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आखिर कहां हुआ सबसे पहले खाकी कपड़े का इस्तेमाल, जानें क्या है खाकी रंग का इतिहास - khaki cloth

देश में पुलिस विभाग से लेकर कई अन्य विभागों में कर्मचारियों की वर्दी का रंग खाकी है. इस रंग को सबसे ज्यादा विभागों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन क्या आपने सोचा है कि यह खाकी रंग कहां से आया. तो चलिए आपको बताते हैं खाकी रंग के इतिहास के बारे में...

खाकी रंग
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Published : Nov 14, 2022, 6:46 PM IST

मैंगलोर (कर्नाटक): देश के लगभग सभी राज्यों में पुलिसकर्मियों की वर्दी का रंग खाकी यानी हल्के पीले-भूरे रंग का है. लेकिन क्या कभी आपने इस बारे में सोचा है कि पुलिस की इस वर्दी का इस्तेमाल कहां से शुरू हुआ और इसे सबसे पहले कहां बनाया गया था. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पुलिस की वर्दी के बारे में टिप्पणी करने के चलते इस समय यह चर्चा में है.

पीएम मोदी ने 'वन नेशन-वन यूनिफॉर्म' नीति का प्रस्ताव रखा था. तो चलिए आपको बताते हैं इस खाकी के इतिहास के बारे में कुछ खास बातें.

मैंगलोर में हुआ था आविष्कार: खाकी कपड़े को विशेष सम्मान में रखा गया था. खाकी कपड़े का उपयोग विभिन्न सरकारी विभागों में वर्दी के रूप में किया जाता है. खास बात यह है कि 'मैंगलोर' ने इस खाकी कपड़े को दुनिया के सामने पेश किया. राज्य में पुलिस विभाग, डाक कर्मियों, परिवहन कर्मियों में वर्दी के रूप में खाकी कपड़े का उपयोग किया जाता है.

खाकी कपड़े का उपयोग देश के विभिन्न भागों में विभिन्न विभागों में वर्दी के रूप में भी किया जाता है. खाकी रंग पद की गरिमा लाता है. अगर आप पूछेंगे कि यह खाकी रंग कहां से आता है, तो आपको मैंगलोर में जवाब मिल जाएगा.

खाकी रंग का इतिहास: कर्नाटक में खाकी कपड़े की खोज हुई थी. वह भी तटीय कर्नाटक के मैंगलोर में. यहीं से दुनिया का परिचय रंग खाकी से हुआ. यह पहली बार मैंगलोर के बालमाथा में एक बुनाई कारखाने में बनाया गया था. 1834 में, बाशेल मिशनरी संगठन ने मैंगलोर में प्रवेश किया.

इस संगठन ने 1844 में बालमथा में एक बुनाई का कारखाना शुरू किया. 1852 में जर्मनी के जॉन एलर ने अपने शोध से खाकी रंग और कपड़ा विकसित किया. काजू के छिलके और काजू की छाल से तैयार रस को मिलाकर खाकी रंग पाया गया. 1852 से बालमाथा के बुनाई कारखाने में खाकी कपड़े का उत्पादन शुरू किया गया था.

1860 में केनरा जिले में खाकी कपड़े को पुलिस की वर्दी बना दिया गया. मद्रास प्रांत के गवर्नर लॉर्ड रॉबर्ट मैंगलोर में एक बुनाई कारखाने का दौरा करने पर खाकी रंग और कपड़े से प्रभावित हुए. जैसे ही वे मद्रास गए और ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर मद्रास प्रांत में ब्रिटिश सैनिकों को वर्दी पहनने की सिफारिश की.

ब्रिटिश सैनिकों की वर्दी के रूप में की थी शुरुआत: लॉर्ड रॉबर्ट द्वारा की गई सिफारिश को ब्रिटिश सरकार ने स्वीकार कर लिया और मद्रास प्रांत के सैनिकों की वर्दी के रूप में शुरू किया. उसके बाद लॉर्ड रॉबर्ट ने सिफारिश की कि खाकी को पूरी दुनिया में सभी ब्रिटिश सैनिकों की वर्दी बना दिया जाए. इसे ब्रिटिश सरकार ने भी स्वीकार कर लिया. इसके जरिए दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में ब्रिटिश सैनिकों को खाकी वर्दी उपलब्ध कराई गई.

पढ़ें: जंगल में लापता मालिक को डॉगी ने खोज निकाला, समय पर इलाज मिलने से बची जान

दुनिया में मैंगलोर का योगदान: इसको लेकर पीएचडी करने वाले पुत्तूर विवेकानंद कॉलेज के रिटायर्ड प्रिंसिपल पीटर विल्सन प्रभाकर का कहना है कि 'बाशेल मिशनरी संस्था ने मैंगलोर में खाकी रंग और कपड़े पर शोध कर इसे दुनिया के सामने पेश किया. खाकी वर्दी, जिसे 1852 में पेश किया गया था, अभी भी कई देशों में बनी हुई है. यह दुनिया को मैंगलोर का योगदान है. एक जरूरी सांस्कृतिक और विरासत मील का पत्थर.'

आगे उन्होंने कहा कि यही तट की पहचान है. उन्होंने कहा कि एकल वर्दी नीति लागू होने पर एक ही वर्दी का रखरखाव किया जाता था. खाकी रंग ने न केवल पुलिस विभाग को आकर्षित किया, बल्कि आगे भी बढ़ाया. खाकी कपड़े का उपयोग परिवहन, पुलिस, डाकिया, ड्राइवर, कंडक्टर आदि में किया जाता है. यह दुनिया में ज्यादातर विभागों के लिए वर्दी है. यह महत्वपूर्ण है कि मैंगलोर ने ऐसा योगदान दिया है.

मैंगलोर (कर्नाटक): देश के लगभग सभी राज्यों में पुलिसकर्मियों की वर्दी का रंग खाकी यानी हल्के पीले-भूरे रंग का है. लेकिन क्या कभी आपने इस बारे में सोचा है कि पुलिस की इस वर्दी का इस्तेमाल कहां से शुरू हुआ और इसे सबसे पहले कहां बनाया गया था. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पुलिस की वर्दी के बारे में टिप्पणी करने के चलते इस समय यह चर्चा में है.

पीएम मोदी ने 'वन नेशन-वन यूनिफॉर्म' नीति का प्रस्ताव रखा था. तो चलिए आपको बताते हैं इस खाकी के इतिहास के बारे में कुछ खास बातें.

मैंगलोर में हुआ था आविष्कार: खाकी कपड़े को विशेष सम्मान में रखा गया था. खाकी कपड़े का उपयोग विभिन्न सरकारी विभागों में वर्दी के रूप में किया जाता है. खास बात यह है कि 'मैंगलोर' ने इस खाकी कपड़े को दुनिया के सामने पेश किया. राज्य में पुलिस विभाग, डाक कर्मियों, परिवहन कर्मियों में वर्दी के रूप में खाकी कपड़े का उपयोग किया जाता है.

खाकी कपड़े का उपयोग देश के विभिन्न भागों में विभिन्न विभागों में वर्दी के रूप में भी किया जाता है. खाकी रंग पद की गरिमा लाता है. अगर आप पूछेंगे कि यह खाकी रंग कहां से आता है, तो आपको मैंगलोर में जवाब मिल जाएगा.

खाकी रंग का इतिहास: कर्नाटक में खाकी कपड़े की खोज हुई थी. वह भी तटीय कर्नाटक के मैंगलोर में. यहीं से दुनिया का परिचय रंग खाकी से हुआ. यह पहली बार मैंगलोर के बालमाथा में एक बुनाई कारखाने में बनाया गया था. 1834 में, बाशेल मिशनरी संगठन ने मैंगलोर में प्रवेश किया.

इस संगठन ने 1844 में बालमथा में एक बुनाई का कारखाना शुरू किया. 1852 में जर्मनी के जॉन एलर ने अपने शोध से खाकी रंग और कपड़ा विकसित किया. काजू के छिलके और काजू की छाल से तैयार रस को मिलाकर खाकी रंग पाया गया. 1852 से बालमाथा के बुनाई कारखाने में खाकी कपड़े का उत्पादन शुरू किया गया था.

1860 में केनरा जिले में खाकी कपड़े को पुलिस की वर्दी बना दिया गया. मद्रास प्रांत के गवर्नर लॉर्ड रॉबर्ट मैंगलोर में एक बुनाई कारखाने का दौरा करने पर खाकी रंग और कपड़े से प्रभावित हुए. जैसे ही वे मद्रास गए और ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर मद्रास प्रांत में ब्रिटिश सैनिकों को वर्दी पहनने की सिफारिश की.

ब्रिटिश सैनिकों की वर्दी के रूप में की थी शुरुआत: लॉर्ड रॉबर्ट द्वारा की गई सिफारिश को ब्रिटिश सरकार ने स्वीकार कर लिया और मद्रास प्रांत के सैनिकों की वर्दी के रूप में शुरू किया. उसके बाद लॉर्ड रॉबर्ट ने सिफारिश की कि खाकी को पूरी दुनिया में सभी ब्रिटिश सैनिकों की वर्दी बना दिया जाए. इसे ब्रिटिश सरकार ने भी स्वीकार कर लिया. इसके जरिए दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में ब्रिटिश सैनिकों को खाकी वर्दी उपलब्ध कराई गई.

पढ़ें: जंगल में लापता मालिक को डॉगी ने खोज निकाला, समय पर इलाज मिलने से बची जान

दुनिया में मैंगलोर का योगदान: इसको लेकर पीएचडी करने वाले पुत्तूर विवेकानंद कॉलेज के रिटायर्ड प्रिंसिपल पीटर विल्सन प्रभाकर का कहना है कि 'बाशेल मिशनरी संस्था ने मैंगलोर में खाकी रंग और कपड़े पर शोध कर इसे दुनिया के सामने पेश किया. खाकी वर्दी, जिसे 1852 में पेश किया गया था, अभी भी कई देशों में बनी हुई है. यह दुनिया को मैंगलोर का योगदान है. एक जरूरी सांस्कृतिक और विरासत मील का पत्थर.'

आगे उन्होंने कहा कि यही तट की पहचान है. उन्होंने कहा कि एकल वर्दी नीति लागू होने पर एक ही वर्दी का रखरखाव किया जाता था. खाकी रंग ने न केवल पुलिस विभाग को आकर्षित किया, बल्कि आगे भी बढ़ाया. खाकी कपड़े का उपयोग परिवहन, पुलिस, डाकिया, ड्राइवर, कंडक्टर आदि में किया जाता है. यह दुनिया में ज्यादातर विभागों के लिए वर्दी है. यह महत्वपूर्ण है कि मैंगलोर ने ऐसा योगदान दिया है.

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