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पूर्वोत्तर के सीमा-विवाद पर रिपोर्ट तैयार करेगी केंद्रीय समिति, जल्द होगा क्षेत्र का दौरा - गृह मंत्रालय में वरिष्ठ नौकरशाह और पूर्व संयुक्त सचिव

पूर्वोत्तर में दशकों से चले आ रहे सीमा-विवाद से स्तब्ध केंद्र सरकार जल्द ही इसकी रिपोर्ट तैयार करेगी. मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस से केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त समिति इस क्षेत्र का दौरा करेगी और संघर्ष के कारण और उसके समाधान पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी.

Manohar
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Published : Aug 28, 2021, 8:04 PM IST

Updated : Aug 28, 2021, 9:24 PM IST

नई दिल्ली : पूर्वोत्तर में जारी सीमा-विवाद की रिपोर्ट तैयार करने वाली चार सदस्यीय समिति का नेतृत्व गृह मंत्रालय में वरिष्ठ नौकरशाह और पूर्व संयुक्त सचिव (NE Division) शंभू सिंह करेंगे.

नई दिल्ली में ईटीवी भारत से बात करते हुए शंभु सिंह ने कहा कि अभी समिति मूल रूप से हर विवरण का दस्तावेजीकरण कर रही है कि आखिर इस तरह के टकराव की वजह क्या है?

वरिष्ठ नौकरशाह शंभु सिंह ने कहा कि हम ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर गौर करेंगे, जिससे ऐसी स्थिति पैदा हुई, जहां सीमा-विवाद होते रहते हैं. साथ ही समिति, सरकार को कुछ सुझाव भी देगी. उल्लेखनीय है कि 26 जुलाई को असम-मिजोरम के बीच हुए दुर्लभ खूनी संघर्ष में असम पुलिस के छह जवानों और एक नागरिक की जान चली गई थी.

उन्होंने कहा कि हमारा व्यापक उद्देश्य स्पष्ट रूप से यह बताना है कि ये विवाद कैसे और क्यों हुए हैं? सिंह ने कहा कि जहां तक ​​पूर्वोत्तर का संबंध है तो असम मातृ राज्य रहा है. सिंह ने कहा कि मणिपुर और त्रिपुरा (दो रियासतों) को छोड़कर पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को असम से अलग किया गया है.

पूर्व संयुक्त सचिव (NE Division) शंभू सिंह से बातचीत

सिंह ने बताया कि अरुणाचल प्रदेश एक अलग श्रेणी में था. लेकिन अरुणाचल प्रदेश और असम की जमीन सामान्य थी, और जब अरुणाचल प्रदेश (नेफा के तहत) एक केंद्र शासित प्रदेश हुआ करता था. बाद में लगभग 900 वर्ग किलोमीटर भूमि असम को हस्तांतरित कर दी गई थी. इसलिए अरुणाचल प्रदेश पूछ रहा है कि जमीन उन्हें वापस कर दी जाए. जहां तक ​​नागालैंड की बात है तो रिजर्व फॉरेस्ट में अतिक्रमण हो चुका है जो पहले असम की सीमा के भीतर था. यह एक और विवाद है.

वरिष्ठ नौकरशाह सिंह ने कहा कि मेघालय के साथ सीमा विवाद काफी हद तक नियंत्रण में है क्योंकि दोनों राज्य समझते हैं कि क्या करने की आवश्यकता है. सिंह को केंद्रीय गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में पूर्वोत्तर में काम करने का व्यापक अनुभव है.

मिजोरम के साथ सीमा-विवाद का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा कि यह संघर्ष, हाल का विवाद नहीं है. जब इनर लाइन शुरू की गई थी, तब वह एक आरक्षित वन था, जिसे मिजोरम में इनर लाइन में शामिल किया गया था. इसके बाद, जब मिजोरम को असम से अलग किया गया तो यह आरक्षित वन असम को वापस दे दिया गया.

मिजोरम मांग कर रहा है कि 1873 की आंतरिक एक रेखा के अनुसार उसे वापस कर दिया जाए. मिजोरम की ओर से मांग की जा रही है कि 389 वर्ग मील इनर लाइन आरक्षित वन क्षेत्र जो असम सरकार के कब्जे में है, वह उन्हें सौंप दिया जाए.

सिंह ने कहा कि अतिक्रमण मुख्य रूप से बंगाली भाषी आबादी द्वारा किया जा रहा है जो बाहर से आते हैं और वे असम की मूल बंगाली आबादी नहीं हैं. सिंह द्वारा दिया गया बयान बांग्लादेश घुसपैठियों द्वारा कथित रूप से किए गए अतिक्रमण के बाद महत्व रखता है.

सिंह ने कहा कि मिजो के पास जमीन के पट्टे हैं और उस क्षेत्र में उनके कृषि फार्म हैं. इसलिए हितों का टकराव है. एक तरफ लोग अधिक जमीन चाहते हैं और दूसरी तरफ लोग अपनी जमीन नहीं खोना चाहते. सिंह के अनुसार पूर्वोत्तर में विभिन्न राज्यों के बीच जटिल सीमा मुद्दे को मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ सुलझाया जा सकता है.

सिंह ने कहा कि राजनीतिक नेताओं को किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सहमत होना होगा. लेकिन ऐसा लगता है कि कोई भी मुख्यमंत्री राजनीतिक लाभ खोने के कारण अपनी जमीन दूसरे राज्य को देने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं है.

मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस की टीम ने जून में पहले ही दौरा किया था और सीमा मुद्दे पर राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के साथ विस्तृत चर्चा की थी. असम और मिजोरम लगभग 165 किमी की सीमा साझा करते हैं. ब्रिटिश शासकों ने लुशाई हिल्स (मिजोरम को पहले के इसी नाम से जाना जाता था) और कछार हिल्स (असम) के बीच की सीमा का सीमांकन किया था.

इस उद्देश्य के लिए 1873 में एक अधिसूचना जारी की गई, जिसे बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन (बीईएफआर) कहा गया. जो इनर लाइन परमिट (आईएलपी) नियमों को परिभाषित करता है.

यह भी पढ़ें-कोलकाता के सामुदायिक दुर्गा पूजा पंडालों में भी जलवा बिखेरेगा 'खेला होबे' नारा

बाद में असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में बीईएफआर को हटा लिया गया. हालांकि मिजोरम और नागालैंड में यह लागू रहा. मिजोरम ने 1993 की लुशाई हिल्स अधिसूचना की आंतरिक रेखा के साथ इसका समर्थन किया.

नई दिल्ली : पूर्वोत्तर में जारी सीमा-विवाद की रिपोर्ट तैयार करने वाली चार सदस्यीय समिति का नेतृत्व गृह मंत्रालय में वरिष्ठ नौकरशाह और पूर्व संयुक्त सचिव (NE Division) शंभू सिंह करेंगे.

नई दिल्ली में ईटीवी भारत से बात करते हुए शंभु सिंह ने कहा कि अभी समिति मूल रूप से हर विवरण का दस्तावेजीकरण कर रही है कि आखिर इस तरह के टकराव की वजह क्या है?

वरिष्ठ नौकरशाह शंभु सिंह ने कहा कि हम ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर गौर करेंगे, जिससे ऐसी स्थिति पैदा हुई, जहां सीमा-विवाद होते रहते हैं. साथ ही समिति, सरकार को कुछ सुझाव भी देगी. उल्लेखनीय है कि 26 जुलाई को असम-मिजोरम के बीच हुए दुर्लभ खूनी संघर्ष में असम पुलिस के छह जवानों और एक नागरिक की जान चली गई थी.

उन्होंने कहा कि हमारा व्यापक उद्देश्य स्पष्ट रूप से यह बताना है कि ये विवाद कैसे और क्यों हुए हैं? सिंह ने कहा कि जहां तक ​​पूर्वोत्तर का संबंध है तो असम मातृ राज्य रहा है. सिंह ने कहा कि मणिपुर और त्रिपुरा (दो रियासतों) को छोड़कर पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को असम से अलग किया गया है.

पूर्व संयुक्त सचिव (NE Division) शंभू सिंह से बातचीत

सिंह ने बताया कि अरुणाचल प्रदेश एक अलग श्रेणी में था. लेकिन अरुणाचल प्रदेश और असम की जमीन सामान्य थी, और जब अरुणाचल प्रदेश (नेफा के तहत) एक केंद्र शासित प्रदेश हुआ करता था. बाद में लगभग 900 वर्ग किलोमीटर भूमि असम को हस्तांतरित कर दी गई थी. इसलिए अरुणाचल प्रदेश पूछ रहा है कि जमीन उन्हें वापस कर दी जाए. जहां तक ​​नागालैंड की बात है तो रिजर्व फॉरेस्ट में अतिक्रमण हो चुका है जो पहले असम की सीमा के भीतर था. यह एक और विवाद है.

वरिष्ठ नौकरशाह सिंह ने कहा कि मेघालय के साथ सीमा विवाद काफी हद तक नियंत्रण में है क्योंकि दोनों राज्य समझते हैं कि क्या करने की आवश्यकता है. सिंह को केंद्रीय गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में पूर्वोत्तर में काम करने का व्यापक अनुभव है.

मिजोरम के साथ सीमा-विवाद का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा कि यह संघर्ष, हाल का विवाद नहीं है. जब इनर लाइन शुरू की गई थी, तब वह एक आरक्षित वन था, जिसे मिजोरम में इनर लाइन में शामिल किया गया था. इसके बाद, जब मिजोरम को असम से अलग किया गया तो यह आरक्षित वन असम को वापस दे दिया गया.

मिजोरम मांग कर रहा है कि 1873 की आंतरिक एक रेखा के अनुसार उसे वापस कर दिया जाए. मिजोरम की ओर से मांग की जा रही है कि 389 वर्ग मील इनर लाइन आरक्षित वन क्षेत्र जो असम सरकार के कब्जे में है, वह उन्हें सौंप दिया जाए.

सिंह ने कहा कि अतिक्रमण मुख्य रूप से बंगाली भाषी आबादी द्वारा किया जा रहा है जो बाहर से आते हैं और वे असम की मूल बंगाली आबादी नहीं हैं. सिंह द्वारा दिया गया बयान बांग्लादेश घुसपैठियों द्वारा कथित रूप से किए गए अतिक्रमण के बाद महत्व रखता है.

सिंह ने कहा कि मिजो के पास जमीन के पट्टे हैं और उस क्षेत्र में उनके कृषि फार्म हैं. इसलिए हितों का टकराव है. एक तरफ लोग अधिक जमीन चाहते हैं और दूसरी तरफ लोग अपनी जमीन नहीं खोना चाहते. सिंह के अनुसार पूर्वोत्तर में विभिन्न राज्यों के बीच जटिल सीमा मुद्दे को मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ सुलझाया जा सकता है.

सिंह ने कहा कि राजनीतिक नेताओं को किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सहमत होना होगा. लेकिन ऐसा लगता है कि कोई भी मुख्यमंत्री राजनीतिक लाभ खोने के कारण अपनी जमीन दूसरे राज्य को देने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं है.

मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस की टीम ने जून में पहले ही दौरा किया था और सीमा मुद्दे पर राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के साथ विस्तृत चर्चा की थी. असम और मिजोरम लगभग 165 किमी की सीमा साझा करते हैं. ब्रिटिश शासकों ने लुशाई हिल्स (मिजोरम को पहले के इसी नाम से जाना जाता था) और कछार हिल्स (असम) के बीच की सीमा का सीमांकन किया था.

इस उद्देश्य के लिए 1873 में एक अधिसूचना जारी की गई, जिसे बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन (बीईएफआर) कहा गया. जो इनर लाइन परमिट (आईएलपी) नियमों को परिभाषित करता है.

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बाद में असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में बीईएफआर को हटा लिया गया. हालांकि मिजोरम और नागालैंड में यह लागू रहा. मिजोरम ने 1993 की लुशाई हिल्स अधिसूचना की आंतरिक रेखा के साथ इसका समर्थन किया.

Last Updated : Aug 28, 2021, 9:24 PM IST
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