्मक्का का स्वागत किया. इस दौरान पुजारियों द्वारा पारंपरिक रूप से विशेष पूजा करने के बाद दर्शन किये तथा उनके दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी.

दरअसल, कुंभ मेले के बाद मेदारम जतारा देश का दूसरा सबसे बड़ा मेला है, जिसे तेलंगाना की कोया जनजातीय मनाती है. मेदाराम जतारा, देवी सम्माक्का और सरलम्मा के सम्मान में आयोजित किया जाता है. यह चार दिवसीय उत्सव हर दो वर्षों में माघ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. देवी सम्माक्का की बेटी का नाम सरलअम्मा था. उनकी प्रतिमा कान्नेपल्ली के मंदिर में स्थापित है. इस आयोजन में पुजारी भोर में एक खास तरह की पूजा करते हैं. पारंपरिक कोया पुजारी (काका वाड्डे), पहले दिन सरलम्मा के प्रतीक-चिह्नों आदरेलु(पवित्र पात्र), बंडारू(हल्दी) और केसर के चूरे के मिश्रण को कान्नेपाल्ले से लाते हैं और मंच पर स्थापित करते हैं. इसके बाद पारंपरिक संगीत में ढोलक, तूता कोम्मू/(सिंगी वाद्य-यंत्र) एवं मंजीरा आदी के वादन के बीच लोग नृत्य करते हैं. वहीं, जुलूस में शामिल तीर्थयात्री देवी मां के सामने नतमस्तक होकर अपने बच्चों और परिवार के लिये आशीर्वाद मांगते हैं.

देश का दूसरा सबसे बड़ा मेला मेदाराम जतारा

यह भी पढ़ें-चिलकालगुट्ट से सिंहासन पर पहुंचीं देवी सम्मक्का, भक्तों की उमड़ी भीड़

उसी दिन शाम को भक्त देवी सम्माक्का के पति पागीडिड्डा राजू के प्रतीक चिह्नों–पताका, आदेरालु और बंडारू को पुन्नूगोंदला गांव से पेनका वाड्डे लेकर आते हैं. इसके अलावा देवी सम्माक्का के बहनोई गोविंदराजू और उनकी बहन नागुलअम्मा के प्रतीक-चिह्नों को भी कोंडाई गांव से डुब्बागट्टा वाड्डे लेकर आया जाता है. यह गांव एतुरूनागराम मंडल, जयशंकर भूपालपल्ली में स्थित है और यहीं से प्रतीक-चिह्नों को मेदारम लाया जाता है. मेले में विभिन्न गांवों के श्रद्धालुओं के साथ कई अनुसूचित जनजातियां इकट्ठा होती हैं. उत्सव के बाद कान्नेपाल्ली के गांव के लोग आरती कर सरलअम्मा की भव्य विदाई का आयोजन करते हैं. इसके बाद सरलअम्मा की प्रतिमा को 'जामपन्ना वागू' (एक छोटी नहर, जिसका नाम जामपन्ना के नाम पर रखा गया है) के रास्ते मेदाराम लाया जाता है, जहां पहुंचकर सरलम्मा की विशेष पूजा होती है.

इस मेले में करोड़ों तीर्थयात्री मुलुगू जिले में आते हैं और पूरे हर्षोल्लास के साथ उत्सव मनाते हैं. यह त्योहार दो वर्ष में एक बार मनाया जाता है, जिसका आयोजन कोया जनजाति करती है. इसमें तेलंगाना सरकार का जनजातीय कल्याण विभाग सहयोग करता है. इस साल 'आजादी का अमृत महोत्सव' के तहत, भारत सरकार ने घोषणा की है कि 2022 के दौरान आदिवासी संस्कृति और विरासत पर मुख्य रूप से ध्यान दिया जाएगा.

इस साल जनजातीय कार्य मंत्रालय इस आयोजन की भरपूर सहायता करता रहा है एवं उत्सव के प्रत्येक कार्यक्रम की कवरेज कर रहा है. इस त्योहार का लक्ष्य जनजातीय संस्कृतियों, उत्सवों और विरासत के प्रति लोगों को जागरूक करना तथा आगंतुकों और तेलंगाना के जनजातीय समुदायों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ते को कायम रखना है. इसके लिए सरकार ने एक करोड़ 46 लाख रुपये का बजट आवंटित किया है. इसके अलावा कुल 130 डॉक्टर और 900 लोगों को स्टाफ तैनात किया गया है ताकि यात्रियों को किसी तरह की कोई परेशानी न हो.

हैदराबाद : तेलंगाना में 16 फरवरी से ट्राइबल फेस्टिवल 'मेदाराम जतारा' शुरू हुआ. मेले का तीसरा दिन अहम माना जाता है. गुरुवार को सरलम्मा, पागीडिड्डा राजू और गोविंद राजू के प्रतिक चिह्नों का जुलूस निकाला गया था. आज सम्माक्का को चिलकालगुट्टा में पहुंचाया गया है. ये जुलूस बड़े धूमधाम से निकाला गया, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में भीड़ सड़क के किनारे नजर आई. श्रद्धालुओं ने सम्मक्का का स्वागत किया. इस दौरान पुजारियों द्वारा पारंपरिक रूप से विशेष पूजा करने के बाद दर्शन किये तथा उनके दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी.

दरअसल, कुंभ मेले के बाद मेदारम जतारा देश का दूसरा सबसे बड़ा मेला है, जिसे तेलंगाना की कोया जनजातीय मनाती है. मेदाराम जतारा, देवी सम्माक्का और सरलम्मा के सम्मान में आयोजित किया जाता है. यह चार दिवसीय उत्सव हर दो वर्षों में माघ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. देवी सम्माक्का की बेटी का नाम सरलअम्मा था. उनकी प्रतिमा कान्नेपल्ली के मंदिर में स्थापित है. इस आयोजन में पुजारी भोर में एक खास तरह की पूजा करते हैं. पारंपरिक कोया पुजारी (काका वाड्डे), पहले दिन सरलम्मा के प्रतीक-चिह्नों आदरेलु(पवित्र पात्र), बंडारू(हल्दी) और केसर के चूरे के मिश्रण को कान्नेपाल्ले से लाते हैं और मंच पर स्थापित करते हैं. इसके बाद पारंपरिक संगीत में ढोलक, तूता कोम्मू/(सिंगी वाद्य-यंत्र) एवं मंजीरा आदी के वादन के बीच लोग नृत्य करते हैं. वहीं, जुलूस में शामिल तीर्थयात्री देवी मां के सामने नतमस्तक होकर अपने बच्चों और परिवार के लिये आशीर्वाद मांगते हैं.

देश का दूसरा सबसे बड़ा मेला मेदाराम जतारा

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उसी दिन शाम को भक्त देवी सम्माक्का के पति पागीडिड्डा राजू के प्रतीक चिह्नों–पताका, आदेरालु और बंडारू को पुन्नूगोंदला गांव से पेनका वाड्डे लेकर आते हैं. इसके अलावा देवी सम्माक्का के बहनोई गोविंदराजू और उनकी बहन नागुलअम्मा के प्रतीक-चिह्नों को भी कोंडाई गांव से डुब्बागट्टा वाड्डे लेकर आया जाता है. यह गांव एतुरूनागराम मंडल, जयशंकर भूपालपल्ली में स्थित है और यहीं से प्रतीक-चिह्नों को मेदारम लाया जाता है. मेले में विभिन्न गांवों के श्रद्धालुओं के साथ कई अनुसूचित जनजातियां इकट्ठा होती हैं. उत्सव के बाद कान्नेपाल्ली के गांव के लोग आरती कर सरलअम्मा की भव्य विदाई का आयोजन करते हैं. इसके बाद सरलअम्मा की प्रतिमा को 'जामपन्ना वागू' (एक छोटी नहर, जिसका नाम जामपन्ना के नाम पर रखा गया है) के रास्ते मेदाराम लाया जाता है, जहां पहुंचकर सरलम्मा की विशेष पूजा होती है.

इस मेले में करोड़ों तीर्थयात्री मुलुगू जिले में आते हैं और पूरे हर्षोल्लास के साथ उत्सव मनाते हैं. यह त्योहार दो वर्ष में एक बार मनाया जाता है, जिसका आयोजन कोया जनजाति करती है. इसमें तेलंगाना सरकार का जनजातीय कल्याण विभाग सहयोग करता है. इस साल 'आजादी का अमृत महोत्सव' के तहत, भारत सरकार ने घोषणा की है कि 2022 के दौरान आदिवासी संस्कृति और विरासत पर मुख्य रूप से ध्यान दिया जाएगा.

इस साल जनजातीय कार्य मंत्रालय इस आयोजन की भरपूर सहायता करता रहा है एवं उत्सव के प्रत्येक कार्यक्रम की कवरेज कर रहा है. इस त्योहार का लक्ष्य जनजातीय संस्कृतियों, उत्सवों और विरासत के प्रति लोगों को जागरूक करना तथा आगंतुकों और तेलंगाना के जनजातीय समुदायों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ते को कायम रखना है. इसके लिए सरकार ने एक करोड़ 46 लाख रुपये का बजट आवंटित किया है. इसके अलावा कुल 130 डॉक्टर और 900 लोगों को स्टाफ तैनात किया गया है ताकि यात्रियों को किसी तरह की कोई परेशानी न हो.

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