नई दिल्ली: जर्नल पीलओएस ग्लोबल पब्लिक हेल्थ में मंगलवार को प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि राज्यों के मामले में अरूणाचल प्रदेश ने सबसे खराब प्रदर्शन किया है. वैज्ञानिकों ने साल 2017-2019 के दौरान स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) में दर्ज 61,982,623 जीवित बच्चों की संख्या और 61,169 माताओं की मृत्यु के आंकड़ों का विश्लेषण किया.
एचएमआईएस एक वेब आधारित निगरानी प्रणाली है, जिसे स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने लगाया है. चूंकि साल 2011 की जनसंख्या के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया. इसलिए साल 2022 के 773 जिलों के बजाय, केवल 640 जिलों के ही आंकड़ों को लिया गया. शोधकर्ताओं ने कहा, अध्ययन के नतीजों से पता चलता है कि भारत में 70 प्रतिशत जिलों (640 में 448) में एमएमआर 70 से अधिक दर्ज की गई. मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख जन्म पर प्रजनन या गर्भावस्था की जटिलताओं के चलते होने वाली माताओं की मृत्यु को कहा जाता है. सतत विकास लक्ष्यों के तहत 2030 के लिए एमएमआर 70 निर्धारित किया गया है. भारत का एमएमआर अभी 113 है.
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अध्ययन में कहा गया है कि मातृ मृत्यु के मामले में विश्व में 15 प्रतिशत माताओं की मौत भारत में हुई. इस मामले में यह नाइजीरिया (19 प्रतिशत) के बाद दूसरे स्थान पर है. मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पोपुलेशन साइंसेज, यूनिवर्सिटी ऑफ पोर्ट्समाउथ, ब्रिटेन और यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने सर्वाधिक एमएमआर अरूणाचल प्रदेश (284) और सबसे कम महाराष्ट्र (40) में पाया. अध्ययन में मातृ मृत्यु दर पंजाब में 143, छत्तीसगढ़ (144), जम्मू कश्मीर (151), दिल्ली (162), राजस्थान (162), बिहार (164), मध्य प्रदेश (179), लक्षद्वीप (208), उत्तर प्रदेश (208) और असम में 209 पाया गया.
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अध्ययन के लेखकों ने जर्नल में कहा है, भारत की प्रतिदर्श पंजीकरण प्रणाली ने प्रति एक लाख शिशु के जन्म पर एमएमआर में गिरावट दर्ज की है जो 130 से घटकर 113 हो गई है. शोधकर्ताओं के अनुसार, हिमाचल प्रदेश के किन्नौर और लाहौल-स्पिति जिले में एमएमआर सबसे कम हैं. उन्होंने बताया कि 115 जिलों में मातृ मृत्यु दर का अनुमान 210 से अधिक या समान है, 125 जिलों में 140-209 है, जबकि 210 जिलों में 70-139 है. वहीं, सिर्फ 190 जिलों में ही मातृ मृत्यु दर अनुपात 70 से कम है.