नई दिल्ली: हमले के लिए माओवादी अपने अंडरग्राउंड वर्कर्स के अलावा भूमकाल मिलिशिया क्रांतिकारी, आदिवासी महिला संगठन, दंडकारण्य आदिवासी किसान मजदूर संगठन, चेतना नाट्य मंडली, बलाला दंडकारण्य चेतना नाट्य मंच जैसे फ्रंटल संगठनों की मदद से माओवादी दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (डीकेएसजेडसी) में अपनी विचारधाराओं को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं (Maoists are trying to keep their ideologies).
इसका खुलासा छत्तीसगढ़ में माओवादियों द्वारा किए गए आईईडी विस्फोट के कुछ दिनों बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) को सौंपी गई एक खुफिया ब्यूरो (आईबी) की रिपोर्ट में किया गया है.
एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने सोमवार को आईबी की रिपोर्ट के हवाले से ईटीवी भारत को बताया कि ये संगठन वर्तमान में माओवादियों के गढ़ में बन रहे सुरक्षा शिविरों के खिलाफ आदिवासियों को आंदोलन के लिए लामबंद करने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं.
फ्रंटल संगठनों और उसके अन्य सदस्यों की समय-समय पर पहचान की गई है, निगरानी में रखा गया है और कानून के अनुसार मुकदमा चलाया गया है. अधिकारी ने कहा कि 'हालांकि वे उतने मजबूत नहीं हैं, फिर भी गैर-वन क्षेत्रों में माओवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि धीरे-धीरे कमजोर पड़ रहे हैं. माओवादी डीकेएसजेडसी को गुरिल्ला आधार के रूप में बनाए रखने में सफल रहे हैं.
सख्ती से निपटना होगा : अधिकारी ने कहा कि 'सरकार और उसके सुरक्षा बलों के लिए उनके गढ़ों में माओवादियों से निपटना थोड़ा चुनौतीपूर्ण है. इस समस्या से विभिन्न स्तरों पर निपटने की जरूरत है.' DKSZC छत्तीसगढ़ में 1,00,000 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है, जो तत्कालीन आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा की सीमा से लगा हुआ है.
अधिकारी ने कहा कि 'देश के अन्य हिस्सों में नुकसान झेलने के बाद भी यह इलाका माओवादियों का आखिरी गढ़ बना हुआ है.' रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्व क्षेत्रीय ब्यूरो (माओवादियों के क्षेत्रीय ब्यूरो में से एक) में सुरक्षा बलों को हाल के दिनों में अच्छी सफलता मिली है जिसमें केंद्रीय समिति के कई सदस्यों की गिरफ्तारी भी शामिल है.
प्रशांत बोस उर्फ किशन डी के अलावा मिथिलेश मेहता उर्फ भिकारी, विजय आर्य उर्फ जसपाल और अरुण कुमार भट्टाचार्य उर्फ कंचन को क्रमश: झारखंड-छत्तीसगढ़ सीमा, बिहार-उत्तर प्रदेश सीमा और असम में माओवादी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक 'माओवादियों द्वारा संगठनात्मक नेटवर्क को मजबूत करके इन पूर्व गढ़ों में फिर से जमीन हासिल करने के प्रयासों को कोई सफलता नहीं मिली है.' दक्षिण क्षेत्रीय ब्यूरो का पूर्ण पैमाने पर संचालन हमेशा भाकपा माओवादियों के अधूरे एजेंडे में से एक रहा है.
हालांकि इसे वर्ष 2002 में दक्षिण पश्चिम क्षेत्रीय ब्यूरो के नाम पर गठित किया गया था, इसे वर्ष 2018 में दक्षिण क्षेत्रीय ब्यूरो के रूप में बदल दिया गया. हालांकि, शीर्ष नेतृत्व के लगातार नुकसान के कारण माओवादी कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के इस त्रि-जंक्शन क्षेत्र में कोई घुसपैठ करने में नाकाम रहे हैं.
गौरतलब है कि उत्तर क्षेत्रीय ब्यूरो हमेशा पूर्णकालिक सक्रिय संवर्ग के बिना एक नाममात्र का ब्यूरो रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि एकमात्र गढ़ जहां सीपीआई माओवादी वास्तव में मजबूत हैं और सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं, वह केंद्रीय क्षेत्रीय ब्यूरो का डीकेएसजेडसी है.
दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति जिसमें पहाड़ी इलाकों और घने जंगल के साथ एक विशाल क्षेत्र शामिल है, केंद्रीय समिति के सदस्यों की एक महत्वपूर्ण संख्या को आश्रय देना जारी रखे है.
लगभग 80 प्रतिशत केंद्रीय समिति के सदस्य DKSZC में तैनात हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि 'डीकेएसजेडसी को आगे तीन सब जोनल ब्यूरो, नौ मंडल समितियों और 32 क्षेत्रीय समितियों में विभाजित किया गया है, जो छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र और ओडिशा में जिलों को कवर करते हैं.'
रिपोर्ट में कहा गया है कि माओवादियों द्वारा बीज, खाद बांटने, कुएं खोदने आदि जैसी कई पहलों ने इन क्षेत्रों के आदिवासियों का दिल जीत लिया है. ऐसे में बड़े पैमाने पर जनता और असंगठित क्षेत्रों को कवर करने वाले फ्रंटल संगठन का विविधीकरण जिसके परिणामस्वरूप निगरानी एक कठिन कार्य है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि माओवादियों के कई फ्रंटल संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के फैसले ने रेडिकल स्टूडेंट्स यूनियन (प्रतिबंधित) जैसे कई जन आधारित संगठनों को तेलंगाना विद्यार्थी वेदिका आदि के रूप में पुनर्गठित किया है.
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